प्री-पोल सर्वे – कर्नाटक विधानसभा चुनाव
कर्नाटक चुनावों को लेकर एक प्री-पोल सर्वे आया है. सी-फोर एजेंसी के इस सर्वे के मुताबिक कर्नाटक में कांग्रेस अपना किला बचाने में कामयाब हो सकती है. सर्वे के मुताबिक राज्य की कुल 224 सीटों में से कांग्रेस को 109-120 जबकि बीजेपी को 40-60 सीटें मिल सकती हैं. यानी बहुमत के 113 सीटों के आंकड़े को कांग्रेस छूकर लगातार दूसरी बार सत्ता में आ सकती है और बीजेपी को हार का सामना करना पड़ सकता है. यहीं से सवाल उठता है कि यदि कांग्रेस जीतती है तो इसके मायने पार्टी के लिए क्या होंगे? इसके साथ ही 2019 के चुनावों में बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस की रणनीति क्या होगी? हिमालयायूके न्यूज पोर्टल की प्रस्तुति-
कर्नाटक चुनावों को कांग्रेस ‘सेक्युलरवाद’ बनाम ‘सांप्रदायिकता’ की रणनीति के आधार पर लड़ रही है. यदि कांग्रेस का यह दांव सफल होता है तो आने वाले चुनावों में भी इस रणनीति को आजमा सकती है. राहुल गांधी ने बीजेपी और आरएसएस पर हमला किया है. कांग्रेस अध्यक्ष ने ट्वीट करते हुए यशपाल सक्सेना और इमाम रशीदी के बयान का जिक्र किया. इन दो लोगों ने नफरत और सांप्रदायिक जहर की वजह से अपना बेटा खो दिया. राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ”अपने बेटों को नफरत और सम्प्रदायिकता के कारण खोने के बाद यशपाल सक्सेना और इमाम रशीदी के संदेश ये दिखाते हैं कि हिन्दुस्तान में हमेशा प्यार नफरत को हराएगा. कांग्रेस की नींव भी करुणा और आपसी भाईचारे पर टिकी है. हम नफरत फैलाने वाली BJP/RSS की विचारधारा को जीतने नहीं देंगे.” अपने बेटे को खोने वाले इमाम इमदात उल्लाह राशिद ने लोगों से बेटे की मौत को मुद्दा नहीं बनाने और इलाके में अमन कायम करने की गुजारिश की. उन्होंने कहा, ”मेरा एक पैगाम है कि मेरा बेटा चला गया कोई बात नहीं है, हमारे शहर में शांति रहे, शहर में अमन रहे यही मेरी कोशिश है. हत्या को मुद्दा न बनाएं. अगर आप मुझसे प्यार करते हैं तो अमन बहाल करें. मेरे बच्चे की उम्र पूरी हो गई थी. अगर शांति बहाल नहीं हुई तो शहर छोड़ दूंगा.’
कर्नाटक में यदि कांग्रेस जीतेगी तो पार्टी के साथ-साथ यह मुख्यमंत्री सिद्दारमैया की जीत होगी. ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस ने अघोषित रूप से उन पर ही सूबे में दांव लगाया है. ऐसे में यदि पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी और सत्ता विरोधी लहर को थामने में सिद्दारमैया कामयाब हो जाते हैं तो कांग्रेस पार्टी के भीतर स्थानीय नेताओं को तवज्जो देने के अपने फॉर्मूले पर लौट सकती है. 1950-60 के दशक में कांग्रेस के पूरे भारत में वर्चस्व का सबसे बड़ा कारण यह माना जाता था कि हर प्रांत में उसके पास कद्दावर चेहरे थे जो जमीन से जुड़े नेता थे. यानी यदि यह प्रयोग सफल रहा तो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस आने वाले चुनावों से पहले पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर सकती है.
राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार बड़ा परिवर्तन करते हुए राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को संगठन एवं प्रशिक्षण का प्रभारी महासचिव बनाया है. वह सोनिया गांधी के करीबी रहे जनार्दन द्विवेदी का स्थान लेंगे. इससे पहले अशोक गहलोत गुजरात कांग्रेस के प्रभारी थे. गुजरात चुनावों में कांग्रेस की बेहतर सफलता के लिए राहुल गांधी के साथ उनके योगदान को भी अहम माना जाता है. संभवतया इसी के पुरस्कार के रूप में राष्ट्रीय राजनीति में अहम रोल के लिए कांग्रेस अध्यक्ष ने उनका चुनाव किया है. हालांकि इसके साथ राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक कांग्रेस अध्यक्ष ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं. पहला- राहुल गांधी ने पुरानी पीढ़ी के नेताओं को संकेत दिया है कि वह उनके अनुभव का लाभ लेते रहेंगे. दूसरा- इसके चलते अशोक गहलोत की भूमिका राजस्थान की राजनीति में अब सीमित हो जाएगी. इसी साल के अंत में वहां विधानसभा चुनाव होने हैं. इससे पहले अजमेर और अलवर लोकसभा उपचुनाव प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के नेतृत्व में पार्टी ने लड़कर जीता है. उसके बाद से ही राजस्थान यूनिट से सचिन पायलट को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की मांग दबे स्वर में उठती रही है. अब अशोक गहलोत के राष्ट्रीय राजनीति में जाने से माना जा रहा है कि राहुल गांधी ने साफ संकेत दे दिए हैं कि पार्टी की तरफ से राजस्थान चुनाव में सचिन पायलट(39) ही पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा होंगे और उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा.
मोदी सरकार के मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे अर्जित चौबे की अग्रिम जमानत अर्जी कोर्ट ने खारिज कर दी. अर्जित चौबे पर भागलपुर में हिंसा भड़काने का आरोप है और उनके खिलाफ गिरफ्तारी वॉरंट भी जारी हो चुका है. कोर्ट के इस फैसले के साथ ही अर्जित पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है. बिहार पुलिस ने 153A और 295A के दो धाराओं के तहत अर्जित चौबे पर एफआईआर दर्ज किया है. उनके खिलाफ गिरफ्तारी वॉरंट भी जारी हो चुका है लेकिन अबतक अर्जित चौबे की गिरफ्तारी नहीं हो पायी है. बिहार पुलिस उन्हें इनकी तलाश में है.
माना जा रहा है कि कर्नाटक चुनावों में राहुल गांधी ने पूरी कमान एक तरह से मुख्यमंत्री सिद्दारमैया के हाथों में दे दी है. उनके नेतृत्व में ही पार्टी चुनाव लड़ रही है. चुनाव जीतने के लिए उनको अपनी तरफ से निर्णय लेने की पूरी छूट दी गई है. सूत्रों के मुताबिक पंजाब के बाद कर्नाटक में कांग्रेस इसको एक प्रयोग के रूप में देख रही है. यदि यह प्रयोग सफल होता है तो पार्टी 1950-60 के दशक के पुराने फॉर्मूले पर लौट सकती है. उस दौर में कांग्रेस के पास राज्यों में जमीनी पकड़ वाले कद्दावर चेहरे थे. इसी की तर्ज पर कांग्रेस राज्यों में मजबूत स्थानीय नेतृत्व को उभरने का भरपूर मौका दे सकती है. यानी राजस्थान के साथ ही इसी साल मध्य प्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी युवा चेहरे के रूप में पार्टी के चेहरे के रूप में पेश किया जा सकता है.
कांग्रेस के जीतने की स्थिति में सबसे बड़ा लाभ राहुल गांधी को होगा. कांग्रेस जीतती है तो पार्टी का मनोबल बढ़ेगा लेकिन इसके साथ ही राष्ट्रीय राजनीति में राहुल गांधी का कद बढ़ेगा. कर्नाटक के बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी इसी साल के अंत तक चुनाव होने हैं. कांग्रेस मजबूत मनोबल के साथ इन चुनावों में भी उतरेगी और बेहतर प्रदर्शन करने की स्थिति में 2019 के आम चुनावों से पहले कांग्रेस विपक्षी दलों के साथ अपनी अगुआई में महागठबंधन बनाने का दावा कर सकने की स्थिति में होगी. दरअसल कांग्रेस को यह अहसास है कि बीजेपी को रोकने के लिए 2019 में राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय क्षत्रपों के साथ उसको गठबंधन बनाना होगा. ये क्षेत्रीय क्षत्रप उसी स्थिति में कांग्रेस का दबदबा स्वीकार करेंगे जब कांग्रेस का प्रदर्शन इन राज्यों में बेहतर होगा. तभी इन क्षेत्रीय दलों को भरोसा होगा कि कांग्रेस, बीजेपी के रथ को रोक सकती है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि कई क्षेत्रीय दलों ने फेडरल फ्रंट के नाम पर गैर-बीजेपी, गैर-कांग्रेसी गठबंधन बनाने की वकालत की है. इस तरह के किसी गठबंधन की संभावना को कांग्रेस तभी रोकने की स्थिति में होगी जब कर्नाटक जैसे अहम राज्य में बीजेपी के साथ सीधी लड़ाई में उसको शिकस्त दे सके.
इसके साथ ही कांग्रेस में बड़े बदलाव हुए हैं. राहुल गांधी ने जितेंद्र सिंह को बीके हरिप्रसाद के स्थान पर ओड़िशा का एआईसीसी प्रभारी बनाया है. बयान में यह भी कहा गया कि बीके हरिप्रसाद, ओड़िशा के प्रभारी महासचिव पद से हट गये हैं. कांग्रेस ने पार्टी सांसद राजीव सातव को गुजरात में एआईसीसी का प्रभारी बनाया है. राहुल ने हाल में संपन्न पार्टी के दिल्ली महाधिवेशन में स्पष्ट तौर पर यह संदेश दिया था कि संगठन में युवा एवं वरिष्ठ नेताओं के बीच की दीवार को गिराया जाएगा.
पार्टी अध्यक्ष ने इसी सप्ताह गुजरात प्रदेश कांग्रेस समिति का अध्यक्ष युवा चेहरे और चार बार से विधायक अमित चावड़ा को बनाया है. उन्हें भरत सिंह सोलंकी की जगह यह जिम्मेदारी सौंपी गयी है. कांग्रेस अध्यक्ष ने अखिल भारतीय कांग्रेस सेवा दल के मुख्य संयोजक पद पर लालजी देसाई को नियुक्त किया है. उन्हें महेंद्र जोशी की जगह यह जिम्मेदारी दी गई है.
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