केदारनाथ : जहां कभी बसते थे शिव अौर पार्वती
केदारनाथ हजारों-लाखों योगियों और ईश्वर-प्रेमियों का ठिकाना रहा है। उनकी ऊर्जा का अनुभव हम यहां कर सकते हैं। इन योगियों के यहां आने का यह सिलसिला कई हजार वर्षों से चला आ रहा है। पौराणिक कथा कहती है कि शिव और पार्वती यहां रहते थे और वे केदार की तरफ कभी-कभार आया करते थे। इसी झील के किनारे गणपति का सृजन हुआ था।
केदारनाथ कांति सरोवर जहां पहली बार आदि योगी शिव ने योगिक विद्या को सप्तऋषियों को देना शुरू किया- केदार के ऊपर एक जगह है जिसे कांति-सरोवर के नाम से जाना जाता है
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हिमालय में केदारनाथ के रास्ते में एक बहुत ही शक्तिशाली तांत्रिक मंदिर है : भैरवेश्वर मंदिर। केदार के रास्ते में आने वाला तांत्रिक मन्दिर, जिसे भैरवेश्वर मन्दिर के नाम से जाना जाता है, आम तीर्थयात्रियों के लिए नहीं बनाया गया है। यह एक खास तरह के लोगों के लिए बनाया गया है, जो अपने जीवन में साधना के एक खास स्तर, ग्रहणशीलता और निपुणता के एक खास स्तर तक पहुंच चुके हैं। यह ऐसे साधकों के लिए है, जिन्हें कुछ खास आयामों में मदद की जरूरत है। देखिए, यह कोई मुक्ति के लिए संभावना नहीं है। एक तरह से यह तांत्रिक मन्दिर एक सलाहकार की भूमिका अदा करता है – खासकर उन लोगों के लिए जो क्रिया के मार्ग पर हैं और जो अपनी ऊर्जाओं को रूपांतरित करने के लिए गहरी प्रक्रियाएं कर रहे हैं, लेकिन जिनके लिए कुछ खास आयाम उलझे हुए हैं, या उनमें कुछ रुकावटें हैं। यह मन्दिर आम तीर्थयात्रियों के लिए नहीं बना है। इसीलिए इस मन्दिर को बहुत छोटा और मामूली तरीके से बनाया गया है, ताकि लोग भी उसे ज्यादा महत्व न दें और न ही वहां ज्यादा वक्त गुजारें। ज्यादातर लोगों ने तो इस मन्दिर की तरफ ध्यान भी नहीं दिया होगा। तो यह मन्दिर सिर्फ उन लोगों के लिए है, जो चेतना के एक खास स्तर तक पहुंच चुके हैं। तंत्र-विद्या की इस पूरी प्रक्रिया का संबंध प्रकृति से है, शिव से उसका कोई लेना-देना नहीं। शिव तंत्र की परवाह नहीं करते, हालांकि वे तंत्र के गुरु हैं। वे लोग, जो तंत्र का अभ्यास करते हैं, शिव की पूजा कभी नहीं करते, वे शिव को सिर्फ दूर से पूजते हैं। लेकिन वे हर रोज देवी के विभिन्न रूपों की पूजा करते हैं। इन रूपों को पैदा किया जा सकता है। ऐसा दुनिया में हर जगह होता है, लेकिन इस संस्कृति में हमने देवी के अनेक रूपों का सृजन किया है, जो बहुत शक्तिशाली हैं। उदाहरण के लिए, काली। काली सिर्फ एक मूर्ति नहीं हैं। अनेक योगियों और दिव्यदर्शियों ने एक विशेष ऊर्जा-रूप के सृजन के लिए काम किया, जो कुछ खास तरीके से काम करता है और एक खास नाम पर प्रतिक्रिया दिखाता है। आम तौर पर वे बहुत ही प्रचंड रूप का सृजन किया करते हैं, क्योंकि ये प्रचंड लोग एक सौम्य नारी के साथ नहीं रह सकते। वे सचमुच किसी तूफानी अस्तित्व को चाहते हैं, इसीलिए तो उन्होंने सचमुच प्रचंड नारी का सृजन किया, और यह ऐसा ऊर्जा-रूप है, जो अभी भी जीवंत है और जो एक खास मंत्र पर प्रतिक्रिया करता है। जब उन्होंने इस रूप का सृजन किया, उसके साथ एक निश्चित ध्वनि को भी जोड़ा गया था। इसलिए जब किसी एक विशेष ध्वनि या मंत्र का एक खास तरीके से इस्तेमाल किया जाता है, तो इस रूप को प्रकट किया जा सकता है। ऊर्जा के इस सूक्ष्म रूप का इस्तेमाल कर बहुत सारी चीजें की जा सकती हैं। तो सारा तंत्र विज्ञान इसी के बारे में है। किसी विशेष रूप के लिए ही कुछ खास तांत्रिक मन्दिरों को बनाया गया है, और आप उस रूप का आह्वान कर के कई तरह की चीजें कर सकते हैं।
सद्गुरु बता रहे हैं, हिमालय की गोद में स्थित केदारनाथ के बारे में। हर वर्ष सैकड़ों लोग सद्गुरु के साथ हिमालय की यात्रा पर निकलते हैं। वहां आयोजित एक सत्संग के दौरान उन्होंने केदार के कुछ अनूठे पहलुओं को उजागर किया।
संसार में सिर्फ दो या तीन चीजें ही ऐसी हैं, जो मुझे सचमुच वशीभूत कर लेती है, केदार उनमें से एक है। भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित, हिमालय की गोद में बसा यह एकांत सा कस्बा प्राचीन युग का एक दिलचस्प पवित्र स्थान है। इसके आसपास बर्फ से ढंकी ऐसी पहाड़ियां हैं जो अचरज में डाल देती हैं। दिव्य दर्शियों के लिए यह ‘सबसे नशीला आध्यात्मिक स्थान’ है।
शिव के बारे में चर्चा किये बिना केदार के बारे में बताना असंभव है। देश के सबसे पूज्य माने जाने वाले शिव मंदिरों में से एक है- केदारनाथ मंदिर जो इस नगरी में स्थित है। सदियों पुरानी चार धाम की तीर्थयात्रा में भी केदारनाथ को एक प्रमुख तीर्थ के रूप में माना जाता है।
यह ऊर्जा से भरा हुआ ऐसा आध्यात्मिक स्थान है, जैसा सारी दुनिया में कहीं और नहीं। केदार की यात्रा इस मायने में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह स्थान हजारों-लाखों योगियों और ईश्वर-प्रेमियों का ठिकाना रहा है। उनकी ऊर्जा का अनुभव हम यहां कर सकते हैं। यहां ऐसे-ऐसे योगी हुए हैं, जिनके बारे में आप कभी कल्पना भी नहीं सकते हैं। इन योगियों के यहां आने का यह सिलसिला कई हजार वर्षों से चला आ रहा है। ये वो लोग हैं, जिन्होंने किसी को कुछ सिखाने की कोशिश नहीं की। वे इन जगहों में अपनी ऊर्जा, अपना कार्य, अपना सब कुछ छोड़ गए।
संसार को अपना सबकुछ भेंट करने का उनका यही तरीका था। यह स्थान आध्यात्मिकता और ऊर्जा का अनोखा मिश्रण है। किसी एक जगह ने इतने नाना प्रकार के लोग कभी नहीं देखे।
मैं बार-बार सबसे यही कहता हूँ कि मेरे साथ सहजता से बैठें। लेकिन अधिकतर लोग बस इसी चिंता में रहते है कि ‘हमारे खाने का क्या’, ‘हमारे टॉयलेट का क्या’, ‘यहां क्या हो रहा है’, ‘वहां क्या हो रहा है’। मैं इस बात को एक बार फिर दोहराना चाहूँगा कि विचलित हुए बिना आपको बस इस स्थान के साथ रहने की जरूरत है। अगर आपको नहीं पता कि किसी स्थान के साथ रहने का मतलब क्या है, तो किसी स्थान के साथ रहने की शुरुआत करने के लिए आपको कम से कम अपनी इंद्रियों को पूरी तरह से केंद्रित करना होगा। अब अगर आप मेरी तरफ देख रहे हैं तो इसका यह मतलब नहीं कि आप मेरे साथ हैं, लेकिन यह शुरुआत करने का अच्छा तरीका है।
दरअसल, यह वो जगह है, जो खास तौर से ‘शिव’ ध्वनि के लिए बनायी गयी है। ‘शिव’ शब्द एक ऐसी ध्वनि है जो रची नहीं गई है। यह कहना शत-प्रतिशत सही नहीं है, लेकिन हम कह सकते हैं कि पृथ्वी पर ‘शिव’ ध्वनि इन्हीं खुले स्थानों से उत्पन्न हो रही है।
तो यह एक जबरदस्त संभावना है। यहां अपनी मदद करने का एक तरीका यह भी हो सकता है कि आप हर कदम पर ‘शिव शंभो’ कहते हुए चलें। अगर आप पिकनिक मनाना चाहते हैं तो यह एक बेहद खूबसूरत और अचरज भरा स्थान है। हालांकि मैं पिकनिक मनाने के खिलाफ नहीं हूँ। अगर आप ऐसा चाहते हैं तो यह आपके ऊपर है। लेकिन अगर यहां आप कुछ और जानना चाहते हैं तो आपको अपने अहम् को कम करना होगा। खुद को बहुत छोटा बनाना होगा और हर कदम के साथ हमें एक खास मंत्र बोलते हुए आगे बढना होगा।
इस जगह ने तमाम ऐसे लोगों को शरण दी है, जो आपके नैतिकता के किसी भी ढांचे में नहीं समायेंगे। मैं पहले भी कह चुका हूं कि केदार ऊर्जाओं का एक बहुत ही नशीला मिश्रण है। देखिए जब आप आध्यात्मिक मार्ग पर चल रहे किसी मनुष्य के बारे में सोचते हैं तो शायद आपके दिमाग में उसका एक विशेष खांचा होता है। आप सोचते हैं कि उसका एक विशेष तरह का बर्ताव होगा, उसका एक खास पहनावा होगा, वह एक खास भाषा बोलता होगा। लेकिन यह जगह उस तरह के आध्यात्मिक व्यक्ति की नहीं है। हालांकि आपकी समझ और कल्पनाओं के अनुरूप लोग भी यहां आए हैं। लेकिन उनके अलावा, यहां बहुत से ऐसे भी लोग आए हैं, जो देखने में बिलकुल जंगली हैं और आप उनकी पहचान एक आध्यात्मिक इंसान के रूप में कभी नहीं कर पाएंगे। लेकिन सही मायनों में यही वे लोग हैं, जिन्होंने अस्तित्व की असली गहराई को छुआ है।
यहां ऐसे बहुत से निराले मनुष्य आए हैं। उनमें से कुछ तो दुनिया के शब्दों में पूरी तरह पियक्कड़ थे, लेकिन असल में वे योगी थे। उन्हें नशीली दवाओं की लत थी, लेकिन वे योगी थे। उनके जीवन में ये सारी बातें उनके भीतर किसी विवशता से नहीं आईं, बल्कि उन्होंने ये सब जान बूझकर किया। हालांकि ये सारी चीजें आपकी नैतिकता के अनुरूप नहीं है। यह वो जगह है, जिसने बहुत सारे ऐसे लोगों को शरण दी है जो आपकी नैतिकता के खांचे के अनुरूप नहीं है। यहां ऐसे बहुत से लोग हैं, जो दुनिया के हर दूसरे आध्यात्मिक मार्ग को गालियां देते हैं, दुनिया के हर अन्य गुरु को अपशब्द कहते हैं। ऐसा वह किसी अंदरूनी विवशता के कारण नहीं करते, बल्कि इसके पीछे वजह यह है कि- जब तक आप यह नहीं सोचते कि आप जिस आध्यात्मिक मार्ग पर चल रहे हैं, वो ही सबसे अच्छा है, तब तक आप उसके प्रति शत-प्रतिशत समर्पित नहीं हो सकते। जब आपके मन में यह विचार आता है कि ‘मैं इस मार्ग पर चल रहा हूँ पर शायद दूसरा मार्ग इससे बेहतर है’, तब तक आप उस मार्ग पर शत-प्रतिशत समर्पित नहीं हो सकते। जब तक आप अपने गुरु को सर्वश्रेष्ठ गुरु नहीं मानते, आप स्वयं को समर्पित नहीं कर सकते; आप आध्यात्मिक प्रक्रिया को पूर्ण रूप से अपना नहीं पाते।
प्रश्न: क्या ‘शिव शंभो’ जपने से हमें इन पहाड़ों पर चढ़ने में मदद मिलेगी?
सद्गुरु: जब आप ‘शंभो’ कहते हैं, जब आप ‘शिव’ कहते हैं तो यह मदद माँगने के लिए नहीं है। अब अगर जब भी आपके घुटने में दर्द हो तो आप ‘शंभो’ बोलने लगें तो ये ठीक नहीं है। शिव भक्त हमेशा शिव को बुलाते हैं और कहते हैं, ‘शिव, कृपया आप मुझे नष्ट करो’। क्योंकि शिव आपको नहीं, आपकी सीमाओं को, मनुष्य के रूप में आपकी कमजोरियों को नष्ट करते हैं।
ये एक तरकीब है। कल जब हम आपके सारे पाप धोने गंगा स्नान के लिए जाएंगे, आप देखेंगे कि पानी काफी ठंडा होगा। हालांकि आजकल यहां बहुत ठंड नहीं हैं, फिर भी सुबह-सुबह पानी बहुत ठंडा होता है। स्नान करते हुए सभी लोग ‘शिव शिव’ बोल रहे होंगे। क्या वे जब गरम पानी से नहाते हैं, तब भी ‘शिव शिव’ बोलते हैं? नहीं। वे या तो सीटी बजाते हैं या कोई फिल्मी गाना गुनगुनाते हैं। ठंडे पानी में ‘शिव शिव’ करते हैं। ये शिव के लिए नहीं है, ये आपके सुरक्षित रहने के लिए है। आप एक गलत शख्स को बुला रहे हैं। शिव यह नहीं देखते कि सुरक्षित रहने में आपकी मदद कैसे करें। वे तो बस उस पल का निरंतर इंतजार करते रहते हैं, जब वे आपके अंदर की कमजोरी को चूर-चूर कर सकें। इसीलिए तो मैंने आपसे ‘शंभो’ कहने के लिए कहा है, इस इरादे से नहीं कि शिव पहाड़ पर चढ़ने में आपकी मदद करेंगे।
आपको इसका उपयोग अपने आपको खोलने के लिए करना हैं। इसका उद्देश्य ही है, आपके जैसे हठी आदमी के लिए नये आयामों को खोलना न कि ‘शिव शिव शिव’ कह कर पहाड़ों पर चढ़ने में आपकी मदद करना।
इस घाटी में आध्यात्मिकता और ऊर्जा का मेल लगभग पच्चीस से पचास हजार वर्षों से चला आ रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह वो जगह है- जहां अनेक ऋषि-मुनि और साधु-संत रहा करते थे। यह मात्र पौराणिक कथा ही नहीं, एक ऐतिहासिक सत्य भी है। इस पर्वत से ऊपर कांति सरोवर नाम की एक जगह है। पौराणिक कथा कहती है कि शिव और पार्वती यहां रहते थे और वे केदार की तरफ कभी-कभार आया करते थे। इसी झील के किनारे गणपति का सृजन हुआ था। यह वही स्थान है जहां पहली बार आदि योगी शिव ने खुद को आदि गुरु में रूपांतरित करके अपनी योगिक विद्या को सप्तऋषियों को देना शुरू किया।
इस झील पर सन् 1994 में अप्रैल के महीने में जब मैं यहां आया था, मुझे ‘नाद ब्रह्म’ का अनुभव हुआ था। इस जगह के बारे में कुछ भी बता पाना या इसका वर्णन करना काफी मुश्किल है।
नाद ब्रह्मा विश्वस्वरूपा
नाद ही सकल जीवरूपा
नाद ही कर्मा नाद ही धर्मा
नाद ही बंधन नाद ही मुक्ति
नाद ही शंकर नाद ही शक्ति
नादं नादं सर्वं नादं
नादं नादं नादं नादं
आध्यात्मिक विकास चाहने वाले मनुष्य के लिए केदारनाथ एक ऐसा वरदान है, जिसकी प्रबलता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अगर कोई मनुष्य अपने आप को एक कोरे कागज की तरह यहां लाता है, तो उसके लिए ‘परम’ का अनुभव करना पूर्ण रूप से संभव है। हालांकि आम आदमी को यह बात समझाना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि यह स्थान, बस एक उभरी हुई चट्टान, एक पहाड़ ही तो है। लेकिन हजारों वर्षों से, जिस तरह के योगी यहाँ रहते आए हैं- उन्होंने इस स्थान के साथ जो कुछ भी किया है, उससे यहां बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है।
महादेव शिव एक ऐसे देव हैं जिनका वर्णन – एक महायोगी, गृहस्थ, तपस्वी, अघोरी, नर्तक और कई अन्य अलग-अलग तरीकों से किया जाता है। क्यों इतने सारे विविध रूप धारण किये थे भगवान शिव ने? अगर किसी एक व्यक्ति में इस सृष्टि की सारी विशेषताओं का जटिल मिश्रण मिलता है तो वह शिव हैं। अगर आपने शिव को स्वीकार कर लिया तो आप जीवन से परे जा सकते हैं। आमतौर पर पूरी दुनिया में लोग जिसे भी दैवीय या दिव्य मानते हैं, उसका वर्णन हमेशा अच्छे रूप में ही करते हैं। लेकिन अगर आप शिव पुराण को पूरा पढ़ें तो आपको उसमें कहीं भी शिव का उल्लेख अच्छे या बुरे के तौर पर नहीं मिलेगा। उनका जिक्र सुंदरमूर्ति के तौर पर हुआ है, जिसका मतलब ‘सबसे सुंदर’ है। लेकिन इसी के साथ शिव से ज्यादा भयावह भी कोई और नहीं हो सकता। जो सबसे खराब चित्रण संभव हो, वह भी उनके लिए मिलता है। शिव के बारे में यहां तक कहा जाता है कि वह अपने शरीर पर मानव मल मलकर घूमते हैं। उन्होंने किसी भी सीमा तक जाकर हर वो काम किया, जिसके बारे में कोई इंसान कभी सोच भी नहीं सकता था। अगर किसी एक व्यक्ति में इस सृष्टि की सारी विशेषताओं का जटिल मिश्रण मिलता है तो वह शिव हैं। अगर आपने शिव को स्वीकार कर लिया तो आप जीवन से परे जा सकते हैं।
इंसान के जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष यह चुनने की कोशिश है कि क्या सुंदर है और क्या भद्दा, क्या अच्छा है और क्या बुरा? लेकिन अगर आप हर चीज के इस भयंकर संगम वाली शख्सियत को केवल स्वीकार कर लेते हैं तो फि र आपको कोई समस्या नहीं रहेगी। वह सबसे सुंदर हैं तो सबसे भद्दे और बदसूरत भी। अगर वो सबसे बड़े योगी व तपस्वी हैं तो सबसे बड़े गृहस्थ भी। वह सबसे अनुशासित भी हैं, सबसे बड़े पियक्कड़ और नशेड़ी भी। वे महान नर्तक हैं तो पूर्णत: स्थिर भी। इस दुनिया में देवता, दानव, राक्षस सहित हर तरह के प्राणी उनकी उपासना करते हैं। शिव के बारे में तमाम हजम न होने वाली कहानियों व तथ्यों को तथाकथित मानव सभ्यता ने अपनी सुविधा से हटा दिया, लेकिन इन्हीं में शिव का सार निहित है। उनके लिए कुछ भी घिनौना व अरुचिकर नहीं है। शिव ने मृत शरीर पर बैठ कर अघोरियों की तरह साधना की है। घोर का मतलब है – भयंकर। अघोरी का मतलब है कि ‘जो भयंकरता से परे हो’। शिव एक अघोरी हैं, वह भयंकरता से परे हैं। भयंकरता उन्हें छू भी नहीं सकती। कोई भी चीज उनमें घृणा नहीं पैदा कर सकती। वह हर चीज को, सबको अपनाते हैं। ऐसा वह किसी सहानुभूति, करुणा या भावनाओं के चलते नहीं करते, जैसा कि आप सोचते होंगे। वे सहज रूप से ऐसा करते हैं, क्योंकि वो जीवन की तरह हैं। जीवन सहज ही हरेक को गले लगाता व अपनाता है। समस्या सिर्फ आपके साथ है कि आप किसे अपनाएं व किसे छोड़ें और यह समस्या मानसिक समस्या है, न कि जीवन से जुड़ी समस्या। यहां तक कि अगर आपका दुश्मन भी आपके बगल में बैठा है तो आपके भीतर मौजूद जीवन को उससे भी कोई दिक्कत नहीं होगी। आपका दुश्मन जो सांस छोड़ता है, उसे आप लेते हैं। आपके दोस्त द्वारा छोड़ी गई सांसें आपके दुश्मन द्वारा छोड़ी गई सांसों से बेहतर नहीं होती है। दिक्कत सिर्फ मानसिक या कहें मनोवैज्ञानिक स्तर पर है। अस्तित्व के स्तर पर देखा जाए तो कोई समस्या नहीं है।
एक अघोरी कभी भी प्रेम की अवस्था में नहीं रहता है। दुनिया के इस हिस्से की आध्यात्मिक प्रक्रिया ने कभी भी आपको प्रेम करना, दयालु या करुणामय होना नहीं सिखाया। यहां इन भावों को आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक माना जाता है। दयालु होना और अपने आसपास के लोगों को देखकर मुस्कुराना, पारिवारिक व सामाजिक शिष्टाचार है। एक इंसान में इतनी समझ तो होनी ही चाहिए, इसलिए यहां किसी ने सोचा ही नहीं कि ये चीजें भी सिखानी जरूरी हैं। एक अघोरी जब इस अस्तित्व को अपनाता है तो वह उससे प्रेम के चलते नहीं अपनाता, वह इतना सतही या कहें उथला नहीं है, बल्कि वह जीवन को अपनाता है। वह अपने भोजन और मल को एक ही तरह से देखता है। उसके लिए जिंदा और मरे हुए शरीर में कोई अंतर नहीं है। वह एक सजी संवरी देह और व्यक्ति को उसी भाव से देखता है, जैसे एक सड़े हुए शरीर को। इसकी सीधी सी वजह है कि वह पूरी तरह से जीवन बन जाना चाहता है। वह अपनी दिमागी या मानसिक सोचों के जाल में नहीं फंसना चाहता।
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