हिमालय में घूमने वाले उस साधु को 1976 मे पद्मश्री से सम्मानित किया गया”: कौन थे वो पिथौरागढ़ के साधु/गुप्तचर
28 JAN 2023# HIGH LIGHT # 1976 में भारत के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित #” हिमालय की कंदराओं में घूमने वाले उस साधु को 1976 मे पद्मश्री से सम्मानित किया गया”: कौन थे वो साधु: #ऋषिकेश में उन्हें यह नया नाम मिला #उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में रहने का फैसला किया # 1980 में वह अपनी जन्मभूमि आंध्र प्रदेश लौट गए #अपने गांव में एक मंदिर का निर्माण कराया #कैलास क्षेत्र पर 3 किताबें लिखीं-# सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सतलुज जैसी नदियों के अलग-अलग उद्गम स्थान बताए# तब तक ऐसा माना जाता था कि ये नदियां कैलास पर्वत के पास मनसरोवर झील से निकलती हैं #सांसारिक मोहमाया से दूर FATHER गुरु ज्ञानानंद ने हिमालय पर कई साल बिताए थे। उनके नक्शेकदम पर चलते हुए प्रणवानंद ने पैदल यात्रा शुरू कर दी। # By Chandra Shekhar Joshi
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इंदिरा गांधी : का प्रधान मंत्री का कार्यकाल यह रहा; #24 January, 1966 – 4 March, 1967 #4 March, 1967 – 15 March, 1971 #15 March, 1971 – 24 March, 1977 #14 January, 1980 – 31 October, 1984 ; यह जानकारी ” हिमालयायूके न्यूज़” आपको क्यों दे रहा है: क्योकि इस दौरान 1976 मे एक बड़ा कार्य हुआ,
हिमालय की कंदराओं में घूमने वाले वह साधु वास्तव में एक वैज्ञानिक, लेखक, वन्यजीव संरक्षक, पर्यावरण प्रेमी 1976 में पद्म श्री से सम्मानित
ब्रह्मचारी प्रणवानंद; ऋषिकेश में उन्हें यह नया नाम मिला और वह ब्रह्मचारी प्रणवानंद कहलाए। सांसारिक मोहमाया से दूर गुरु ज्ञानानंद ने हिमालय पर कई साल बिताए थे। उनके नक्शेकदम पर चलते हुए प्रणवानंद ने पैदल यात्रा शुरू कर दी। वह सबसे पहले कश्मीर के रास्ते कैलास मानसरोवर के लिए निकले। 1935 से लगातार हर साल 1950 तक प्रणवानंद कैलास की यात्रा करते रहे। प्रणवानंद ने ही सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सतलुज जैसी नदियों के अलग-अलग उद्गम स्थान बताए, तब तक ऐसा माना जाता था कि ये नदियां कैलास पर्वत के पास मनसरोवर झील से निकलती हैं। उनके द्वारा जुटाई गई जानकारियों और निष्कर्षों को 1941 से सर्वे ऑफ इंडिया ने सभी मानचित्रों में शामिल कर लिया।By Chandra Shekhar Joshi
स्वामी प्रणवानंद ने कैलास क्षेत्र पर 3 किताबें लिखीं- हमारी कैलास यात्रा 1932 में आई, पवित्र कैलास और मानसरोवर की चार प्रमुख नदियों के स्रोत समेत दो किताबें 1939 में आईं।
स्वामी जी हिमालय के अनसुलझे रहस्यों का अनुसंधान कर रहे थे। उन्होंने पैदल चलते हुए लंबी दूरी नापी। दूसरे योगी, साधुओं की तरह उन्होंने चिंतन पर न कोई बहस की और न ही उपदेश दिए बल्कि अपनी लेखनी के माध्यम से हिमालय की भौगोलिक दशाओं, पर्यावरण समेत विभिन्न जानकारियां देश को दीं।
स्वामी प्रणवानंद ने उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में रहने का फैसला किया। उन्हें 1976 में भारत के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
1980 में वह अपनी जन्मभूमि आंध्र प्रदेश लौट गए और अपने गांव में एक मंदिर का निर्माण कराया। 1989 में 93 साल की उम्र में स्वामी प्रणवानंद परलोक सिधार गए
1896 में आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी जिले के एक छोटे से गांव में प्रणवानंद का जन्म हुआ। तब उनका नाम कनकदंडी वेंकट सोमायाजुलु (Kanakadandi Venkata Somayajulu) रखा गया था। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज, लाहौर में एडमिशन लिया। अब इसे सरकारी इस्लामिया कॉलेज के नाम से जाना जाता है। कॉलेज की पढ़ाई कर कनकदंडी लाहौर में ही रेलवे अकाउंटेंट दफ्तर में नौकरी करने लगे। सितंबर 1920 में वह महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। अगले 6 वर्षों तक वह आजादी की लड़ाई में गांव-गांव, शहर-शहर घूमते रहे। अपने जिले में कांग्रेस पार्टी के एक सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में काम करते रहे। धीरे-धीरे उनके जीवन में आध्यात्मिक चेतना बढ़ने लगी। स्वामी ज्ञानानंद की प्रेरणा से उन्हें हिमालय के बारे में जानकारी हुई। स्वामी ज्ञानानंद को उस दौर में भारत के प्रमुख परमाणु भौतिकशास्त्रियों में से एक माना जाता है। यहीं से KVS के जीवन में एक नया मोड़ आया।By Chandra Shekhar Joshi
In 1980 he moved back to his native Andhra Pradesh and built a small temple on a piece of land he had inherited in his village. He died at the age of 93 in Hyderabad in 1989. Unfortunately today his great contributions are somewhat forgotten in the annals of history. By Chandra Shekhar Joshi
स्वामी प्रणवानंद चीन के कब्जे के बाद भी पांच साल तक कैलास-मानसरोवर क्षेत्र में आते जाते रहे। यह उनकी अपनी पहल थी। उन्होंने चीनी फौज की मौजूदगी के बारे में भारत सरकार को अलर्ट किया और सामरिक जानकारी उपलब्ध कराई। यह कोई एक दो पन्ने की सूचना नहीं थी। बताते हैं कि उन्होंने भारत-तिब्बत सीमा पर पाकिस्तान और ईसाई मिशन एजेंटों की खुफिया गतिविधियों के बारे में 4000 पेज की सूचना जुटाई थी। ये एजेंट पश्चिमी देशों से जुड़े थे।
किसी पेशेवर गुप्तचर की तरह स्वामी प्रणवानंद 1955 तक खुफिया जानकारियां भारत सरकार को देते रहे। इसी साल चीन की खुफिया एजेंसी ने उनका पता लगा लिया। ऐसे में स्वामी ने फौरन लोकेशन बदली और उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में रहने का फैसला किया। उन्हें 1976 में भारत के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
By Chandra Shekhar Joshi