राजनैतिक तूफान भूकम्प की प्रबल संभावना ;राजनैतिक जहाज से चूहे कूद कर कांग्रेस के जहाज पर सवार

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक। दूरभाष – 94161 91877 Himalaya UK News

विप्र एक वैदिक शिव पूजा।करहीं सदा तेई काम न दूजा।। दूसरों को संभालने और समझाने से पहले तो हमें खुद समझना होगा ….

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पानीपत : प्रसिद्ध साहित्यकार ज्योतिषाचार्य डा. महेन्द्र शर्मा ने पितृपक्ष में हरियाणा के चुनाव और उसके परिणामों को लेकर विशेष बातचीत में बताया कि सब से पहले तो हम ब्राह्मण हैं, हमारे रक्तबीज ( डी एन ए ) में ही राजनीति है , दूसरे हम अपने घर परिवार नगर और प्रदेश को छोड़ कर कहीं और क्यों जाएं …. हम तो ब्राह्मण है हम दूसरों के लिए झूठ नहीं बोल सकते।

सौहार्द, धर्म और नीति की बात जहां पर नहीं सुनी जाती वहां पर धर्मज्ञ और विद्वान पुरुषों को नहीं रहना चाहिए। महाभारत में जब भगवान श्री कृष्ण महाभारत को रोकने के लिए शान्ति प्रस्ताव ले कर आए थे तो दुर्योधन ने भगवान श्री कृष्ण का अपमान किया और साथ ही विदुर जी से भी दुर्व्यवहार किया तो विदुर जी ने राजदरबार में खिन्न हो कर कहा … यद्यपि युद्ध कला और उसके परिणाम को मैं भी जानता हूं लेकिन मैं अपना धनुष बाण राजदरबार के द्वार पर रख कर तीर्थाटन को जा रहा हूं। जो लोग स्वार्थ अधर्म और अनीति पर चलते हैं तो उनका समूल नाश होना निश्चित है … अनीति पालकों का क्या हश्र हुआ। कर्मों से ही प्रारब्ध का निर्माण होता है, कर्मों का बीज चाहे उलटा बोया जाए या सीधा वह एक न एक दिन तो अंकुरित होना ही है। इस लिए ईश्वर को साथ रखते हुए विवेक का प्रयोग करें कि सभी दुष्कर्मों का परिणाम केवल और केवल तुम्हें ही भोगना पड़ेगा।

भाजपा की एक राजनैतिक आदत सी रही है कि वह मगरमच्छ और बंदर वाली राजनीति कर दूसरों को छद्म प्रेम पाशमें फंसा कर उसका वर्चस्व समाप्त करने की कोशिश करती है। ऐसे बहुत से दृष्टांत भी हैं जो घटित हुई , महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी को तोड़ा, कर्नाटक में कुमार स्वामी, बिहार में नीतीश मध्यप्रदेश में सिंधिया को तोड़ा और सत्ताधीश बनी। यह भी समझ नहीं आता कि क्या दूसरे राजनैतिक दलों में भी कुछ नेता स्वर्गीय राम विलासपासवान की तरह राजपूत बने रहना चाहते हैं, सत्ता पर बने रहने की फिराक में रहते हैं चाहे किसी भी पार्टी का राज्य हो, शीघ्र ही ऐसे लोगों का इतिहास बनने वाला है। यह लोग समझें या न समझें लेकिन जनता अब जागरूक हो चुकी है और इनसे घोर निराश है।

हरियाणा में कुछ इसी तरह का राजनैतिक घटनाक्रम रहा है जिस में तीनों लालों चौधरी बंसीलाल चौधरी देवी लाल और चौधरी भजन लाल इन तीनों के साथ मिल कर भाजपा ने पहले तो सत्ता की मलाई चाटी और फिर इनकी राजनैतिक प्लेट को भी चाट गए। आज इन तीनों लालों के उतराधिकारी अपने पारिवारिक राजनैतिक अस्तित्व को भी बचा नहीं सके।

हरियाणा में राजनैतिक चुनाव का बिगुल बज चुका है। नेताओं में अयाराम गयाराम आन्दोलन जोरों से चल रहा है। चुनावों में क्या परिणाम होगा अब यह विषय ज्योतिषियों का न रह कर उन राजपूत छुट भईया नेताओं का बन गया है क्यों की इन लोगों को अपने बचाव के लिए शरणागत स्थल की दरकार होती है , इस लिए इनकी हलचल राजनैतिक भविष्यफल बता देती है कि कल किस दल की सत्ता होगी। कुछ राजनैतिक भविष्य फल और परिणाम तो इन राजपूत लोगों ने निश्चित कर दिया है। अब इसके बाद जो शेष बचा है जिस को हम बर्फी पर चांदी का वर्क लगाना कह सकते हैं वह हम ब्राह्मणों के हिस्से में आया है कि क्या घटनाक्रम रहेगा। निश्चित ही हमारा देश एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है लेकिन इस देश में कोई भी प्रोजेक्ट बिना मुहूर्त के नहीं होता। अब इन सत्ताधारियों को देखिए सारा दिन धर्म धर्म हिंदू मुस्लिम करते रहते हैं।

एक बार नीचस्थ चंद्रमा के आकाश में मंगल यान असफल करवा चुके हैं जब नीचस्थ मंगल के मंगल पर भेजा गया यान अंतिम क्षण में विफल हो गया था और अब हरियाणा के चुनाव पहले तो पितृपक्ष में हो रहे हैं दूसरे चुनाव की तिथि रिक्ता चतुर्दशी है।

भारतीय ज्योतिष सिद्धांतानुसार कन्यागत सूर्य में शुभ कार्य वर्जित होते हैं और दूसरा दोष चतुर्दशी तिथि , इस पर किया गया कोई भी कार्य सफल नहीं होता शून्यता बनी रहती है। इस का राजनैतिक प्रभाव का आप स्वयं आंकलन करें कि कांग्रेस के दरबार में टिकटार्थियों की संख्या असंख्यों में है, राजनैतिक तूफान और भूकम्प की प्रबल संभावना के कारण दूसरों के जहाज से चूहे कूद कूद कर कांग्रेस के जहाज पर सवार हो रहे हैं।

अभी कल ही नगर के प्रतिष्ठित महानुभाव के यहां जाना हुआ तो बार कुछ नेताओं के फोन आ रहे है, साहिब जी! हमारी सिफारिश कर दो, हमारा जुगाड करवा दो जी और नेताजी से अजी हमारी बस एक मीटिंग करवा दो जी … इस हालत में श्राद्ध होना तो निश्चित हो चुका है। अब की बार वाला फ्लॉप नारा और किसी की गारंटी वाला स्लोगन भी न तो सुनाई दे रहा है और न ही कहीं पोस्टर पर लिखा हुआ … सत्ताधीशों के स्थानीय नेता स्वयं अपनी पराजय स्वीकार कर चुके है … यह तो गए। जब इनका स्थानीय केडर ही पराजय स्वीकार कर चुका है तो ऐसे घोड़े पर कोई नवांगतुक व्यक्ति तो भले ही या भूले से दाव लगा दे कि और कुछ नहीं नाम तो होगा बाकी जो नेता राजनैतिक समझदारी रखते हैं उन्होंने तो संसद के चुनावों के टिकट नहीं मांगे थे, क्यों की वह राजनैतिक धरातल की सच्चाई जानते थे कि काठ की हांडी दो बार तो चढ़ चुकी है अब की बार तो इस का पैंदा टूट जायेगा और उनकी राजनैतिक प्रतिष्ठा का रायता फैलेगा। चर्चा विदुर जी से प्रारंभ की थी और उन्हीं के नाम के साथ ही उपसंहार करें। अब के विधान सभा चुनावों में भी यही होगा कि समझदार नेता चुप्पी साध कर राजनैतिक संन्यास आश्रम में विश्राम करने चले जायेंगे और राजनैतिक परिणामों के आने तक विदुर भगवान की तरह तीर्थ यात्राऐं करेंगे। आप को विश्वास न हो तो तीर्थों पर जाकर स्वयं देख लेना कि नए प्रत्याशियों को स्थानीय स्टार प्रचारक भी नहीं मिलेंगे क्योंकि उनके जनता का सामना करने की कुव्व्त नहीं बची। बड़ी आंखें ईश्वर की हैं, जो ईश्वर चाहेंगे वही होगा लेकिन मेरे मतानुसार कांग्रेस को 57 से 64 सीटें मिलने का अनुमान है। बाकी राजनैतिक हलुवा शेष राष्ट्रीय और स्थानीय प्रदेश की राजनैतिक दलों में बंटना तय है।

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