28 अगसत-बहुउद्देश्यीय परियोजना पर हस्ताक्षर- त्रिवेन्द्र रावत की बडी उपलब्धि
राजधानी देहरादून जिले में यमुना नदी में अधर में लटकी लखवाड़ बहुउद्देश्यीय परियोजना का निर्माण का रास्ता अब पूरी तरह से साफ हो गया है। इस बाबत मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के प्रयास अब रंग लाते दिख रहे हैं। परियोजना निर्माण में आ रही जल बंटवारे की बससे बड़ी बाधा पर छह राज्यों के बीच फौरी सहमति बन गई है। अब 28 अगसत को संबंधित छह राज्यों के बीच होगा इस बहुउद्देश्यीय परियोजना को लेकर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हो जाएंगे। #बिजली पर पूरा अधिकार उत्तराखंड का होगा, तीन सौ मेगावाट बिजली उत्पादन होगा।
Presented by- हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्तराखण्ड — चन्द्रशेखर जोशी
HIGH LIGHT; परियोेजना से होने वाले सिंचाई तथा जल सम्बन्धी लाभों का बंटवारा दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान तथा हिमाचल प्रदेश के मध्य किया जाएगा # अब 28 अगस्त को उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा,राजस्थान तथा हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गड़करी की मौजूदगी में समझौता पत्र पर हस्ताक्षर # परियोेजना की कुल लागत 3966.51 करोड़ रुपए #अब 28 अगस्त को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल व दिल्ली के मुख्यमंत्री अर्रंवद केजरीवाल समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे। # लगभग चार हजार करोड़ लागत वाली इस परियोजना से तीन सौ मेगावाट बिजली उत्पादन होगा। बिजली पर पूरा अधिकार उत्तराखंड का होगा जबकि पानी छह राज्यों- उत्तराखंड उत्तर प्रदेश हिमाचल प्रदेश हरियाणा दिल्ली व राजस्थान के बीच बांटा जाएगा। परियोजना के तहत 204 मीटर ऊंचा बांध बनाया जाएगा।
लगभग 28 वर्षो से रूकी हुई लखवाड बहुउद्देशीय परियोेजना का निर्माण कार्य मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के अथक प्रयासों से पुनः शीघ्र ही प्रारम्भ होगा। परियोजना को पुनः आरम्भ होना उत्तराखंड के लिये एक एतिहासिक उपलब्धि होगी।
चार दशक पुरानी लखवार बहुउद्देश्यीय राष्ट्रीय परियोजना आखिरकार परवान चढ़ने जा रही है। अगले सप्ताह 28 अगस्त को परियोजना से जुड़े छह राज्यों के मुख्यमंत्री दिल्ली में इस बारे मंक एक समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे। लगभग चार हजार करोड़ लागत वाली इस परियोजना से तीन सौ मेगावाट बिजली उत्पादन होगा। बिजली पर पूरा अधिकार उत्तराखंड का होगा, जबकि पानी छह राज्यों- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली व राजस्थान के बीच बांटा जाएगा। परियोजना के तहत 204 मीटर ऊंचा बांध बनाया जाएगा।
15 फरवरी को दिल्ली में अपर यमुना रिवर बोर्ड की केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी की अध्यक्षता में हुई बैठक में संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच परियोजना पर सहमति बनी थी। सूत्रों के अनुसार, अब 28 अगस्त को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल व दिल्ली के मुख्यमंत्री अर्रंवद केजरीवाल समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे। दिक्कत राजस्थान से आ रही थी, जो नहरों के लिए अतिरिक्त पैसा मांग रहा था। इन मुद्दों को सुलझा लिया गया है। राज्यों में 1994 के समझौते के तहत पानी का बंटवारा होगा।
साल 2008 में राष्ट्रीय परियोजना घोषित हुई थी
इस परियोजना को 1976 में योजना आयोग ने मंजूरी दी थी। दस साल बाद 1986 में पर्यावरणीय मंजूरी मिलने के बाद 1987 में जेपी समूह ने उत्तर प्रदेर्श ंसचाई विभाग के पर्यवेक्षण में 204 मीटर ऊंचे बांध का निर्माण शुरू किया गया। 1992 में जब लगभग 35 फीसदी काम पूरा हो गया तो जेपी समूह पैसा न मिलने को लेकर परियोजना से अलग हो गया। बाद में 2008 में केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया, जिसके तहत 90 फीसद धन केंद्र सरकार खर्च करेगी और बाकी दस फीसदी राज्य करेंगे। बिजली को इससे अलग रखा गया।
परियोजना के तहत बनने वाली पूरी 300 मेगावाट बिजली उत्तराखंड को मिलेगी, जिस पर लगभग 1400 करोड़ रुपये खर्च होंगे। यह खर्च उत्तराखंड उठाएगा। बाकी पैर्सा ंसचाई व पेयजल पर खर्च होगा। दिल्ली को इससे पेयजल मिलेगा, जबकि अन्य राज्यों र्को ंसचाई के लिए पानी मिलेगा।
इस परियोजना को 1976 में योजना आयोग ने मंजूरी दी थी। दस साल बाद 1986 में पर्यावरणीय मंजूरी मिलने के बाद 1987 में जेपी समूह ने उत्तर प्रदेर्श ंसचाई विभाग के पर्यवेक्षण में 204 मीटर ऊंचे बांध का निर्माण शुरू किया गया। 1992 में जब लगभग 35 फीसदी काम पूरा हो गया तो जेपी समूह पैसा न मिलने को लेकर परियोजना से अलग हो गया। बाद में 2008 में केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया, जिसके तहत 90 फीसद धन केंद्र सरकार खर्च करेगी और बाकी दस फीसदी राज्य करेंगे। बिजली को इससे अलग रखा गया।
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