आजादी के 75 साल- उत्तराखण्ड के पहाड- न रोड, न नेटवर्क, न स्कूल न स्वास्थ्य की बेसिक सुविधा
आजादी के 75 साल बाद भी हम आजादी का अम्रत महोत्सव तो मना रहे है लेकिन आज भी उत्तराखँड मे येसे बहुत सारे गाँव है जहाँ पर न रोड है, न नेटवर्क, न स्कूल और सबसे बडी समस्या स्वास्थ्य सुविधाओँ का अभाव है । हर चुनाव से पहले सरकार बडे बडे वादे तो करती है लेकिन उसके बाद उन वादोँ को भुल जाती है । उत्तराखँड के सिमांत पहाडी इलाकोँ से न जाने कितनी बहनो को प्रसव के दौरान अपनी जानेँ गवानी पडते है लेकिन सरकार इस ओर बिल्कुल भी ध्यान नही दे रही है । Execlusive Report by Chandra shekhar Joshi Editor www.himalayauk.org (Leading Newsportgal & Print Media Mob. 9412932030
किसी भी प्रदेश की तरक्की का ग्राफ इस बात पर निर्भर करता है जब कि उसके लोग कितने सेहतमंद है। जनता स्वस्थ रहे, इसके लिए चिकित्सा सुविधाएं दुरुस्त होनी चाहिए, लेकिन उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति निराशाजनक है। दूरस्थ क्षेत्रों में स्वास्थ सेवाओं की पहुंच, चिकित्सकों की संख्या में बढ़ोत्तरी और संसाधन विकसित करने के सरकारी दावों के बीच जच्चा-बच्चा सड़क पर दम तोड़ देते हैं। सामान्य बीमारी तक के लिए व्यक्ति प्राइवेट अस्पताल का रुख करने को मजबूर है। उस पर नीति आयोग की हालिया रिपोर्ट आइना दिखाने वाली है। 18 साल का यह पहाड़ी प्रदेश एकमात्र राज्य है, सेहत के मामले में जिसका प्रदर्शन बेहतर होने की बजाए बदतर हुआ है।
आजादी के 75 सालों में हमारे देश ने बहुत तरक्की की है. लेकिन उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कपकोट विधानसभा के दर्जनों गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. सड़क, बिजली, शिक्षा व स्वास्थ्य के साथ ही इन गांवों में संचार की समस्या आज भी लोगों का जी का जंजाल बनी हुई है. इन दुर्गम लोकतांत्रिक पड़ावों में विकास की किरण आज तक भी नहीं पहुंच सकी है. उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कपकोट विधानसभा के दर्जनों गांव में अब भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. वहां के गांवों में सड़क, बिजली, शिक्षा व स्वास्थ्य संबंधित सुविधाएं नहीं हैं. कपकोट विधानसभा के गैराड़ गांव में के लोग आज भी पानी, बिजली, सड़क, स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं के लिए आज भी उम्मीद की किरण जगाएं बैठे हैं. लेकिन हर बार चुनाव में नेता वादे करते हैं और चुनाव के बाद इन क्षेत्रों में कोई झांकने भी नहीं आता है. हर बार ग्रामीणों की उम्मीदें जस की तस रह जाती हैं. गांव को जोड़ने वाली गैराड़ रोड का भेरूचौप्ट्टा से मिलान होना था लेकिन आज तक भी नहीं हो सका है. स्कूल सिर्फ हाईस्कूल तक ही है. ग्रामीणों का कहना है कि मूलभूत सुविधाएं तक मुहैया नही है, गांव में यदि कोई बीमार हो जाता है तो उसे डोली से सड़क तक और वहां से जिला अस्पताल ले जाना पड़ता है. विकास की दौड़ में पिछड़ा कपकोट विधानसभा का गैराड़ गांव एक छोटा उदाहरण है. इस विधानसभा के पिंडरघाटी, लाहूर, रामगंगा घाटी में बसे दर्जनों गांवों में आज तक भी संचार की सुविधा नहीं है. वहीं शिक्षा, सड़क, बिजली और स्वास्थ्य सुविधा तो यहां बसे ग्रामीणों के लिए सपना बना हुआ है.
प्रदेश में लचर स्वास्थ्य सेवा के कारण नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में बढ़ोतरी हुई है। आए दिन अस्पतालों से लेकर घरों में सही उपचार न मिलने से कई नवजात जन्म लेने के बाद या फिर कोख में ही काल के ग्रास में समा रहे हैं। सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) की रिपोर्ट बताती है कि उत्तराखंड में शिशु मृत्यु दर 38 प्रति हजार है। बच्चों की ही बात क्यों करें, सुरक्षित मातृत्व के तमाम दावों के बीच यहां जच्चा भी सुरक्षित नहीं हैं। हाल ही की कई घटनाओं ने सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली पर बड़ा प्रश्न चिह्न लगा दिया है। पहाड़ तो दूर, दून की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। राजधानी के अस्पताल में ही फर्श पर जच्चा-बच्चा दम तोड़ देते हैं लेकिन सरकार और उसके अफसर दोनो ही नहीं पसीजते। एक के बाद एक हादसे होते हैं, दुर्घटनाएं होती है, अफसर जांच बैठाते हैं, पर हासिल कुछ नहीं होता। सरकारें अभी तक यह पता नहीं लगा पाई हैं कि राज्य की सेहत के लिए जरूरी है क्या?
लॉकडाउन के बीच पढ़ाई को सुचारू रूप से चलाने के लिए शुरू ऑनलाइन क्लासेस का लाभ बच्चे नेटवर्क की समस्या के कारण नहीं उठा पा रहे हैं। बच्चे पढ़ाई के लिए बेहतर नेटवर्क वाले इलाकों में जाने को मजबूर हैं।
विनोद जेठुडी निदेशक समूण आदर्श विध्यालय – ओसला लिखते है कि
आजादी का अमृत महोत्सव के उपलक्ष मे हर घर तिरँगा और स्वतंत्रा दिवस के दिन स्कूल मे साँस्क्रतिक कार्यक्रम की तैयारिँया जोरो पर थी । समूण आदर्श विध्यालय की कक्षा 5 की छात्रा साक्षी भी बडी खुश थी और दिल से सांस्क्रतिक तैयारियाँ कर रही थी ताकि 15 अगस्त के दिन साँस्क्रतिक कार्यक्रम मे प्रतिभाग कर सके ।
समूण आदर्श विध्यालय के प्रबंधक विजयपाल राणा जी ओसला से 28 किलोमीटर पैदल चलकर मोरी तक आये और मोरी से स्वतंत्रता दिवस के उत्सव के लिए तिरँगा आदी सामान खरिद कर 13 तारिक को ही विध्यालय मे वापस पुन: 56 किलोमीटर अप डाउन का सफर तय करके पहुंचे थे ।
13 अगस्त को दिन मे साक्षी की मामुली सी तबियत खराब होने पर उल्टी होने लगी और नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र न होने के कारण प्रार्थमिक उपचार न मिलने पर 14 तारिक की रात के 2 बजे साक्षी इस दुनियाँ से चल बसी । सबसे नजदीकी स्वास्थय केंद्र तक आने के लिए भी 28 किलोमीटर का सफर करना था और रास्ते इतने खराब हैँ कि पहाडी से गिरने का डॅर बना रहता है ।
आजादी के 75 साल बाद भी हम आजादी का अम्रत महोत्सव तो मना रहे है लेकिन आज भी उत्तराखँड मे येसे बहुत सारे गाँव है जहाँ पर न रोड है, न नेटवर्क, न स्कूल और सबसे बडी समस्या स्वास्थ्य सुविधाओँ का अभाव है । हर चुनाव से पहले सरकार बडे बडे वादे तो करती है लेकिन उसके बाद उन वादोँ को भुल जाती है । उत्तराखँड के सिमांत पहाडी इलाकोँ से न जाने कितनी बहनो को प्रसव के दौरान अपनी जानेँ गवानी पडते है लेकिन सरकार इस ओर बिल्कुल भी ध्यान नही दे रही है ।
सुदुर्वर्ती ग्रामिण ईलाको मे जहाँ पर सडक की ब्यवस्था नही है वहाँ पर प्रार्थमिक उपचार के लिए सरकार की ओर से एक डाक्टर की नियुक्ति अवश्य होनी चाहिए ताकि साक्षी जैंसी नन्ही सी बिटिया को सिर्फ उल्टी जैसे मामुले बिमार होने के कारण प्रार्थमिक उपचार न मिलने से अपनी जान न गँवाने पडे । आज से एक वर्ष पुर्व साक्षी के पिता टुरिस्ट गाईड के रुप मे कार्य करते हुए कुछ सैलानियोँ के साथ वर्फ की आंधी के सिकार हो गये थे और 1 माह पुर्व ही उनका शव मिला था जिसको कि परिवार अभी भुला भी नही पाया था ।
हम “समूण आदर्श विध्यालय परिवार” साक्षी बिटियाँ को नम आखोँ से भावभिनी श्रधानजली अर्पित करते हुए परम पिता परमात्मा से प्रार्थना करते है कि वह इस नन्ही सी बिटिया के पुण्य आत्मा को अपने चरणो मे स्थान देँ और शोकाकुल परिवार को यह दुख सहने की शक्ति प्रदान करेँ ।
Execlusive Report by Chandra shekhar Joshi Editor www.himalayauk.org (Leading Newsportgal & Print Media Mob. 9412932030
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