हिंदुत्व किसकी बपौती है ?
पीएम मोदी हमेशा यह बताने से नहीं चूकते हैं कि वह पिछड़ी जाति से हैं
बीजेपी की शनिवार से शुरू हो रही राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक दिल्ली के अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र में होगी और इसकी केंद्रीय विषयवस्तु में पार्टी के शीर्ष नेता और पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी होंगे. पार्टी की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक अबंडेकर केंद्र में होने का मकसद सामाजिक संदेश देने से जुड़ा भी माना जा रहा है. बैठक के स्थल को जोड़कर बीजेपी यह संदेश देने का प्रयास करेगी कि उसकी रीति नीति में अंबेडकर उतने ही अहम है जितने दूसरे नेता. बैठक में 2019 में लोकसभा चुनाव और राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी के बारे में भी चर्चा होगी. पहले दिन राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक बुलाई गई है. इसमें सभी राष्ट्रीय पदाधिकारी, प्रदेश प्रभारी, सह प्रभारी, प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश महामंत्री (संगठन) मौजूद रहेंगे. इसके बाद राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक होगी. अगले दिन शाम को इसका समापन होगा. बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित अन्य सभी वरिष्ठ पदाधिकारी मौजूद रहेंगे. बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक ऐसे समय में हो रही है जब डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में गिरावट, पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में वृद्धि को लेकर विपक्ष हमलावर है. नोटबंदी और राफेल सौदे को लेकर भी विपक्ष सरकार पर निशाना साध रहा है. इसके अलावा सवर्ण समाज द्वारा संसद के मानसून सत्र के दौरान पारित अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण संशोधन विधेयक का भी विरोध किया जा रहा है. गुरुवार को सवर्ण समाज से जुड़े कुछ कथित संगठनों ने भारत बंद का आयोजन भी किया था.
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की लोकप्रियता तेजी से नीचे गिरी है. इंडिया टुडे न्यूज़ पॉलिटिकल स्टॉक एक्सचेंज (PSE) के पहले संस्करण के मुताबिक राजस्थान में करीब 50% प्रतिभागी वसुंधरा राजे सरकार के कामकाज से असंतुष्ट दिखे Himalayauk
मीडिया में ब्लागरो ने लिखा है कि क्या बीजेपी को राहुल गांधी के हिंदू दिखने से परेशानी है? यह सवाल इसलिए क्योंकि जब से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंदिरों के दर्शन शुरू किए और अब कैलाश मानसरोवर यात्रा पर गए हैं, बीजेपी उनकी हर छोटी-बड़ी बा
त पर नुक्ताचीनी कर रही है. ताजा विवाद राहुल गांधी की कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर शुरू हुआ है. शुरुआती दो दिन बीजेपी नेता यह सवाल पूछते रहे कि राहुल वाकई इस यात्रा पर गए भी हैं या नहीं. फिर जब राहुल गांधी ने वहां के कुछ फोटो ट्वीट किए तो सोशल मीडिया पर कहा गया कि ये फोटो गूगल से उठा कर चेप दिए गए हैं. ये भी पूछा गया कि जब चीन में ट्वीटर चलता ही नहीं है तो राहुल ट्वीट कैसे कर सकते हैं. इसके बाद आज जब राहुल गांधी के कुछ ऐसे फोटो आए जिनमें वे खुद दिख रहे हैं तो बीजेपी नेताओं ने इन फोटो पर भी शक जताया. उन्होंने आरोप लगाया कि ये फोटोशॉप किए गए हैं क्योंकि राहुल के हाथ में जो छड़ी है उसकी छाया नहीं दिख रही. ये आवाज उठाने वालों में केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं.
विधानसभा चुनाव वाले तीन राज्यों के लिए किए गए सर्वे के मुताबिक राजस्थान में 48% प्रतिभागियों ने राज्य में राजनीतिक नेतृत्व के बदलाव के पक्ष में वोट दिया. सिर्फ 32% प्रतिभागी ही मौजूदा वसुंधरा राजे सरकार के कामकाज को लेकर संतुष्ट दिखे.
राहुल गांधी जो कि इस समय कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर हैं, गुजरात चुनाव में ‘जनेऊ धारण’ कर चुके हैं. चुनाव प्रचार के दौरान मंदिर जाने से भी नहीं चूकते हैं जो कि कांग्रेस की ‘धर्मनिरपेक्ष’ अवधारणा के खिलाफ ही है. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला तो एक कदम आगे बढ़कर यहां तक कह दिया कि कांग्रेस में ब्राह्णणों का डीएनए है. दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष मुस्लिमों को बनाए रखने के लिये भी आरएसएस की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से भी करते हैं. वहीं एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राहुल गांधी ने ऐलान किया कि वह एससी/एसटी एक्ट की रक्षा करेंगे. कुल मिलाकर कांग्रेस को लगता है कि राष्ट्रीय स्तर के चुनाव में सरकार से नाराज होकर दलित उसके ही पाले में आएंगे. इतना तो तय है कि जटिल जातिगत समीकरणों के बीच 2019 की बिसात पर संशोधित एसएसी/एसटी एक्ट एक बड़ा मोहरा बनने जा रहा है तभी तो संसद में सभी दलों के बीच इस पर सहमति बनी थी.
लेकिन शक की कोई गुंजाइश न रहे इसलिए कांग्रेस ने अपने ट्विटर हैंडल से ही राहुल गांधी की एक के बाद एक कई फोटो जारी कर दिए. इन फोटो में वे कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर गए कई भारतीय श्रद्धालुओं से मिल जुल रहे हैं. राहुल कितना चले, यह बताने के लिए फिटबिट का एक स्क्रीन शॉट भी जारी कर दिया गया. इसमें बताया गया कि वे इस यात्रा के दौरान अभी तक 46433 कदम चल चुके हैं और उन्होंने 4446 कैलोरी बर्न की. एक वीडियो भी जारी किया गया. इसमें राहुल गांधी श्रद्धालुओं के साथ फोटो खिंचवा रहे हैं. यह सारा तामझाम इसलिए ताकि बीजेपी के इन आरोपों की हवा निकाली जा सके कि राहुल यात्रा पर गए ही नहीं हैं और किसी गुमनाम जगह पर बैठ कर फोटोशॉप किए अपने फोटो डाल रहे हैं.
पीएम मोदी हमेशा यह बताने से नहीं चूकते हैं कि वह पिछड़ी जाति से हैं
2019 के पहले एससी/एसटी एक्ट बिल सियासी बिसात पर कोई नई चाल है जिसका फायदा हर दल उठाना चाहता है. पीएम मोदी खुद को हमेशा पिछड़ी जाति का बताते रहे और आरएसएस की चुप्पी हमेशा सवर्णों को रास आती रही. लेकिन एसएसी/एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने बीजेपी को दो राहे पर लाकर खड़ा कर दिया जहां उसके लिये कोई न कोई फैसला लेना जरूरी था क्योंकि किसी एक पक्ष का वोट लेकर कम से कम 2019 का चुनाव तो नहीं जीता जा सकता है. उसने तुरंत ही संशोधित बिल संसद में पेश कर दिया. बीजेपी के रणनीतिकारों को लगता है कि इससे दलित भी उसके पाले में बड़ी संख्या में आ जाएंगे और सवर्ण-बनिया तो उसका परंपरागत वोटबैंक ही हैं. लेकिन इस बिल को लेकर सवर्णों के बीच नाराजगी है. उत्तर प्रदेश से सांसद कैलाश मिश्र भी इस बिल को सामाजिक विघटन का कारण बता चुके हैं. वहीं अब बीजेपी के कुछ नेताओं को भी लगने लगा है दांव उल्टा पड़ता दिखाई दे रहा है. मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सीएम शिवराज सिंह चौहान का विरोध शुरू हो गया. 6 सितंबर को सवर्णों को भारत बंद का ऐलान कर डाला. कुल मिलाकर बीजेपी के कोर वोटर ही सोशल मीडिया, सड़कों और चौराहों पर विरोध में हैं.
आरएसएस या बीजेपी पिछले तीन सालों में पिछड़ों और दलितों की राजनीति क्यों कर रही है? हो सकता है कि बीजेपी-आरएसएस का मानना हो कि सवर्ण वोटबैंक कम से कम उसे छोड़ कर जाने से रहे और उनके वोट का थोड़ा बहुत नुकसान हो भी जाए और बदले में दलितों का हितैषी बनकर एक बड़ा हिस्सा अपने पाले में कर लिया जाए तो इसमें कोई बुराई नहीं है, बड़ा फायदा ही है. यहां पर एक बात और भी गौर करने वाली है एससी/एसटी एक्ट पर संशोधन का फैसला सुनाने वाले जस्टिस आदर्श गोयल को राष्ट्रीय हरित अभिकरण यानी एनजीटी का प्रमुख बना दिया गया. इतना ही नहीं एनडीटीवी को सूत्रों से पता चला है कि गृह मंत्रालय राज्यों को यह भी सलाह जारी कर सकता है कि वह इस कानून को ‘जिम्मेदारी’ से इस्तेमाल करे. वहीं सवर्ण नेताओं को भी अपने समर्थकों को समझाने के लिये कहा गया है.
2014 का लोकसभा चुनाव दलित राजनीति के लिये बहुत मायने रखता है जिसमें सारे समीकरण ध्वस्त करते हुये बीजेपी-एनडीए ने आरक्षित सीटों पर कब्जा तो जमाया ही वहीं बहुजन समाज की सबसे बड़ी नेता मायावती की पार्टी बीएसपी का खाता तक नहीं खुला. इस चुनाव में बीजेपी को सभी जातियों ने भरपूर समर्थन दिया. यही हाल उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला जहां 300 से ज्यादा सीटें जीतकर बीजेपी ने सभी जातिगत समीकरण ध्वस्त कर दिये. बीजेपी को गैर-जाटवों के साथ-साथ जाटवों के भी वोट मिले. लेकिन 2019 का चुनाव इस बार पीएम मोदी को सत्ता विरोधी लहर के साथ लड़ना है और साथ में विपक्षी दलों का गठबंधन भी तगड़ी चुनौती देने की तैयारी में है. बीजेपी को इस सच्चाई का भी सामना करना पड़ेगा कि उसके शासनकाल में दलितों के खिलाफ मारपीट की भी घटनाएं सामने आई हैं. गुजरात के ऊना से लेकर, राजस्थान और उत्तर प्रदेश-बिहार में भी ऐसी घटनाएं हुई हैं. इन घटनाओं से बीजेपी के खिलाफ अच्छा-खासा माहौल बना है. भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा ने भी दलितों के बीच दूर तक संदेश दिया. आरएसएस एक ओर जहां ‘सामाजिक समरसता’ की बात तो करता है लेकिन सदियों से चली आ ही जातिवादी व्यवस्था के खिलाफ कोई प्रभावी रुख अपनाने के बजाये ‘मध्यममार्गी’ नीति अपनाता रहा है. विरोधी उसको ‘ब्राह्मणवादी संगठन’ कहकर निशाना भी साधते हैं. दरअसल इस मामले में आरएसएस चुप्पी साधकर दोनों पक्षों को अपने पाले में लाने की कोशिश करता है
दरअसल, बीजेपी हर हाल में यह साबित करना चाहती है कि राहुल गांधी के मन में श्रद्धा नहीं है बल्कि वे सियासी स्टंट करने के लिए मंदिरों और अब कैलाश मानसरोवर के चक्कर काट रहे हैं. लेकिन ताजा मामले में लगता है कि बीजेपी ने खुद अपना ही मखौल उड़वा लिया है. राहुल गांधी के करीबी सूत्रों के अनुसार वे 12 दिन की इस यात्रा पर सुरक्षा के तामझाम के बिना ही गए हैं. वैसे तो उन्हें प्रधानमंत्री की ही तरह एसपीजी सुरक्षा मिली हुई है लेकिन इस यात्रा में उन्होंने अकेले ही सफर करने का फैसला किया क्योंकि वे इसे अपनी व्यक्तिगत श्रद्धा का विषय बता रहे हैं. अधिकांश यात्री कैलाश मानसरोवर यात्रा टट्टू की पीठ पर करते हैं लेकिन राहुल ने पूरा रास्ता पैदल ही चलने का फैसला किया है.
राहुल गांधी गत 31 अगस्त को इस यात्रा के लिए नेपाल रवाना हुए थे जहां से उन्होंने कैलाश के लिए प्रस्थान किया था. 26 अप्रैल को कर्नाटक की यात्रा के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष के विमान में तकनीकी खराबी आने के कारण विमान बाईं ओर तेजी से झुक गया और तेजी से नीचे आने लगा था इसके बाद हालांकि विमान संभल गया और सुरक्षित नीचे उतरा. इसके तीन दिन बाद 29 अप्रैल को गांधी ने एक रैली के दौरान कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाने की घोषणा की थी. कांग्रेस ने सुरक्षा कारणों से राहुल गांधी की यात्रा का ब्योरा गोपनीय रखा गया था.
वैसे राहुल के धार्मिक दौरों को लेकर विवाद पहली बार नहीं उठे हैं. गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी के सोमनाथ मंदिर में जाने पर भी विवाद हुआ था. तब यह आरोप लगाया गया था कि राहुल गांधी का नाम मंदिर में रखे गए गैर हिंदुओं के रजिस्टर में लिख दिया गया था. विवाद के तूल पकड़ने पर कांग्रेस ने राहुल गांधी के कई फोटो जारी किए थे. इन फोटो में राहुल गांधी ने जनेऊ पहनी हुई है. इसके बाद कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने दावा किया था कि राहुल सिर्फ हिंदू ही नहीं बल्कि जनेऊधारी हिंदू हैं.
हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि राहुल गांधी की श्रद्धा का यह प्रदर्शन सियासी भी है. ऐसा इसलिए क्योंकि 2014 के चुनाव में सफाए के बाद कांग्रेस में हार के कारणों की समीक्षा के लिए बनी समिति के अध्यक्ष ए के एंटनी ने कहा था कि कांग्रेस का कुछ अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति झुकाव होने की धारणा बनने से लोगों के मन में संदेह पैदा हुआ. इस साल मार्च में मुंबई में इंडिया टुडे के एक कार्यक्रम में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा था कि ‘बीजेपी लोगों को यह भरोसा दिलाने में कामयाबी हो गई कि कांग्रेस मुस्लिम पार्टी है. यह पूछने पर कि क्या राहुल की मंदिर यात्राएं हिंदुत्व पर बीजेपी के एकाधिकार को रोकने की कोशिश हैं, सोनिया गांधी ने बेहद साफगोई के साथ कहा था कि हां थोड़ा बहुत ऐसा है क्योंकि हमें कोने में धकेल दिया गया है. इसीलिए चुपचाप मंदिर जाने के बजाए वो थोड़ा बहुत जनता की नजरों में रहे.’
कांग्रेस के रणनीतिकारों को लगता है कि ऐसे में जबकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह हिंदुत्व के आधार पर ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रहे हैं, यह जरूरी है कि कांग्रेस हिंदुओं के नजदीक जाती दिखे. यही वजह है कि कमलनाथ मध्य प्रदेश में हर पंचायत में गौशाला खोलने की बात कर रहे हैं तो वहीं राहुल गांधी अपनी विदेश यात्रा में आरएसएस की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से कर देते हैं. वे यह दिखाना चाहते हैं कि आरएसएस का हिंदुत्व भारतीय मूल्यों और दर्शन के खिलाफ है और देश की सनातनी परंपरा की असली कमान कांग्रेस के हाथों में है.
लेकिन शायद चुनाव नजदीक आते ही ऐसा भी हो कि राजनीतिक विमर्श इसी पर सिमट जाए कि हिंदुत्व किसकी बपौती है.