22 जून से 24 जून- दुनियाभर के तांत्रिक और अघोरी यहां पहुंचेगे

इस मंदिर को तांत्रिकों और अघोरियों का गढ़ भी कहा जाता है और इसीलिए हर साल यहां दुनियाभर के तांत्रिक और अघोरी आते रहते हैं। इस साल यह त्यौहार पर्व 22 जून से 24 जून के बीच मनाया जाएगा। भले ही भक्त मां का दर्शन न कर पाए परंतु पूरे क्षेत्र में सिर्फ पांव रखने से ही उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है ऐसी लोक मान्यता है।
कहने वाले इस मंदिर और इस जगह को तांत्रिकों की सुप्रीम कोर्ट भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो साधना कहीं नहीं पूरी होती वो यहां आकर हो जाती है।
असम के गुवाहाटी के नीलाचल हिल्स में स्थित कामख्या मंदिर में गुरुवार से सालाना आयोजित होने वाले अंबुबाची मेले की शुरूआत हो गई है। इस पर्व में मां भगवती के रजस्वला होने से पूर्व गर्भगृह स्थित महामुद्रा पर सफेद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं, जो कि रक्तवर्ण हो जाते हैं।  मंदिर के पुजारियों द्वारा ये वस्त्र प्रसाद के रूप में श्रद्धालु भक्तों में विशेष रूप से वितरित किये जाते हैं। इस पर्व पर भारत ही नहीं बल्कि बंगलादेश, तिब्बत और अफ्रीका जैसे देशों के तंत्र साधक यहां आकर अपनी साधना के सर्वोच्च शिखर को प्राप्त करते हैं। वाममार्ग साधना का तो यह सर्वोच्च पीठ स्थल है। मछन्दरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइलजोगी इत्यादि तंत्र साधक भी सांवर तंत्र में अपना यहीं स्थान बनाकर अमर हो गये हैं
असम के गुवाहाटी से लगभग 9 किलोमीटर दूर नीलांचल पहाड़ी पर देवी कामाख्या मंदिर को सभी शक्तिपीठों में बहुत खास माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों की मानें तो यहां देवी सती का योनिभाग गिरा था और यहां देवी के इसी अंग की पूजा होती है।
देवी के अंग को फूलों से ढककर रखा जाता है और ऐसी मान्यता है कि यहां हर साल देवी रजस्वला होती है। रजस्वला होने के समय को ही परंपरा के अनुसार अम्बुवाची पर्व कहा जाता है।

22 से 24 जून तक कामाख्या देवी मंदिर का बंद रखा जाता है. माना गया है कि इस दौरान माता कामख्या रजस्वला में रहती हैं. 

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उत्‍तराखण्‍ड में भी है इसी प्रकार का विशेष मान्‍यता प्राप्‍त मॉ भगवती का मंदिर- जहां माता की योनि को पूजा जाता है, और माता केे दरबार को सुप्रीम कोर्ट की संज्ञा दी जाती है- बहुत बडी मान्‍यता है यहां की भी, परन्‍तु माता का पूजन स्‍थल पुष्‍पो से ढका रहता है, इसलिए इस मंदिर में इस बात का विशेष प्रचार नही है कि माता के अमुक अंग की यहां पूजा की जाती है- यह स्‍थान भी तांत्रिको के लिए विशेष सिद्व पीठ मानी जाती है-    जल्‍द विशेष रिपोर्ट- चन्‍द्रशेखर जोशी द्वारा    

देश के 52 शक्तिपीठों में शुमार माता कामाख्या देवी मंदिर में अम्बुबाची मेले की शुरुआत हो चुकी है. तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में श्रद्धालुओं और साधु बाबाओं की भीड़ देखने को मिल रही है. हर साल 22 से 24 जून को लगने वाले मेले के दूसरे दिन श्रद्धालुओं का तांता मंदिर परिसर में देखने को मिला
52 शक्तिपीठों में से माता कामाख्या का मंदिर सबसे ज्यादा खास माना जाता है. इस प्राचीन मंदिर में देवी सती या माता की मूर्ति नहीं है. पौराणिक कथाओं के अनुसार सती विध्वंस के दौरान माता की योनि इसी स्थान पर गिरी थी. वक्त के साथ इस स्थान पर शक्ति साधना का केंद्र बन गया वर्तमान में इस मंदिर में हर साल इन्हीं तीन दिनों में हजारों की संख्या में य़हां पर श्रद्धालुओं का तांता लगता है. कहा जाता है कि हर साल 22 जून से 26 जून तक माता कामाख्या को इन्हीं तीन दिनों में रजस्वला में रहती है. इन तीनों में गर्भ गृह में किसी भी तरह की पूजा-अर्चना पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है. मान्यता के मुताबिक इन तीन दिनों में कामाख्या देवी पीठ के पास बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी का पानी भी लाल हो जाता है. 3 दिन गर्भ गृह बंद रहने के बाद 25 जून माता का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है. इसके बाद आम दिनों की तरह श्रद्धालु सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक माता के दर्शन करते हैं.
श्रद्धुलाओं के अलावा इस स्थान पर बाबाओं और साधुओं का भी जमावड़ा लगता है. इन तीन दिनों के दौरान सैकड़ों की संख्या में साधू यहां पर पहुंचते हैं.

यह मेला हर साल आषाढ़ महीने में लगता है। इस वर्ष यह मेला 22 से प्रारंभ होकर 26 जून तक चलेगा। कामाख्या मंदिर के पंडित मिहिर शर्मा का कहना है कि इस अवसर पर देवी कामाख्या रजस्वला होती है। इसलिए तीन दिनों तक मंदिर का कपाट बंद रहता है। चौथे दिन विशेष पूजा अर्चना के बाद मंदिर का कपाट खोल दिया जाता है। इस दौरान पूरे असम में कृषि कार्य भी प्रतिबंधित रहता है। विधवा महिलाओं पर भी इस समय कई प्रकार के प्रतिबंध लागू रहते है। तीन दिनों से लगातार पूरे मंदिर परिसर में बिहार, उत्तर बंगाल समेत देश के कोने-कोने से तांत्रिक और श्रद्धालुओं का आना प्रारंभ हो जाता है। एनजेपी में कामाख्या जाने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। इस मौके पर भले ही भक्त मां का दर्शन न कर पाए परंतु पूरे क्षेत्र में सिर्फ पांव रखने से ही उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है ऐसी लोक मान्यता है।

अंबुबाची मेला’ आप सब इस नाम से परिचित होंगे. यह मेला असम के प्रसिद्ध कामाख्या मंदिर में प्रतिवर्ष आषाढ़ महीने में आयोजित किया जाता है. इस वर्ष आज से इस मेले की शुरुआत हो रही है. मेले का आयोजन 22 जून से 26 जून तक किया जाना है. ऐसी मान्यता है कि इस अवसर पर देवी कामाख्या रजस्वला होती हैं, इस अवसर पर तीन दिनों तक मंदिर का कपाट बंद होता है और चौथे दिन विशेष पूजा अर्चना के साथ मंदिर का कपाट खुलता है. इस अवसर पर यहां मेले का आयोजन होता है. मेले के दौरान कृषि कार्य भी प्रतिबंधित होता है. लेकिन इस मेले के दौरान कुछ और बातें भी होती हैं, जिसपर गौर किया जाना चाहिए, जिसे हम अपनी परंपरा का हिस्सा मानकर कभी उसपर विचार नहीं करते कि ऐसा क्यों किया जा रहा है. कुछ ऐसी ही परंपरा बंगाल, असम और ओड़िशा जैसे राज्यों में इस मेले के दौरान देखने को मिलती है. जबतक यह मेला आयोजित किया जाता है विधवा स्त्रियों पर काफी प्रतिबंध होते हैं, मसलन वे अन्न नहीं खातीं, गर्म भोजन और तेल मसाला का सेवन नहीं करतीं, फलाहार करती हैं, चूल्हा नहीं जलाती, जमीन पर सोती हैं, घर से बाहर नहीं जाती और श्रृंगार विधवा महिलाओं के लिए यूं भी वर्जित ही होता है. चौंकाने वाली बात यह है कि बंगाल-ओडिशा जैसे राज्यों के लोग इस परंपरा का पालन तो करते हैं, लेकिन कभी सवाल नहीं पूछते कि वे आखिर ऐसा क्यों कर रहे हैं या इन परंपराओं का औचित्य क्या है? पुरानी पीढ़ी के लोग तो खैर सवाल नहीं करते थे, लेकिन युवा वर्ग भी ऐसी निरर्थक परंपराओं का विरोध नहीं कर रहे हैं.

नीलांचल पर्वत पर विराजमान कामाख्या देवी की अलौकिकता अन्य सभी देवियों से अलग है। यह एक ऐसी देवी है जिनकी पहचान उन्हें हर माह होने वाली मासिक धर्म से होती है। इस देवी का मासिक धर्म सामान्यतौर पर आषाढ़ माह के सातवें दिन से शुरू होता है। इस साल के हिंदू पंचांग के अनुसार देवी का मासिक धर्म 22 जून को शुरू हो गया है। इसी दौरान यहां अंबुबाची महोत्सव की शुरूआत भी हो गई है। साधुओं ने कामाख्या मंदिर पर अंबुबाची मेले की पूर्वसंध्या पर जुलूस निकाला। पुजारियों का कहना है कि इस क्षेत्र में सभी हिंदू मंदिर चार दिन बंद रहेंगे क्योंकि मां कामाख्या जून में मासिक धर्म से गुजरेगी। मान्यता है कि भगवान विष्णु के चक्र से खंडित होने पर सती की योनि नीलांचल पहाड़ पर गिरी थी। 51 शक्ति पीठों में कामाख्या महापीठ को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि यहां पर योनि की पूजा होती है। यही वजह है कि अम्बुवासी मेले के दौरान तीन दिन मंदिर में प्रवेश करने की मनाही होती है।  मंदिर प्रबंधन के सदस्य ने कहा कि मंदिर का दरवाजा मेले के पांचवें दिन खोला जाएगा। 

कामाख्या देवी –  यह मंदिर तान्त्रिक पुजारियो को तंत्र मंत्र सिद्धि प्राप्त करने के लिए सर्वोपरी मंदिर है | यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।माना जाता है कि भगवान विष्णु ने जब देवी सती के शव को चक्र से काटा तब इस स्थान पर उनकी योनी कट कर गिर गयी।  इसी मान्यता के कारण इस स्थान पर देवी की योनी की पूजा होती है। प्रत्येक वर्ष तीन दिनों के लिए यह मंदिर पूरी तरह से बंद रहता है। माना जाता है कि माँ कामाख्या इस बीच रजस्वला होती हैं। और उनके शरीर से रक्त निकलता है। इस दौरान शक्तिपीठ की अध्यात्मिक शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए देश के विभिन्न भागों से यहां तंत्रिक और साधक जुटते हैं। आस-पास की गुफाओं में रहकर वह साधना करते हैं।
चौथे दिन माता के मंदिर का द्वार खुलता है। माता के भक्त और साधक दिव्य प्रसाद पाने के लिए बेचैन हो उठते हैं। यह दिव्य प्रसाद होता है लाल रंग का वस्त्र जिसे माता राजस्वला होने के दौरान धारण करती हैं। माना जाता है वस्त्र का टुकड़ा जिसे मिल जाता है उसके सारे कष्ट और विघ्न बाधाएं दूर हो जाती हैं। मौजुदा मंदिर नीलांचल कला में बना हुआ है | मंदिर का निर्माण 7वी शताबदी से 17 वी शताबदी तक बदलता रहा है | मंदिर में 7 छोटी शिखर है जिनपे शिवजी के त्रिशूल लगे हुए है |

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