उत्तराखण्ड के लोक कवि हीरा सिंह राणा-है अस्वस्थ्य
हिमालयायूके लीडिेग न्यूज पोर्टल तथा दैनिक समाचार पत्र – के लिए चन्द्रशेखर जोशी मुख्य सम्पादक द्वारा
लोक कवि हीरा सिंह राणा जी अस्वस्थ्य है, राज्य सरकार, समाज को उनकी लिए ध्यान देना चाहिए- हिमालयायूके के संज्ञान में यह मामला तब आया जब एक सामाजिक कार्यकर्ता कमल रजवार जी ने सोशल मीडिया में पोस्ट किया कि समाज को इस समय हीरा सिह राणा की मदद करनी चाहिए- क्यों न हम सामाजिक प्राणी इस ओर पहल करें- बात गंभीर थी- और गौरतलब थी- एक रिपोर्ट-
कुमाउनी के वरिष्ठ लोक कवि हीरा सिंह राणा की ओर इस समय ध्यान देने की जरूरत है- हीरा सिंह राणा जी एक ऐसा नाम जिनके सुपरहिट लोक गीत है ।कुमाउनी के वरिष्ठ लोक कवि हीरा सिंह राणा जी मानिला अपने घर पर फिसल गए।रामनगर में इलाज चल रहा है। आपरेशन हो गया है, उत्तराखण्ड सरकार को अपने वरिष्ठ लोक कवि की मदद करनी चाहिए
हीरा सिंह राणा जी सेल्समेन की नौकरी छोडकर संगीत की स्काहलरशिप लेकर कलकत्तार गये, नौकरी छूटी पर संगीत के संसार में पहुच गये, 1965 में गीत नाटक प्रभाग में रहे,
नाम ; हीरा सिंह राणा गाओं : डधोई, मानिला, पढ़ाई ; माध्यमिक स्चूल तक जन्म ; १६ सितम्बर १९४२. शौक : गीत लिखना और गीत गाना , आज तक प्रकाशित पुस्तकों के नाम
1. प्योली और बुरांश २. मनिले डानी 3. मन्ख्यो पड्योव मैं ,
माता स्वप0 नारंगी देवी जी, पिता स्वग0 मोहन सिंह जी, जन्मम तिथि 16 सितम्बार 1942 पैत्रक गांव डटोली अल्मोाडा, पत्नीे श्रीमती विमला राणा, बच्चेी 1 पुत्र , शिक्षा मानिला,
हीरा सिंह राणा जी की कुछ कविताये
लश्का कमर बांधा,हिम्मत का साथा
लश्का कमर बांधा,
हिम्मत का साथा फिर भुला उज्याली होली,
कां लै रौली राता?लश्का कमर बांधा…..
य नि हूनो, ऊ नि होनो,कै बै के नि हूंनो,
माछी मन म डर नि हुनि चौमासै हिलै के
कै निबडैनि बाता धर बै हाथ म हाथा,
सीर पाणिक वै फुटैली जां मारुलो लातालश्का कमर…..
जब झड़नी पाता डाई हैं छ उदासा,
एक ऋतु बसंत ऐछ़ पतझडा़ का बादलश्का कमर बांधा…
:::::::: सुरा- शराबैल ,
सुरा- शराबैल ,
सुरा- शराबैल हाय मेरी मौ , लाल कै दी हो,
छन दबलौं ठन ठन गोपाल कै दी हो,
न पये न पये कोओय सबुले , कैकी नि मानी ,
साँची लगौनी अकला- उम्र दघोडी नि आनी,
अफ्फी मैले अफ्फु हैणी जंजाल कै दी हो,
छन दबलौं ठन ठन गोपाल कै दी हो