फिल्मों का महापर्व भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह
दुनिया भर की श्रेष्ठ फिल्मों की बड़ी झलक फिल्मों का महापर्व है भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह
-प्रदीप सरदाना*
PHOTO CAPTION; अमेरिका के फिल्म निर्माता श्री राजको ग्रलिक, 23 नवंबर 2016 को गोवा के पणजी में भारत के 47वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई-2016) में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए।
भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह देश का ऐसा फिल्म समारोह है जिसकी प्रतीक्षा विश्व के तमाम फिल्मकारों को पूरे वर्ष रहती है. यहाँ तक फ़िल्मकार ही नहीं,फिल्म समीक्षक और अनेक सिने प्रेमी भी इन दिनों की बहुत उत्सुकता से बाट जोहते हैं. अंततः अब 20 नवम्बर से देश का फिल्मों का सबसे बड़ा उत्सव गोवा में शुरू हो रहा है. देश में फिल्मों के महाकुम्भ के रूप में अपनी अलग पहचान बना चुका यह अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव 28 नवम्बर तक चलेगा. हालांकि इससे पूर्व यह अन्तराष्ट्रीय फिल्म समारोह 11 दिवसीय होता था लेकिन इस 47 वें फिल्म समारोह से इसे दो दिन कम करके 9 दिन का कर दिया गया है.
अपने पिछले 46 आयोजन में इस भारतीय फिल्म समारोह ने कितनी प्रगति की है उसकी एक मिसाल इस बात से भी मिलती है कि सन 1952 में देश के प्रथम अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में जहाँ सिर्फ 23 देशों की फ़िल्में आई थीं. वहां इस साल इस समारोह के लिए 102 देशों से कुल 1032 फिल्मों की प्रविष्टियाँ प्राप्त हुईं थीं. जिनमें से 88 देशों की 194 फिल्मों का ही समारोह में प्रदर्शन के लिए चयन हुआ है.इससे यह संकेत मिलता है कि फिल्मों का चयन अच्छी और सिर्फ अच्छी फिल्मों के दृष्टि से ही पिछले करीब 30 बरसों से विभिन्न अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में हिस्सा लेने के पश्चात मेरा अनुभव यह कहता है कि किसी भी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह की सफलता के 6 मुख्य मन्त्र हैं. जिस समारोह में इन छह बातों की जितनी अधिकता होगी वह समारोह उतना ही अधिक सफल माना जाएगा. पहली यह कि अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त बड़े बड़े फिल्मकार अपनी फ़िल्में समारोह के लिए भेजें. दूसरा समारोह में अधिक से अधिक फिल्मों का प्रथम प्रदर्शन अर्थात वर्ल्ड प्रीमियर हो, तीसरा समारोह में भाग लेने के लिए देश विदेश की बड़ी बड़ी फिल्म हस्तियाँ आयें.चौथा समारोह में पुरस्कृत फिल्मों के प्रति किसी को कोई शंका न हो,यानि जो भी पुरस्कार दिए जाएँ उस निर्णय के प्रति सभी का आदर भाव रहे, वे सर्वमान्य हों. पांचवां, समारोह के दौरान देश विदेश की कुछ ऐसी कालजयी और अविस्मर्णीय फ़िल्में भी देखने को मिल सकें जो प्रायः दुर्लभ हैं या जिन्हें अन्यत्र देखना सुगम न हो. छठा और अंतिम मन्त्र है समारोह की व्यवस्था. इस व्यवस्था में समारोह स्थल का तकनीकी रूप से अधिक संपन्न होने के साथ अतिथियों,प्रतिनिधियों, मीडिया आदि को ऐसी सुविधाएँ मिलनी चाहियें जिससे सभी को फ़िल्में देखने के साथ अपना काम करने में कोई परेशानी न हो. फिल्मों के प्रदर्शन के शेड्यूल तो अच्छे बने ही.साथ ही वहां रहने और खानपान की भी यथा संभव अच्छी व्यवस्था हो. भारत के लिए निश्चय ही यह गर्व की बात है कि हमारा यह फिल्म समारोह अब धीरे धीरे इन सभी कसौटियों में काफी हद तक खरा उतरने लगा है.
गोवा के इस 47 वें फिल्म समारोह में अलग अलग किस्म की फिल्मों के लिए विभिन्न वर्ग हैं.इनमें से कुछ परंपरागत हैं और कुछ नए खंडों का भी समावेश किया गया है. फीचर फिल्मों के प्रमुख खंडों में –अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा खंड, विश्व सिनेमा, भारतीय सिनेमा, फोकस,श्रद्दांजलि, सिंहावलोकन और ब्रिक्स फिल्म्स आदि है. साथ ही इस वर्ष एक विशेष नए खंड का भी आरम्भ किया जा रहा है.इस खंड का नाम है –किसी नए निदेशक की फिल्म के लिए शताब्दी पुरस्कार’.इनके अलावा कुछ अन्य खंड भी इस समारोह में होंगे.
इस 47 वें फिल्म समारोह का उद्घाटन 20 नवम्बर को एक रंगारंग कार्यक्रम से होगा। पोलेंड के मशहूर फ़िल्मकार आंद्रे वाज्दा की एक बेहतरीन फिल्म ‘आफ्टर इमेज’ समारोह की उद्घाटन फिल्म है.यह फिल्म बीसवीं शताब्दी के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चित्रकार व्लादिस्लाव स्ट्रेज़ेमिन्स्की के जीवन,संघर्ष और कला की मार्मिक गाथा है.फिल्मकार वाज्दा का गत 9 अक्टूबर को ही 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया था. इसीलिए वाज्दा की इस उद्दघाटन फिल्म के साथ उन्हें श्रद्दांजलि देने के लिए उनकी मैन ऑफ़ द आयरन,एशेज एंड डायमंड और द प्रोमिस्ड लैंड जैसी श्रेष्ठ फिल्मों का भी समारोह में अलग से प्रदर्शन किया जाएगा. यहाँ यह भी बता दें कि इस फिल्म समारोह में एक और विश्व प्रसिद्द ईरानी फिल्मकार अब्बास किरोस्तामी को भी श्रद्दांजलि देने के लिए उनकी 6 प्रमुख फिल्मों का विशेष प्रदर्शन रखा है. इन 76 वर्षीय फ़िल्मकार अब्बास का इंतकाल भी गत 4 जुलाई को ही हुआ है. यहाँ उन्हें जिन फिल्मों से श्रद्दांजलि दी जायेगी उनके नाम हैं- टेस्ट ऑफ़ चेरी, शीरीन, द विंड विल कैरी अस, टैन, टेक मी होम, लाइक समवन इन लव.समारोह में हिंदी सिनेमा की खूबसूरत अभिनेत्री साधना के साथ मलयालम फिल्मों की अभिनेत्री कल्पना को भी श्रद्दांजलि दी जायेगी. साधना का निधन गत दिसम्बर में और कल्पना का निधन गत जनवरी में ही हुआ है. समारोह में साधना की पहली हिंदी फिल्म ‘लव इन शिमला’ का भी प्रदर्शन रखा गया है.
समारोह के समापन को भी ख़ास बनाने के लिए जहाँ कुछ विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम रखे गए हैं,वहां सफलता और लोकप्रियता के नए आयाम बनाने वाली फिल्म ‘बाहुबली’ के राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक एस एस राजामौली को समापन समारोह का मुख्य अतिथि बनाया गया है.
इस 47 वें फिल्म समारोह में यूँ तो लगभग सभी उन देशो की फिल्म हैं जो फिल्म निर्माण में अपना विशेष महत्त्व रखते हैं. लेकिन इस समारोह में कोरिया छाया रहेगा. असल में इस बार समारोह में जिस देश की फिल्मों पर फोकस रखा है वह कोरिया गणराज्य ही है. जिसमें कोरिया की 6 चुनिन्दा फ़िल्में -द किंग्स ऑफ़ पिग्स, द शेमलेस, टनल, कॉइन लॉकर गर्ल, डांग्जू और द वर्ल्ड ऑफ़ यूएस विशेष रूप से दिखाई जायेंगी. इसी के साथ समारोह की समापन फिल्म भी दक्षिण कोरिया की ऑस्कर नामांकित फिल्म ‘द एज ऑफ़ शेडोज’ है. इसके निर्देशक किम जी वून हैं. फिल्म समारोह में कोरिया की गूँज तब भी होगी जब कोरिया के लेखक और निर्देशक इम क्वोन तेइक को उनकी जीवन भर की उपलब्धियों के लिए 10 लाख रूपये नगद राशि सहित लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से पुरस्कृत किया जाएगा.
यहाँ यह भी बता दें कि इस समारोह में भारतीय सिने जगत की भी एक महान हस्ती को शताब्दी पुरस्कार से सम्मानित किया जायेगा.यह हस्ती हैं सुप्रसिद्ध गायक और संगीतकार एस पी बालासुब्रमण्यम. एस पी को अपनी अद्दभुत प्रतिभा के लिए जहाँ 6 बार राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. वहां वह 40 हज़ार गीतों की रिकॉर्डिंग कर गिनीज बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं.उधर इस बार के दादा साहब फाल्के पुरस्कार विजेता मनोज कुमार पर भी समारोह में सिंहावलोकन रखा है, जिसमें उनकी शहीद,उपकार,पूरब और पश्चिम और क्रांति जैसी फ़िल्में हैं.
समारोह का सबसे बड़ा आकर्षण प्रतियोगी खंड रहता है. समारोह समापन पर भी सभी यह जानने के लिए उत्सुक रहते हैं कि किस किस फिल्म को पुरस्कार मिला. इस बार इस प्रतिस्पर्धा खंड में 15 फ़िल्में हैं. जिनमे दो फ़िल्में भारत से भी हैं,जिनमें जी प्रभा की संस्कृत फिल्म ’इश्ति दिखाती है कि बीसवीं शताब्दी के मध्य के केरल में किस प्रकार युवा नम्बूथिरी ब्राहमिंस ने दकियानूसी और पुरुषों के वर्चस्व को सफल चुनौती दी. इस खंड की दूसरी भारतीय फिल्म मानस मुकुल पाल की बांग्ला फिल्म ‘सहज पाथेर गप्पो’ है. खंड की 13 अन्य विदेशी फिल्मों में ईरान की डॉटर,रूस की द स्टूडेंट,कनाडा की नैली,अमेरिका की अकोर्डिंग टू हर,पोलेंड की द लास्ट फैमिली,कोरिया की द थ्रोन,रोमानिया-जर्मनी की स्कार्ड हार्ट्स और इजराइल की पर्सनल अफेयर्स भी हैं.इस खंड की विजेता फिल्मों में सर्वोत्तम फिल्म,निर्देशक,अभिनेता,अभिनेत्री सहित विशेष जूरी पुरस्कार भी प्रदान किया जायेगा. इसके अतिरिक्त नए निर्देशक की पहली फिल्म के शताब्दी पुरस्कार के नए खंड में भी भारत की एक फिल्म ‘हरिकथा प्रसंगा’ रजत मयूर के साथ 10 लाख रूपये के नगद पुरस्कार की दौड़ में है.इस कन्नड़ फिल्म को अनन्या कासरवल्ली ने बनाया है. इस खंड में जो 6 अन्य विदेशी फिल्म स्पर्धा में हैं उनमें युवा फिल्मकारों की वूल्फ एंड शीप, वन वीक एंड डे, रारा, रैथ, ट्रमोंटेन और टू बर्ड्स वन स्टोन हैं.
उधर दुनिया भर की श्रेष्ठ फिल्मों की बड़ी झलक विश्व सिनेमा में देखी जा सकती है.इस वर्ग में अमेरिका,ब्रिटेन,फ्रांस,जर्मनी,ईरान,चीन,कोलंबिया,सिंगापोर,मलेशिया,हंगरी,ताइवान,वेनेजुएला,एस्तोनिया,चिली,नाइजीरिया,अफगानिस्तान और श्रीलंका जैसे देशों की बहुत सी प्रमुख फ़िल्में शामिल हैं.इन फिल्मों में अराइवल,लाइक कॉटन ट्विन्स,द स्वीट प्लेस,लिली लेन,अमेरिकन हनी.इंटरचेंज,काबुलीवुड,द ब्राइब ऑफ़ हेवन,इनर सिटी, सेवेंटी सिक्स,लायला एम,बेंच सिनेमा,मेरी एंड द मिसफिट्स,तमारा,इनवर्शन,ए येलो बर्ड, वेस्टलैंड्स,आलोको उडापडी और ऑन द अदर साइड जैसी फ़िल्में किसी न किसी कारण सुर्ख़ियों में रही हैं.
समारोह के इंडियन पेनोरमा खंड में जहाँ एक ओर कई नयी फ़िल्में पहली बार प्रदर्शित हो रही हैं वहां हाल ही में प्रदर्शित कुछ लोकप्रिय हिंदी फ़िल्में भी देश विदेश के दर्शकों का आकर्षण बनेगी. असल में यूँ इंडियन पनोरमा खंड में 22 फ़िल्में थीं. लेकिन उनमें एक इस साल की सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाली फिल्म ’बाहुबली’ के साथ मुख्यधारा की तीन फिल्मों –सुलतान, बाजीराव मस्तानी और एयरलिफ्ट को और जोड़ दिया गया तो इस खंड में फिल्मों की कुल संख्या 26 हो गयी है. इसके अलावा ओपन थिएटर में एक कालजयी फिल्म ‘शोले’ भी अलग से दिखाई जायेगी. इंडियन पेनोरमा में जो अन्य प्रमुख फिल्म हैं उनमें हिंदी की पिंकी ब्यूटी पार्लर,मराठी के नटसम्राट,सैराट,मलयालम की रुपांथरम,विराम मैकबेथ,कोंकणी की के सेरा सेरा,बांग्ला की बास्तु शाप,चित्रोकर,अंग्रेजी की मंत्रा,कन्नड़ की यू टर्न और अल्लमा सहित कुछ और भी फिल्म शामिल हैं.
एक ही स्थल पर दुनिया भर की एक से एक फिल्म देखने और इन फिल्मों के फिल्मकारों तथा कलाकारों आदि से मिलने के इतने बड़े मौके सिर्फ इस प्रकार के बड़े अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में ही मिल सकते हैं. इस आधुनिक युग में जब विश्व सिनेमा कभी अपने लेपटॉप से मोबाइल तक में सिमटता दिखता है तब भी इस प्रकार के फिल्म समारोह की प्रासंगिकता कम होने की जगह बढ़ती जा रही है.यही सब इन समारोह की सार्थकता दर्शाता है और सफलता तथा लोकप्रियता भी.