विपक्ष से ज्यादा मुखर हाेेगेे सत्ता पक्ष के यह सहयोगी
नीतीश कुमार ने कहा कि मोदी मंत्रिमंडल में सांकेतिक रूप से शामिल होने के न्योते को लेकर उनकी पार्टी ने सहमति नहीं दी. नीतीश कुमार की नाराजगी इस बात पर दिखी कि दो सांसद वाले अकाली दल और छह सांसद वाले एलजेपी के भी एक-एक सदस्य को कैबिनेट मंत्री बनाया गया, जबकि उनकी पार्टी जदयू के 16 सांसद हैं, साथ ही छह सांसद राज्यसभा में हैं. इसके बावजूद केंद्रीय मंत्रिमंडल में सिर्फ सांकेतिक भागीदारी की बात कही गई. जदयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने कहा था, ‘सरकार में शामिल होने के लिए हमारी पार्टी को भाजपा से आमंत्रण मिला था. लेकिन यह सांकेतिक प्रतिनिधित्व जैसा था.’
आने वाले समय में विपक्ष से ज्यादा मुखर नीतीश कुमार हर मुद्दे पर रहें तो यह आश्चर्य की बात नहीं होगी. नीतीश कुमार की जनता दल यूनाईटेड सरकार में शामिल नहीं हुई. बिहार से बीजेपी ने अपने कोटे से पांच लोगों को मंत्रिमंडल में शामिल किया है. नीतीश के अनुसार इसके बाद अब शायद ही उनकी मांग को मानें. ऐसे में उन्होंने भविष्य में भी सरकार में शामिल होने की किसी भी संभावना को अभी से खारिज कर दिया है. नीतीश कुमार ने स्थिति को साफ किया कि उनका बीजेपी के साथ संबंध बना रहेगा, मगर उनके मंत्री शपथ नहीं लेंगे. यह बात बीजेपी अध्यक्ष को बता दी गई है. जेडीयू की सरकार में भागीदारी को लेकर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी ने भी प्रयास किए लेकिन नीतीश कुमार नहीं माने. नीतीश कुमार का कहना था कि जब अकाली दल के पास दो सांसद हैं और उन्हें एक मंत्री पद मिल रहा है और रामविलास पासवान की पार्टी के पास छह सांसद हैं और उन्हें एक कैबिनेट का पद मिल रहा है, तो जेडीयू के पास 16 सांसद हैं, उन्हें किस आधार पर एक ही कैबिनेट मंत्री पद दिया जा रहा है. जेडीयू कम से कम एक और स्वतंत्र प्रभार का मंत्रालय चाह रहा था, मगर उनकी बात नहीं बनी. नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री का भी फोन आया था, मगर बात नहीं बनी. नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी को शपथ ग्रहण से अलग रखा.
आने वाले दिनों में बिहार में विधानसभा के भी चुनाव होने हैं और उसको देखते हुए नीतीश अपनी रणनीति बनाने में व्यस्त हैं. चुनाव के दौरान भी नीतीश कुमार वंदे मातरम जैसे मुद्दे पर असहज दिखे थे. वे वंदे मातरम के नारों के दौरान हाथ उठाने से परहेज करते रहे. बिहार बीजेपी के नेता अब यह कहने लगे हैं कि अगला चुनाव अब अकेले ही लड़ लिया जाए. यानी बीजेपी में भी बिहार में मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने वाले नेताओं की कमी नही है. उन्हें लगता है कि बिहार में बीजेपी इतनी मजबूत हो चुकी है कि वह अपने दम पर लड़ सकती है. इस चुनाव में बिहार में एनडीए को 53.25 फीसदी वोट मिले जिसमें से बीजेपी को 23.58 फीसदी और जेडीयू को 21.8 फीसदी वोट मिले. इस चुनाव के मुताबिक जेडीयू का वोट पिछली बार यानि 2014 के मुकाबले 16.04 फीसदी से बढ़कर 21.8 फीसदी हो गया जबकि बीजेपी का वोट 29.40 फीसदी से घटकर 23.58 फीसदी रह गया. यही बात बीजेपी नेताओं को चुभ रही है. कई बीजेपी नेता नीतीश कुमार को संदेह की दृष्टि से देखते हैं क्योंकि बिहार में विपक्ष के लोग नीतीश कुमार को पलटू कुमार भी कहते हैं. कई बीजेपी नेताओं को लगता है कि जेडीयू उनके सहारे आगे बढ़ रही है.
बिहार में अभी भी राज्य को स्पेशल दर्जा नहीं दिया जाना और आर्थिक पैकेज नहीं मिलना भी एक मुद्दा है. यानी बिहार की राजनीति को देखते हुए नीतीश कुमार जो कर रहे हैं उसके कई गहरे राजनैतिक मायने हो सकते हैं. इसलिए आगे वाले समय में नीतीश कुमार चौंकाने वाले कदम उठा ले तो आश्चर्य नही.
बिहार (Bihar) के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड (JDU) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने शुक्रवार को साफ कर दिया कि वे बीजेपी (BJP) के साथ हैं, लेकिन केंद्र सरकार में नहीं जाएंगे. नीतीश ने इसके पीछे कई कारण गिनाए. आइए जानते हैं वे कौन-कौन से कारण हैं जिनके कारण नीतीश बीजेपी के साथ बिहार में गठबंधन तो जारी रखना चाहते हैं लेकिन अब केंद्र सरकार (Modi Government) में शामिल होने की संभावना से इनकार कर रहे हैं.
नीतीश (Nitish Kumar) मोदी सरकार में शामिल होने से इसलिए इनकार कर रहे हैं क्योंकि जो आनुपातिक प्रतिनिधित्व की उन्होंने मांग रखी थी उस पर बीजेपी (BJP) के शीर्ष नेतृत्व ने चुप्पी साध ली. बिहार से बीजेपी ने अपने कोटे से पांच लोगों को मंत्रिमंडल में शामिल किया है. नीतीश के अनुसार इसके बाद अब शायद ही उनकी मांग को मानें. ऐसे में उन्होंने भविष्य में भी सरकार में शामिल होने की किसी भी संभावना को अभी से खारिज कर दिया है.
केंद्र सरकार में शामिल न होने के पीछे नीतीश (Nitish Kumar) ने जो दूसरा तर्क दिया है उसके अनुसार प्रारंभ में सरकार बनाने के समय जो भी बातचीत होती है वही आखिरी बातचीत मानी जाती है. इसका मतलब यह है कि क्या बनेगा, नहीं बनेगा और सरकार में किसकी कितनी भागीदारी होगी वह सब सरकार बनने के पहले ही तय हो जाता है. नीतीश को मालूम है कि बीजेपी का सांकेतिक प्रतिनिधित्व का फ़ॉर्मूला उनकी पार्टी के किसी नेता या कार्यकर्ता को कभी मंजूर नहीं होगा. इसलिए इस विषय पर उन्होंने अभी से पूर्ण विराम लगा दिया है.
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने सरकार में शामिल न होने की घोषणा से भी महत्वपूर्ण बात यह कही है कि बिहार का जनादेश बिहार की जनता का कमाल है. यह बिहार के लोगों की जीत है. कोई यह माने कि यह हम लोगों की जीत है तो यह एक भ्रम है. नीतीश के इस कथन का सीधा अर्थ यही है कि बिहार का जनादेश नरेंद्र मोदी के नाम है और चेहरे से ज़्यादा बिहार के एनडीए में शामिल दलों के आधारभूत वोटर के एक साथ आने का कमाल है.
नीतीश (Nitish Kumar) ने माना कि बीजेपी को जो पूर्ण बहुमत है उसके बाद एनडीए के एजेंडे को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया जाए तो आश्चर्य नहीं होगा. नीतीश का कहना है कि एनडीए का एजेंडा क्या होगा, वे जानेंगे कि क्या करना चाहिए, लेकिन मैंने साफ कर दिया है कि जो पिछली राज्य का पिछड़ापन है, उसे दूर करने के लिए जो भी कदम उठाने चाहिए, उठाए जाएं.
नीतीश (Nitish Kumar) ने माना कि आनुपातिक प्रतिनिधित्व की उनकी मांग बीजेपी ने नहीं मानी. हालांकि इस संबंध में उन्होंने अपनी राय से बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह (Amit Shah) और राष्ट्रीय महासचिव भूपेंद्र यादव को अवगत करा दिया था. आनुपातिक प्रतिनिधित्व का क्या अर्थ होता है, नीतीश कुमार के अनुसार यह भी बीजेपी को तय करना था लेकिन बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने चुनाव परिणाम आने के बाद सहयोगियों को सांकेतिक प्रतिनिधित्व से ज्यादा कुछ न देने की ठान ली थी.
नीतीश ने साफ किया कि उन्होंने न तो कोई संख्या और न ही कोई नाम बीजेपी के पास भेजा था. मीडिया में इस संबंध में सारी रिपोर्ट अटकलों पर आधारित हैं जिनमें कोई तथ्य नहीं.
नीतीश (Nitish Kumar) ने साफ किया कि भले ही केंद्रीय मंत्रिमंडल में अति पिछड़ा या महादलित समुदाय को कोई प्रतिनिधित्व फिलहाल नहीं दिया गया है लेकिन उनकी सरकार और पार्टी इन वर्गों के लिए पूर्व की तरह काम करती रहेगी. दरअसल उन्हें इसका अंदाजा है कि बीजेपी ने जिस तरह पांच में से चार, यानी की 80% केवल अगड़ी जाति के लोगों को मंत्रिमंडल में जगह दी है, उससे पिछड़े वर्गों में मायूसी है. आने वाले दिनों में उनमें नाराजगी भी हो सकती है इसलिए मंत्रिमंडल में न जाकर उन्होंने राजनीतिक रूप से एक सही फैसला लिया है.
हालांकि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने एक से अधिक बार इस बात को दोहराया कि भले ही वे सरकार में शामिल नहीं हो रहे लेकिन वे बीजेपी के साथ मिलकर काम करेंगे. लेकिन उनकी बातों से साफ है कि अपनी मांग को नहीं माने जाने के बाद वे निश्चित रूप से आने वाले दिनों में भाजपा के साथ फूंक-फूंककर कदम रखेंगे.
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की बातों से साफ झलका कि जिस बुलंदी से उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को एक बार फिर जनादेश दिलाने के लिए प्रचार-प्रसार किया, वहीं बीजेपी और मोदी बहुमत का आंकड़ा पार करने के बाद अपने नियमों और शर्तों के अनुसार उनसे यह अपेक्षा करने लगे कि गठबंधन उनकी शर्तों के अनुसार चलेगा.
नीतीश कुमार के तेवर से स्पष्ट है कि मौन रखकर पूरे प्रचार अभियान के दौरान उन्होंने जिम्मेदार सहयोगी की भूमिका निभाई, अब बीजेपी सांकेतिक प्रतिनिधित्व का फ़ॉर्मूला देकर उनसे उम्मीद नहीं कर सकती कि वे (Nitish Kumar) अब चुप रहेंगे. इसलिए आने वाले समय में विपक्ष से ज्यादा मुखर नीतीश कुमार हर मुद्दे पर रहें तो यह आश्चर्य की बात नहीं होगी.