मां पीताम्बरा-श्रीबगलामुखी शक्तिपीठ -4,5,6 April 23 -प्राण प्रतिष्ठा समारोह हेतु आपका निमंत्रण-Click Here

श्री बगुला मुखी- पीतांबरा महा माई के भव्य मंदिर निर्माण की प्रेरणा मुझ साधारण इंसान को महामाइ ने दी थी,,, भव्य भूमि पूजन हुआ,, फिर जीवन मे अनेक झंझावात आये और आखिर APRIL  23 मे दिव्य, अलौकिक, सुंदर मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ,, अब देवी देवताओ के साथ महा माई के विराजने और सौंदर्यीकरण का कार्य प्रगति पर है, जल्द 3 दिवसीय प्राण प्रतिष्ठा समारोह घोषित होगा, ज्ञात हो कि यहां भी मॉ पीताम्‍बराश्री बगुलामुखी शक्‍तिधाम बनाने के लिए भूमि पुजन गुरूजी के आशीर्वाद से हुआ था, चंद्रशेखर जोशी मुख्य सेवक Mob. 9412932030

मां पीतांबरा राजसत्ता की देवी —अटल बिहारी वाजपेयी और इंदिरा गांधी, पीवी नरसिम्हा, राजमाता विजयाराजे सिंधिया पूर्व राष्ट्रपति प्रण्ब मुखर्जी से लेकर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह समेत कई बड़े दिग्गज नेताओं सहित देश की कई हस्तियां इनकी भक्त रही हैं. सन् 1962 में जब भारत और चीन आमने-सामने खड़े हुए थी तो पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने दतिया में स्थित पीतांबरा से मदद मांगी थी जिसके बाद 11वें दिन ही युद्ध पर विराम लग गया था. उस वक्त युद्ध के दौरान मां पीतांबरा के स्वामी जी ने प्रधानमंत्री नेहरू की गुजारिश पर देश की रक्षा को ध्यान में रखते हुए मां बगलामुखी का 51 कुंडीय महायज्ञ कराया था. जिसके बाद 11वें दिन अंतिम आहुति के साथ चीनी सेनाएं वापस लौट गई थीं.

शुरू होना है-

#इस शक्ति के सूत्र विज्ञान से हजारों मील दूर बैठे व्यक्ति का आकर्षण किया जा सकता है# देवी बगलामुखी तंत्र की देवी है। महामारी और दुश्मनों पर विजय राजयोग में विशेष फलदायी है बगलामुखी माता की पूजा
मां बगलामुखी को प्रसन्न करने के लिए ‘ह्रीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा।’ विशेष रूप से मां का पूजन शत्रु पर विजय, राजनीतिक जीत, बच्चों की शिक्षा, मुकदमों में विजय के लिए किया जाता है। इनके पूजन से भक्त को उच्च पद प्राप्त होता है। उच्च पदस्थ अधिकारी, नेता, अभिनेता मां पीतांबरा की असीम अराधना से विजयश्री प्राप्त करते हैं। सामान्य से उच्च पदस्थ व्यक्ति इनका स्मरण करने पर शत्रु का विनाश कर देता है। शत्रुओं से त्रस्त हैं चिंतित हैं तो मां पीतांबरा आपका कल्याण करेंगी। यह देवी राजयोग की देवी हैं। सत्ता-असत्ता इनके अधीन हैं। इसलिए नेता भी इनकी शरण में जाते हैं। देवी कल्याण की देवी हैं। इनको अन्याय पसंद नहीं। यह न्याय की देवी हैं। अधर्म, पाप और अनुचित कामना इनको पसंद नहीं। कैसा भी संकट आये, यह उनको दूर कर देती हैं।
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‘ह्मीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्मीं ॐ स्वाहा।’# शांति कर्म में, धन-धान्य के लिए, पौष्टिक कर्म में, वाद-विवाद में विजय प्राप्त करने हेतु तथा शत्रु नाश के लिए देवी उपासना व देवी की शक्तियों का प्रयोग किया जाता हैं। देवी का साधक भोग और मोक्ष दोनों ही प्राप्त कर लेते हैं। # विश्व में इनके सिर्फ तीन ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर हैं, #मां बगलामुखी के तीन ही शक्तिपीठ प्रमुख है- दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश) में हैं। दतिया में पीतांबरा पीठ है।  बगलामुखी देवी का प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में माना जाता है। कहते हैं कि हल्दी रंग के जल से इनका प्रकाट्य हुआ था। इसी कारण माता को पीतांबरा कहते हैं। पीताम्बरा देवी की मूर्ति के हाथों में मुदगर, पाश, वज्र एवं शत्रुजिव्हा है। यह शत्रुओं की जीभ को कीलित कर देती हैं। मुकदमे आदि में इनका अनुष्ठान सफलता प्राप्त करने वाला माना जाता है। इनकी आराधना करने से साधक को विजय प्राप्त होती है। शुत्र पूरी तरह पराजित हो जाते हैं। देवी त्रिनेत्रा हैं, मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती है, पीले शारीरिक वर्ण युक्त है, देवी ने पीला वस्त्र, आभूषण तथा पीले फूलों की माला धारण की हुई है। इसीलिए उनका एक नाम पीतांबरा भी है। कहते हैं कि देवी बगलामुखी, समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय द्वीप में अमूल्य रत्नों से सुसज्जित सिंहासन पर विराजमान हैं। देवी ने अपने बाएं हाथ से शत्रु या दैत्य के जिह्वा को पकड़ कर खींच रखा है तथा दाएं हाथ से गदा उठाए हुए हैं, जिससे शत्रु अत्यंत भयभीत हो रहा है। कई स्थानों में देवी ने मृत शरीर या शव को अपना आसन बना रखा है तथा शव पर ही आरूढ़ हैं तथा दैत्य या शत्रु की जिह्वा को पकड़ रखा हैं। यह रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं।

श्री पीताम्बरा पीठ मध्य प्रदेश राज्य के दतिया शहर में स्थित एक हिंदू मंदिर परिसर (एक आश्रम सहित) है। पीठ, मध्य प्रदेश के दतिया शहर में स्थित है, सबसे निकटमत हवाई अड्डे में ग्वालियर लगभग 75 किमी और झांसी 29 किमी दूर स्थित है। इसके अलावा यह ट्रेन मार्ग से भी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और आश्रम दतिया रेलवे स्टेशन से लगभग 3 किमी दूर है।
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मां बगलामुखी जी आठवीं महाविद्या हैं। इनका प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौरापट क्षेत्र में माना जाता है। हल्दी रंग के जल से इनका प्रकट होना बताया जाता है। इसलिए, हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं। इनके कई स्वरूप हैं। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। इनके भैरव महाकाल हैं। मां बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं। मां बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है. देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए। प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। उनमें से एक है बगलामुखी। मां भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है।

मां बगलामुखी के तीन ही शक्तिपीठ प्रमुख है- दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश) में हैं। दतिया में पीतांबरा पीठ है।  बगलामुखी देवी का प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में माना जाता है। कहते हैं कि हल्दी रंग के जल से इनका प्रकाट्य हुआ था। इसी कारण माता को पीतांबरा कहते हैं। पीताम्बरा देवी की मूर्ति के हाथों में मुदगर, पाश, वज्र एवं शत्रुजिव्हा है। यह शत्रुओं की जीभ को कीलित कर देती हैं। मुकदमे आदि में इनका अनुष्ठान सफलता प्राप्त करने वाला माना जाता है। इनकी आराधना करने से साधक को विजय प्राप्त होती है। शुत्र पूरी तरह पराजित हो जाते हैं। देवी त्रिनेत्रा हैं, मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती है, पीले शारीरिक वर्ण युक्त है, देवी ने पीला वस्त्र, आभूषण तथा पीले फूलों की माला धारण की हुई है। इसीलिए उनका एक नाम पीतांबरा भी है। कहते हैं कि देवी बगलामुखी, समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय द्वीप में अमूल्य रत्नों से सुसज्जित सिंहासन पर विराजमान हैं। देवी ने अपने बाएं हाथ से शत्रु या दैत्य के जिह्वा को पकड़ कर खींच रखा है तथा दाएं हाथ से गदा उठाए हुए हैं, जिससे शत्रु अत्यंत भयभीत हो रहा है। कई स्थानों में देवी ने मृत शरीर या शव को अपना आसन बना रखा है तथा शव पर ही आरूढ़ हैं तथा दैत्य या शत्रु की जिह्वा को पकड़ रखा हैं। यह रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं।

देहरादून नंदादेवी एनक्‍लेव बंजारावाला में श्रीबगुलामुखी पीताम्‍बरा माई का मंदिर हेतु भूमि दान में प्राप्‍त होने तथा नीव भरने के बाद निर्माण कार्य —किया था,

हे, देवात्मा‍ स्वं0 प्रकाश पंत जी, मेरे द्वारा निवेदन किये जाने पर आपके द्वारा श्री बगुलामुखी पीताम्ब रा महामाई नंदा देवी एनक्लेकव बंजारावाला में भूमि पूजन किया था, मंदिर निर्माण कार्य पूर्ण हो गया है जल्द प्राण प्रतिष्ठा समारोह आयोजित होगा, दिव्य रूप में आप पुन- पधारे

हे, देवात्मा‍ स्वं0 प्रकाश पंत जी, मेरे द्वारा निवेदन किये जाने पर आपके द्वारा श्री बगुलामुखी पीताम्ब रा महामाई नंदा देवी एनक्लेकव बंजारावाला में भूमि पूजन किया था, मंदिर निर्माण कार्य पूर्ण हो गया है जल्द प्राण प्रतिष्ठा समारोह आयोजित होगा, दिव्य रूप में आप पुन- पधारे

 धन के दान का फल एक ही जीवन भर मिलता है, जबकि स्वर्ण, भूमि और कन्या दान के फल सात जन्मों तक मिलते हैं स्वर्ण दान- स्वर्ण दान करने से व्यक्ति को कर्ज और रोगों से मुक्ति मिलती है. भारतीय संस्कृति मे दान का महत्व सर्वाधिक बताया गया है, दान का अर्थ सिर्फ किसी चीज को लेना नहीं है। दान को स्वीकार करना प्रतिग्रहण है।  मा दशम विद्या श्री बगुला मुखी – पीतांबरा महामाई मंदिर स्थान नन्दा देवी एंक्लैव बंजारा वाला देहरादून मे प्राण प्रतिष्ठा समारोह में महामाई की स्वर्ण प्रतिमा दान करने का विराट उत्तरदायित्व कौन पूरा करेगा? चंद्रशेखर जोशी मुख्य सेवक का आहवाहन: महामाइ अपने किस भक्त से यह कार्य पूरा करायेगी? क्या आप तो नही?

भगवान श्रीकृष्ण पर एकाधिकार पाने की लालच में जब उनकी पटरानी सत्यभामा ने नारद मुनि को श्रीकृष्ण का दान कर दिया तब नारदजी श्रीकृष्ण को अपने साथ लेकर जाने लगे। उस समय सत्यभामा को अपनी भूल का अहसास हुआ और श्रीकृष्ण को वापस पाने का उपाय नारदजी से पूछा। इस पर नारदजी ने सत्यभामा से श्रीकृष्ण के वजने के बराबर सोना दान करने के लिए कहा। सत्यभामा के मन में यहां भी अहंकार आ गया और वह खुशी-खुशी सोने से कान्हा को तौलने लगीं। लेकिन जल्दी ही उन्हें अपनी भूल का अहसास हो गया क्योंकि खजाने से पूरा सोना तुला पर डालने के बाद भी श्रीकृष्ण का पलड़ा भारी था। इसके बाद देवी रुक्मणी ने सत्यभामा से कहा कि सोने के ऊपर एक तुलसी का पत्ता रखदो। सत्यभामा के ऐसा करते ही चमत्कार हुआ कान्हा के वजन के बराबर सोना हो गया। तुलादान मंदिर उसी कथा को ध्यान में रखकर बनवाया गया है।

कथा है कि ब्राह्मणों के शाप से जब श्रीकृष्ण के पुत्र शांब को कुष्ठ रोग हो गया था तब ऋषियों की सलाह पर भगवान श्रीकृष्ण ने यहां पर अन्न और स्वर्ण से तुला दान किया था। महाभारत युद्ध के बाद परिजनों की हत्या के पाप से मुक्ति के लिए तीर्थों में भ्रमण करते हुए पाण्डव भी यहां आए थे और उन्होंने इस स्थान पर तुलादान किया था।  सोना गिफ्ट करना अच्छा माना जाता है। वहीं सोने का दान तो महादान के बराबार होता है, जिसका फल व्यक्ति को सात जन्मों तक मिलता है। सोना दान करने से गुरु ग्रह बृहस्पति भी शुभ फल देते हैं।

आपकी कुंडली में बृहस्पति ग्रह से अच्छे फल की प्राप्ति न हो रही हो। ऐसे में सोना दान या गिफ्ट करना आपके लिए फायदेमंद होगा और बृहस्पति ग्रह से जल्द ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी।

सोना-चांदी, गोदान तथा कन्या दान को हमारे शास्त्रों ने दान की श्रेष्ठ श्रेणी में रखा है। सोने के देवता अग्नि है, पुराने जमाने में दक्षिणा सोने के रूप में दी जाती थी, लेकिन अगर सोने का दान किया जा रहा हो तो उसकी दक्षिणा चांदी के रूप में दी जाती है।

समृद्ध भारतीय संस्कृति के सबसे विशिष्ट पहलुओं में से एक है ”दान“, एक उदात्त कर्म जिसे प्राचीन काल से प्रत्येक धार्मिक एवं आध्यात्मिक भारतीय द्वारा अपनाया जाता रहा है। अलग-अलग समाराहों और अनुष्ठानों के अनुसार दान के विभिन्न प्रयोजन होते हैं। दान के लिए भव्य आयोजन किया जाता है जिसमें परिजनों एवं अतिथियों के भोज के बाद दान संपन्न किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि धन के दान का फल एक ही जीवन भर मिलता है, जबकि स्वर्ण, भूमि और कन्या दान (हिन्दु पाणिग्रहण संस्कार का एक अनुष्ठान जिसमें पुत्री का दान किया जाता है) के फल सात जन्मों तक मिलते हैं।

यह पीला धातु शुद्ध और शुभ माना जाता है। स्वर्ण दान सर्वाधिक दानों में से एक कहा गया है। इm प्राचीन भारतीय ग्रंथों के अनुसार स्वर्णयुक्त विभिन्न प्रकार के दान किये जाते है। ये दान वैदिक ग्रंथों में उल्लिखित सोलह महादान का हिस्सा हैं।

पुराणों में तुलादान को महादान कहा गया है और बताया गया है कि इससे विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। पौराणिक काल में समृद्ध लोग सोना से तुलादान किया करते थे। लेकिन अब अनाज और सिक्कों से भी लोग तुलादान किया करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार में प्रयाग में ब्रह्माजी ने भगवान विष्णु के कहने पर तीर्थों का महत्व तय करने के लिए तुलादान करवाया था। इसमें सभी तीर्थ एक तरफ और प्रयाग को तुला के दूसरी तरफ बैठाया गया था। सभी तीर्थ मिलकर भी प्रयाग के बराबर नहीं हो पाए। इसके बाद से प्रयाग को तीर्थराज कहा जाने लगा। इस कथा के कारण प्रयाग और कई तीर्थों में भी तुला दान की परंपरा है।

श्रीराम के द्वारा अश्वमेघ यज्ञ के समय माता सीता की सोने की मूर्ति बनवाना:-
अयोध्या के राजगुरु महर्षि वशिष्ठ ने श्रीराम के मन की व्यथा को समझा तथा शास्त्रों में इसका उपाय ढूंढ़ कर बताया। उन्होंने कहा कि यदि किसी कारणवश राजा की पत्नी साथ में ना हो तथा यज्ञ का आयोजन करना हो तब वह अपनी पत्नी की स्वर्ण मूर्ति बनाकर यज्ञ आयोजित कर सकते है। इससे यज्ञ पूर्ण माना जाता है।

देवशिल्पी विश्वकर्मा को मिला माता सीता की मूर्ति बनाने का कार्य-
इसके पश्चात श्रीराम ने विश्वकर्मा जी को बुलावा भेजा तथा उन्हें माता सीता की स्वर्ण मूर्ति बनाने का आदेश दिया। विश्वकर्मा जी ने कुछ ही दिनों में माता सीता को एक दम मूर्ति में उत्कीर्ण कर दिया जो देखने में एक दम सीता ही प्रतीत होती थी। भगवान श्रीराम भी सीता की स्वर्ण मूर्ति देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए। इसके पश्चात उन्होंने सीता की मूर्ति के साथ ही अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया तथा पूरे विधि-विधान से सब कार्य संपन्न किये।

मां बगलामुखी के तीन ही शक्तिपीठ प्रमुख है- दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश) में हैं। दतिया में पीतांबरा पीठ है।  बगलामुखी देवी का प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में माना जाता है। कहते हैं कि हल्दी रंग के जल से इनका प्रकाट्य हुआ था। इसी कारण माता को पीतांबरा कहते हैं। पीताम्बरा देवी की मूर्ति के हाथों में मुदगर, पाश, वज्र एवं शत्रुजिव्हा है। यह शत्रुओं की जीभ को कीलित कर देती हैं। मुकदमे आदि में इनका अनुष्ठान सफलता प्राप्त करने वाला माना जाता है। इनकी आराधना करने से साधक को विजय प्राप्त होती है। शुत्र पूरी तरह पराजित हो जाते हैं। देवी त्रिनेत्रा हैं, मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती है, पीले शारीरिक वर्ण युक्त है, देवी ने पीला वस्त्र, आभूषण तथा पीले फूलों की माला धारण की हुई है। इसीलिए उनका एक नाम पीतांबरा भी है। कहते हैं कि देवी बगलामुखी, समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय द्वीप में अमूल्य रत्नों से सुसज्जित सिंहासन पर विराजमान हैं। देवी ने अपने बाएं हाथ से शत्रु या दैत्य के जिह्वा को पकड़ कर खींच रखा है तथा दाएं हाथ से गदा उठाए हुए हैं, जिससे शत्रु अत्यंत भयभीत हो रहा है। कई स्थानों में देवी ने मृत शरीर या शव को अपना आसन बना रखा है तथा शव पर ही आरूढ़ हैं तथा दैत्य या शत्रु की जिह्वा को पकड़ रखा हैं। यह रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं।

विश्व में इनके सिर्फ तीन ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। उनमें से एक है नलखेड़ा में ‘मां बगलामुखी  मंदिर’। भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमश: दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश) में हैं। तीनों का अपना अलग-अलग महत्व है।   

 मध्यप्रदेश में तीन मुखों वाली त्रिशक्ति माता बगलामुखी का यह मंदिर शाजापुर तहसील नलखेड़ा में लखुंदर नदी के किनारे स्थित है। द्वापर युगीन यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक है। यहां देशभर से शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं। इस मंदिर में माता बगलामुखी के अतिरिक्त माता लक्ष्मी, कृष्ण, हनुमान, भैरव तथा सरस्वती भी विराजमान हैं। इस मंदिर की स्थापना महाभारत में विजय पाने के लिए भगवान कृष्ण के निर्देश पर महाराजा युधि‍ष्ठिर ने की थी। मान्यता यह भी है कि यहां की बगलामुखी प्रतिमा स्वयंभू है।

कुब्जिका तंत्र के अनुसार, बगला नाम तीन अक्षरों से निर्मित है व, ग, ला; ‘व’ अक्षर वारुणी, ‘ग’ अक्षर सिद्धिदा तथा ‘ला’ अक्षर पृथ्वी को सम्बोधित करता हैं। देवी का प्रादुर्भाव भगवान विष्णु से सम्बंधित हैं परिणामस्वरूप देवी सत्व गुण सम्पन्न तथा वैष्णव संप्रदाय से सम्बंधित हैं, इनकी साधन में पवित्रता-शुद्धता का विशेष महत्व हैं। परन्तु, कुछ अन्य परिस्थितियों में देवी तामसी गुण से सम्बंधित है, आकर्षण, मारण तथा स्तंभन कर्म तामसी प्रवृति से सम्बंधित हैं क्योंकि इस तरह के कार्य दूसरों को हानि पहुंचाने हेतु ही किए जाते हैं। सर्वप्रथम देवी की आराधना ब्रह्मा जी ने की थी, तदनंतर उन्होंने बगला साधना का उपदेश सनकादिक मुनियों को किया, कुमारों से प्रेरित हो देवर्षि नारद ने भी देवी की साधना की। देवी के दूसरे उपासक स्वयं जगत पालन कर्ता भगवान विष्णु हुए तथा तीसरे भगवान परशुराम।

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हल्दी की माला से यदि बगलामुखी मंत्र का जाप करते हैं तो शत्रु बाधा निवारण होगा। हल्दी की माला भाग्य दोष का हरण करती है। हल्दी की माला धन एवं कामनापूर्ति और आरोग्यता के लिए श्रेष्ठ है। 

मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा    सिद्धपीठ की स्थापना 1935 में स्वामीजी के द्वारा की गई। यहां पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी या अटल बिहारी वाजपेयी हो या फिर राजमाता विजयाराजे सिंधिया ही क्यों न हो सभी ने माता का आशीर्वाद प्राप्त किया।। ऐेसा माना जाता है कि इस स्थान पर आने वाले की मुराद जरूर पूरी होती है, उन्हे राजसत्ता का सुख जरूर मिलता है। मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा को राजसत्ता की देवी माना जाता है। इसी रूप में भक्त उनकी आराधना करते हैं। राजसत्ता की कामना रखने वाले भक्त यहां आकर गुप्त पूजा अर्चना करते हैं। मां पीतांबरा शत्रु नाश की अधिष्ठात्री देवी है और राजसत्ता प्राप्ति में मां की पूजा का विशेष महत्व होता है।   इस सिद्धपीठ की स्थापना 1935 में स्वामीजी के द्वारा की गई। ये चमत्कारी धाम स्वामीजी के जप और तप के कारण ही एक सिद्ध पीठ के रूप में जाना जाता है।

भारत और चीन का युद्ध 1962 में प्रारंभ हुआ था। बाबा ने फौजी अधिकारियों एवं तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अनुरोध पर देश की रक्षा के लिए मां बगलामुखी की प्रेरणा से 51 कुंडीय महायज्ञ कराया था। परिणामस्वरूप 11वें दिन अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं। उस समय यज्ञ के लिए बनाई गई यज्ञशाला आज भी है। यहां लगी पट्टिका पर इस घटना का उल्लेख है। जब-जब देश के ऊपर विपत्तियां आती हैं तब-तब कोई न कोई न कोई गोपनीय रूप से मां बगलामुखी की साधना व यज्ञ-हवन अवश्य ही कराते हैं। मां पीतांबरा शक्ति की कृपा से देश पर आने वाली बहुत सी विपत्तियां टल गई हैं। सन् 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में मां बगलामुखी ने देश की रक्षा की। सन् 2000 में कारगिल में भारत-पाकिस्तान के बीच पुनः युद्ध हुआ।.

देवी, एक युवती के जैसी शारीरिक गठन वाली हैं, देखने में मनोहर तथा मंद मुस्कान वाली हैं। देवी ने अपने बाएं हाथ से शत्रु या दैत्य की जिह्वा को पकड़ कर खींच रखा है तथा दाएं हाथ से गदा उठाए हुए हैं, जिससे शत्रु अत्यंत भयभीत हो रहा हैं। देवी के इस जिव्हा पकड़ने का तात्पर्य यह है कि देवी वाक् शक्ति देने और लेने के लिए पूजी जाती हैं। वे चाहें तो शत्रु की जिव्हा ले सकती हैं और भक्तों की वाणी को दिव्यता का आशीष दे सकती हैं। देवी वचन या बोल-चाल से गलतियों तथा अशुद्धियों को निकाल कर सही करती हैं। कई स्थानों में देवी ने मृत शरीर या शव को अपना आसन बना रखा हैं तथा शव पर ही आरूढ़ हैं तथा दैत्य या शत्रु की जिह्वा को पकड़ रखा हैं। 

मां बगलामुखी करती हैं नन्हे बच्चों की रक्षा— छोटे बच्चे नाजुक होते हैं। उन्हें बाहरी नजर और बाधा के अलावा दुर्घटना तथा रोगों का खतरा भी बना रहता है। ग्रहों की विपरीत दशा और गलत संगत से बचाना भी जरूरी होता है। मां बगलामुखी का यह रक्षा मंत्र और प्रयोग विधि उन्हें हर संकट से बचाता है।  ॐ हं ह्लीं बगलामुखी देव्यै कुमारं रक्ष रक्ष

माँ पीताम्बरा बगलामुखी शक्तिपीठ का देहरादून में भूमि पूजन 1 को माँ पीताम्बरा बगलामुखी शक्तिपीठ का देहरादून में भूमि पूजन 1 को   https://himalayauk.org/ma-peetambara-baglamukhi-shakti-peeth-banjarawala-dehradun/

श्रीबगलामुखी माँ पीताम्‍बरा प्राकटय दिवस- संकट के इस दौर में कल्‍याण की प्रार्थना करें
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वैदिक ग्रंथों में उल्लिखित सोलह महादान

तुला पुरुष दान
इस दान में दानकर्ता या व्यक्ति तुला के एक पलड़े पर संपूर्ण शारीरिक कवच और अस्त्र-शस्त्रों के साथ बैठता है, जबकि तुला के दूसरे पलड़े पर शुद्ध स्वर्ण रखा जाता है। इसका भार 125-130 किलोग्राम तक हो सकता है। यह शुद्ध स्वर्ण समारोह में उपस्थित ब्राह्मणों में बाँट दिया जाता है समारोह में प्रयुक्त सोने से बनी तुला भी ब्राह्मणों को दान कर दी जाती है।

हिरण्यगर्भ दान
यह एक स्वर्ण पात्र का दान है जो दैवीय गर्भ का प्रतिनिधित्व करता है। इस पात्र का आकार सोने के ढक्कन के साथ 54 इंच ऊँचा और 36 इंच चौड़ा होना चाहिए। इस पात्र को बनाने में लगभग 40-50 किलोग्राम सोने की आवश्यकता होती है। इसमें घी और दूध भरा रहता है।

ब्रह्माण्ड दान
इसमें हमारे ब्रह्माण्ड की स्वर्ण निर्मित प्रतिकृति का दान किया जाता है। ब्रह्माण्ड के इस लघु प्रतिकृति का भार 1.25 किलोग्राम से 62.2 किलोग्राम तक हो सकता है जो दानकर्ता की क्षमता पर निर्भर करता है। समारोह के बाद लघु प्रतिकृति को दस भागों में विभक्त किया जाता है जिसमें से दो भागों को गुरु को दान किया जाता है और बाकी को ब्राह्मणों में वितरित कर दिया जाता है।

कल्प-पादप दान
इस दान में दानकर्ता व्यक्ति कल्पवृक्ष (मनोकामना पूरा करने वाला दैवीय वृक्ष) की एक स्वर्ण लघु प्रतिकृति का दान करता है। इस वृक्ष को फलों, फूलों, पक्षियों, आभूषणों और परिधानों से सजाया जाता है। इस स्वर्णिम वृक्ष को गुरु एवं उनके शिष्यों को दान किया जाता है। इसी प्रकार, कल्पलता दान में कल्पवृक्ष सहित दस दैवीय लताओं का दान किया जाता है, जो फलों एवं आभूषणों से सजे होते हैं।

हिरण्य कामधेनु दान
कामधेनु दिव्य गाय है जिसे समृद्धि की गाय तथा सभी गायों की माता माना जाता है। इस दान समारोह में कामधेनु गाय की सोने से बनी लघु प्रतिकृति के साथ दुधमुँहे बछड़ा का दान किया जाता है। गाय स्वर्ण आभूषणों से सुशोभित रहती है।

हिरण्य अश्व रथ दान
इन दान के लिए दानकर्ता दो से आठ अश्वों के साथ एक रथ की स्वर्णिम प्रतिकृति तैयार करता है। अश्वों को स्वर्ण आभूषण पहनाए जाते हैं। इसी प्रकार, चार हाथियों से जुते रथ के दान को हेम हस्ती रथ दान कहते हैं।

धरा दान
धरा का अभिप्राय धरती माता से है। इस दान में पावन नदियों, पर्वतों एवं महासागरों से परिपूर्ण पृथ्वी की सोने से बनी प्रतिकृति का दान किया जाता है।

सप्त सागर दान
इसमें शर्करा, लवण, दुग्ध, घी, दही, गुड़ और पवित्र जल से भरे स्वर्ण पात्र दान किए जाते हैं। ये पात्र सात महासागरों का सांकेतिक प्रतिनिधित्व करते हैं।

बीमारी और शत्रु नाश तथा राजसत्ता की अधिष्ठात्री महामाई मॉ पीताम्बरा बगुलामुखी प्राकट्य दिवस 4 मई 22 CLICK LINK; https://himalayauk.org/bagulamukhi-peetambara-jayanti-4…/

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