केदारनाथ को क्यों कहते हैं ‘जागृत महादेव’ ? बद्रीनाथ और केदारनाथ मंदिर समिति की विशाल दानराशि अस्पपताल, मेडिकल, इंजीनियरिंग कालेज में सदुपयोग हो
केदारनाथ के संबंध में लिखा है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है # आपको एक प्रसंग सुनाते हैं #Logon www.himalayauk.org (Leading Newsportal & Print Media) Publish at Dehradun & Haridwar Mob. 9412932030
ये चार धाम है:- बद्रीनाथ, द्वारिकाधीश, जगन्नाथ और रामेश्वरम। उत्तराखंड में जब बद्रीनाथ धाम की यात्रा करते हैं तब यहां स्थित गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ की यात्रा किए बगैर तीर्थ पूरा नहीं माना जाता। कहते हैं कि भगवान विष्णु बद्रीनाथ में स्नान करते हैं।
केदारनाथ की बड़ी महिमा है। उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ और केदारनाथ-ये दो प्रधान तीर्थ हैं, दोनो के दर्शनों का बड़ा ही महत्व है। केदारनाथ के संबंध में लिखा है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है और केदारनाथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाश पूर्वक जीवन मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है। इस मन्दिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, पर एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थ रहा है। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये १२-१३वीं शताब्दी का है। ग्वालियर से मिली एक राजा भोज स्तुति के अनुसार उनका बनवाया हुआ है जो १०७६-९९ काल के थे। एक मान्यतानुसार वर्तमान मंदिर ८वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया जो पांडवों द्वारा द्वापर काल में बनाये गये पहले के मंदिर की बगल में है। मंदिर के बड़े धूसर रंग की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ खुदा है, जिसे स्पष्ट जानना मुश्किल है। केदारनाथ जी के तीर्थ पुरोहित इस क्षेत्र के प्राचीन ब्राह्मण हैं, उनके पूर्वज ऋषि-मुनि भगवान नर-नारायण के समय से इस स्वयंभू ज्योतिर्लिंग की पूजा करते आ रहे हैं, जिनकी संख्या उस समय ३६० थी। पांडवों के पोते राजा जनमेजय ने उन्हें इस मंदिर में पूजा करने का अधिकार दिया था, और वे तब से तीर्थयात्रियों की पूजा कराते आ रहे हैं। आदि गुरु शंकराचार्य जी के समय से यहां पर दक्षिण भारत से जंगम समुदाय के रावल व पुजारी मंदिर में शिव लिंग की पूजा करते हैं, जबकि यात्रियों की ओर से पूजा इन तीर्थ पुरोहित ब्राह्मणों द्वारा की जाती है। मंदिर के सामने पुरोहितों की अपने यजमानों एवं अन्य यात्रियों के लिये पक्की धर्मशालाएं हैं, जबकि मंदिर के पुजारी एवं अन्य कर्मचारियों के भवन मंदिर के दक्षिण की ओर हैं ।
आपको एक प्रसंग सुनाते हैं
*एक बार एक शिव-भक्त अपने गांव से केदारनाथ धाम की यात्रा पर निकला। पहले यातायात की सुविधाएँ तो थी नहीं, वह पैदल ही निकल पड़ा। रास्ते में जो भी मिलता केदारनाथ का मार्ग पूछ लेता। मन में भगवान शिव का ध्यान करता रहता। चलते चलते उसको महीनो बीत गए।* *आखिरकार एक दिन वह केदार धाम पहुच ही गया। केदारनाथ में मंदिर के द्वार 6 महीने खुलते है और 6 महीने बंद रहते है। वह उस समय पर पहुचा जब मन्दिर के द्वार बंद हो रहे थे। पंडित जी को उसने बताया वह बहुत दूर से महीनो की यात्रा करके आया है। पंडित जी से प्रार्थना की – कृपा कर के दरवाजे खोलकर प्रभु के दर्शन करवा दीजिये । लेकिन वहां का तो नियम है एक बार बंद तो बंद। नियम तो नियम होता है। वह बहुत रोया। बार-बार भगवन शिव को याद किया कि प्रभु बस एक बार दर्शन करा दो। वह प्रार्थना कर रहा था सभी से, लेकिन किसी ने भी नही सुनी।*
13 OCT 22- चेयरमैन ने बद्रीनाथ-केदारनाथ समिति को 2.5-2.5 करोड़ रुपये का दान दिया- रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के चेयरमैन और एमडी मुकेश अंबानी ने बद्रीनाथ और केदारनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना की. भारत के जाने-माने उद्योगपति मुकेश अंबानी हर वर्ष की भांति इस साल भी भगवान बद्री विशाल के विशेष दर्शन के लिए बद्रीनाथ धाम पहुंचे. उन्होंने भगवान बद्री विशाल की विशेष पूजा-अर्चना की और देश की खुशहाली की कामना की. इसके बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी केदारनाथ धाम भी गए और पूजा-अर्चना की. उन्होंने बद्रीनाथ और केदारनाथ को ढाई-ढाई करोड़ रुपये का दान भी दिया. केदारनाथ पहुंचने पर मंदिर समिति ने उनका स्वागत किया. बद्रीनाथ धाम पहुंचने पर बीकेटीसी के उपाध्यक्ष किशोर पवार और मंदिर समिति के कर्मचारियों ने रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन का भव्य स्वागत किया. इस दौरान भगवान बद्री विशाल के श्रृंगार में प्रयोग में लायी जाने वाली तुलसी की माला भी मुकेश अंबानी को भेंट स्वरूप दी गई. बद्रीनाथ मंदिर के सभा मंडल में पहुंचने के बाद मुकेश अंबानी ने आम श्रद्धालु की भांति भगवान बद्री विशाल के दर्शन किए और मंदिर के गर्भगृह में कुछ देर ध्यान लगाया. बद्रीनाथ धाम के धर्म अधिकारी भुवन चंद्र उनियाल ने इस दौरान उद्योगपति मुकेश अंबानी की पूजा संपन्न कराई. मुकेश अंबानी बद्रीनाथ धाम के मुख्य पुजारी रावल जी से मिलने के लिए उनके आवास पर भी पहुंचे और उनका आशीर्वाद लिया.
*पंडित जी बोले अब यहाँ 6 महीने बाद आना, 6 महीने बाद यहा के दरवाजे खुलेंगे। यहाँ 6 महीने बर्फ और ढंड पड़ती है। और सभी जन वहा से चले गये। वह वही पर रोता रहा। रोते-रोते रात होने लगी चारो तरफ अँधेरा हो गया। लेकिन उसे विस्वास था अपने शिव पर कि वो जरुर कृपा करेगे। उसे बहुत भुख और प्यास भी लग रही थी। उसने किसी की आने की आहट सुनी। देखा एक सन्यासी बाबा उसकी ओर आ रहा है। वह सन्यासी बाबा उस के पास आया और पास में बैठ गया। पूछा – बेटा कहाँ से आये हो ?* *उस ने सारा हाल सुना दिया और बोला मेरा आना यहाँ पर व्यर्थ हो गया बाबा जी। बाबा जी ने उसे समझाया और खाना भी दिया। और फिर बहुत देर तक बाबा उससे बाते करते रहे। बाबा जी को उस पर दया आ गयी। वह बोले, बेटा मुझे लगता है, सुबह मन्दिर जरुर खुलेगा। तुम दर्शन जरुर करोगे।*
कभी काशी तो कभी केदार और उज्जैन…खुद को कहा मां गंगा, बाबा और महाकाल का बेटा – ‘महाकाल का बुलावा आया तो ये बेटा बिना आए कैसे रह सकता है…’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उज्जैन में महाकाल लोक के लोकार्पण के मौके पर कुछ ऐसे ही शब्दों का इस्तेमाल किया और खुद को एक बार फिर महाकाल का बेटा बताया. ऐसा पहली बार नहीं है जब पीएम मोदी का शिव और शक्ति को लेकर समर्पण देखने को मिला हो. साल 2014 में बीजेपी की तरफ से गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया. पर्चा भरने से पहले मोदी वाराणसी पहुंचे. जहां उन्होंने अपनी भक्ति को जगजाहिर करने का काम किया. उन्होंने कहा कि, “मुझे बीजेपी ने वाराणसी नहीं भेजा है. ना मैं खुद आया हूं. मुझे तो ‘गंगा मां’ ने बुलाया है. जैसे एक बालक अपनी मां की गोद में वापस आता है, वैसे ही मैं महसूस कर रहा हूं.” पीएम मोदी ये खुद बता चुके हैं कि, मैं जिस गांव में जन्मा… वडनगर, वो भी शिव का बहुत बड़ा तीर्थ है. वाराणसी को लेकर उन्होंने कहा कि, ये भोलेबाबा की धरती है. राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखने के साथ ही उनका आध्यात्म प्रेम सबके सामने आ गया. प्रधानमंत्री अपने केदारनाथ दौरे के दौरान सेना के जवानों के साथ दिवाली भी मना सकते हैं. प्रधानमंत्री के संभावित दौरे को देखते हुए तैयारियां भी तेज हैं. दीपावली के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केदारनाथ आने की चर्चा जोरों पर है. बताया जा रहा है कि छोटी दीपावली के शुभ मुहूर्त पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केदारनाथ धाम आ सकते हैं. बीते दिनों केदारनाथ में सीएम पुष्कर सिंह धामी के दौरे को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है. इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्ष 2018 में भी दीपावली के मौके पर केदारनाथ धाम में पूजा कर चुके हैं.
*बातों-बातों में इस भक्त को ना जाने कब नींद आ गयी। सूर्य के मद्धिम प्रकाश के साथ भक्त की आँख खुली। उसने इधर उधर बाबा को देखा, किन्तु वह कहीं नहीं थे । इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता उसने देखा पंडित जी आ रहे है अपनी पूरी मंडली के साथ। उस ने पंडित को प्रणाम किया और बोला – कल आप ने तो कहा था मन्दिर 6 महीने बाद खुलेगा ? और इस बीच कोई नहीं आएगा यहाँ, लेकिन आप तो सुबह ही आ गये। पंडित जी ने उसे गौर से देखा, पहचानने की कोशिश की और पुछा – तुम वही हो जो मंदिर का द्वार बंद होने पर आये थे ? जो मुझे मिले थे। 6 महीने होते ही वापस आ गए ! उस आदमी ने आश्चर्य से कहा – नही, मैं कहीं नहीं गया। कल ही तो आप मिले थे, रात में मैं यहीं सो गया था। मैं कहीं नहीं गया। पंडित जी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था।*
*उन्होंने कहा – लेकिन मैं तो 6 महीने पहले मंदिर बन्द करके गया था और आज 6 महीने बाद आया हूँ। तुम छः महीने तक यहाँ पर जिन्दा कैसे रह सकते हो ? पंडित जी और सारी मंडली हैरान थी। इतनी सर्दी में एक अकेला व्यक्ति कैसे छः महीने तक जिन्दा रह सकता है। तब उस भक्त ने उनको सन्यासी बाबा के मिलने और उसके साथ की गयी सारी बाते बता दी। कि एक सन्यासी आया था – लम्बा था, बढ़ी-बढ़ी जटाये, एक हाथ में त्रिशुल और एक हाथ में डमरू लिए, मृग-शाला पहने हुआ था। पंडित जी और सब लोग उसके चरणों में गिर गये। बोले, हमने तो जिंदगी लगा दी किन्तु प्रभु के दर्शन ना पा सके, सच्चे भक्त तो तुम हो। तुमने तो साक्षात भगवान शिव के दर्शन किये है। उन्होंने ही अपनी योग-माया से तुम्हारे 6 महीने को एक रात में परिवर्तित कर दिया। काल-खंड को छोटा कर दिया। यह सब तुम्हारे पवित्र मन, तुम्हारी श्रद्वा और विश्वास के कारण ही हुआ है। आपकी भक्ति को प्रणाम
महाभारत काल में पांडवों द्वारा अपने पापो का प्रायश्चित करने के लिए बाबा शिव शम्भू का आशीर्वाद चाहते थे लेकिन 🙏बाबा उनको दर्शन नहीं देना चाहते थे जिसके कारण बाबा अंतर्ध्यान हो गए लेकिन पांडवों की सच्ची लगन और भक्ति से उन्होंने बाबा को खोज निकाला लेकिन बाबा उनको दर्शन नहीं देना चाहते थे और उन्होंने🐃 बैल का रूप धारण कर लिया और अन्य पशु में जाकर मिल गए कहा जाता है कि तब भीम ने विकराल रूप धारण करके अपने दोनों पैर फैला दिया अन्य पशु तो निकल गए लेकिन बैल रूपी शंकर जाने के लिए तैयार नहीं हुए तभी वह अंतर्ध्यान होने लगे लेकिन भीम ने झपट्टा मारकर उनकी पीठ को पकड़ लिया बाबा प्रसन्न होकर पांडव को दर्शन दिया और उनके पापों से मुक्ति दिलाई तभी से उनके पीठ के त्रिकोणीय भाग की केदारनाथ धाम में पूजा की जाती है