एयर कंडीशनर नेता के बीजेपी में शामिल होने की खबर
शाहजहाँपुर के ब्राह्मण राजवंश के कुँवर जीतेंद्र प्रसाद अति महत्वाकांक्षी काँग्रेस नेता थे, जो कि दरबारी जोड़-तोड़ की राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी थे। राजीव गाँधी के ज़माने में अरुण नेहरू जब शक्तिशाली थे तो वह जीतेन्द्र प्रसाद को पसंद नहीं करते थे और इसलिए उन्होंने इन्हें किनारे लगा दिया था। समय बदला और अरुण नेहरू ने राजीव गाँधी के ख़िलाफ़ वी. पी. सिंह, विद्याचरण शुक्ल, आरिफ़ मोहम्मद ख़ान, सतपाल मलिक वगैरह के साथ मिलकर जनमोर्चा बनाया और दुश्मन हो गए। राजीव शुक्ला उन दिनों काँग्रेस की राजनीति के सबसे सक्रिय पत्रकार थे और अपन भारतीय जन संचार संस्थान से ताज़ा-ताज़ा निकलकर दिल्ली दरबार को कौतूहल और जिज्ञासा से समझने की कोशिश में उनके साथ घूमते थे। राजीव शुक्ला तब ‘रविवार’ पत्रिका के पाँच सितारा रिपोर्टर थे जिनकी दस जनपथ में सीधे राजीव गाँधी तक घुसपैठ थी। जीतेंद्र प्रसाद , जो राजीव शुक्ला के माध्यम से राजीव गाँधी के दरबार में महत्वपूर्ण भूमिका पाने के लिए प्रयासरत थे। राजीव शुक्ला ने 100, बख्तावर सिंह ब्लॉक, एशियाड विलेज के फ्लैट में राजीव गाँधी की दस-बारह सम्पादकों के साथ खान-पान पर चर्चा आयोजित की। बड़े सुनियोजित तरीक़े से उस चर्चा में तीन-चार बड़े पत्रकारों ने राजीव गाँधी को जीतेंद्र प्रसाद की काबिलियत की जमकर प्रशंसा करते हुए सलाह दे डाली कि उनको अपने संगठन में अहम ज़िम्मेदारी दें।
लोधी कॉलोनी के उनके बंगले पर धीरूभाई अंबानी के क़रीबी आर. के. मिश्रा समेत काँग्रेस के दिग्गजों का सुबह-शाम मेला लगने लगा। वह विंसेंट जॉर्ज से भी ज़्यादा प्रभावशाली हो गए।
लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद (Jitin Prasad) के बीजेपी में शामिल होने की खबरों को कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने खारिज किया है. कुछ देर पहले ऐसी खबरें आ रहीं थी कि किसी बात से नाराज होने के कारण वह बीजेपी में शामिल हो सकते हैं लेकिन रणदीप सुरजेवाला ने इन खबरों को सिरे से नकार दिया. वहीं जब जितिन प्रसाद (Jitin Prasad) से बीजेपी में शामिल होने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि कुछ सवालों का आधार होना चाहिए. ऐसे काल्पनिक सवालों का जवाब का मुझे क्यों देना चाहिए. उनके सीधे तौर पर इसे खारिज नहीं करने के कारण बीजेपी में जाने की अटकलें अभी भी बनी हुई है.
वहीं जितिन प्रसाद द्वारा इस खबर को खारिज नहीं किए जाने के बाद जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला ने ट्वीट कर सवाल दागा कि जितिन प्रसाद ने क्यों नहीं इन खबरों को खारिज कर दिया. यह सवाल काल्पनिक नहीं रह जाता जब सभी न्यूज चैनल ऐसी खबरें दिखा रहे हों.
धरौहरा सीट 2009 में पहली बार अस्तित्व में आई थी और इस सीट पर कांग्रेस के टिकट से जितिन प्रसाद (Jitin Prasad) ने जीत दर्ज की थी. लेकिन साल 2014 में बीजेपी की रेखा वर्मा से हार गए थे. इस बार कांग्रेस ने फिर उन्हें धरौहरा से टिकट दिया है. चुनाव से पहले न सिर्फ राजनीतिक दलों में बड़ी शख्सियत शामिल हो रही हैं. इसी कड़ी में आज सुबह पूर्व क्रिकेटर गौतम गंभीर बीजेपी में शामिल हुए थे. हाल ही में उमेश जाधव ने भी बीजेपी का दामन थामा है, वह गुलबर्गा सीट पर कांग्रेस के मल्लिकार्जुन को चुनौती देंगे. इससे दो दिन पहले कांग्रेस नेत्री हिमांद्री सिंह भी बीजेपी में शामिल हुई थीं. शहडोल लोकसभा सीट पर 2016 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस की हिमाद्री सिंह बीजेपी के प्रत्याशी ज्ञान सिंह से पराजित हो गई थीं. तो वहीं बीजेपी के नेता और उत्तराखंड के पूर्व सीएम बीसी खंडूरी के बेटे मनीष खंडूरी कांग्रेस में शामिल हो गए थे.
फिर आ गए 1991 के चुनाव। प्रचार के दौरान ही राजीव गाँधी की श्रीपेरंबुदूर में निर्मम हत्या कर दी गयी। परिणाम आये, भारी उठापटक के बाद पमुलपति व्यंकट नरसिंहराव प्रधानमंत्री बन गए। वह काँग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भी चुन लिए गए। चूँकि अर्जुन सिंह, शरद पवार, राजेश पायलट, माखनलाल फोतेदार जैसे महत्वाकांक्षी क्षत्रप राव के लिए चुनौती खड़ी करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे, राव साहब ने जीतेंद्र प्रसाद को ही अपना राजनीतिक सचिव नियुक्त कर दिया।
हालाँकि नरसिंह राव के अन्य दो क़रीबी ब्राह्मण नेता देवेंद्र द्विवेदी और भुवनेश चतुर्वेदी यदाकदा जीतेंद्र प्रसाद को कमज़ोर करने की कोशिशें करते, लेकिन दोनों चालबाज़ी में जिती भाई से बहुत कमज़ोर थे। चूँकि नारायण दत्त तिवारी भी राव के लिए ख़तरा थे, इसलिए जीतेंद्र प्रसाद उनको रोकने में कामयाब होते हुए राव के विश्वास पात्र बन गए।
1996 में राव के पतन के साथ ही जीतेंद्र प्रसाद ने अध्यक्ष बनने के लिए बहुत जोड़-तोड़ की, लेकिन राव साहब ने उनको साफ़ मना कर दिया। सीताराम केसरी को बनाकर राव सभी दिग्गजों को नीचा दिखाना चाहते थे। जीतेंद्र प्रसाद ने राव की मंशा भाँपकर केसरी से डील कर ली कि मुझे उपाध्यक्ष बना दो, मैं सब से राव साब को बचाता रहा, आप को भी सिंहासन से हिलने नहीं दूँगा। चचा केसरी को सौदा बुरा नहीं लगा, राजनीतिक सचिव तो उन्होंने अपने चेले तारिक अनवर को बनाया, जित्ती बाबू उपाध्यक्ष बन गए। उनके पहले अर्जुन सिंह को यह पद देकर राजीव गाँधी परिणाम भुगत चुके थे।
ख़ैर, महत्वाकांक्षी जीतेंद्र प्रसाद ने केसरी को पद से हटाने के लिए ख़ूब चालें चलीं। लेकिन इस बीच विंसेंट जॉर्ज ने तिवारी काँग्रेस के दोनों योद्धाओं अर्जुन सिंह और एन. डी. तिवारी के ज़रिये सोनिया गाँधी को पार्टी की बागडोर दिलवाने की ज़ोरदार मुहिम छेड़ी जो कामयाब रही।
सोनिया गाँधी ने उनकी विधवा कांता प्रसाद को टिकट दिया, लेकिन वह चुनाव हार गईं। बाद में बेटे जीतिन प्रसाद ने राहुल गाँधी का दामन थामा, लोकसभा जीते, केंद्र में मंत्री बने, 2014 में लोकसभा चुनाव हार गए, बाद में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव भी हार गए। ज़मीन पर पकड़ कभी रही नहीं, दिल्ली के तमाम हवा-हवाई पाँच सितारा नेताओं की तरह एयर कंडीशनर नेता हैं। राहुल गाँधी भी समझ गए कि मर्क ड्राइव करके रेबैन लगाए ताज मानसिंह के चाइनीज रेस्टोरेंट में बैठकर पार्टी नेतृत्व की ग़लतियों पर चटखारे लेने वाले किसी काम के नहीं हैं।