पिथौरागढ़ ; मां बगलामुखी जी की 36 दिवसीय निराहार महासाधना शुरू
महामाया पीताम्बरा देवी (बगलामुखी देवी) की साधना # *कठोर साधना में लीन हुए सत्य साधक* #आगामी 20 मार्च को 6 दिवसीय साधना पूर्ण होने के अवसर पर विशाल हवन व भंडारे का आयोजन #मां बगलामुखी जी की साधना करने से आपदाओं का निवारण
*पिथौरागढ़ जनपद के सेराकोट के समीप बाबा मलयनाथ.मंदिर में गुरु जी ने शुरू की मां बगलामुखी जी की 36 दिवसीय निराहार महासाधना*..
सिराकोट मन्दिर डीडीहाट शहर के नजदीक एक ऊंची चोटी पर स्थित है…..जहां से सैकडों किलोमीटर दूर तक के पहाडों तथा हिमालय पर्वत के मनोहारी छटा बिखरी है…. राजनीति और सिद्वि के लिए विशेष रूप से जाना जाता है माई पीताम्बरा की साधना# मां पीताम्बरा बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवी महाविद्या है।
हिमालयायूके न्यूज पोर्टल की विशेष रिपोर्ट- चन्द्रशेखर जोशी मुख्य सम्पादक
*पिथौरागढ(सेराकोट)*। जय मां पीतांबरी साधना एवं दिव्य योग ट्रस्ट के संस्थापक सत्य साधक श्री विजेंद्र पांडे गुरु जी ने पिथौरागढ़ जनपद के सेराकोट स्थित भूतभावन भगवान भोलेनाथ के प्राचीन मंदिर बाबा मलयनाथ मंदिर में लोकमंगल की कामना को लेकर मां बगलामुखी जी की 36 दिन की निराहार कठोर साधना शुरू कर दी है। आगामी 20 मार्च को गुरु जी की 36 दिवसीय साधना पूर्ण होने के अवसर पर बाबा मलयनाथ.मंदिर में विशाल हवन व भंडारे का आयोजन किया जाएगा। इससे पूर्व लोकमंगल के कल्याण के लिए सत्य साधक गुरुजी शीतला माता मंदिर रानीबाग, द्वाराहाट के दूनागिरी शक्तिपीठ, बागेश्वर के मां भद्रकाली शक्तिपीठ, गढ़वाल मंडल के भीलेश्वर महादेव, कालीशिला शक्तिपीठ समेत फलाहारी आश्रम व सोनपथरी आश्रम, राप्ती नदी के तट पर 36 दिवसीय निराहार कठोर साधनाएं कर चुके हैं। गुरुजी का मानना है कि मां बगलामुखी जी की साधना करने से सूखा ,अकाल ,भूकंप, भूस्खलन, अकाल मौत समेत तमाम देवी आपदाओं का निवारण होता है।
www.himalyauk.org
अपरम्पार है मां पीताम्बरी की महिमां*..* *विजेन्द्र गुरु* ????
राजेन्द्रपन्त ‘रमाकान्त’ की कलम – www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal)
डीडीहाट।डीडीहाट के मलयनाथ मंदिर में छत्तीस दिन की घोर साधना में लीन माई पीताम्बरी के सत्य साधक * * ????श्री विजेन्द्र पाण्डे गुरुजी का कहना है बगलामुखी देवी को ही पीताम्बरी देवी अथवा पीताम्बरा देवी कहा जाता है। यह देवी सृष्टि की दश महाविद्याओं में से एक मानी जाती हैं। तंत्रशास्त्र में इस देवी को विशेष महत्व दिया गया है। अपनी उत्पत्ति के समय यह देवी पीले सरोवर के ऊपर पीले वस्त्रों से सुशोभित अद्भुत कांचन आभा से युक्त थी। इसीलिए साधकों ने इस देवी को ‘पीताम्बरी’ अथवा ‘पीताम्बरा’ देवी के नाम से भी सम्बोधित किया है* ????। इस तरह यही बगलामुखी देवी पीताम्बरी देवी के रूप में जगत में पूजित, वन्दित एवं सेवित हैं।श्री राम पर भी इनकी असीम कृपा थी
उन्होंनं कहा एक पौराणिक प्रसंगाानुसार जब दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया तो सती अत्यधिक क्रोधित हो उठी। सती के रौद्र रूप को देख कर भगवान शिव अत्यधिक विचलित हो गये और इधर-उधर भागने लगे। तब सहसा दशों दिशाओं में सती का विराट स्वरूप उद्घाटित हो गया। भगवान शिव ने जब देवी से पूछा कि वे कौन हैं, तो विराट स्वरूपा देवी सती ने दश नामों के साथ अपना परिचय दिया जो दश महाविद्याओं ने रूप में जगत प्रसिद्ध हुई।
एक अन्य पौराणिक कथानुसार ‘कृत’ युग में सहसा एक महाप्रलयंकारी तूफान उत्पन्न हो गया। सारे संसार को ही नष्ट करने में सक्षम उस विनाशकारी तूफान को देख कर जगत के पालन का दायित्व संभालने वाले भगवान विष्णु चिन्तित हो उठे। श्री हरि ने सौराष्ट्र के हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे महात्रिपुर सुन्दरी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप आरम्भ कर दिया। भगवान के तप से प्रसन्न होकर तब उस श्री विद्या महात्रिपुर सुन्दरी ने बगलामुखी रूप में प्रकट होकर उस वातक्षोभ (विनाशकारी तूफान) को शान्त किया और इस तरह संसार की रक्षा की। ब्रह्मास्त्र रूपा श्री विद्या के अखण्ड तेज से युक्त मंगल चतुर्दशी की मकार कुल नक्षत्रों वाली रात्रि को ‘वीर रात्रि’ कहा गया है, क्योंकि इसी रात्रि के दूसरे पहर में भगवती श्री बगलामुखी देवी का आभिर्भाव बताया जाता है* ????। यथा-
अथ वचामि देवेशि बगलोत्पत्ति कारणम्।
पुराकृत युगे देवि वात क्षोभ उपस्थिते।।
चराचर विनाशाय विष्णुश्चिन्ता परायणः।
तपस्यया च संतुष्टा महात्रिपुर सुन्दरी।।
हरिद्राख्यं सरो दृष्ट्वा जलक्रीड़ा परायणा।
महाप्रीति हृदस्थान्ते सौराष्ट्र बगलाम्बिका।।
श्रीविद्या सम्भवं तेजो विजृम्भति इतस्ततः।
चतुर्दशी भौमयुता मकारेण समन्विता।।
कुलऋक्ष समायुक्ता वीररात्रि प्रकीर्तिता।
तस्या मेषार्धरात्रि तु पीत हृदनिवासिनी।।
ब्रह्मास्त्र विद्याा संजाता त्रैलोक्यस्य च स्तंभिनी।
तत् तेजो विष्णुजं तेजो विधानुविधयोर्गतम्।।
श्री पाण्डेय का कहना है देवी बगलामुखी की महिमा अपरम्पार है
आज के भौतिक युग में सर्वत्र द्वन्द एवं संघर्ष का वातावरण व्याप्त है। जीवन में उन्नति करने के लिए स्वस्थ स्पर्धा के स्थान पर ईर्ष्या, रागद्वेष और घृणा का भाव अधिक प्रभावी है। परिणामस्वरूप हर तरफ अशान्ति, अभाव, लड़ाई-झगड़े आपराधिक गतिविधियों तथा पापाचार का बोलबाला है। जनसामान्य में असुरक्षा का भाव घर गया है। अधिकांश लोग परेशान व विचलित हैं। ऐसी परिस्थिति में जो कोई भी सुख व शान्ति की इच्छा रखते हैं, वे अन्ततः भगवान के शरण में जाना ही श्रेयष्कर मानते हैं।
मॉ भगवती बगलामुखी ममतामयी हैं, करुणामयी हैं तथा दयामयी हैं। ऐसी विषम स्थितियों में भगवती बगलामुखी देवी की शरण ही सबसे सरल व प्रभावी मानी गयी है। शास्त्रों में कहा गया है-‘बगलामुखी देवी की शरणागति भक्तों को सहारा व साहस प्रदान करती है तथा सभी प्रकार के संशयों, दुविधाओं एवं खतरों से निर्भय कर देती है। यह एक सर्वविदित मान्यता है कि मनुष्य को तभी शान्ति की अनुभूति होती है, जब वह अपनी सुरक्षा के प्रति आश्वस्त हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति की यह परम् अभिलाषा होती है कि उसे सामाजिक सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा तथा शत्रुओं से सुरक्षा प्राप्त हो। शास्त्रकारों ने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए, विजय श्री का वरण करने के लिए तथा अपने प्रभाव व पराक्रम में बृद्धि करने के लिए * * ????भगवतीबगलामुखी देवी की साधना को सर्वाधिक महत्वपूर्ण बताया है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि सभी दश महाविद्याओं की सिद्धि के परिणाम अत्यधिक सुखद एवं चमत्कारिक होते हैं। यद्यपि साधना विधि जटिल है और इसीलिए साधारण साधक इस साधना में रुचि नहीं लेते, इसीलिए दुर्लभ एवं चमत्कारिक लाभों से सर्वथा वंचित रहते हैं। अनेकानेक जटिलताओं के बावजूद जो साधक भगवती बगलामुखी की साधना सम्पूर्ण श्रद्धा व विश्वास से करते हैं, वे स्वयम् तो लाभान्वित होते ही हैं,दूसरों को भी लाभ पहुंचाते हैं* ????।
अनेक प्राचीन वैदिक संहिताओं तथा धर्म ग्रन्थों में महाविद्या बगलामुखी देवी के स्वरूप, शक्ति व लीलाओं का अत्यन्त विषद वर्णन मिलता है। उपनिषदों में जिसे ब्रह्म कहा गया है, उसे भी इस शक्ति से अभिन्न माना गया है। यानी ब्रह्म भी शक्ति के साथ संयुक्त होकर ही सृष्टि के समस्त कार्यों को कर पाने में समर्थ हो पाता है। इसीलिए तो शक्ति तत्व की उपासना, वंदना व साधना को मनुष्य मात्र के लिए ही नहीं अपितु देवताओं के लिए भी परम् आवश्यक बताया गया है। इसी शक्ति तत्व में नव दुर्गा तथा सभी दश महाविद्याएं समाहित हैं, जो सृष्टि के कल्याण के लिए अनेकानेक लीलाओं का सृजन करती हैं। दश महाविद्याओं में भगवती बगलामुखी को पंचम शक्ति के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। यथा-
काली तारा महाविद्या षोडसी भुवनेश्वरी।
बाग्ला छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा।।
मातंगी त्रिपुरा चैव विद्या च कमलात्मिका।
एता दश महाविद्या सिद्धिदा प्रकीर्तिता।।
कृष्ण यजुर्वेद अन्तर्गत ‘काठक संहिता’ में मॉ भगवती बगलामुखी का बड़ा ही मोहक तथा सुन्दर वृतान्त मिलता है-
सभी दिशाओं को प्रकाशित करने वाली, मोहक रूप धारण करने वाली ‘विष्णु पत्नी’ वैष्णवी महाशक्ति त्रिलोक की ईश्वरी कही जाती है। इसी को स्तम्भनकारिणी शक्ति, नाम व रूप से व्यक्त एवं अव्यक्त सभी पदार्थों की स्थिति का आधार व पृथ्वी रूपा कहा गया है। भगवती बगलामुखी इसी स्तम्भन शक्ति की अधिष्ठात्री दवी हैं।
बगलामुखी देवी को जन सामान्य ‘बगुला पक्षी’ के मुखाकृति वाली देवी समझ बैठते हैं, जबकि यह बगुला की मुखाकृति वाली देवी नहीं हैं। पुरातन ग्रन्थों में इस देवी को ‘बल्गामुखी’ अर्थात अखण्ड व असीम तेजयुक्त मुखमण्डल वाली देवी कहा गया है। कालान्तरण के साथ साधकों ने अपनी सुविधानुसार देवी को बगलामुखी नाम से पूजना आरम्भ कर दिया तथा बाद के ग्रन्थों में भी इसका इसी नाम से उल्लेख किया जाने लगा और यही नाम जग प्रसिद्ध हो गया। समाज में कई साधक ऐसे भी देखे जाते हैं जो आम व्यवहार में इस देवी को भगवती बगुलामुखी नाम से भी सम्बोधित करते हैं। इसलिए नये भक्त शुरुआत में महामाया बगलामुखी को बगुला नामक पक्षी के रूप वाली देवी समझने की भूल कर बैठते हैं।
इस बात पर संशय की जरा भी गुंजाइश नहीं है कि भगवती बगलामुखी देवी की श्रद्धा व विश्वास के साथ आराधना करने वाले साधक अपने विरोधियों तथा प्रतिद्वदियों पर सदैव विजय प्राप्त करने में समर्थ हो जाते हैं और दुखियों के दुःख दूर करने में भी सक्षम हो जाते हैं। आमतौर पर असाध्य रोगों व संकटों से छुटकारा पाने के लिए, दूसरों को अपने अनुकूल बनाने के लिए, हर तरह की विघ्न बाधाएं शान्त करने के लिए तथा नवग्रहों की शान्ति के लिए मॉ भगवती बगलामुखी का विधिपूर्वक किया जाने वाला अनुष्ठान अत्यधिक प्रभावशाली एवं तत्काल फलदायी माना गया है* ????अनुष्ठान या उपासना मत्र, तंत्र अथवा यंत्र किसी भी माध्यम से सम्पन्न करने पर यह देवी त्वरित व चमत्कारिक फल प्रदान करती हैं। देवी के साधक यह भी कहते हैं कि साधना यदि मंत्र व यंत्र का प्रयोग करते हुए की जाये तो इसमें सर्वाधिक सुखद एवं विशेष प्रभाव की अनुभूति होती है। फिर लोक कल्याण की भावना से की जाने वाली साधना का तो कहना ही क्या, देवी ऐसे साधकों पर शीघ्र ही प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। इस सम्बन्ध में ग्रन्थकार कहते हैं-
‘बगला सर्वसिद्धिदा सर्वान कामानवाप्नुयात’ अर्थात देवी बगलामुखी का पूजन, वन्दन तथा स्तवन करने वाले भक्त की हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
उन्होने कहा कि साधना की पात्रता में महामाया पीताम्बरा देवी (बगलामुखी देवी) की साधना यूं तो कोई भी व्यक्ति कर सकता है,परन्तु इस सच्चाई को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है कि किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए पात्रता अथवा योग्यता का होना परम आवश्यक है। इसीलिए भगवती पीताम्बरा देवी (बगलामुखी) के साधक में भी साधना करने के लिए न्यूनतम् पात्रता का होना अत्यावश्यक है। इसमें सर्वप्रथम योग्यता है-
अखण्ड विश्वास। महापुरुषों नेकहा है किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए कर्ता के मन में अखण्ड विश्वास का होना बहुत आवश्यक है। शास्त्र कहते है -‘विश्वासम् फलदायकम्’ वास्तव में अखण्ड विश्वास किसी भी साधना के लिए सुन्दर उर्वरा भूमि की तरह है।
साधक को अपनी क्षमता, आवश्यकता, परिस्थिति तथा सांसारिक बंधनों को ध्यान में रखकर ही बगलामुखी देवी की साधना की ओर कदम बढ़ाने चाहिए। किसी भी तरह के संशय, अविश्वास अश्रद्धा या फिर दुविधा की स्थिति में की गयी साधना निष्फल होने के साथ ही कष्टकारी भी हो सकती है। साधना के लिए पात्रता की दृष्टि से वाणी की शुद्धता का भी अपना विशिष्ट महत्व है। साधक को हर परिस्थिति में मधुर भाषी होना चाहिए। कठोर वाणी किसी भी खतरनाक तथा धारदार हथियार से अधिक घाव कर देती है। हथियार से घायल व्यक्ति का उपचार सम्भव है, लेकिन कठोर वाणी तो हृदय का ही छेदन कर डालती है। इसीलिए तो देवी के साधकों के लिए जहां तक सम्भव हो मौन रहने का निर्देश है।
HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND (www.himalayauk.org)
Leading Digital Newsportal; Available in FB, Twitter, whatsup & All Social Media.
Mail; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030