न मुख्यमंत्री बनने का अहंकार,न तमतमाहट- राजनीति के लोकप्रिय नेता हेमंत सोरेन

#www.himalayauk.org (Uttrakhand Leading Newsportal & Print Media) Mail us; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030## Special Report by CHANDRA SHEKHAR JOSHI= Chief EDITOR

भारतीय राजनीति में एक से बढ़कर एक दिग्गज बैठे हुए हैं जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान पूरे  भारतवर्ष में अपने नाम के झंडे लहराए हैं जिनमें से एक हैं झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन। वह एक ऐसे दिग्गज नेता हैं जिन्होंने अकेले ही अपने दम पर पार्टी की 81 सीट को साथ लेकर चुनावी मैदान में उतर गए।  झारखंड के मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष के रुप में हेमंत सोरेन को देखा जाता है। वह पूर्व केंद्रीय मंत्री और आदिवासी नेता शिबू सोरेन के बेटे हैं।  झारखंड में मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें पांचवी बार देखा जा रहा है और अपनी भारी जीत के साथ वे झारखंड के चुनावी मैदान में साल 2019 की भी जीत हासिल कर चुके हैं। उनके पिताजी भी बहुत बड़े राजनीतिज्ञ रह चुके हैं जिसके चलते उन्हें झारखंड में राजनीति का गुरु माना जाता है।

10 अगस्त 1975 को एक महान राजनीतिज्ञ का जन्म रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में हुआ था। जिनके माता-पिता का नाम शिबू सोरेन और रूपी सोरेन था। उन्होंने बचपन में कभी एक राजनीतिक के बनने का सपना तो नहीं देखा था लेकिन बड़े होकर एक बेहतर राजनीतिक बनकर उन्होंने झारखंड में अपना बखूबी परचम लहराया।

हेमंत ने 1990 के दशक में पटना के एमजी हाई स्कूल से अपनी मेट्रिक की परीक्षा पास की थी।  उसके बाद उन्होंने रांची के बीआईटी मैकेनिकल इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया। कुछ कारणों के चलते वे अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए।  कुछ समय पश्चात कल्पना नाम की एक लड़की के साथ उनकी शादी हो गई जिस के बाद उनके दो बेटे भी हुए। हेमंत सोरेन के दो भाई और एक बहन भी उनके परिवार में शामिल है।

इकबाल सबा वरिष्‍ठ पत्रकार ने  हिमालयायूके न्यूज पोर्टल सम्‍पादक चन्‍द्रशेखर जोशी को बताया कि वैसे तो मैं श्री हेमंत सोरेन जी मिलता रहा हूं, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद कल पहली बार मिला, कोई फर्क नहीं था, ना मुख्यमंत्री बनने का अहंकार, ना आवाज़ में गर्जन, ना चेहरे पर तमतमाहट बल्कि पहले से ज्यादा सहज, सरल और मिर्दुभाषी। मेरे कांधे पर प्यार का स्पर्श देकर सेल्फी दी तो दिल खुश हो गया। झारखंड की माटी के बेटे को मुख्यमंत्री बनने कि लाखो बधाई!!

हेमंत सोरेन ने साल 2017 में एक विवादों में आकर सुर्खियों में छा गए. यह उस समय की बात है जब सीएम रघुवर दास ने हेमंत को ‘झारखंड ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट’ के लिए आमंत्रित किया था। उस समय रघुवर दास को यह कहते हुए कि यह शिखर सम्मेलन भूमि हड़पने वालों का महा चिंतन शहर है जहां पर आदि-वासियो, मूल वासियों और राज्य किसानों की भूमि को लूटने के लिए यह शिखर सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है इसलिए उन्होंने इस निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया।

हेमंत सोरेन ने अपनी जीवन में राजनैतिक रुख साल 2005 में किया जब उन्होंने पहली बार विधानसभा चुनावों में दुमका नाम जगह से चुनाव लड़ा था। इस चुनावी प्रक्रिया में उन्हें निराशाजनक हार का सामना करना पड़ा। उसके बाद में वे पूरी तरह से राजनीति में तब उतरे जब उनके बड़े भाई दुर्गा की अचानक मृत्यु हो गई थी। उस समय साल 2009 के दौरान उन्हें वरिष्ठ जेएमएम नेता के रूप में राजनीति का मुख्य केंद्र बना दिया गया। 24 जून 2009 को वे राज्यसभा के एक महत्वपूर्ण सदस्य बन चुके थे जिस के बाद 23 सितंबर 2009 को वे एक विधायक के रूप में निर्वाचित हो चुके थे। 11 सितंबर सन 2010 को जनता के प्यार ने उन्हें झारखंड के डिप्टी सीएम के पद पर आसीन कर दिया। इस पद पर वे लगातार 8 जनवरी साल 2013 तक बने रहे। जिस समय अर्जुन मुंडा ने भाजपा, gnm, jda, jsu का गठबंधन किया था उस समय सितंबर में हेमंत झारखंड के उप मुख्य मंत्री के रूप में उभर कर सामने आए। सन 2013 में वे झारखंड राज्य के युवा मुख्यमंत्री बन गए और दिसंबर 2014 तक किसी पद पर आसीन रहे। 13 जुलाई 2013 को भारी बहुमत से जीत कर उन्होंने सीएम की कुर्सी को संभाल लिया था। उसी साल जनवरी में ही हेमंत के विपक्षी दलों जिनमें कांग्रेस, जेवीएम्पी और आर जेडी के साथ महा गठबंधन की योजनाएं बनाए जाने लगी लेकिन वे सभी योजनाएं धराशाई हो गई। एक बार फिर से झारखंड चुनाव के मैदान में वह लड़ाई जीत गए हैं, उनके पूरे राजनीतिक कैरियर में उनकी पत्नी कल्पना ने उनका बहुत ज्यादा सहयोग दिया है। वह बराबर से उनके साथ सदैव खड़ी रहती हैं, और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती रहती हैं। इसलिए उनकी राजनैतिक कार्यों में उनकी पत्नी की सबसे बड़ी हिस्सेदारी मानी जाती है।

वह नई तकनीकों के बहुत ज्यादा जानकार हैं उन्हें नए-नए इलेक्ट्रॉनिक गेजेट्स तलाश कर उन्हें चलाना और उनकी तकनीक के बारे में जानने का बेहद ज्यादा शौक है। वे अपने पास आईपैड जैसे हैंडहेल्ड गैजट भी रखना पसंद करते हैं।

1975 में जन्मे हेमंत सोरेन कम उम्र में ही अपनी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दे चुके थे. मुख्यमंत्री बनने से पहले हेमंत सोरेन राज्य में उपमुख्यमंत्री पद पर भी काबिज रह चुके हैं. अर्जुन मुंडा के कार्यकाल में हेमंत सोरेन ने उपमुख्यमंत्री पद को बखूबी संभाला है. स्वभाव से बेहद सरल हेमंत सोरेन पिता की तरह ही लोगों से सीधा संवाद कायम रखने में विश्वास रखते हैं इसलिए राज्य में पार्टी के साथ साथ अपनी लोकप्रियता कायम रखने में कामयाब रहे हैं. हेमंत सोरेन राज्य में शराब बिक्री पर पांबदी लगाने के पक्षधर हैं. उनका मानना है कि झारखंड के गांवों में खासतौर पर शराब की दुकानें नहीं खुलनी चाहिए क्योंकि राज्य के भोले-भाले आदिवासी शराब के नशे में चूर होकर जिंदगी की दौड़ में और पिछड़ते चले जाएंगे. हेमंत सोरेन का मानना है कि राज्य की महिलाओं को आगे बढ़कर शराब बिक्री का विरोध करना होगा तभी राज्य सरकार गांवों में शराब का लाइसेंस बांटने का निर्णय वापस ले सकेगी. हेमंत डाइरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के विरोधी हैं और उनका मानना है कि इससे कई गरीब सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं. साल 2017 में कथित भूखमरी की वजह से सिमडेगा में एक लड़की की मौत की वजह का पता लगाने के लिए उन्होंने सीबीआई जांच की मांग की थी. इसके लिए उन्होंने राज्य की मुख्य सचिव राजबाला वर्मा को भी आड़े हाथों लिया था. हेमंत सोरेन इस बात के विरोधी रहे हैं कि आधार नंबर के बगैर राशन नहीं दिया जाना सरकार का अमानवीय पहलू है. राज्य के आदिवासियों के हितों की रक्षा करने का हेमंत सोरेन कोई भी मौका हाथ सें गंवाना नहीं चाहते हैं. ‘छोटा नागपुर टीनेंसी एक्ट’ और ‘संथाल परगना टीनेंसी एक्ट’ में बदलाव की कोशिशों का हेमंत सोरेन ने जबर्दस्त विरोध किया. दरअसल इन दोनों एक्ट में बदलाव कर राज्य सरकार उन जमीनों पर सड़क, ह़ॉस्पिटल और शैक्षणिक संस्थानों को साल 2016 में बनवाना चाह रही थी जिसका हेमंत सोरेन ने जोरदार विरोध किया.

वही दूसरी ओर मीडिया में चर्चा है कि झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद एक बार फिर झारखंड की राजनीति शिबू सोरेन के आसपास आ गई है. झारखंड में आदिवासी समुदाय के सबसे बड़े चेहरे माने जाने वाले शिबू सोरेन झारखंड के तीन बार सीएम रह चुके हैं. शिबू सोरेन की गिनती झारखंड के दिग्गज और प्रभावशाली नेताओं में की जाती है. एक समय वो भी था जब शिबू सोरेन की तूती झारखंड ही नहीं दिल्ली में भी बोलती थी. उनके राजनैतिक रसूख के चलते ही उन्हें 2006 में केंद्र की सरकार ने कोयला मंत्री जैसा महत्वपूर्ण पद दिया था. झारखंड में उनकी हैसियत क्या है इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि वो पांच बार लोकसभा सांसद रहे हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन ने 1970 में राजनीति में कदम रखा और बहुत जल्द उन्होंने अपनी ताकत का भी अहसास करा दिया. राजनीति में आते ही सोरेन आदिवासियों के प्रमुख नेता बन गए. वे सुर्खियों में तब आए जब उन्होंने 1975 में झारखंड से गैर आदिवासी लोगों को निकालने के लिए एक आंदोलन शुरू किया. इस आंदोलन में कई लोगों की मौत होने के बाद उनपर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया था.

शिबू सोरेन की राजनीति का सितारा यहीं चमक गया. शिबू सोरेन ने जीवन का पहला चुनाव 1977 लोकसभा का लड़ा, जिसमें उनकी हार हुई थी. वे पहली बार 1980 में लोकसभा के लिए चुने गए. इसके बाद शिबू 1989, 1991 और 1996 में लोकसभा चुनाव जीते. 2002 में वह राज्यसभा पहुंचे. इसी साल उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा देकर दुमका से लोकसभा का उपचुनाव जीता.

शिबू सोरेन का जीवन गरीबी में बीता. उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया जब उनके पिता की महाजनों ने हत्या कर दी थी. उस समय शिबू सोरेन की उम्र अधिक नहीं थी, बचपन में ही पिता का साया सिर से उठ जाने के बाद उनपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. शिबू सोरेन को लकड़ी बेचनी पड़ी.

शिबू सोरेन का विवादों से भी गहरा नाता रहा है. उन पर अपने ही सचिव की हत्या आरोप लगा, तब वे केंद्र में कोयला मंत्री थे. इसके बाद एक पुराने मामले में अरेस्ट वारंट जारी होने के बाद उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. शिबू सोरेन की पत्नी रूपी किस्कू हैं जिनसे तीन बेटे दुर्गा, हेमंत और बसंत और एक बेटी अंजली हैं. हेमंत सोरेन 2013-14 में झारखंड के मुख्यमंत्री रहे थे और अब 2019 के विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद हेमंत सोरेन सीएम बनने जा रहे हैं. दुर्गा सोरेन जामा से 1995 से 2005 तक विधायक रह चुके हैं. बसंत सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के यूथ संगठन झारखंड युवा मोर्चा के अध्यक्ष हैं.

Chandra Shekhar Joshi- Editor , Address; Nanda Devi Enclave, Post. Banjarawala, Dehradun Pin 248001 Uttrakhand; Mail; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030

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