केदारनाथ आपदा; तीन साल बाद भी दर्जनों की संख्या में नरकंकाल
#जो श्रद्वालु जिंदा बच गए, वे अपनी जान बचाने के लिए पहाड़ियों की ओर भागे. लेकिन भूख, बारिश, बीमारी और ठंड की वजह से उनकी मौत हो गई #File Photo: केदारनाथ आपदा से ठीक एक माह पहले का चित्र- केदारनाथ का कपाट- गलत मूहुर्त में खुला था- यह खबर भी आम हुई थी- परन्तु नास्तिक प्रवत्ति के माने जाने वाले विजय बहुगुणा ने इस ओर ध्यान नही दिया था-
#उस दौरान भी राहत बचाव कार्य में केदारनाथ के 9 अलग-अलग पैदल मार्गो में काम्बिंग ऑपरेशन नहीं चलाया गया
#जून 2013 में आई केदारनाथ आपदा के सवा तीन साल बाद भी दुर्गम पहाड़ी रास्तों पर नर कंकाल मिलने से पूरे प्रदेश में हडकंप #केदारनाथ आपदा के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा तथा उनका खासमखास सूबे का भ्रष्ट ताकतवर नौकरशाह राकेश शर्मा लगातार गलत बयान कर प्रदेश तथा देश को धोखा दे रहे थे- www.himalayauk.org (UK Leading Digital Newsportal
2013 की केदारनाथ त्रासदी के केन्द्र केदारघाटी में एक बार फिर नर कंकाल मिले हैं. शेरसी से केदारनाथ के लिए 3 अक्टूबर को निकले ट्रैकिंग दल को 7 अक्टूबर को दर्जनों की संख्या में नरकंकाल दिखाई दिए हैं. ट्रैकिंग दल पहले शेरसी से मयाली टाप के रास्ते केदारनाथ के लिए जा रहा था, लेकिन रास्ते में पानी ना होने के कारण ट्रैकिंग दल ने अपना रुख त्रिजुगीनारायण की ओर किया. ट्रैकिंग दल ने जब त्रिजुगीनारायण से केदारनाथ की ओर पैदल सफर शुरू किया तो 9 किमी गोमपुडा स्थान से नर कंकाल मिलने शुरू हो गए. स्थानीय निवासी अशोक सेमवाल ने बताया कि लगभग 10 से 12 किमी ट्रैक में उन्हे दर्जनों कंकाल दिखाई दिए हैं. अशोक सेमवाल ने बताया कि कुछ कंकाल कपडों के ढके हैं. वहीं ट्रैकिंग दल के दूसरे सदस्य अरुण जमलोकी ने बताया कि त्रिजुगीनारायण से केदारनाथ, करीब 27 किमी का सफर है. 16-17 जून, 2013 की आपदा के बाद जब रामबाडा का नामोनिशान मिट गया तो फिर जगंलचट्टी से लेकर रामबाड़ा और रामबाड़ा से केदारनाथ ट्रैक के बीच जो श्रद्वालु जिंदा बच गए, वे अपनी जान बचाने के लिए पहाड़ियों की ओर भागे. लेकिन भूख, बारिश, बीमारी और ठंड की वजह से उनकी मौत हो गई. आपदा के कई दिनों के बाद पुलिस, सेना, एनडीआरएफ और आईटीबीपी ने गौरीकुंड से लेकर केदारनाथ के जंगलों में सर्च ऑरपेशन चलाया था. उस दौरान भी राहत बचाव कार्य में केदारनाथ के 9 अलग-अलग पैदल मार्गो में काम्बिंग ऑपरेशन नहीं चलाया गया है. माउन्टेनियर्स एंड ट्रैकिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष मनोज रावत ने बताया कि वे शुरू से ही इस बात को उठा रहे थे कि इन पैदल ट्रैक पर नर कंकाल हो सकते हैं. मनोज रावत ने कहा कि सभी ट्रैकिंग रूट की पूरी जानकारी राज्य सरकार को सौंप दी गई है. राज्य सरकार ने त्रिजुगीनारायण से केदारनाथ पैदल ट्रैक रूट पर आपदा में मारे गए यात्रियों के नर कंकाल के लिए आईजी संजय गुंज्याल के नेतृत्व में टीम का गठन कर दिया है. जो पूरे पैदल ट्रैक पर माटा के सदस्यों के साथ नर कंकालों के डीएनए सैंपल जमा करने के बाद अंतिम संस्कार करेगी.
केदारघाटी में अब भी नरकंकालों के मिलने का सिलसिला जारी है. त्रिजुगीनारायण-केदारनाथ ट्रैक पर गौरीमाई खर्क के पास करीब पांच से छह नर कंकाल दिखाई दिये हैं. जून 2013 में आई केदारनाथ आपदा के सवा तीन साल बाद भी दुर्गम पहाड़ी रास्तों पर मिलने से पूरे प्रदेश में हडकंप मचा हुआ है. राज्य सरकार ने भी एसडीआरएफ टीम को रवाना कर दिया है
केदारघाटी में नर कंकाल मिलने के बाद त्रिजुगीनारायण-केदारनाथ ट्रैक एक बार फिर सुर्खियों में है. उत्तराखंड में यह सबसे खतरनाक ट्रैक माना जाता है. इसकी सबसे बड़ी वजह यहां पानी की एक बूंद नसीब न होना बताई जाती है. अगर कोई भी व्यक्ति या ट्रैकर बगैर किसी खास तैयारी के इस ट्रैक पर चल पड़े तो उसकी जान जाना तय है.
केदारनाथ त्रासदी के दौराना बहुत से यात्री जानकारी न होने की वजह से इस तरफ चले गए. यहां जैसे मौत घात लगाकर उनका इंतजार कर रही थी. वन विभाग ने इस ट्रैक पर काम भी किया, लेकिन पानी न होने के वजह से वन विभाग ने इसे आधे तक बना कर छोड दिया
जून 16-17, 2013 में लगातार 72 घंटो तक हुई मूसलाधार बारिश और चोराबाडी ताल के फटने के बाद मंदाकिनी ने अपना रौद्र रुप दिखाया और रामबाडा कस्बे का नामोनिशान मिटा दिया. गौरीकुंड से केदारनाथ पैदल ट्रैक जलप्रलय में कई स्थानों पर ध्वस्त हो गया. हजारों श्रद्वालु अपनी जान बचाने के लिए ऊपर पहाड़ी की ओर भागे. जब कई दिनों तक राहत साम्रगी और रेस्क्यू अभियान इस पूरे क्षेत्र में नहीं हुआ तो फिर श्रद्वालुओं और स्थानीय लोगों की मौत होने लगी. आपादा के सामय 16-17 जून के बाद भी लगातार बारिश हो रही थी. 23 जून को निजी हेलीकाप्टर जंगलचट्टी में पहुंचा और श्रद्वालुओं को वहां से गौरीकुंड लाया गया.
रेस्क्यू अभियान खत्म होने के बाद 1-7 सितम्बर, 2013 तक डीआईजी जीएस मार्तोलिया के नेतृत्व में एसटीएफ की टीम केदारनाथ से त्रिजुगीनारायण में मृतकों की खोजबीन में जुट गई. उस समय डीआईजी रहे जीएस मार्तोलिया केदारघाटी में चल रहे राहत बचाव अभियान के प्रमुख थे. जीएस मार्तोलिया बताते है कि उस पूरे पैदल ट्रैक में कही भी पानी नही हैं और उन्हें भी मृतकों के अवशेष खोजबीन में मुश्किलों का सामना करना पड़ा. पुलिस और एसटीएफ ने लापता श्रद्वालुओं के लिए आपरेशन देवविष्णु शुरू किया. आपरेशन देवविष्णु के बारे में बताते हुए जीएस मार्तोलिया ने कहा कि करीब 185 श्रद्वालुओं के नर कंकाल उन्हें मिले और सभी का अंतिम संस्कार बड़ी मुश्किल से किया गया था. कईं जगह तो लकडियां भी नहीं मिली तो फिर घास और छोड़ी झाडियों के साथ कपूर जलाकर किसी तरह दाह संस्कार किया गया. इस पूरे ट्रैक में जब पानी नहीं मिला तो उन्होंने पानी के लिए त्रिजुगीनारायण में संदेश भिजवाया तब जाकर उन्हें पानी नसीब हुआ. वे कहते है यह ट्रैक इतना खतरनाक है कि फॉरेस्ट के पैदल ट्रैक से कई रास्ते निकलते है, जो ट्रैकिंग और स्थानीय लोगों को भी भटका देता है.
3 अक्टूबर को हिटो केदार अभियान में निकला ट्रैकिंग दल भी इसी ट्रैक ने सेरशी गांव ने निकला था. ट्रैकिंग दल सेरशी से झंडीटाप पहुंचा.दूरसे दिन झंडीटाप से खोली पहुचा और तीसरे दिन खोली से त्रिजुगीखर्क में रात्रि विश्राम किया. लेकिन उसी रात भालू ने उनके टैंट में खाने पीने का सामान लिया तो फिर ट्रैकिंग दल को वापिस त्रिजुगीनारायण आना पड़ा. केदारनाथ वनजीव विहार में स्थित इस ट्रैक में बुग्यालों और घने जंगलों से होकर गुजरना होता है. करीब साढ़े चौदह हजार फीट की उंचाई हो होकर गुजरना पड़ता है. जहां सामान्य ट्रैकर को सांस लेने में मुश्किल होती है. साथ ही पानी ना होने से मौत भी हो सकती है. 2013 आपदा के बाद जब श्रद्वालु इसी ट्रैक से बचने के लिए ऊपर की ओर आये तो पानी, ठंड और लगातार हो रही बारिश से उनकी मौत हो गयी. कईं स्थानीय लोग और श्रद्वालु इस डेथ ट्रैक से होते हुए जिंदा भी त्रिजुगीनारायण पहुंचे थे. त्रिजुगीनारायण के युवाओं ने आपदा के दौरान कई श्रद्वालुओं को बचाया था.