चीन ने उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे के पार एक बटालियन सैनिकों को उतार दिया
चीन ने उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे के पार अपने एक बटालियन सैनिकों को उतार दिया है। यानी लगभग एक हज़ार चीनी सैनिक भारतीय सरज़मीन लिपुलेख के पास मौजूद हैं।
हिन्दुस्तान टाइम्स ने एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी के हवाले से यह बडी ख़बर दी है।
अख़बार को एक अफ़सर ने कहा, ‘लिपुलेख दर्रा, उत्तरी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में पीपल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों का जमावड़ा हो गया है।’ सेना के अधिकारी ने कहा, ‘लगभग एक हज़ार चीनी सैनिक लिपुलेख दर्रे में तैनात हैं, साफ़ है कि चीन पूरी तरह तैयार है।’ उस अफ़सर ने हिन्दुस्तान टाइम्स से कहा, ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास गतिविधियाँ बढ़ी हुई हैं। चीन लद्दाख के अलावा दूसरे जगह भी अपने सैनिक जमा कर रहा है और ढाँचागत सुविधाएँ विकसित कर रहा है।’
लिपुलेख को लेकर भारत-नेपाल के बीच तनाव है। भारत इसे अपना इलाक़ा मानता है जबकि नेपाल का कहना है कि उसका क्षेत्र है। इस मुद्दे पर भारत-नेपाल के बीच तनाव तो है ही, लेकिन एक तीसरे देश चीन ने अपने सैनिक भेज कर गंभीर संकेत दे दिया है।
लिपुलेख को लेकर भरत-नेपाल में नया विवाद उस समय खड़ा हो गया जब काठमान्डो ने मानसरोवर यात्रा के लिए 80 किलोमीटर लंबी सड़क परियोजना का यह कह कर विरोध किया कि यह उसका इलाक़ा है। भारतीय थलसेना के प्रमुख ने इसके जवाब में कहा था कि लिपुलेख दर्रा भारत में है और भारत अपनी सरज़मीन पर ही सड़क बना रहा है।
उसके बाद नेपाल की संसद ने संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया, जिसमें यह कहा गया कि सरकार नया नक्शा जारी करे। उस नक्शे में लिपुलेख, कालापनी और लिम्पियाधुरा को नेपाल के हिस्से के रूप में दिखाया जाय।
नेपाल 1816 में हुए सुगौली संधि का हवाला देते हुए कहता है कि लिपुलेख और कालापानी उसके इलाक़े हैं। यह संधि ईस्ट इंडिया कंपनी और तत्कालीन नेपाली राजा के बीच हुई थी। इसमें यह कहा गया था कि कालापानी नदी के पूरब का हिस्सा नेपाल का है। लेकिन यह नदी हर साल रास्ता बदलती है जो बहुत ही स्वाभाविक है। इस वजह से सीमा को लेकर विवाद होता रहा है।
अंग्रेजों का कहना था कि काली भारतीय नाम है। यह उस जगह के नाम पर है, जो दो नदियों के मिलने के स्थान से बहुत पहले है और भारत में है। अंग्रेजों का यह भी कहना था कि काली नदी बायन्स नामक इलाक़े के बीच से गुजरती है। यह बायन्स मुग़ल काल में एक परगना (उपज़िला) था और मुग़लों के अधीन था। जिस गुंजी गाँव को मानसरोवर का द्वार माना जाता है वह इस बायन्स परगना में ही था।
भारत और चीन (China) की वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनातनी खत्म करने के प्रयासों के बीच चीन ने उत्तराखंड (Uttarakhand) के लिपुलेख दर्रे (Lipulekh Pass) के पास पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के सैनिकों की एक बटालियन को तैनात कर दिया है. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर लद्दाख सेक्टर (Ladakh Sector) से बाहर यह उन स्थानों में से एक है, जहां पिछले कुछ हफ्तों में चीनी सैनिकों (Chinese Troops) की आवाजाही देखी गई है.
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, मामले से जुड़े अधिकारियों ने उसे इस बारे में जानकारी दी. भारत और चीन के बीच मई की शुरुआत से पूर्वी लद्दाख (Eastern Ladakh) में गतिरोध चल रहा है, जो 15 जून को तब अपने चरम पर पहुंच गया, जब दोनों पक्षों के सैनिकों के बीच 45 सालों में सबसे बड़ी खूनी झड़प (Bloody Clash) हुआ. तीन हफ्ते बाद, दोनों पक्षों ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल और विदेश मंत्री वांग यी के बीच बातचीत के बाद गतिरोध बिंदुओं पर सैनिकों के विघटन और आक्रामकता खत्म करने की प्रक्रिया को शुरू करने पर सहमति व्यक्त की.
गतिरोध बिंदुओं पर सैनिकों की संख्या में कमी आई है, लेकिन अभी भी विघटन जारी है. इस बीच लिपुलेख में तैनात की प्रक्रिया पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह चीनी सेना का संदेश है कि चीनी सैनिक तैयार हैं.
इसके साथ ही, लद्दाख में भारतीय सैन्य अधिकारियों ने चीन की ओर अंदरूनी इलाकों में चीनी सैनिकों की बड़ी संख्या में तैनाती के जरिए उसे अपनी ताकत बढ़ाने के एक बड़ा प्रयास करते भी देखा है, और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर भी चीन ने जोर दिया है. चीनी सैनिकों ने एलएसी पर अपनी तरफ अन्य जगहों पर भी अपनी मौजूदगी बढ़ा दी है.
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