मार्च का माह हर राशि के लिए बहुत खास है
आप नव देवीयों की शक्ति अपनी भक्ति से प्राप्त कर जीवन को संजीवनी-शक्ति से सराबोर करें। सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं!! CHANDRA SHEKHAR JOSHI- EDITOR IN CHIEF; Web & Print Media; Publish at Dehradun & Haridwar;
बदल जायेगा सब कुछ, सूर्य, मंगल बुद्व और शुक्र राशि बदलेगे, गुरू की चाल टेढी, सितारो की ये स्थिति बडे बदलाव ला रही है, सूर्य शनि मिल कर करेंगे कमाल, #मेष , मिथुन , मकर , मीन-चार राशियाँ होंगी मालामाल नव-वर्ष 2075- 18 से 25 मार्च नवरात्रों का चमत्कारी महामन्त्र , लगातार आठ दिन जपना #1100 साल बाद नवरात्री में बन रहा महासंयोग मेष, सिंह, वृश्चिक राशियों पर होगी जमकर धनवर्षा
वसंत नवरात्रि का शुभारंभ 18 मार्च से हो रहा है. नवरात्रि पूजन से घर में सुख समृद्धि का निवास होता है. इस दिन से ‘दुर्गा सप्तशती’ अथवा ‘दुर्गा चालीसा’ का पाठ प्रारम्भ किया जाता है इस वर्ष नवरात्रि नौ दिन की ना हो कर आठ दिन की है. जिन घरों में नवरात्रि पर कलश-स्थापना (घटस्थापना) होती है उनके लिए शुभ मुहूर्त 18 मार्च को प्रातः 07 बजकर 35 मिनट से लेकर 3 बजकर 35 मिनट तक रहेगा. इस बार घट स्थापना के लिए दो शुभ मुहूर्त हैं। इनमें से पहला शुभ मुहूर्त 18 तारीख को सुबह 06 बज कर 31 मिनट से बज कर 46 मिनट तक रहेगा। दूसरा मुहूर्त 11 बज कर 54 मिनट से प्रारंभ हो कर 12 बज कर 41 मिनट तक रहेगा। इस दौरान घटस्थापना करना सबसे अच्छा होगा. इस बार अष्टमी और नवमी एक ही दिन 25 मार्च को होगी।
वसंत नवरात्रि में कई शुभ संयोग बन रहे हैं. नवरात्रि के दिन से हिन्दू नव वर्ष प्रारम्भ होता है. इस दिन रविवार है साथ ही सर्वार्थसिद्ध योग भी बन रहा है. इस दिन जो वार होता उसी का स्वामी वर्ष का राजा होता है, अतः इस वर्ष राजा सूर्य है.
नवरात्रि दिन 1 प्रतिपदा, कलश स्थापना: 18 मार्च 2018 (रविवार) : मां शैलपुत्री पूजा.
– नवरात्रि दिन 2, द्वितीया : 19 मार्च 2018 (सोमवार) : मां ब्रह्मचारिणी पूजा.
– नवरात्रि दिन 3, तृतीया : 20 मार्च 2018 (मंगलवार) : मां चन्द्रघंटा पूजा.
– नवरात्रि दिन 4, चतुर्थी : 21 मार्च, 2018 (बुधवार) : मां कूष्मांडा पूजा.
– नवरात्रि दिन 5, पंचमी : 22 मार्च 2018 (गुरुवार) : मां स्कंदमाता पूजा.
– नवरात्रि दिन 6, षष्ठी : 23 मार्च 2018 (शुक्रवार) : मां कात्यायनी पूजा.
– नवरात्रि दिन 7, सप्तमी : 24 मार्च 2018 (शनिवार) : मां कालरात्रि पूजा.
– नवरात्रि दिन 8, अष्टमी / नवमी : 25 मार्च 2018 (रविवार) : मां महागौरी, मां सिद्धिदात्री
– नवरात्रि दिन 9, दशमी, नवरात्रि पारणा, 26 मार्च 2018 (सोमवार)
(जिनके यहां अष्टमी का हवन होता वो 24 मार्च को करें. जिनके यहां नवमी का हवन होता है वो 25 मार्च को करें)
साल में दो बार नवरात्रि का आयोजन होता है, जिन्हे ग्रीष्म नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि कहते हैं। हिंदू नव वर्ष की शुरूआत में आने वाले नवरात्रि को चैत्र नवरात्रि कहा जाता है। नौ दिनों के इस उत्सव को चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। इस में शक्ति रूपा माता के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना होती है। 2018 में चैत्र नवरात्रि 18 मार्च से शुरू हो रहे हैं और 25 मार्च तक रहेंगे। इस बार अष्टमी और नवमी एक ही दिन 25 मार्च को मनाई जायेगी।
इस महीने से शुभता और ऊर्जा का आरंभ होता है और ऐसे समय में मां काली की पूजा से घर में सुख-समृद्धि आती है। चैत्र महीने में हिंदू देवी दुर्गा की आराधना करते हैं। विक्रम संवत 2074 के पहले महीने चैत्र की शुरुआत मंगलवार से हुई। त्योहार के दौरान देवी के नौ रूपों का ध्यान करने से शांति और आनंद की प्राप्ति होती है।
नव संवत्सर 2075 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा , 18 मार्च 2018 से प्रारंभ हो रहा है। यही हिन्दुओं का नया वर्ष है।हमारे सनातन धर्म की मान्यता अनुसार इस महीने की 18 तरीक से हिन्दू नववर्ष प्रारंभ होगा। इस बार इस नववर्ष का नाम है विरोधीकृत संवत्सर। ग्रंथो में लिखा है कि जिस दिन सृष्टि का चक्र प्रथम बार विधाता ने प्रवर्तित किया, उस दिन चैत्र शुदी 1 रविवार था। हमारे लिए आने वाला संवत्सर 2075 बहुत ही भाग्यशाली होगा , क़्योंकि इस वर्ष भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रविवार है, शुदी एवम ‘शुक्ल पक्ष एक ही है| इसके राजा सूर्य देव होंगे और शनिदेव महामंत्री रहेंगे। 8 मार्च 2018 से विक्रम संवत् 2075 आरंभ होगा। चैत्र माह में कई व्रत और त्योहार मनाए जाएंगे।मेघेश शुक्र एवं धनेश चंद्र होंगे। 18 मार्च से चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ होगा इसके बाद चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को रामनवमी है
मेष–
इस राशी वालो की अक्टूबर तक गुरु की पूर्ण दृष्टि से जमीन संबंधी मामलों में आय बढ़ेगी। नए आय के स्रोत भी प्राप्त होंगे। आलोचनाओं से बचने का अच्छा अवसर मिलेगा और विवादों में विजय प्राप्त होगी। एक साथ कई कार्यों को करने का मौका मिलेगा। मित्रों के साथ ही परिवार से सहयोग मिलेगा।
वृषभ–
इस राशि पर शनि का प्रकोप पूरे वर्ष देखने को मिलेगा और आपका मन विचलित हो सकता है और छोटी-छोटी बात पर क्रोध भी आ सकता है। आपके आत्मविश्वास में कमी आ सकती है। परिवार को कष्ट मिल सकता है। इसके लिए आपको किसी गरीब को कंबल या अन्य गर्म कपड़ों का दान करना है|
मिथुन–
इस पूरे वर्ष इस राशि वालो की मजबूत बनी रहेगी। हर काम में सफलता मिलेगी और आपका आत्मविश्वास बढ़ा हुआ रहेगा। ज्यादा सफलताओं से आत्म विश्वास बढ़ सकता है। पराक्रम में वृद्धि होगी और कोई बड़ा काम भी आपके हो सकता है। आपको किसी निर्धन को कच्चे चावल और दाल का दान करना है|
कर्क–
इस राशी वालो का आत्मबल मजबूत बना रहेगा, लेकिन चिंताएं थोरा अधिक होने की संभावना बनी रहेगी। जोखिमपूर्ण काम करने से आपको बचना होगा घर के विवादों से दूर रहने का प्रयास करें। दिसंबर 2018 से फरवरी 2019 तक व्यय अधिक और आय कम होने के आसार हैं।
सिंह–
इस राशी वालो के ऊपर वर्ष भर में ग्रहों के प्रभाव आते-जाते रहेंगे। आपके आय में वृद्धि की संभावनाएं बनेंगी, हालांकि किसी बड़े ग्रह का प्रभाव नहीं होने से, काम करने से पहले हर बात को जांच लेना ठीक होगा। आपके लिए यह समय कुछ चिंताजनक हो सकता है।आपको हर रविवार किसी निर्धन को धन का दान करना होगा तो आप के लिए अच्छा होगा|
कन्या–
इस राशी वालो पर शनि का ढय्या रहेगा। आपके लिए श्रेष्ठ समय रहेगा। बाधाएं समाप्त होंगी और सभी ओर से शुभ समाचार प्राप्त होंगे। अगस्त के बाद से काम की अधिकता रहेगी और भाग्य भी अनुकूल रहेगा। आवश्यकताएं समय पर पूरी होंगी।
तुला–
नव वर्ष शुरुआत से ही अनुकूलता प्रदान करने वाला रहेगा। शनि के वक्री होने से आपको कुछ परेशानियां आ सकती हैं। अक्टूबर से आपको राहत प्राप्त होगी। आपकी आय में सुधार होगा और विवादित मामलों में आपको विजय मिलेगी। इसके किये आपको बेसन एवं पुराने वस्त्रों का दान करें।
वृश्चिक–
आपके आरंभ में कठिनाइयां रहेंगी। अक्टूबर में गुरु का आपकी राशि में प्रवेश करेगा और यह समय सब प्रकार से आपपर अनुकूल रहेगा। परिवार में वर्चस्व बढ़ेगा और कार्यस्थल पर अनुकूलता बनी रहेगी। नए कार्यों की प्राप्ति भी होगी। किसी बड़े काम की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
धनु–
मंगल, शनि का गोचर इस राशि में है। ये अपने स्वयं के दम पर आगे बढ़ने की स्थिति में है। जनवरी 2019 के बाद से और अच्छा समय आने वाला है। किसी अन्य से सहायता लिए बिना ही अपना कार्य सिद्ध कर लेंगे।
मकर–
इस साल सारे काम सुगमता से चलते रहेंगे और किसी प्रकार की बाधा आने की संभावनाएं नहीं हैं। अधिकारी आपके अनुकूल बने रहेंगे और बेकार के कार्यों में समय बर्बाद नहीं करना है और धन का आगमन भी सुगम रहेगा। न्यायालयीन मामलों में सफलता मिलेगी।
कुंभ–
वर्षभर आप के ऊपर शनि की यह स्थिति बनी रहेगी। धन के मामलों में कमी रहेगी और आत्मबल मजबूत रहेगा। आपको सम्मान भी प्राप्त होगा। भविष्य को लेकर आशाएं जीवंत रहेंगी। बच्चों के साथ रहने का समय मिलेगा |
मीन–
इस राशि के लिए नीच का बुध, सूर्य, चंद्रमा और उच्च के शुक्र का गोचर में रहेगा। इस कारण आपको कुछ परेशानियां बढ़ सकती हैं। निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में आपको कठिनाइयां होंगी।
नव संवत्सर २०७५ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा , १८ मार्च २०१८ से प्रारंभ हो रहा है। पावन काल, कल्प, सृष्टि, युगादि का प्रारंभिक दिनपावन काल, कल्प, सृष्टि, युगादि का प्रारंभिक दिन अच्छा मौसम, न शीत न ग्रीष्म। पूरा पावन काल। ऎसे समय में सूर्य की चमकती किरणों की साक्षी में चरित्र और धर्म धरती पर स्वयं श्रीराम रूप धारण कर उतर आए।
यही हमारा नया वर्ष है, इसे धूमधाम से मनाया जाना चाहिए। ग्रंथो के अनुसार जिस दिन सृष्टि का चक्र प्रथम बार विधाता ने प्रवर्तित किया, उस दिन चैत्र शुदी १ रविवार था। हमारे लिए आने वाला संवत्सर २०७५ बहुत ही भाग्यशाली होगा, क़्योंकि इस वर्ष भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रविवार है, शुदी एवम ‘शुक्ल पक्ष’ एक ही है। चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि (प्रतिपद या प्रतिपदा) को सृष्टि का आरंभ हुआ था। हमारा नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शरू होता है। इस दिन ग्रह और नक्षत्र मे परिवर्तन होता है। हिन्दी महीने की शुरूआत इसी दिन से होती है । पेड़-पोधों मे फूल, मंजर, कली इसी समय आना शुरू होते है, वातावरण मे एक नया उल्लास होता है जो मन को आह्लादित कर देता है | जीवो में धर्म के प्रति आस्था बढ़ जाती है। इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। भगवान विष्णु जी का प्रथम अवतार भी इसी दिन हुआ था। नवरात्र की शुरुअात इसी दिन से होती है। जिसमे हमलोग उपवास एवं पवित्र रह कर नव वर्ष की शुरूआत करते है। परम पुरूष अपनी प्रकृति से मिलने जब आता है तो सदा चैत्र में ही आता है। इसीलिए सारी सृष्टि सबसे ज्यादा चैत्र में ही महक रही होती है। वैष्णव दर्शन में चैत्र मास भगवान नारायण का ही रूप है। चैत्र का आध्यात्मिक स्वरूप इतना उन्नत है कि इसने वैकुंठ में बसने वाले ईश्वर को भी धरती पर उतार दिया। श्री राम जन्म (चैत्र शुक्ल नवमी को) श्रीराम का अवतार चैत्र शुक्ल नवमी को होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि के ठीक नवे दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था | आर्यसमाज की स्थापना इसी दिन हुई थी। यह दिन कल्प, सृष्टि, युगादि का प्रारंभिक दिन है। संसारव्यापी निर्मलता और कोमलता के बीच प्रकट होता है हमारा अपना नया साल “विक्रम संवत्सर”। विक्रम संवत है जीवन-विविधता का प्रतीक है। विक्रम संवत का संबंध हमारे कालचक्र से ही नहीं, बल्कि हमारे सुदीर्घ साहित्य और जीवन जीने की विविधता से भी है। चैत्र मास का वैदिक नाम है-मधु मास। मधु मास अर्थात आनंद बांटती वसंत का मास। यह वसंत आ तो जाता है फाल्गुन में ही, पर पूरी तरह से व्यक्त होता है चैत्र में। सारी वनस्पति और सृष्टि प्रस्फुटित होती है, पके मीठे अन्न के दानों में, आम की मन को लुभाती खुशबू में, आदि आदि।
प्रथम पूज्य गणेश पूजन, पेड़ -पौधे, जीव-जन्तुओं में नव-जीवन। नई फसल घर मे आने का समय भी यही है। इस समय प्रकृति मे उष्णता बढ्ने लगती है, जिससे पेड़ -पौधे , जीव-जन्तु मे नव जीवन आ जाता है। लोग इतने मदमस्त हो जाते है कि आनंद में मंगलमय गीत गुनगुनाने लगते है। गौर और गणेश-पूजा भी इसी दिन से तीन दिन तक राजस्थान मे की जाती है।
वैसे तो दुनिया भर में नया साल 1 जनवरी को ही मनाया जाता है लेकिन भारतीय कैलेंडर के अनुसार नया साल 1 जनवरी से नहीं बल्कि चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से होता है। इसे नव संवत्सर भी कहते हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह अक्सर मार्च-अप्रैल के महीने से आरंभ होता है। दरअसल भारतीय कैलेंडर की गणना सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है। माना जाता है कि दुनिया के तमाम कैलेंडर किसी न किसी रूप में भारतीय कैलेंडर का ही अनुसरण करते हैं। मान्यता तो यह भी है कि विक्रमादित्य के काल में सबसे पहले भारतीयों द्वारा ही कैलेंडर यानि कि पंचाग का विकास हुआ। इसना ही 12 महीनों का एक वर्ष और सप्ताह में सात दिनों का प्रचलन भी विक्रम संवत से ही माना जाता है। कहा जाता है कि भारत से नकल कर युनानियों ने इसे दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैलाया।
सप्तर्षि संवत है सबसे प्राचीन
माना जाता है कि विक्रमी संवत से भी पहले लगभग सड़सठ सौ ई.पू. हिंदूओं का प्राचीन सप्तर्षि संवत अस्तित्व में आ चुका था। हालांकि इसकी विधिवत शुरूआत लगभग इक्कतीस सौ ई. पू. मानी जाती है। इसके अलावा इसी दौर में भगवान श्री कृष्ण के जन्म से कृष्ण कैलेंडर की शुरुआत भी बतायी जाती है। तत्पश्चात कलियुगी संवत की शुरुआत भी हुई।
विक्रमी संवत या नव संवत्सर
विक्रम संवत को नव संवत्सर भी कहा जाता है। संवत्सर पांच तरह का होता है जिसमें सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास आते हैं। विक्रम संवत में यह सब शामिल रहते हैं। हालांकि विक्रमी संवत के उद्भव को लेकर विद्वान एकमत नहीं हैं लेकिन अधितर 57 ईसवीं पूर्व ही इसकी शुरुआत मानते हैं।
सौर वर्ष के महीने 12 राशियों के नाम पर हैं इसका आरंभ मेष राशि में सूर्य की संक्राति से होता है। यह 365 दिनों का होता है। वहीं चंद्र वर्ष के मास चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ आदि हैं इन महीनों का नाम नक्षत्रों के आधार पर रखा गया है। चंद्र वर्ष 354 दिनों का होता है इसी कारण जो बढ़े हुए दस दिन होते हैं वे चंद्रमास ही माने जाते हैं लेकिन दिन बढ़ने के कारण इन्हें अधिमास कहा जाता है। नक्षत्रों की संख्या 27 है इस प्रकार एक नक्षत्र मास भी 27 दिन का ही माना जाता है। वहीं सावन वर्ष की अवधि लगभग 360 दिन की होती है। इसमें हर महीना 30 दिन का होता है।
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