छोटी दिवाली -काली चौदस ; अनंत सिद्धियों को प्रदान करने वाली
18.10.2017 बुधवार को कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के उपलक्ष्य में काली चौदस और भूत चतुर्दशी का पर्व #छोटी दिवाली नरक चतुर्दशी, काली चौदस # हर कार्य का तुरंत परिणाम देती है# चौदस के विशेष पूजन उपाय से शनि के प्रकोप से भी मुक्ति# Execlusive Article; www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal)
आद्या काली पूजन मंत्र: कालिकायै च विद्महे श्मशानवासिन्यै धीमहि तन्नो अघोरा प्रचोदयात्॥
काली चौदस पूजा को भूत पूजा के नाम से भी जाना जाता है। काली चौदस पूजा का भी बहुत महत्व है। इस पूजा को करने से जादू-टोना, बेरोजगारी, बीमारी, शनि दोष, कर्ज़, बिजनेस में हानि जैसी समस्याएं खत्म होती हैं। काली चौदस पूजा करने से पहले अभ्यंग स्नान करना होता है। ऐसी मान्यता है कि अभ्यंग स्नान करने से व्यक्ति नरक में जाने से बच जाता है। यह भी कहा जाता है कि अभ्यंग स्नान में अपने शरीर पर परफ्यूम लगाकर पूजा पर बैठना चाहिए। काली चौदस पूजा में मां काली की मूर्ति की स्थापना एक चौकी पर करें।
यह पूजा अधिकतर पश्चिमी राज्यों विशेषकर गुजरात में देखी जाती है।आप के जीवन में जो भी घटता है उसके पीछे कोई न कोई वजह होती है। काली माता से जुड़े कई त्यौहार हैं। जिनमें काली चौदस भी एक है। जैसा कि आप नाम से ही समझ रहे होंगे। काली यानी काला रंग। काला रंग बुराई के नाश का भी प्रतीक है। और चौदस मतलब 14। यानी काली चौदस कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। दिवाली के पांच दिनों के उत्सव का यह दूसरा दिन होता है। इस दिन काली मां की पूजा होती है और यह कहा जाता है कि इस दिन उन्होंने नरकसुरा को मारा था। इसलिए इसे नरक चतुर्दशी, छोटी दिवाली भी कहा जाता है।
दिवाली पर इस बार चार ग्रह अपनी चाल बदल रहे हैं। सूर्य, चंद्रमा, बुध और बृहस्पति चारों ग्रह तुला राशि पर रहेंगे। वे एक ही राशि में रहेंगे। अमावस्या तिथि गुरुवार और चित्रा नक्षत्र का मिलन 27 वर्ष बाद जबकि चतुर्ग्रही योग का संयोग 12 वर्ष बाद बन रहा है। यह संयोग अब चार साल बाद यानी वर्ष 2021 में बनेगा
हिन्दू धर्म के अनुसार दीपावली के दिन धन की देवी महालक्ष्मी के साथ विघ्न-विनाशक श्री गणेश की देवी मातेश्वरी सरस्वती देवी की भी पूजा-आराधना की जाती है. कहा जाता है कि कार्तिक मास की अमावस्या की आधी रात में देवी लक्ष्मी धरती पर आती हैं और हर घर में जाती हैं. जिस घर में स्वअच्छधता और शुद्धता होती है वह वहां निवास करती हैं. दीपावली तीनों पर्वों का मिश्रण है, ये हैं- धनतेरस, नरक चतुर्दशी और महालक्ष्मी पूजन. नरक चतुर्दशी को छोटी दीवाली भी कहा जाता है. दीपावली की शुरूआत धनतेरस से होती है, जो कार्तिक मास की अमावस्या के दिन पूरे चरम पर आती है.
बुधवार दिनांक 18.10.2017 को कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के उपलक्ष्य में काली चौदस और भूत चतुर्दशी का पर्व मनाया जाएगा। तंत्र शास्त्र के साधक महाकाली की साधना को सर्वाधिक प्रभावशाली मानते हैं तथा यह साधना हर कार्य का तुरंत परिणाम देती है। निपुण साधकों को इस शक्तिशाली साधना से अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति होती है। काली चौदस पर्व पर महाकाली के विशेष पूजन और उपाय करने से लंबे समय से चल रही बीमारियां दूर होती है। काले जादू के बुरे प्रभाव से छुटकारा मिलता है, बुरी आत्माओं के छाया से मुक्ति मिलती है। कर्ज से मुक्ति मिलती है। बिजनैस की परेशानियां दूर होती हैं। दांपत्य जीवन से तनाव दूर होता हैं। यही नहीं काली चौदस के विशेष पूजन और उपाय करने से शनि ग्रह के दोष व प्रकोप से भी मुक्ति मिलती है।
आचार्य कमल नंदलाल के अनुसार तंत्रशास्त्र के अनुसार महाकाली दस महाविद्याओं में प्रथम व समस्त देवताओं द्वारा पूजनीय व अनंत सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। कालिका पुराण में महामाया को ही काली बताया गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार मधु व कैटभ के नाश हेतु ब्रह्मदेव के प्रार्थना करने पर महादेवी मोहिनी महामाया शक्ति के रूप में प्रकट होती हैं। महामाया भगवान श्री हरि के नेत्र, मुख, नासिका व बाजू आदि से निकल कर ब्रह्मदेव के सामने आ जाती हैं। महाकाली दुष्टों के संहार के लिए प्रकट होती हैं व दैत्यों का संहार करती हैं। महाकाल शिव की शक्ति महाकाली ही है तथा प्रलय उनकी प्रतिष्ठा है। शक्ति व शिव अभेद हैं तथा यहीं अर्द्धनारीश्वर उपासना का रहस्य भी है। सृ्ष्टि से पूर्व मात्र काल व काली ही अस्तित्व में थे। आगम शास्त्र में इन्हें ही प्रथमा कहा गया है। महाकाली का मूलरूप अर्द्धरात्रि और प्रलय के समान है। सर्वथा नग्न रूप में श्मशानवासिनी महादेवी शव पर सवार चतुर्भुजी माहकाली को संहार मुद्रा में चित्रित किया गया है। पापियों के नाश करने हेतु इनके एक हाथ में खडग, दूसरे में वर, तीसरे में अभय मुद्रा तथा चौथे हाथ में कटा हुआ मस्तक है। इनके गले में मुण्डमाला है तथा जिह्वा बाहर निकली है।
शनि दोष से व्यक्ति के जीवन में कई परेशानियां आती हैं। यह परेशानियां अधिकतर शनि महादशा या अंतर्दशा, शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या या शनि की दृष्टि के कारण आती हैं। यमतंत्र भी काली चौदस की रात्रि में दस महाविद्या के अंतर्गत महाकाली पूजा करने की सलाह देता है। शनि पीड़ा से ग्रस्त लोगों को काली चौदस के दिन महाकाली पूजा करनी चाहिए। इस पूजन से शनि दोषों के प्रभाव, अकारण मृत्यु, जादू-टोना तथा बुरी आत्माओं आदि के प्रभाव से बचा जा सकता है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार काली चौदस का पूजन अर्धरात्रि में किया जाता है।
ज्योतिषशास्त्र के मुहूर्त प्रणाली अनुसार काली चौदस की निश्चित पूजा का समय बुधवार दी॰ 18.10.17 रात 23:40 से लेकर गुरुवार दी॰ 19.10.17 रात 00:31 तक रहेगा। इस पूजन की अवधि 50 मिनट रहेगी। इस दिन दिशाशूल उत्तर व राहुकाल वास दक्षिण-पश्चिम में है अतः पूजन की श्रेष्ठ दिशा पश्चिम रहेगी। रात्रि में आद्या काली का विधिवत पूजन करें। सरसों के तेल का दीप करें, काजल से तिलक करें, लोहबान से धूप करें, बरगद का पत्ता चढ़ाएं। इमरती का भोग लगाएं तथा नारियल सिर से 7 बार वारकर समर्पित करें। पूजन के बाद इमरती चौराहे पर रखें।
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