कमलनाथ के आगे नहीं टिकता कमल
कमलनाथ के आगे नहीं टिकता कमल; यह रिकार्ड रहा है- इस राजनेता का- कमलनाथ – भारतीय राजनीति का एक चमकता सितारा ; ज़मीन से जुड़े हुए नेताओं की जब कभी बात होती है तो कमलनाथ का नाम सबसे आगे आता है। चन्द्रशेखर जोशी की हिमालयायूके न्यूज पोर्टल के लिए विशेष रिपोर्ट- www.himalayauk.org (UK Leading Digital Newsportal)
कमलनाथ जी का 1946 में 18 नवंबर को कानपुर में जन्म। इनकी शिक्षा दून स्कूल, देहरादून और कोलकाता में हुई। दून स्कूल में संजय गांधी के दोस्त रहे, बडे पदों पर रहने के उपरात भी आज तक इन पर कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं है, वही हवाला केस में नाम आने के कारण मई 1996 के आम चुनाव में कमलनाथ चुनाव नहीं लड़ सके इस हालत में कांग्रेस ने कमलनाथ की पत्नी अलका कमलनाथ को टिकट दिया जो विजयी रहीं ’
मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष तथा पूर्व कैबिनेट मंत्री श्री राजा पटेरिया ने कमलनाथ जी के बारे में बताया कि महाराष्ट्र के नागपुर से छिंदवाड़ा की जीवनरेखा जुड़ी है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय है। लेकिन छिंदवाड़ा पर संघ की सबसे कमजोर पकड़ है। वही कांग्रेस आलाकमान में भी कमलनाथ की अच्छी पकड मानी जाती है, गॉधी परिवार से अरसे से उनके पारावारिक संबंध रहे हैं, राहुल गॉधी का भी उन पर पूर्ण विश्वास है- मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष तथा पूर्व कैबिनेट मंत्री श्री राजा पटेरिया ने कमलनाथ जी के बारे में बताया कि
सार्वजनिक जीवन में उल्लेखनीय योगदान के लिए श्री कमलनाथ को 2006 में जबलपुर के रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया। 2007 में FDI मैगज़ीन और फ़ाइनेंशियल टाइम्स बिज़नेस ने उन्हें FDI पर्सनैलिटी ऑफ़ द ईयर से नवाज़ा। ये सम्मान उन्हें विदेशी व्यापरियों को हिंदुस्तान की तरफ़ खींचने, निर्यात और निवेश को बढ़ावा देने के लिए दिया गया। 2008 में इकॉनॉमिक टाइम्स ने श्री कमलनाथ को ‘बिज़नेस रिफॉर्मर ऑफ़ द ईयर’ का सम्मान दिया। साल 2012 में ‘एशियन बिज़नेस लीडरशिप फ़ोरम अवॉर्ड्स 2012’ के ABLF स्टेटसमैन अवॉर्ड से श्री कमलनाथ को नवाज़ा गया। श्री कमलनाथ इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट टेक्नॉलॉजी के बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स के अध्यक्ष भी हैं। ज़मीन से जुड़े हुए नेताओं की जब कभी बात होती है तो कमलनाथ का नाम सबसे आगे आता है। भारतीय राजनीति में खासकर मध्य प्रदेश के जनमानस के लिए कमलनाथ का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं। केंद्रीय शहरी विकास मंत्री की भूमिका में कमलनाथ न केवल देश के विकास में महत्वपूर्ण और बेहद सराहनीय भूमिका निभा रहे हैं, बल्कि अपने संसदीय चुनाव क्षेत्र छिंदवाड़ा का नाम भी रोशन कर रहे हैं। ये श्री कमलनाथ के प्रयासों का ही नतीजा है कि राष्ट्रीय ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी छिंदवाड़ा विकास की एक मिसाल बन कर उभरा है।
;;;कमलनाथ पार्टी से ऊपर
चुनावी संग्राम में भाजपा देश को गुजरात के विकास मॉडल का सपना दिखा रही है, मगर छिंदवाड़ा के लिए इसका कोई मतलब नही है। कारण कि छिंदवाड़ा के पास विकास का अपना मुकम्मल मॉडल है। देश में यह एक मात्र संसदीय क्षेत्र है जो बड़े उद्योगों के बिना भी विकास के लिए जाना जाता है। यह कभी देश के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में शुमार होता था, मगर अब इससे होकर तीन राष्ट्रीय राजमार्ग गुजरते हैं और वहां से दिल्ली के लिए सीधी रेल सेवा है। कहना न होगा कि इसका काफी कुछ श्रेय कांग्रेस के नेता कमलनाथ को है। वह पिछले आठ आम चुनावों से छिंदवाड़ा का प्रतिनिधित्व संसद में कर रहे हैं। अभी तक सिर्फ एक उपचुनाव में कांग्रेस को वहां धक्का लगा है। एक और अपवाद 1977 के आम चुनाव का है। हालांकि उस समय के जबर्दस्त कांग्रेस विरोधी दौर में भी वहां से जनता पार्टी का जो शख्स जीता था वह पूर्व के दो आम चुनावों में कांग्रेस की टिकट पर जीतकर वहां का सांसद रह चुका था। 1998 के उपचुनाव में कांग्रेस की हार छिंदवाड़ा के मतदाताओं की तात्कालिक नाराजगी का इजहार था। दरअसल हवाला कांड में नाम आने के बाद कमलनाथ 1996 का आम चुनाव नहीं लड़ सके थे। ऐसे में उनकी पत्नी अलका कमलनाथ ने चुनाव लड़ा और जीतीं। लेकिन एक साल बाद जब कमलनाथ हवाला मामले से बरी हो गए तब उन्होंने पत्नी से से इस्तीफा दिला दिया और खुद चुनाव लड़े। लेकिन वह भाजपा के सुंदरलाल पटवा से हार गए। यह अब तक का इकलौता मौका रहा जब छिंदवाड़ा में भाजपा का कमल खिला। महाराष्ट्र के नागपुर से छिंदवाड़ा की जीवनरेखा जुड़ी है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय है। लेकिन छिंदवाड़ा पर संघ की सबसे कमजोर पकड़ है। कमलनाथ पार्टी से ऊपर हैं। इस बेहद पिछड़े क्षेत्र में बीते पांच साल में जितना विकास हुआ है, उतना शायद किसी भी जिले में नहीं हुआ होगा। कमलनाथ जिस किसी भी मंत्रालय में रहे हों, उनकी कोई न कोई सौगात छिंदवाड़ा तक जरूर पहुंची है। डेढ़ लाख की आबादी वाले शहर में अगले बीस साल की जरूरत के मुताबिक वाटर प्रोजेक्ट पर काम हो रहा है।
आल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने अपने दो पुराने दिग्गजों को जून 2016 में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी थी। गुलाम नबी आजाद और कमलनाथ को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी में महासचिव बनाया था। इसके साथ ही गुलाम नबी आजाद को उत्तर प्रदेश का जिम्मा और कमलनाथ को पंजाब और हरियाणा की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। वही इससे पूर्व अरुणाचल प्रदेश में चल रहे सियासी संकट में मध्यस्थता के लिए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कमलनाथ को भेजा था, वही कमलनाथ ने 25 फरवरी 2015 को कहा था, पार्टी में फैसला लेने वाले दो नहीं, एक हों
इसके उपरांत 16 जून 2016 को वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ ने 1984 के सिख विरोधी दंगों में कथित भूमिका संबंधी विवाद को लेकर बुधवार रात आगामी चुनावी राज्य पंजाब में पार्टी प्रभारी के पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखा, जिन्होंने उनका इस्तीफा तुरंत मंजूर किया और उन्हें पार्टी महासचिव पद से मुक्त कर दिया था।
इसके बाद कमलनाथ आराम कर रहे थे, हिमालयायूके न्यूज पोर्टल ने विधानसभा चुनावों में उनकी उपयोगिता की खबरों को प्रमुखता से प्रकाशित किया, जिससे कांग्रेस आलाकमान का ध्यान फिर से उनकी ओर गया,
1946 का साल था जब देश आज़ाद होने के लिए तैयार हो रहा था, तभी उत्तर प्रदेश के शहर कानपुर में एक किलकारी गूंजी थी। ये किलकारी थी श्री कमलनाथ की। तब कौन जानता था कि कानपुर का ये लाल मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा की तकदीर बदलने के लिए आया है। देहरादून के दून स्कूल से पढ़ाई करने वाले श्री कमलनाथ ने कोलकाता के सेंट ज़ेवियर कॉलेज से उच्च शिक्षा हासिल की। अच्छी पढ़ाई, उज्जवल भविष्य – लेकिन श्री कमलनाथ के अंदर एक बेचैनी सी थी, आम आदमी का दर्द उन्हें सोचने पर मजबूर करता था कि आखिर कैसे वो उनकी तकलीफ़ दूर कर सकते हैं। यही बेचैनी उन्हें छिंदवाड़ा खींच लाई और महज़ 34 साल की उम्र में वह अपनी कर्मभूमि छिंदवाड़ा से जीत कर पहली बार लोकसभा पहुंच गए। इस जीत ने श्री कमलनाथ को छिंदवाड़ा का लाल, उनका सरताज बना दिया।
राजनीतिक करियर
1980 में छिंदवाड़ा की जनता ने जब श्री कमलनाथ को 7वीं लोकसभा में भेजा, तो फिर उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। विकास के, आम आदमी का दर्द बांटने के जो सपने उनके दिल में बस रहे थे उन्हें सच करने की चाबी उनके हाथ में आ गई थी और यहीं से शुरू हुई एक 34 साल के युवक की छिंदवाड़ा के मसीहा बनने की कहानी। श्री कमलनाथ की योग्यता और काम के प्रति उनके समर्पण को देखते हुए उन्हें कई महत्वपूर्ण मंत्रालय सौंपे गए जिनमें उद्योग मंत्रालय, कपड़ा मंत्रालय, वन और पर्यावरण मंत्रालय, सड़क और परिवहन मंत्रालय प्रमुख हैं। श्री कमलनाथ जी की छवि बेहद ईमानदार नेता की रही है और बात करने का उनका सलीका और मर्यादित व्यवहार उन्हें बाकी नेताओं से अलग खड़ा करता है। यही वजह है कि उन्हें 2012 में संसदीय कार्य मंत्रालय की ज़िम्मेदारी भी सौंप दी गई। श्री कमलनाथ के विपक्षी दलों से मधुर संबंधों का ही ये नतीजा है कि कई बार मुश्किल परिस्थितियों में यूपीए सरकार संसद में कई महत्वपूर्ण बिल पास करा पाई है। श्री कमलनाथ कांग्रेस के महासचिव भी रहे हैं।
छिंदवाड़ा के नाथ- कमलनाथ
1979 तक छिंदवाड़ा बेरोज़गारी और ग़रीबी से कराह था। तब एक दिन जनता ने श्री कमलनाथ को रिकॉर्ड मतों से जिता कर लोकसभा में भेजा। श्री कमलनाथ ने छिंदवाड़ा की जनता के अभूतपूर्व प्रेम और विश्वास का मान ही नहीं रखा, बल्कि छिंदवाड़ा की तकदीर ही बदल कर रख दी। उन्होंने अपने चुनाव क्षेत्र में बुनियादी ढांचे की नींव रखी, आम आदमी को मूलभूत सुविधाएं दिलाईं, नौजवानों को नौकरियां दिलाईं और बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए अच्छे स्कूलों की नींव रखी।
छिंदवाड़ा में दक्षता विकास केंद्र
श्री कमलनाथ उन चुनिंदा लोगों में से एक हैं जो वक्त से पहले भविष्य की नब्ज़ पकड़ लेते हैं। युवाओं को सही दिशा देने और उनके भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए उन्होंने छिंदवाड़ा में कई वोकेशनल कोर्सेज़ के लिए सेंटर खोले हैं। श्री कमलनाथ का मानना है कि महज़ औपचारिक शिक्षा काफी नहीं है। ज़रूरत है लोगों को ऐसे कामों और कलाओं में दक्ष बनाने की जो उन्हें आजीवन मदद करें। यही वजह है कि जो छिंदवाड़ा कभी पिछड़ा हुआ था आज वहां NIIT, CII, FDDI, IL&FS जैसे संस्थान छात्रों को ट्रेनिंग दे रहे हैं, उन्हें आत्मनिर्भर बना रहे हैं। ये श्री कमलनाथ की कोशिशों का ही नतीजा है कि छिंदवाड़ा के युवा दूसरे राज्यों में भी अपनी प्रतिभा और कला का लोहा मनवा रहे हैं। आज हर बड़ा संस्थान छिंदवाड़ा में अपना केंद्र खोलने के लिए लालायित रहता है और तमाम बड़ी कंपनियां यहां से छात्रों को चुनने के लिए तत्पर रहती हैं।
आदिवासी और ग़रीब लोग
तीन दशकों से भी ज्यादा समय से छिंदवाड़ा का प्रतिनिधित्व कर रहे श्री कमलनाथ भले ही आज राजनीति के शिखर पर हैं लेकिन उनकी निगाहें हमेशा जमीन पर रहीं, उन गरीबों के दर्द से भीगती रहीं जिनकी सुनवाई कहीं नहीं होती। श्री कमलनाथ ने उन आदिवासियों को भी उतना ही सम्मान दिया जिन्हें दूसरे नेता चुनाव जीतने के बाद अपना वोट बैंक मान कर पांच सालों के लिए भूल जाते हैं। श्री कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में आदिवासियों और गरीब तबकों के विकास पर पूरा ध्यान दिया और उन्हें मुख्य धारा से जोड़ने में कामयाबी पाई। मूल रूप से छिंदवाड़ा एक आदिवासी इलाका माना जाता है जिसमें गोंड, प्रधान, भारिया और कोरकू जैसे जनजातियां प्रमुख हैं। श्री कमलनाथ आदिवासियों के बिखरे हुए समाज तक विकास की लहर को ले गए और काफी हद तक उन्हें आत्मनिर्भर बना चुके हैं। अगर आज छिंदवाड़ा का आदिवासी समाज खुश है, तरक्की की राह पर है और किसी भी मायने में मुख्य धारा से पिछड़ा हुआ नहीं है, तो इसका श्रेय सिर्फ श्री कमलनाथ को ही जाता है।
आर्थिक विकास पर जोर
श्री कमलनाथ का देश के आर्थिक ढांचे को मजबूत करने पर हमेशा ज़ोर रहा है। 2011 में स्विटज़रलैंड में विश्व आर्थिक फ़ोरम में श्री कमलनाथ ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। वहां उन्होंने विकासशील देशों की अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में सीधी पहुंच की वकालत की। उनका मानना था कि अगर ऐसा हुआ तो किसान अपना माल बिना किसी बिचौलिए के बेच पायेंगे और ज़्यादा मुनाफ़ा कमा पायेंगे।
अपनी किताब ‘India’s Century’ में श्री कमलनाथ ने विश्व स्तर पर भारत के वाणिज्य विकास की संभावनाओं का विस्तार से ज़िक्र किया है। उन्होंने 2014 में डावोस में हुए विश्व इकॉनॉमिक फ़ोरम में भी शिरकत की है।