कुण्डलिनी जागरण व सहस्त्रार चक्र जागृत होते ही हजार गुना शक्तियां
कुंडलिनी साधना का महत्व हिमालयायूके विशेष आलेख्ा- कुण्डलिनी जागरण व सहस्त्रार चक्र जागृित होने के बाद एक हजार गुना शक्तियां बढ जाती हैं मानव की -कैसे जाग्रत करें सातो चक्र -भारतीय योग शास्त्र के अनुसार मानव शरीर में सात चक्र या शक्ति केन्द्र होते हैं। इन सोए हुए चक्रों को जाग्रत करने का आसान तरीका और इससे होने वाले फायदे। हठ योग की विशेष पद्धतियों से कुंडलिनी जागरण में भी मदद कर सकते हैं. यह एक उन्नत आध्यात्मिक तकनीक नहीं है, लेकिन एक समय की अवधि से अधिक प्रभावी हो सकता है. हठ योग एक प्रशिक्षित शिक्षक के मार्गदर्शन के तहत किया जाना चाहिए.
कुंडलिनी योग के जरिये शरीर में सुप्त शक्तियों को जागृत किया जाता है। और इससे आपको काफी ऊर्जा मिलती है। कुंडलिनी योग ध्यान का ही एक रूप है जो मन, शरीर और ज्ञानेंद्रियों के विभिन्न तकनीकों से मिलकर बना है। आमतौर पर कुंडलिनी ऊर्जा हमारे शरीर में रीढ़ की हड्डी के अंदर घुमावदार सर्प के आकार में सभी चक्रों को जोड़ती हुई उसका प्रतिनिधित्व करती है। इस योग में यौगिक जागृति के लिए जरूरी रीढ़ और एंडोक्राइन सिस्टम (यह हार्मोन और दूसरे रासायनिक तत्वों पर प्रभाव डालता है) दोनों ही भागों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। कुंडलिनी योग की मदद से शरीर के सातों चक्रों को जागृत किया जा सकता है। कुंडलिनी योग ध्यान का ही एक रूप है जो मन, शरीर और ज्ञानेंद्रियों के विभिन्न तकनीकों से मिलकर बना है। आमतौर पर कुंडलिनी ऊर्जा हमारे शरीर में रीढ़ की हड्डी के अंदर घुमावदार सर्प के आकार में सभी चक्रों को जोड़ती हुई उसका प्रतिनिधित्व करती है। इस योग में यौगिक जागृति के लिए जरूरी रीढ़ और एंडोक्राइन सिस्टम (यह हार्मोन और दूसरे रासायनिक तत्वों पर प्रभाव डालता है) दोनों ही भागों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। कुंडलिनी योग की मदद से शरीर के सातों चक्रों को जागृत किया जा सकता है। कुण्डलिनी शक्ति को जगाने में मुद्राएं अपना खास स्थान रखती है। बिना मुद्राओं के कुण्डलिनी शक्ति को जगाना मुश्किल है और कुंडलिनी योगा के द्वारा शरीर की कुंडलिनी शक्ति को जगाया जा सकता है।
कुण्डलिनी वह दिव्य शक्ति है जिससे सब जीव जीवन धारण करते हैं, समस्त कार्य करते हैं और फिर परमात्मा में लीन हो जाते हैं. अर्थात यह ईश्वर की साक्षात् शक्ति है. यह कुदालिनी शक्ति सर्प की तरह साढ़े तीन फेरे लेकर शारीर के सबसे नीचे के चक्र मूलाधार चक्र में स्थित होती है. जब तक यह इस प्रकार नीचे रहती है तब तक हम सांसारिक विषयों की ओर भागते रहते हैं. परन्तु जब यह जाग्रत होती है तो उस समय ऐसा प्रतीत होता है कि कोई सर्पिलाकार तरंग है जिसका एक छोर मूलाधार चक्र पर जुदा हुआ है और दूसरा छोर रीढ़ की हड्डी के चारों तरफ घूमता हुआ ऊपर उठ रहा है. यह बड़ा ही दिव्य अनुभव होता है. यह छोर गति करता हुआ किसी भी चक्र पर रुक सकता है. जब कुण्डलिनी जाग्रत होने लगती है तो पहले मूलाधार चक्र में स्पंदन का अनुभव होने लगता है. यह स्पंदन लगभग वैसा ही होता है जैसे हमारा कोई अंग फड़कता है. फिर वह कुण्डलिनी तेजी से ऊपर उठती है और किसी एक चक्र पर जाकर रुक जाती है. जिस चक्र पर जाकर वह रूकती है उसको व उससे नीचे के चक्रों को वह स्वच्छ कर देती है, यानि उनमें स्थित नकारात्मक उर्जा को नष्ट कर देती है. इस प्रकार कुण्डलिनी जाग्रत होने पर हम सांसारिक विषय भोगों से विरक्त हो जाते हैं और ईश्वर प्राप्ति की ओर हमारा मन लग जाता है. इसके अतिरिक्त हमारी कार्यक्षमता कई गुना बढ जाती है. कठिन कार्य भी हम शीघ्रता से कर लेते हैं.
कुण्डलिनी जागरण के सामान्य लक्षण हैं : ध्यान में ईष्ट देव का दिखाई देना या हूं हूं या गर्जना के शब्द करना, गेंद की तरह एक ही स्थान पर फुदकना, गर्दन का भाग ऊंचा उठ जाना, सर में चोटी रखने की जगह यानि सहस्रार चक्र पर चींटियाँ चलने जैसा लगना, कपाल ऊपर की तरफ तेजी से खिंच रहा है ऐसा लगना, मुंह का पूरा खुलना और चेहरे की मांसपेशियों का ऊपर खींचना और ऐसा लगना कि कुछ है जो ऊपर जाने की कोशिश कर रहा है.
कई बार साधकों को एक से अधिक शरीरों का अनुभव होने लगता है. यानि एक तो यह स्थूल शारीर है और उस शरीर से निकलते हुए २ अन्य शरीर. तब साधक कई बार घबरा जाता है. वह सोचता है कि ये ना जाने क्या है और साधना छोड़ भी देता है. परन्तु घबराने जैसी कोई बात नहीं होती है.
एक तो यह हमारा स्थूल शरीर है. दूसरा शरीर सूक्ष्म शरीर (मनोमय शरीर) कहलाता है तीसरा शरीर कारण शारीर कहलाता है. सूक्ष्म शरीर या मनोमय शरीर भी हमारे स्थूल शारीर की तरह ही है यानि यह भी सब कुछ देख सकता है, सूंघ सकता है, खा सकता है, चल सकता है, बोल सकता है आदि. परन्तु इसके लिए कोई दीवार नहीं है यह सब जगह आ जा सकता है क्योंकि मन का संकल्प ही इसका स्वरुप है. तीसरा शरीर कारण शरीर है इसमें शरीर की वासना के बीज विद्यमान होते हैं. मृत्यु के बाद यही कारण शरीर एक स्थान से दुसरे स्थान पर जाता है और इसी के प्रकाश से पुनः मनोमय व स्थूल शरीर की प्राप्ति होती है अर्थात नया जन्म होता है. इसी कारण शरीर से कई सिद्ध योगी परकाय प्रवेश में समर्थ हो जाते हैं.
आधार चक्र: मूलाधार
मूलाधार चक्र को जगाने के लिए नियमित इस चक्र पर ध्यान लगाना चाहिए। ध्यान लगाते समय “लं” मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। इसके अलावा जीवन में अच्छे कर्मों पर ध्यान देना चाहिए। प्रतिदिन व्यायाम, योगा आदि करना चाहिए। इसे जाग्रत करने से व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद के भाव आते हैं।
स्वाधिष्ठान चक्र
दूसरा चक्र होता है स्वाधिष्ठान जो मूल से थोड़ा-सा ऊपर होता है। अगर इसे जागृत कर लिया जाए तो क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है। इस चक्र को जाग्रत करने के लिए घुटनों के बल सीधे बैठ जाएं और हाथों को अपने जांघों पर रखें। इसके बाद हथेलियों को आपस में एक गोले की तरह जोड़कर चक्र पर ध्यान लगाएं। इस योग के दौरान “वं” मंत्र का उच्चारण करते रहना चाहिए।
मणिपुर चक्र :
नाभि के पास मौजूद चक्र को मणिपुर चक्र कहते हैं।
इस चक्र को जाग्रत करने के लिए घुटने के बल बैठकर हाथों को पेट के पास ले जाकर नमस्कार की मुद्रा में बैठ जाएं। इसके बाद मन ही मन “रं” मंत्र का जाप करते हुए चक्र पर ध्यान लगाना चाहिए।
अनाहत चक्र
हृदय स्थल में स्थित होता है अनाहत चक्र । दिल के पास रहने वाले इस चक्र के प्रभाव से मनुष्य में कला का गुण आता है। ऐसे लोग हमेशा कुछ नया करने की कोशिश करते रहते हैं। इस चक्र को जगाने के लिए योग की मुद्रा में बैठ जाएं और अंगूठे से तर्जनी ऊंगली को छूएं। अब एक हाथ को हृदय पर रखें और एक हाथ को जांघों पर रखे रहें। मन ही मन “यं” मंत्र का जाप करते रहना चाहिए।
विशुद्ध चक्र
यह चक्र गले पर होता है जहां वाणी की देवी मां सरस्वती का वास माना जाता है। इसके जाग्रत होने से मनुष्य में सोलह कलाओं को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है साथ ही मनुष्य पर भूख, प्यास और मौसम के प्रभाव बेहद कम होता है।
इस चक्र को जागृत करने के लिए घुटनों के बल बैठकर दोनों हाथों को जोड़ें और फिर गले के अंत में विद्यमान इस चक्र पर ध्यान लगाएं। ध्यान के दौरान “हं” मंत्र का जाप करते रहना चाहिए।
आज्ञाचक्र
दोनों भौहों के बीच स्थित चक्र को आज्ञाचक्र कहते हैं। इसे बेहद विकसित शक्ति चक्र माना जाता है। इस चक्र को जाग्रत करने के लिए काफी ध्यान और अभ्यास की आवश्यकता होती है। इसके लिए आसन लगाकर शांत स्थान पर बैठ जाना चाहिए और अपनी तीसरी आंख पर ध्यान लगाना चाहिए। योग के दौरान “ऊं” मंत्र का जाप करते रहना चाहिए।
सहस्रार चक्र (pronounce as sahastrar)
मस्तिष्क के मध्य भाग में है अर्थात जहां चोटी रखते हैं वहां सहस्त्रार चक्र होता है। यह चक्र सबसे शक्तिशाली माना जाता है। इसे प्राप्त मनुष्य के लिए संसारिक वस्तुओं का कोई मोल नहीं होता है।
इस चक्र को जाग्रत करने का सर्वोत्तम तरीका होता है किसी गुरु की सहायता से योग करना। गुरु या किसी निरीक्षक की देखरेख में यह योग करने से काफी लाभ होता है। सहस्त्रार चक्र ही नहीं अपितु सभी चक्रों को पाने या जाग्रत करने के लिए गुरु की सहायता लेना लाभदायक होता है।
छठी इंद्री को अंग्रेजी में सिक्स्थ सेंस कहते हैं। इसे परामनोविज्ञान का विषय भी माना जाता है। असल में यह संवेदी बोध का मामला है। छठी इंद्री के बारे में आपने बहुत सुना और पढ़ा होगा लेकिन यह क्या होती है, कहां होती है और कैसे इसे जाग्रत किया जा सकता है यह जानना भी जरूरी है। सिक्स्थ सेंस को जाग्रत करने के लिए वेद, उपनिषद, योग आदि हिन्दू ग्रंथों में अनेक उपाय बताए गए हैं। तो दोस्तों आप हमारे साथ बने रहिये अब हम आपको बताएँगे की इसे कैसे जाग्रत किया जाए और इसके जाग्रत करने का परिणाम क्या होगा।
दोस्तों कहां होती है छठी इंद्री : मस्तिष्क के भीतर कपाल के नीचे एक छिद्र है, उसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं, वहीं से सुषुन्मा रीढ़ से होती हुई मूलाधार तक गई है।
सुषुन्मा नाड़ी जुड़ी है सहस्रकार चक्र से। इड़ा नाड़ी शरीर के बायीं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दायीं तरफ। दोनों के बीच में स्थित है छठी इंद्री। यह इंद्री सभी मनुष्यों में सुप्तावस्था में होती है।
कुंडलिनी योग करने की विधि –
कुंडलिनी योग का अभ्यास करने के लिए सबसे अच्छा वक्त सुबह का होता है।
सबसे पहले दिमाग को अच्छे से स्थिर कर लीजिए, उसके बाद दोनों भौंहों के बीच के स्थान पर ध्यान लगाना शुरू कीजिए।
पद्मासन या सिद्धासन की मुद्रा में बैठकर बाएं पैर की एड़ी को जननेन्द्रियों के बीच ले जाते हुए इस तरह से सटाएं कि उसका तला सीधे जांघों को छूता हुआ लगे।
उसके बाद फिर बाएं पैर के अंगूठे तथा तर्जनी को दाहिने जांघ के बीच लें अथवा आप पद्मासन की मुद्रा कीजिए।
फिर आपने दाएं हाथ के अंगूठे से दाएं नाक को दबाकर नाभि से लेकर गले तक की सारी हवा को धीरे-धीरे बाहर निकाल दीजिए। इस प्रकार से सारी हवा को बाहर छोड़ दें।
सांस को बाहर छोडते हुए दोनों हथेलियों को दोनों घुटनों पर रख लीजिए। फिर अपनी नाक के आगे के भाग पर अपनी नज़र को लगाकर रखिए।
इसके बाद प्राणायाम की स्थिति में दूसरी मुद्राओं का अभ्यास करना चाहिए।
कुंडलिनी शक्ति को जगाने के लिए कुंडलिनी योगा का अभ्यास किया जाता है। इसके लिए कोई निश्चित समय नहीं होता है। कुंडलिनी योगा का अभ्यास कम से कम एक घंटे करना चाहिए।
कुंडलिनी योग के फायदे –
कुंडलिनी योग पाचन, ग्रंथियों, रक्त संचार, लिंफ तंत्रिका तंत्र को बेहतर तरीके से काम करने में मदद करता है।
इस योग का ग्रंथि तंत्र पर सीधा प्रभाव पड़ता है, जिससे दिमाग से तनाव दूर होता है और देखने की क्षमता बढ़ती हैं।
यह ज्ञानेन्द्रियों को मजबूत बनाता है, जिससे सूंघने, देखने, महसूस करने और स्वाद लेने की क्षमता बढ़ती है।
कुंडलिनी योग धूम्रपान और शराब की लत को छुडाने में मदद करता है।
इस योग से आत्मविश्वास बढ़ता है और यह मन को शांति प्रदान करता है।
कुंडलिनी योग नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में बदल देता है, जिससे सकारात्मक नजरिया और भावनाएं उत्पन्न होती है और गुस्सा कम आता है।
कुंडलिनी योग रोग-प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है, जिससे शरीर कई रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।
कुंडलिनी शब्द जो बहुत योगियों और आध्यात्मिक चिकित्सकों द्वारा प्रयोग किया जाता है, किसी भी व्यक्ति के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण अवधारणा आध्यात्मिक प्रबुद्धता और रोशनी की तलाश है. कुंडलिनी रीढ़ के आधार के निकट स्थित पवित्र अग्नि के रूप में सबसे अच्छा समझाया जा सकता. भारी संख्या में पलायन में उग्र नागिन, छंद 7:9-12 और 21:6-8 कुंडलिनी जागृत करने के लिए एक संदर्भ भी है.
कुंडलिनी साधना का महत्व
को कुंडलिनी ऊर्जा उच्च या आध्यात्मिक अनुभवों और उत्तेजनाओं को पंजीकृत करने के लिए मस्तिष्क की कोशिकाओं में मदद करता है. मस्तिष्क, तंत्रिका तंत्र और भौतिक शरीर में सुधार हुआ है और नवीनीकरण. एक व्यक्ति के साथ एक अत्यधिक जागृत कुंडलिनी एक प्रतिभाशाली है, और एक महान आध्यात्मिक नेता बनने की क्षमता है. कुंडलिनी ऊर्जा एक उर्वरक की तरह है. एक व्यक्ति के सकारात्मक और नकारात्मक गुणों अत्यधिक बढ़ाया जब कुंडलिनी जागृत है एक बड़ी डिग्री करने के लिए. इस प्रकार आंतरिक शुद्धि जब एक व्यक्ति एक आध्यात्मिक यात्रा पर embarks आवश्यक है.
कुंडलिनी की संरचना
कुंडलिनी है 7 परत और प्रत्येक परत है 7 उप-परतों और इसलिए वहाँ रहे हैं 49 यह जागरण की डिग्री. यहां तक कि आम लोग उनकी कुंडलिनी जागृत किया, लेकिन एक बहुत छोटे डिग्री करने के लिए. इसलिए सवाल है कि क्या कुंडलिनी जागृत नहीं है लेकिन सवाल यह है क्या डिग्री कुंडलिनी जागृत करने के लिए है.
जुड़वां दिलों ध्यान के माध्यम से कुंडलिनी ऊर्जा की जागृति
को जुड़वां दिलों पर ध्यान कुंडलिनी ऊर्जा को जगाने के लिए एक सुरक्षित और प्रभावी तरीका है. इस ध्यान के रूप में, पहली बार सक्रिय कर रहे हैं, दिल और क्राउन चक्र. को आध्यात्मिक ऊर्जा उसके बाद नीचे रीढ़ आधार करने के लिए बड़ी मात्रा में बहती है. कुंडलिनी ऊर्जा है इस प्रकार जागृत करने के लिए एक उच्च डिग्री के रूप में अच्छी तरह के रूप में विनियमित और उच्च अप करने के लिए लाया मानव शरीर में चक्र और क्राउन चक्र करने के लिए या सहस्रार चक्र. ध्यान के दौरान नीचे धक्का दे दिया जा रहा है अपने सिर की अनुभूति होती है. यह आध्यात्मिक ऊर्जा उतरते है. व्यवसायी ऊर्जा ऊपर रीढ़ की हड्डी वाला अनुभव हो सकता है. यह कुंडलिनी ऊपर बढ़ती है.