और अब झारखंड का किला भी ढह गया, झारखंड में क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा
High Light# Himalayauk Bureau (Leading Newsportal & Daily Newspaper) # जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन को बहुमत मिलता हुआ दिख रहा है।
# मुख्यमंत्री ने सबको लेकर चलने की नीति नहीं अपनाई, अलोकप्रिय सीएम साबित हुए #ताज़ा रुझानों में झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुआई वाले महागठबंधन को बहुमत मिल गया है। अब तक के रुझानों में इस गठबंधन को 41 सीटों पर बढ़त मिली हुई है। राज्य विधानसभा में 81 सीटें हैं, यानी बहुमत के लिए 41 सीटों की ज़रूरत है और इतनी सीटों पर ही वह आगे चल रहा है। इस गठबंधन में झामुमो के अलावा कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल भी हैं। बीजेपी की रणनीति को खारिज कर दिया है। झारखंड के चुनाव में भी नरेंद्र मोदी ने कश्मीर और नैशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस (एनआरसी) के मुद्दों को भुनाने की कोशिश की। उन्हे लगा था कि महाराष्ट्र की तरह जनता इन बातों को सुनेगी।
बीजेेेेपी शासित राज्यो में क्या हालात अच्छे नही है, एक के बाद एक किले ढह रहे हैं, जनचर्चा के अनुसार कमोवेश यही हालात 2022 में उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में होने है, यानि हालात अच्छे नही है; बीजेपी हाईकमान के नाम पर सत्ता के शिखर पर बैठाये गये महापुरूष विभिन्न वर्गो से,विभिन्न समुदायो से ग्रासरूट के संबंध बनाने में कामयाब नही हो पाये या उन्होने इन आम जनता में घुलने मिलने की कोशिश ही नही की, क्योकि उन्हें यह गुमान था कि उनको हाईकमान ने इस पद पर बैठाया है- इसका परिणाम शनै शनै सामने आ रहा है- परन्तु बीजेपी हाईकमान एक के बाद एक गढ- राज्य- खोता जा रहा है या कमजोर हो रहा है परन्तु आपरेशन की जरूरत महसूस नही कर रहा है, झारखंड में मुख्यमंत्री ने सबको लेकर चलने की नीति नहीं अपनाई, अलोकप्रिय सीएम साबित हुए ; परन्तु बीजेेेेपी हाईकमान क्यो शांत रहा- जिसका परिणाम सामने आ गया है-
क्या हेमंत सोरेन के सिर मुख्यमंत्री का ताज सजेगा? उन्हें ही झामुमो महागठबंधन के मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में पेश किया गया था। चुनाव प्रचार की कमान भी हेमंत सोरेन के ही हाथ में थी। यह सोरेन की रणनीति थी कि चुनाव में स्थानीय मुद्दों को उठाया जाए, बीजेपी से उसके 5 साल के कामकाज का हिसाब माँगा जाए और उसे उसके मैदान पर ही पटकनी दी जाए।
इस चुनाव में भाजपा अकेले पड़ रही है, तो वहीं कांग्रेस ने क्षेत्रीय पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है। मैदान में अन्य दो दल ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन पार्टी (आजसू), भाजपा की सहयोगी पार्टी है। झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएण), दो ही स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ रहे हैं।
बीजेपी-विरोधी वोटों के नहीं बँटने का नतीजा अब साफ़ दिख रहा है। एग्ज़िट पोल में ही यह साफ़ संकेत मिल गया था। इंडिया टुडे-एक्सिस माइ इंडिया के एग्ज़िट पोल में यह पाया गया था कि विपक्षी महागठबंधन को 37 प्रतिशत वोट मिलने के आसार हैं। बीजेपी को 34 प्रतिशत से ज़्यादा वोट मिलता नहीं दिख रहा है। वहीं, आजसू को 9 प्रतिशत, जेवीएम को 6 और दूसरे दलों को कुल 14 प्रतिशत वोट हासिल हो सकते हैं।
बीजेपी इस चुनाव में भी भावनात्मक और राष्ट्रीय मुद्दे उठा रही थी, जो यहाँ की जनता के लिए बहुत अहम नहीं हैं। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने यह मान लिया था कि ग़ैर-आदिवासी को मुख्यमंत्री बना कर वे उनके वोट बटोर लेंगे। मुख्यमंत्री बनने के बाद रघुवर दास ने सबको लेकर चलने की नीति नहीं अपनाई, उन्होंने विरोधियों को कुचलने का रास्ता चुना। वह बेहद अलोकप्रिय मुख्यमंत्री साबित हुए। इस बार वह अपनी ही सीट पर जूझ रहे हैं। पर्यवेक्षकों का कहना है कि उनकी हार की आशंका ज़्यादा है, जीत की संभावना कम।
हेमंत सोरेन झारखंड के बहुत बड़े नेताओं में एक शिबू सोरेन के बेटे हैं। बीजेपी अगुआई वाली झारखंड सरकार ने 2016 में छोटा नागपुर टीनेंसी एक्ट और संथाल परगना टीनेंसी एक्ट में संशोधन की कोशिश की थी। इसके तहत यह प्रावधान किया जा रहा था कि आदिवासी अपनी ज़मीन ग़ैर-आदिवासियों को ग़ैर-कृषि मक़सद से पट्टे पर दे सकते थे। इसके अलावा सड़क, नहर, अस्पताल जैसे ‘सरकारी मक़सदों’ के लिए भी आदिवासियों की ज़मीन का इस्तेमाल किया जा सकता था। ऐसा होने से आदिवासियों की ज़मीन पर ग़ैर-आदिवासियों का कब्जा आसान हो जाता। पूरे झारखंड में इसका ज़बरदस्त विरोध हुआ और हेमंंत सोरेन ने इस आन्दोलन की अगुआई की थी।
सोरेन ने एक सोची समझी रणनीति के तहत ही शराब बिक्री करने के लिए लाइसेंस जारी करने के राज्य सरकार के फ़ैसले का ज़ोरदार विरोध किया था। हेमंत सोरेन ने बेहद होशियारी से इसे झारखंड की संस्कृति से जोड़ा। झारखंड की आदिवासी संस्कृति में स्थानीय और चावल से बनाई गई हड़िया और महुआ की शराब का चलन है। लेकिन यह शराब उस शराब से बिल्कुल अलग होती है, जिसे हम इंडिया मेड फॉरन लिकर कहते हैं। इसके उलट मोदी और शाह शेष भारत में उठाए गए पुराने मुद्दे ही उठाते रहे, जो आदिवासियों से सीधे तौर पर जुड़ी हुई नहीं थी। यह न तो उनकी सांस्कृतिक पहचान-अस्मिता से जुड़ी थी और न ही उनकी रोजी-रोटी से कोई ताल्लुक रखती थी। धारा 370, राम मंदिर, सावरकर, एनआरसी और नागरिकता संशोधन क़ानून जैसे मुद्दे बीजेपी उठाती रही। नतीजा सबके सामने है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) – झारखंड मुक्ति मोर्चा राज्य की सबसे पुरानी पार्टी है। पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस पार्टी के ताकतवर नेता हैं। पार्टी का गठन 1973 में हुआ था। शिबू सोरेन इसी पार्टी से दो बार सीएम रह चुके हैं। उनके बेटे और पार्टी के वर्तमान प्रमुख हेमंत सोरेन भी मुख्यमंत्री रहे हैं। यदि चुनाव परिणामों में गठबंधन उभरता है, तो झारखंड में हेमंत सोरेन को फिर से मुख्यमंत्री के रूप में देखा जा सकता है।
झारखंड में 30 नवंबर से 20 दिसंबर तक 81 सीटों के लिए पांच चरण में हुए मतदान के लिए सुबह आठ बजे शुरू हुई मतगणना में चुनाव आयोग के अनुसार, शुरुआती रूझानों में झारखंड मुक्ति मोर्चा-कांग्रेस-राष्ट्रीय जनता दल का गठबंधन 39 सीटों पर आगे चल रहे हैं. विपक्षी गठबंधन में झारखंड मुक्ति मोर्चा 25, कांग्रेस 12 और राजद 5 सीटों पर आगे चल रहे हैं. भाजपा 29 सीटों पर आगे चल रही है. गठबंधन के साथियों के पीछे हटने के बाद इस बार के चुनाव में भाजपा ने अकेले लड़ने का फैसला किया था.
झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम)- पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी की पार्टी है जेवीएम, जिसने साल 2014 के विधानसभा चुनावों में 8 सीटें जीती थीं। मरांडी ने 2006 में भाजपा पार्टी छोड़ दी, जब उन्हें लगा कि उन्हें पार्टी में दरकिनार किया जा रहा है। उन्होंने उसी साल जेवीएम की स्थापना की।
राज्य में सरकार बनाने के लिए किसी दल या गठबंधन को 41 सीटों की जरुरत होगी. चार सीटों पर अन्य उम्मीदवारों को बढ़त हासिल है. चार सीटों पर झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशियों को बढ़त है वहीं दो सीटों पर आजसू पार्टी आगे है. विभिन्न एजेंसियों ने अपने एग्जिट पोल में राज्य में त्रिशंकु विधानसभा की भविष्यवाणी की गई थी. वहीं, कुछ एग्जिट पोल में कांग्रेस-जेएमएम गठबंधन को बहुमत मिलते दिखाया गया था. झारखंड विधानसभा चुनाव में 1,087 पुरुष, 127 महिला तथा एक तीसरे लिंग के उम्मीदवारों समेत कुल 1,215 उम्मीदवारों ने अपना भाग्य आजमाया था.झारखंड में पांच चरणों में 29,464 मतदान बूथों में 41,870 इवीएम मशीनों पर वोट डाले गए थे. इस बीच 24 जिला मुख्यालयों में त्रिस्तरीय सुरक्षा के बीच मतगणना जारी है.
ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू)- झारखंड के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो के नेतृत्व में भाजपा और ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) पार्टी ने 2014 के विधानसभा चुनावों में झारखंड में सरकार बनाई थी। भाजपा के पास 37 और आजसू के पास 5 सीटें थी। लेकिन इस बार सीट के बंटवारे के कारण आजसू ने चुनाव से पहले ही राज्य में भाजपा के साथ संबंध तोड़ दिए। इस बार पार्टी ने 12 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा की है। भाजपा ने पहले ही इन 12 सीटों में से 4 पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी थी। जिसमें सुदेश महतो की सीट पर कोई भाजपा उम्मीदवार नहीं खड़ा हुआ है।
जमशेदपुर पूर्वी से उम्मीदवार झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास पीछे चल रहे हैं. वहीं निर्दलीय उम्मीदवार सरयू राय 771 वोटों से आगे चल रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘सरयू रॉय ने नुकसान पहुंचाया है और मुझे अब तक मिल रहे वोट इस बार नहीं मिले हैं.’ दास ने कहा, ‘ये रूझान अंतिम परिणाम नहीं हैं. अभी कई और राउंड की गिनती होनी बाकी है. इन रूझानों पर टिप्पणी करना सही नहीं होगा. मैं यह साफ करना चाहता हूं कि हम सिर्फ जीत ही नहीं रहे हैं बल्कि राज्य में भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनने जा रही है.’ संथाल इलाके की दुमका विधानसभा सीट से भाजपा की प्रत्याशी लुइस मरांडी आगे चल रही हैं, जबकि इस सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री तथा जेएमएम प्रत्याशी हेमंत सोरेन पीछे चल रहे हैं. जबकि बरहेट विधानसभा सीट पर सोरेन आगे चल रहे हैं. जामा विधानसभा सीट से झारखंड मुक्ति मोर्चा की सीता सोरेन पीछे चल रही हैं.
जमशेदपुर पूर्व सीट से मुख्यमंत्री और भाजपा प्रत्याशी रघुबर दास आगे चल रहे हैं, जबकि निर्दलीय के रूप में लड़ रहे सरयू राय पीछे चल रहे हैं. कोडरमा विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी और रघुबर दास सरकार में शिक्षामंत्री डॉ नीरा यादव पीछे चल रही हैं. धनवार विधानसभा सीट से झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) के प्रत्याशी तथा सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी आगे चल रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘परिणाम हमारी उम्मीदों के अनुसार नहीं हैं. हमें जनादेश स्वीकार करना होगा. लोगों ने हमें जो जनादेश दिया है हम वह भूमिका निभाएंगे. अंतिम परिणाम आने दीजिए, फिर हम बैठकर अपनी रणनीति तय करेंगे.’ सिल्ली विधानसभा सीट से आजसू पार्टी के प्रत्याशी सुदेश महतो पीछे चल रहे हैं. वहीं, जेएमएम की सीमा देवी 284 वोटों से आगे चल रही हैं. झारखंड के गुमला-सिंहभूम इलाके की खूंटी विधानसभा सीट से भाजपा के प्रत्याशी नीलकंठ सिंह मुंडा आगे चल रहे हैं.