हाई कोर्ट ने अधिकारियों से क्यो कहा-आपको सदबुद्धि आएगी
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को करारा झटका देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को आदेश दिया कि लखनऊ में एंटी-सीएए प्रदर्शनकारियों के नाम, फोटो और उनके पते के साथ लगाए गए सभी होर्डिंग्स तुरंत हटाए जाएं. कोर्ट ने माना कि राज्य सरकार द्वारा इस तरह के होर्डिंग्स लगाना लोगों की निजता में दखल और संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है. हाईकोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस कमिश्नर को निर्देश दिया कि 16 मार्च तक हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के पास इस आदेश के संबंध में अनुपालन रिपोर्ट जमा की जाए.
उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में प्रदर्शन करने वालों से सार्वजनिक संपत्ति के नुक़सान की वसूली के लिए सड़कों, चौराहों पर होर्डिंग्स लगाने के मामले में हाई कोर्ट से योगी सरकार को झटका लगा है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोमवार को फ़ैसला सुनाया है कि इन होर्डिंग्स को हटा दिया जाए। कोर्ट ने लखनऊ के जिलाधिकारी और संभागीय आयुक्त से कहा है कि इन होर्डिंग्स को 16 मार्च तक हटा दिया जाए। इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया था। कोर्ट ने शनिवार और रविवार को मामले में सुनवाई की थी और सुनवाई के बाद फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था।
सोमवार को मामले पर फ़ैसला देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा ने राजधानी लखनऊ के ज़िलाधिकारी और पुलिस कमिश्नर को 16 मार्च तक सभी होर्डिंग्स व पोस्टर हटाने को कहा और अदालत को जानकारी देने को कहा।
हाई कोर्ट ने रविवार को राज्य सरकार के अधिकारियों से कहा था कि उम्मीद है आपको सदबुद्धि आएगी और होर्डिंग्स को तुरंत हटा दिया जाएगा। इन होर्डिंग्स में लोगों को नागरिकता क़ानून के विरोध में हुई हिंसा के लिये जिम्मेदार ठहराते हुए उनसे वसूली करने की बात लिखी गई है। होर्डिंग्स में लोगों की तसवीरें लगाई गई हैं और कहा गया है कि इन लोगों से 67 लाख रुपये की वसूली की जानी है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के महत्वपूर्ण स्थानों पर नागरिकता संशोधन कानून के दौरान कथित रूप हिंसा करने के आरोपियों के नाम और पते के साथ होर्डिंग्स लगाने की खबरों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीते रविवार को स्वत: संज्ञान लिया था और मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा की पीठ ने सुनवाई कर आदेश सुरक्षित रख लिया था.
इन होर्डिंग्स में में प्रदेश में आईजी रहे एस.आर. दारापुरी सामाजिक कार्यकर्ता व रंगकर्मी दीपक कबीर, जाने माने शिया उलेमा मौलाना सैफ अब्बास व कांग्रेस नेत्री सदफ़ ज़फ़र के भी फ़ोटो हैं। एस.आर. दारापुरी को यूपी पुलिस ने नज़रबंद कर दिया है। अदालत दारापुरी, सदफ़ ज़फ़र व दीपक कबीर को ज़मानत दे चुकी है और पुलिस उनके ख़िलाफ़ हिंसा में शामिल होने का कोई भी साक्ष्य पेश नहीं कर सकी थी।
लखनऊ पुलिस व ज़िला प्रशासन ने शहर भर में 100 से ज्यादा होर्डिग्स लगाकर 57 लोगों की पहचान को सार्वजनिक किया था और बिना दोषसिद्ध हुए महज एफ़आईआर के आधार पर उन्हें वसूली का नोटिस जारी कर दिया था।
नागरिकता क़ानून विरोधी प्रदर्शन के दौरान सरकारी संपत्ति को हुए नुक़सान के मामले में होर्डिंग्स लगाने वाली योगी सरकार की फ़जीहत तो हुई ही, अब इसे अदालत में घसीटने की तैयारी की जा रही है। जिन लोगों की तसवीरों के होर्डिंग्स लखनऊ में खुले आम लगा दिए गए थे, उनमें से कई लोग सरकार के ख़िलाफ़ अदालत में मानहानि का मुक़दमा दायर करने की योजना बना रहे हैं।
उच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद जहाँ प्रदेश सरकार ने चुप्पी साध ली, वहीं ज़िला प्रशासन के लोग आदेश हाथ में आने के बाद कुछ कहने की बात करने लगे हैं। उच्च न्यायालय के फ़ैसले को क़ानून, संविधान और जनता की जीत बताते हुए राजधानी में बीते 50 से ज्यादा दिनों से घंटाघर में सीएए के खिलाफ धरना दे रही महिलाओं ने खुशी मनाई।
वसूली के लिए बिना दोष सिद्ध हुए जिन लोगों की तसवीरें शहर भर में होर्डिंग्स पर लगायी गयीं, उनमें से दर्ज़न भर लोग अदालत जाने की तैयारी कर रहे हैं। पीयूसीएल अध्यक्ष ने इसे सीधे तौर पर मानहानि का मामला माना है।सदफ़ जफ़र और लेकर दीपक कबीर ने कहा है कि उनकी सार्वजनिक प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचाई गयी है। मौलाना सैफ़ अब्बास ने तो अपनी तसवीर लगाने को लेकर जल्द ही मानहानि का मामला दायर करने की बात कही है।कई अन्य ने भी मानहानि का मुक़दमा होली के तुरंत बाद दायर करने की तैयारी की है। एस.आर. दारापुरी की भी तस्वीरें होर्डिग्स पर चस्पा हुईं।
रविवार को ही सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा था कि राज्य की भावना अच्छी होनी चाहिए और दोपहर तीन बजे से पहले सारे होर्डिंग्स हटाए जाएं और कोर्ट को इसके बारे में बताया जाए. कोर्ट ने कहा था कि राज्य की ये कार्रवाई अत्यधिक अनुचित है.
पहले रविवार को मामले की सुनवाई सुबह 10 बजे होनी थी. हालांकि एडवोकेट जनरल द्वारा सुनवाई के लिए इस समय तक पहुंचने में असमर्थता जताए जाने पर कोर्ट ने दोपहर तीन बजे इसकी सुनवाई की.
एडवोकेट जनरल ने सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर ही सवाल उठा दिया और कहा कि चूंकि लखनऊ में ये होर्डिंग्स लगाए गए हैं इसलिए इलाहाबाद स्थित मुख्य पीठ इस पर संज्ञान नहीं ले सकता है.
उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों का बचाव करने के लिए जनहित याचिका नहीं दायर की जानी चाहिए, जो कानून तोड़ते हैं.
हालांकि कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया और कहा कि राज्य द्वारा उठाया गया कदम लोगों की निजता में दखल देना है और इस तरह यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है.
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ‘ऐसे मामलो में कोर्ट को इंतजार करने की जरूरत नहीं है कि कोई व्यक्ति आए और न्याय की घंटी बजाए, तब संज्ञान लिया जाएगा. अदालतें न्याय देने के लिए होती हैं और अगर जनता के साथ अन्याय हो रहा तो कोई अदालत अपनी आंखें नहीं मूंद सकता है.’
कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई कानून या नियम नहीं जो आरोपियों के नाम, पता और फोटो के साथ होर्डिंग्स लगाने को सही ठहरा सकें.
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