चुनावी पंडित माथापच्ची करने में लगे हुए हैं ;लोकसभा चुनाव परिणाम 2019
केमिस्ट्री यही है कि नरेन्द्र मोदी सरकार के समर्थन में ना तो उत्साह है ना ही नाराजगी है लेकिन अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए सारे चरण के मतदान में कितना उतार-चढ़ाव हुआ है वो भी देखना बेहद जरूरी है, मतलब इस लोकसभा चुनाव में ऊंट किस करवट बदलेगा कहना मुश्किल है. चुनाव अंकगणित हीं नहीं बल्कि केमिस्ट्री भी है. देश में अनगिनत चुनाव हुए लेकिन कोई स्थापित नियम नहीं बन पाया कि कम और ज्यादा मतदान से सरकार की दोबारा वापसी होगी या विपक्ष का परचम लहराएगा. मतदान की माया समझने से पहले ये देख लेते हैं कि पहले चरण में देश में 69.45 फीसदी मतदान हुए जो कि पिछले चुनाव से दशमलव 68 फीसदी ज्यादा है वहीं दूसरे चरण में देश में 69.43 फीसदी मतदान हुए जोकि पिछले चुनाव से मामूली बढ़त है, जबकि तीसरे चरण में 66.06 फीसदी मतदान हुए तो फिर हंगामा क्यों बरपा है कि कम वोटिंग हुई है. राजनीति में जो दिखता है वो होता नहीं है जो होता है वो दिखता नहीं है. इसी तरह चुनाव में ज्यादा या कम मतदान होना भी अनसुलझी पहेली है. इस अनसुलझी पहेली को जो समझाने की कोशिश करते हैं वो खुद उलझ जाते हैं. लोकसभा के तीन चरण के मतदान हो चुके हैं. पहले चरण में हुए मतदान के साथ ही चुनावी पंडित माथापच्ची करने में लगे हुए हैं कम मतदान के क्या मायने और ज्यादा मतदान की क्या पहली है. कम मतदान हुए तो मोदी की लहर नहीं है, अगर ज्यादा मतदान होते तो फिर मोदी की लहर चल रही होती है. अमूमन कहा जाता है कि ज्यादा मतदान होने पर सरकार के लिए खतरे की घंटी है और कम मतदान होने पर सरकार के खिलाफ गुस्सा नहीं हैं लेकिन सौ बात की एक बात ये है कि ना तो ऐसा कोई नियम है और ना ही ऐसा को मापदंड है कि जिसे ताल ठोककर कहा जा सकता है कि ज्यादा और कम मतदान के क्या मायने हैं.
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लोकसभा की ही बात नहीं बल्कि विधानसभा चुनाव की भी बात करते हैं. 1995 से लेकर अभी तक गुजरात में बीजेपी की सरकार है. 1995 के मुकाबले 1998 में वोटिंग में 5 फीसदी की गिरावट हुई फिर भी बीजेपी की सरकार, गुजरात दंगे के बाद भी 2002 में मतदान में 2 फीसदी की बढ़ोतरी हुई, फिर भी बीजेपी सरकार और तो और बीजेपी अपनी जीत के इतिहास में 127 सीटें जीतकर रिकॉर्ड बनाया. 2007 में 2 फीसदी की गिरावट फिर भी बीजेपी की चौथी बार सरकार बनी, अब गौर करने की बात ये है कि 2012 में मतदान में 11 फीसदी की बढ़ोतरी फिर भी बीजेपी सरकार और 2017 में 3 फीसदी की गिरावट फिर बीजेपी सरकार. इससे बेहतर समझा जा सकता है कि मतदान बढ़ने और गिरने से सरकार आने और जाने का पुख्ता सबूत नहीं है. 2004 के लोकसभा चुनाव में करीब डेढ़ फीसदी कम मतदान हुए, अटल बिहारी की सरकार की विदाई हो गयी और मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार को मौका मिला. 2009 मे मामूली गिरावट दशमलव 6 फीसदी हुई लेकिन कांग्रेस की सीटें पिछले चुनाव की तुलना में 60 बढ़ गई.
लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में 117 सीटों पर मतदान पूरा हो गया. तीसरे चरण में करीब 66.4 फीसदी मतदान हुए. जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में इन सीटों पर 70.11 फीसदी वोटिंग हुई थी. इस तरह से करीब 4 फीसदी कम वोट पड़े हैं. पिछले तीन चरणों में कुल 302 सीटों पर मतदान के साथ आधा से ज्यादा चुनाव का सफर पूरा हो गया है. इस बार को लोकसभा चुनाव में वोटिंग ट्रेंड को राजनीतिक दल अपने-अपने नफा और नुकसान के नजरिए से देख रहे हैं. लेकिन मतदाताओं की खामोशी उन्हें बेचैन कर रही है.
तीसरे चरण में सबसे ज्यादा वोटिंग असम में 80.75 फीसदी हुई है. जबकि सबसे कम जम्मू-कश्मीर में 12.86 फीसदी मतदान हुआ है. उत्तर प्रदेश की 10 सीटों पर 61.40 फीसदी मतदान रहा, जो कि 2014 की तुलना में 0.4 फीसदी कम रहा. तीसरे चरण के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के गृह राज्य गुजरात की सभी 26 सीटों पर 63.73 फीसदी वोटिंग हुई.
इसके अलावा केरल की सभी 20 सीटों पर 73.69 फीसदी वोट पड़े हैं. इसी के साथ बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव और शरद यादव सहित कई दिग्गजों के किस्मत का फैसला EVM में कैद हो गया है.
लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में 117 सीटों पर 66.44 फीसदी वोटिंग हुई है. इन सीटों पर 2014 में 70.11 फीसदी और 2009 में 61.8 फीसदी मतदान हुआ था. वोटिंग ट्रेंड को देखें तो 2014 में वोट फीसदी मे बढोत्तरी हुई तो वहीं 2019 में कमी आई है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के पास 63, कांग्रेस के पास 16, बीजेडी के पास 6, सीपीएम के पास 8, एनसीपी 4, सपा के पास 3, आरजेडी के पास 2 और अन्य के पास 15 सीटें थी. 2009 के नतीजे को देखें तो बीजेपी के पास 44, कांग्रेस के पास 38, बीजेडी के पास 5, सीपीएम के पास 6 एनसीपी के पास 3 और अन्य के पास 21 सीटें थी.
देश की कुल 543 लोकसभा सीटों के लिए सात चरण में चुनाव हो रहे हैं. इनमें से तीन चरण का चुनाव पूरा हो चुका है. इसी के साथ 302 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है. पहले चरण की 91, दूसरे चरण की 95 और तीसरे चरण की 117 सीटों पर वोटिंग हुई है. इनमें जम्मू-कश्मीर की अनंतनाग सीट भी शामिल हैं, जहां तीन चरण में चुनाव होने हैं.
लोकसभा चुनाव के लिए 11 अप्रैल को पहले चरण की 20 राज्यों की 91 सीटों पर करीब 60 फीसदी लोगों ने वोट डाला. 2014 में इन्हीं 91 सीटों पर 70.79 फीसदी मतदान हुए थे. ये पिछली बार की तुलना में करीब 10 फीसदी कम है. पहले चरण की जिन 91 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हुई. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 32 सीटें जीतने में सफल रही थी. जबकि कांग्रेस के पास महज 7 सीटें जीती थी. इसके अलावा 16 सीटें टीडीपी के पास, 11 टीआरएस, 9 सीटें वाईएसआर कांग्रेस, 4 सीटें बीजेडी और 12 सीटें अन्य दलों ने जीती थी. ऐसे में 10 फीसदी कम वोटिंग मोदी के लिए बेचैनी का सबब बनेगी या फिर विपक्ष के लिए एक बार और झटका साबित होगी.
लोकसभा चुनाव के लिए 18अप्रैल को दूसरे चरण के 12 राज्यों की 95 सीटों पर करीब 68 फीसदी लोगों ने मतदान किया था. इन 95 सीटों पर 2014 में 65 फीसदी वोटिंग पड़ी थी. पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में 3 फीसदी अधिक वोट पड़े हैं. जबकि 2009 के चुनाव में 62.49 फीसदी वोट पड़े थे.
दूसरे चरण की जिन 95 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हो चुकी है, इन्हीं सीटों पर 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 27 सीटें जीतने में सफल रही थी. जबकि एनडीए के पास 64 सीटें थी. वही, कांग्रेस के पास महज 12 सीटें जीती थी. इसके अलावा 4 सीटें बीजेडी, 2 सीटें जेडीएस, 2 सीटें आरजेडी, 1 सीटें टीएमसी, एक जेडीयू और 6 सीटें अन्य को मिली थी. वहीं बीजेपी की सहयोगी एआईएडीएमके के पास 36 सीटें और शिवसेना के पास 4 सीटें थी.
लोकसभा चुनाव 2019 में तीन चरण का चुनाव पूरा हो गया है आर चार चरणों में 241 सीटों पर वोटिंग होनी है. इसका मतलब साफ है कि आधे से ज्यादा सीटों पर चुनाव का सफर पूरा हो चुका है. पहले चरण की वोटिंग कम होने के बाद बाकी तीन चरणों में वोटिंग फीसदी में इजाफा हुआ है. 2019 के लोकसभा चुनाव के वोटिंग ट्रेंड में सियासी पार्टियां अपने-अपने पक्ष में बता रही हैं.
लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में मंगलवार को उत्तर प्रदेश में जिन 10 सीटों पर मतदान हुआ है, उनमें से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को अपने चार सीट गंवाने का खतरा हो सकता है और अगर 2014 की वोटिंग का ही पैटर्न इस बार दोहराया तो वह समाजवादी पार्टी (सपा) से तीन सीट खींचने में समर्थ नहीं हो सकता है।
इन 10 सीटों में से पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा सात सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी, जबकि तीन सीटें कद्दावर नेता मुलायम सिंह के घराने की झोली में गई थीं। अगर सपा और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को 2014 में मिले मतों को जोड़ दिया जाए तो भाजपा के लिए कम से सात सीटों में से कम से कम चार सीटों पर जीत हासिल करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
दरअसल, इस बार सपा और बसपा के बीच गठबंधन है। वोटों के अंकगणित को देखें तो गठबंधन से अलग चुनाव लड़ रही कांग्रेस भी भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी करेगी। भाजपा को जिन चार सीटों पर कड़ी चुनौती मिल रही है उनमें रामपुर, संभल, मुरादाबाद और आंवला शामिल हैं। रामपुर में नेपाल सिंह ने सपा, बसपा और कांग्रेस को शिकस्त देकर 2014 में 3,58,616 वोट हासिल किया था। उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी सपा के नसीर अहमद खान को 3,35,181 मत मिले थे, जबकि बसपा प्रत्याशी अकबर हुसैन को 81,006 मत मिले थे। अगर, बसपा और सपा के मतों को जोड़ दिया जाए तो भाजपा को मिले मतों से ज्यादा हो जाता है, जबकि कांग्रेस के नवाब काजीम अली खान को 1,56,466 वोट मिले थे। इस बार रामपुर में तीनों दलों ने अपने नए उम्मीदवार उतारे हैं। भाजपा ने सपा की सांसद रह चुकी जया प्रदा को रामपुर से अपना प्रत्याशी बनाया है जिनका मुकाबला महागठबंधन के उम्मीदवार आजम खान से है। वहीं, कांग्रेस ने इस सीट से संजय कपूर को चुनाव मैदान में उतारा है।
संभल में भी कहानी कुछ ऐसी ही है, जहां भाजपा के सत्यपाल सिंह को 2014 में 3,60,242 मत मिले थे और वह बहुत कम अंतर से चुनाव जीते थे। दूसरे स्थान पर रहे सपा के शफीक-उर-रहमान बराक को 3,55,068 मत मिले थे, जबकि बसपा के अकील-उर-रहमान खान को 2,52,640 मत मिले थे। मुरादाबाद में भाजपा के कुंवर सर्वेश कुमार को 4,85,224 मत मिले थे और उन्होंने सपा के एस. टी. हसन को पराजित किया था जिनको 3,97,720 मत मिले थे।
बसपा के हाजी मुहम्मद याकूब को भी 1,60,945 मत, जबकि कांग्रेस की बेगम नूर बानो उर्फ मेहताब को सिर्फ 19,732 मत मिले थे। इस बार भाजपा और सपा ने क्रमश: सर्वेश कुमार और एस.टी. हसन को दोबारा चुनाव मैदान में उतारा है। आंवला में भाजपा के धर्मेद्र कुमार 4,09,907 मत हासिल कर 2014 में विजयी रहे थे, जबकि सपा के कुंवर सर्वराज सिंह को 2,71,478 मत मिले थे।
वहीं, बसपा की सुनीता शाक्य को 1,90,200 मत मिले थे। दोनों को मिलाने से उनके मतों की संख्या भाजपा के मुकाबले काफी अधिक हो जाती है। वहीं, पीलीभीत, बरेली और एटा में सपा और बसपा की एकजुट शक्ति भाजपा को शिकस्त देने में काफी प्रतीत नहीं होती है। उधर, मैनपुरी, फिरोजाबाद और बदायूं में सपा का पलड़ा भारी है। ये तीनों सीटें मुलायम सिंह परिवार के गढ़ हैं।
एक झलक उत्तर प्रदेश के विधानसभा का भी देख लेत हैं. 2007 के विधानसभा चुनाव में पिछले चुनाव के मुकाबले 8 फीसद कम मतदान हुए लेकिन बीजेपी बेदखल हो गई और मायावती की जीत हुई थी. अगले ही चुनाव यानि 2012 में 13 फीसदी ज्यादा मतदान हुए, मायावती की जगह अखिलेश यादव की ताजपोशी हुई वहीं 2017 के चुनाव में करीब ड़ेढ़ फीसदी ज्यादा मतदान हुआ कि बीजेपी की शानदार-जानदार जीत हुई. इसका मतलब साफ है कि ज्यादा मतदान और कम मतदान होने से किसकी जीत होगी और किसकी हार होगी कहना मुश्किल है.
गुजरात नहीं बिहार और यूपी के विधानसभा चुनाव के मतदान पर एक निगाह डालते हैं. बिहार में 2000 के मुकाबले 2005 फरवरी के चुनाव में 16 फीसदी मतदान कम हुए और पहली बार लालू यादव-राबड़ी देवी के 15 साल के शासन का खात्मा हो गया. इतने मतदान कम होने पर चौथी बार आरजेड़ी की सरकार बननी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 2010 के विधानसभा चुनाव में 7 फीसद ज्यादा मतदान हुआ लेकिन फिर भी नीतीश कुमार के नेतृत्व में जेडीयू और बीजेपी की सरकार आईं और 2015 के विधानसभा में 4 फीसदी मतदान ज्यादा हुए लेकिन फिऱ नीतीश के नेतृत्व में जेडीयू और आरजेड़ी की सरकार बनी.