स्वतंत्रता के 71 वर्ष; गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा, बेरोजगारी से स्वतंत्रता नहीं

स्वतंत्रता प्राप्त हुए ७१ वर्ष व्यतीत हो गये। १५ अगस्त १९४७ को हम आजादी के सूर्योदय को देख पाए। हमें आज से ७० साल पहले जीने की आजादी तो मिल गई लेकिन इतने साल बीतने के बावजूद भी हमें गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा, बेरोजगारी, आतंकवाद, जैसी मौलिक समस्याओं से स्वतंत्रता नहीं मिली है। देश की सच्चाई यही है कि एक तरफ तो हम मंगल पर पहुंच गए हैं लेकिन दूसरी तरफ आज भी हमारे देश में कई लोग भूखमरी की वजह से रोज दम तोड देते हैं। आजादी के इस मौके पर देश की उन समस्याओं से अभी भी लगातार लडने की जरूरत है। राजनीतिक दल के लिए यह सिर्फ वोट बैंक है।

हमारे देश में भुखमरी एक बडी समस्या है। जहां कुछ लोग आए दिन खाना बर्बाद करते हैं वहीं कुछ लोग कई दिनों तक खाना नहीं मिलने के कारण समय से पहले काल के गाल में समा जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के साल २०१४-१५ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब १९ करोड ४० लाख लोग भुखमरी के शिकार हैं जो विश्व में किसी भी दूसरे देश के मुकाबले सबसे ज्यादा है। एफएओ के आंकडों के मुताबिक भारत में २००९ में २३ करोड १० लाख लोग भुखमरी का सामना कर रहे थे। हमारे देश में गरीबी हटाने और लोगों को भोजन मुहैया कराए जाने के लिए कई सरकारी कार्यक्रमों के बाद भी भुखमरी और कुपोषण सबसे बडी समस्या बनी हुई है।

आज से ७० साल पहले जीने की आजादी तो मिल गई लेकिन इतने साल बीतने के बावजूद भी हमें गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा, बेरोजगारी, आतंकवाद, जैसी मौलिक समस्याओं से स्वतंत्रता नहीं मिली है। देश की सच्चाई यही है कि एक तरफ तो हम मंगल पर पहुंच गए हैं लेकिन दूसरी तरफ आज भी हमारे देश में कई लोग भूखमरी की वजह से रोज दम तोड देते हैं। आजादी के इस मौके पर देश की उन समस्याओं से अभी भी लगातार लडने की जरूरत है। राजनीतिक दल के लिए यह सिर्फ वोट बैंक है।

इंडियन इन्सटिट्ययूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल २३ करोड टन दाल, १२ करोड टन फल और २१ टन सब्जियां वितरण पणाली में गडबडी के चलते बर्बाद हो जाती हैं।१९९० से २०१५ के दौरान भारत में भी भुखमरी में गिरावट आई है। १९९०-९२ में भारत में खाने से वंचित लोगों की संख्या २१.१ करोड थी जो कि २०१४-१५ में घटकर १९.४६ करोड हो गई है।

इसके अलावा समाज में शिक्षा की कमी को सभी समस्याओं का जड माना जाता है। यही वजह है कि हमारे देश में भी शिक्षा की कमी की वजह से गरीबी, बेरोजगारी जैसी मूलभूत दिक्कतें अपना जड जमा चुकी है।
यूनिस्कों की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब २ करोड ८७ लाख ऐसे एडल्ट हैं जो पूरी तरह अशिक्षित हैं। २०११ की जनगणना के मुताबिक पुरुषों की साक्षरता ८२.१४प्रति० और ६५.४६प्रति० महिलाओं की साक्षरता थी। कम महिला साक्षरता भी लिखने और पढने की गतिविधियों के लिए महिलाओं के पुरुषों पर निर्भर रहने के लिये जिम्मेदार है। अगर देश में साक्षरता दर की बात करें तो केरल में जहां सबसे ज्यादा ९३.९१ फीसदी लोग साक्षर हैं वहीं इस मामले में सबसे पिछडा हुआ राज्य बिहार है। बिहार में सारक्षरता दर पूरे देश में सबसे कम ६३.८२ फीसदी है।

इसके अलावा समाज में शिक्षा की कमी को सभी समस्याओं का जड माना जाता है। यही वजह है कि हमारे देश में भी शिक्षा की कमी की वजह से गरीबी, बेरोजगारी जैसी मूलभूत दिक्कतें अपना जड जमा चुकी है।
यूनिस्कों की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब २ करोड ८७ लाख ऐसे एडल्ट हैं जो पूरी तरह अशिक्षित हैं। २०११ की जनगणना के मुताबिक पुरुषों की साक्षरता ८२.१४प्रति० और ६५.४६प्रति० महिलाओं की साक्षरता थी। कम महिला साक्षरता भी लिखने और पढने की गतिविधियों के लिए महिलाओं के पुरुषों पर निर्भर रहने के लिये जिम्मेदार है। अगर देश में साक्षरता दर की बात करें तो केरल में जहां सबसे ज्यादा ९३.९१ फीसदी लोग साक्षर हैं वहीं इस मामले में सबसे पिछडा हुआ राज्य बिहार है। बिहार में सारक्षरता दर पूरे देश में सबसे कम ६३.८२ फीसदी है।

आज देश में सरकार के लिए सबसे बडी चुनौती है लगातार बढ रही जनसंख्या के लिए रोजगार मुहैया कराना। भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से बढने के लिए बेहद जरूरी है कि देश के हर युवा को उसकी क्षमता के मुताबिक रोजगार मिले। जबतक लोगों को रोजगार नहीं मिलेगा तब तक लोगों के खरीदने की क्षमता नहीं बढेगी। अगर खरीदने की क्षमता नहीं बढी तो इसका सीधा असर देश में होने वाले उत्पादन और मांग पर पडेगा।
यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक साल २०१७-१८ में देश में बेरोजगारी दर में और इजाफा हो सकता है। २०१५-१६ में बेरोजगारी दर पिछले पांच साल के सबसे उच्च स्तर पर पहुंच चुका है। २०१२-१३ की रिपोर्ट के मुताबिक देश में १५ से २९ साल के युवाओं की बेरोजगारी दर १३.३ फीसदी है।

आज देश में सरकार के लिए सबसे बडी चुनौती है लगातार बढ रही जनसंख्या के लिए रोजगार मुहैया कराना। भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से बढने के लिए बेहद जरूरी है कि देश के हर युवा को उसकी क्षमता के मुताबिक रोजगार मिले। जबतक लोगों को रोजगार नहीं मिलेगा तब तक लोगों के खरीदने की क्षमता नहीं बढेगी। अगर खरीदने की क्षमता नहीं बढी तो इसका सीधा असर देश में होने वाले उत्पादन और मांग पर पडेगा।
यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक साल २०१७-१८ में देश में बेरोजगारी दर में और इजाफा हो सकता है। २०१५-१६ में बेरोजगारी दर पिछले पांच साल के सबसे उच्च स्तर पर पहुंच चुका है। २०१२-१३ की रिपोर्ट के मुताबिक देश में १५ से २९ साल के युवाओं की बेरोजगारी दर १३.३ फीसदी है।
हमारे देश के लिए चिंता की बात ये है कि देश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी २० से २४ साल के लोग हैं। देश में करीब २५ फीसदी ऐसे लोगों इस उम्र के जिनके पास कोई काम-धंधा नहीं है। देश में २५ से २९ की उम्र के ऐसे १७ फीसदी युवा हैं जो पूरी तरह बेरोजगार हैं। वहीं २० साल से ज्यादा उम्र के करीब १४ करोड ३० लाख ऐसे युवा है जो नौकरी की तलाश में जुटे हुए हैं। आकंडों के मुताबिक वर्तमान में हमारे देश में करीब १२ करोड लोग पूरी तरह बेरोजगार हैं। ये देश की कुछ ऐसी मूल समस्या है जिसका सामना हम आजादी मिलने के ७० साल बाद भी कर रहे हैं। सच्ची आजादी के मायने उसी दिन सिद्ध होंगे जिस दिन हम और हमारा देश इन मूलभूत समस्याओं से आजादी पा लेगा तब जाकर हम सही मायनों में आजाद हो पाएंगे।

Presented by- हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्‍तराखण्‍ड

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