उडीसा ; देवतुल्य संत की निर्मम हत्या के 10 वर्ष
विहिप-केन्द्रीय प्रन्यासी मण्डल एवं प्रबंध समिति संयुक्त अधिवेशन २७, २८, २९ दिसम्बर, २०१७, प्रभुजी इंग्लिश मीडियम स्कूल,
क्रिया योग आश्रम, वी.एस.एस. नगर, भुवनेश्वर-७५१ ००७ (ओडिशा)
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विषय ः स्वामी लक्ष्मणानंद जी की निर्मम हत्या के १० वर्ष बाद भी हत्यारों का न पकडा जाना दुर्भाग्यजनक
पूज्य स्वामी लक्ष्मणानंद जी ओडसा के वनवासी समाज के लिए न केवल विकासपुरुष थे, वे उनकी संस्कृति, अस्मिता, धर्म व संस्कारों के संरक्षक भी थे। ओडसा के वनवासी समाज को शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वाबलम्बन, सामाजिक जागरण, धर्मजागरण आदि द्वारा अपने पैरों पर खडा करने के लिए उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया था। सन्् २००८ में ऐसे महापुरुष की दुर्भाग्यजनक परिस्थितियों में निर्मम हत्या कर दी गई। उनकी हत्या के १० वर्षों के बाद भी वे बर्बर हत्यारे खुलेआम घूम रहे हैं और धर्मविरोधी, राष्ट्रविरोधी षडयन्त्रों को पहले से भी तेज गति से चला रहे हैं। ओडसा का वनवासी समाज राज्य सरकार की इस विफलता से आक्रोषित है। विश्व हिन्दू परिषद का प्रन्यासी मण्डल इन हत्यारों को गिरफ्तार कर सजा दिलाने में राज्य सरकार की असमर्थता पर अपना रोष व्यक्त करता है।
ओड़िशा के वनवासी बहुल फूलबाणी (कन्धमाल) जिलेके के गांव गुरुजंग में 1924 में जन्मे, जो बचपन से ही दु:खी-पीड़ितों की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर देने का संकल्प मन में पालते रहे। गृहस्थ और दो संतानों के पिता होने पर भी अंतत: एक दिन उन्होंने अपने संकल्प को पूरा करने के उद्देश्य से साधना के लिए हिमालय की राह पकड़ ली। 1965 में वे वापस लौटे और गोरक्षा आंदोलन से जुड़ गए। प्रारंभ में उन्होंने वनवासी बहुल फूलबाणी (कन्धमाल) जिले के गांव चकापाद को अपनी कर्मस्थली बनाया। कुछ ही वर्षों में वनवासी क्षेत्रों में उनके सेवा कार्य गूंजने लगे, उन्होंने वनवासी कन्याओं के लिए आश्रम- छात्रावास, चिकित्सालय जैसी सुविधाएं कई स्थानों पर खड़ी कर दीं और बड़े पैमाने पर समूहिक यज्ञ के कार्यक्रम संपन्न कराए। उन्होने पूरे जिले के गांवों की पदयात्राएं कीं। वहां मुख्यत: कंध जनजातीय समाज ही है। उन्होने उस समाज के अनेक युवक-युवतियों को साथ जोड़ा और जगह-जगह भ्रमण किया। देखते-देखते सबके सहयोग से चकापाद में एक संस्कृत विद्यालय शुरू हुआ। जनजागरण हेतु पदयात्राएं जारी रहीं। 26 जनवरी 1970 को 25-30 ईसाई तत्वों के एक दल ने उनके ऊपर हमला किया। एक विद्यालय में शरण लेकर उस खतरे को टाला, लेकिन उस दिन उन्होने यह निश्चय कर लिया कि मतांतरण करने वाले तत्वों और उनकी हिंसक प्रवृत्ति को उड़ीसा से खत्म करना ही है।
सेवा की आड में हिंदुओं का धर्मान्तरण करने वाले धर्म के सौदागर ईसाई मिशनरियों का ओडसा में बहुत पुराना इतिहास है। वे अशिक्षित, निर्धन व सरल वनवासी बंधुओं को भय, प्रलोभन व धोखाधडी के द्वारा न केवल धर्मान्तरण करते हैं अपितु उनकी माततुल्य जमीन पर कब्जा कर सामाजिक संघर्ष और असंतोष भी निर्माण करते हैं। पूज्य स्वामी लक्ष्मणानंद जी के कारण मिशनरियों के षडयंत्रों पर स्वाभाविक रूप से रोक लग गयी थी। इसीलिए उनके मार्ग का कांटा बने स्वामी लक्ष्मणानंद जी के ऊपर कई बार घातक हमले किए गए। ईसाइयों के गढ कन्धमाल जिले के दारिंगबाडी के सिमनबाडी में २३ दिसम्बर २००६ को भीषण हमला हुआ था। प्रभुकृपा से वे बच गए। समाज के आक्रोश के कारण इसकी जांच के लिए राज्य सरकार को पाणिग्रही कमीशन बनाना पडा। परन्तु उसकी रिपोर्ट आने से पहले ही २००८ में जन्माष्टमी के पावन पर्व पर छात्रावास के मासूम बच्चों की उपस्थिति में ही स्वामीजी पर एक बार फिर हमला किया गया जो प्राणघातक सिद्ध हुआ। यह अत्यन्त दुर्भाग्यजनक था कि सरकारी सुरक्षा के रहते हुए भी वे बर्बर हत्यारे स्वामी जी की हत्या कर सुरक्षित भागने में सफल रहे। उडीसा का हिन्दू समाज अपने देवतुल्य संत की निर्मम हत्या से आंदोलित हो गया। सरकारी दमन चक्र के बावजूद वह अपने संघर्ष को आगे बढाता रहा। विहिप उनके इस संघर्ष का अभिनंदन करती है। उस समय सैकडों वनवासियों और हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ताओं पर झूठे केस बनाये गये। तत्कालीन सरकार स्पष्ट तौर पर षडयंत्रकारियों के साथ खडी थी और हिन्दू समाज का दमन कर रही थी। विहिप राज्य सरकार से अपील करती है कि वह उस समय हिन्दू समाज पर बनाये गये सभी केस अविलंब वापस ले।
पिछले लगभग 42 वर्षों से वे इसी क्षेत्र में रहकर वंचितों की सेवा कर रहे थे। उन्होंने चकापाद के वीरूपाक्ष पीठ में अपना आश्रम स्थापित किया। उनकी प्रेरणा से 1984 में कन्धमाल जिले में ही चकापाद से लगभग 50 किलोमीटर दूर जलेसपट्टा नामक घनघोर वनवासी क्षेत्र में कन्या आश्रम, छात्रावास तथा विद्यालय की स्थापना हुई। एक हनुमान मन्दिर के निर्माण का भी संकल्प लिया गया। अब यहां कन्या आश्रम छात्रावास में सैकड़ों बालिकाएं शिक्षा ग्रहण करती हैं। इसी जलेसपट्टा आश्रम में स्वामी लक्ष्मणानंद जी हत्या कर दी गई।
पूज्य स्वामी जी की दुर्दान्त हत्या के बाद क्राइम ब्रांच के द्वारा जांच का नाटक किया गया। हिंदू समाज के राष्ट्रव्यापी आक्रोश के कारण नायडू कमीशन बैठाया गया। वनवासी समाज के द्वारा ही पकडे गए कुछ अपराधियों को दण्डित भी किया गया। परन्तु मुख्य षडयन्त्रकारी व अपराधी इस हत्याकाण्ड के १० वर्ष बाद भी मुक्त विचरण कर रहे हैं। अब उनका साहस बहुत बढ गया है। वनवासी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में हिंदुओं का धर्मान्तरण करने के लिए वे सब प्रकार के हथकण्डों का प्रयोग कर रहे हैं। ओडसा का हिंदू समाज, विशेष तौर पर वनवासी समाज, एक भय के वातावरण में जी रहा है। अब ओडसा का समाज यह विश्वास करने लगा है कि मिशनरियों के ये षडयन्त्र राज्य सरकार के संरक्षण के बिना संभव नहीं है।
विश्व हिंदू परिषद का प्रन्यासी मण्डल ओडसा सरकार से यह मांग करता है कि स्वामीजी के ऊपर हुए आक्रमणों एवं हत्या की जांच के लिए बैठाए गए पाणिग्रही व नायडू कमीशन की रिपोर्ट अविलम्ब सार्वजनिक करें। २००६ में हुए हमलों के दोषियों को यदि तुरंत सजा दे दी जाती तो २००८ में स्वामीजी की हत्या नहीं हो पाती। उनकी हत्या के जघन्य अपराध में प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष संलिप्तता से ओडसा सरकार अपने आपको अलग नहीं कर सकती। इसलिए विहिप की मांग है कि पूज्य स्वामी जी की हत्या की सी०बी०आई० जांच कराई जाए जिससे षडयंत्रकारियों और हत्यारों की पहचान कर उन्हें सजा दिलायी जा सके। हिन्दू समाज व देश को समाप्त करने का षडयंत्र करने वाली इन शक्तियों को अविलम्ब सजा दिलाकर ही वनवासी समाज के आक्रोश को शांत किया जा सकता है तथा ओडसा के शांतिप्रिय व धर्मप्रेमी राज्य को मिशनरियों के राष्ट्रविरोधी और धर्मविरोधी षडयंत्रों से मुक्त कराया जा सकता है। विहिप उडीसा के धर्मप्रेमी समाज का आह्वान करती है कि वह ईसाई मिशनरियों के इन षडयंत्रों को विफल करे जिससे भगवान जगन्नाथ की इस पावन धरती की पवित्रता को सुरक्षित किया जा सके।
प्रस्तावक ः डॉ० बद्रीनाथ पटनायक, कार्याध्यक्ष-पू० उडीसा
दिनांक २८ दिसम्बर, २०१७ अनुमोदक ः श्री अजीत जेना, क्षेत्र मंत्री-गुवाहाटी
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