भाजपा शिवसेना से राजनीतिक नाता तोड़ने के लिए मौका तलाश रही
हिमालयायूके न्यूज पोर्टल ब्यूरो रिपोर्ट-
महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों हलचल कुछ ज्यादा दिख रही है. शिवसेना की तरफ से आ रहे बयानों पर गौर करें तो लगता है कि अपनी ही सरकार पर हमले की धार अब ज्यादा तेज हो गई है.
महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना से राजनीतिक नाता तोड़ने के लिए मौका तलाश रही है. इसी के तहत भाजपा ने कांग्रेस और एनसीपी के कुछ विधायकों से दोस्ती गहरी करने में रूचि लेना शुरू कर दिया है. भाजपा ने कांग्रेस और एनसीपी के लगभग 29 विधायक से संपर्क साध लिया हैं. भाजपा का डर है कि अगर शिवसेना का यही तेवर रहा तो विधानमंडल में बजट पास करना मुश्किल होगा. शिवसेना महाराष्ट्र में भाजपानीत सरकार पर ही हमले नहीं बोलती है बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी समय-समय पर तीखे बोल बोलती रहती है. किसानों की कर्ज माफी का मुद्दा राष्ट्रीय मुद्दा बनता जा रहा है. कर्ज माफी की मांग महाराष्ट्र के अलावा उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में उठने लगी है जबकि महाराष्ट्र के साथ केंद्र सरकार भी कर्ज माफ करने में रूचि नहीं दिखाई है.
वैसे, महाराष्ट्र में शिवसेना के लिए यह राजनीतिक मुद्दा भी बन सकता है. आगामी चुनावों में यह मुद्दा शिवसेना को चुनावी लाभ दिला सकता है. शिवसेना के लिए अगला चुनाव जीतना बहुत आसान नहीं है. क्योंकि, भाजपा अपने गले में अटकी इस हड्डी को निकालना चाहती है और अगला चुनाव अपने दम पर लड़कर पूर्ण सत्ता पाना चाहती है. भाजपा के नेता कांग्रेस और एनसीपी के विधायकों को अपनी पाली में लाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. भाजपा का सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस और एनसीपी से विधायकों को तोड़कर लाया जाए और उन्हें भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ाकर जिताया जाए तो राज्य में भाजपा को मजबूत सरकार देने के लिए शिवसेना के 63 विधायकों की जरूरत नहीं पड़ेगी. कांग्रेस और एनसीपी के विधायकों को तोड़ने का काम इसी साल हो जाता है तो भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ अपनी सरकार का कार्यकाल पूरा करके अगला चुनाव लड़ने का सपना देख रही है जिससे उसे नई सरकार के गठन में कोई परेशानी नहीं होगी.
शिवसेना की तरफ से बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ने की धमकी फिर से दी गई है. हालांकि पहले की धमकियों पर गौर करें तो इस बार की धमकी कुछ अलग नहीं है. फिर भी शिवसेना के आक्रामक तेवर ने कयासों को हवा दे दी है.
इसी हफ्ते पार्टी के सभी सांसदों, विधायकों और बड़े नेताओं के साथ गहन मंथन के बाद शिवसेना की तरफ से जो बयान आ रहा है उसने बीजेपी के साथ उसके रिश्तों को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं. इस बैठक के बाद शिवसेना के सांसद संजय राउत ने गठबंधन तोड़ने की धमकी देकर सरकार को समर्थन पर जल्द फैसला लेने की बात कह डाली.
हालांकि शिवसेना पहले से भी काफी आक्रामक रही है. लेकिन, हाल के दिनों में शिवसेना के तेवर और तल्ख हो गए हैं. शिवसेना अब विपक्षी नेताओं की भाषा बोल रही है.
शिवसेना को लगता है कि देश में महंगाई से लेकर पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम के मुद्दे पर सरकार बुरी तरह से घिरी हुई है. दूसरी तरफ तमाम दावों के बावजूद महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या रुक नहीं पा रही है. ऐसे में सरकार में साझीदार के तौर पर उसे भी जनता के सामने जवाब देना मुश्किल हो रहा है. इसीलिए बार-बार इन मुद्दों को उठाकर शिवसेना अपने-आप को सरकार के फैसलों से अलग रखकर किसानों का हमदर्द बनना चाहती है.
सूत्रों के मुताबिक, इस हफ्ते हुई शिवसेना की बैठक में शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने पार्टी के विधायकों और बाकी नेताओं से सरकार से अलग होने के बारे में उनकी राय जाननी चाही. लेकिन, इसमें करीब दो दर्जन विधायक समर्थन वापस लेने के पक्ष में नहीं दिखे. इन विधायकों को डर सता रहा है कि समर्थन वापसी के बाद महाराष्ट्र में फिर से चुनाव कराने पड़ेंगे. जिसके लिए ये विधायक अपने आप को पूरी तरह से तैयार नहीं कर पा रहे हैं. लिहाजा शिवसेना बीजेपी से नाराजगी के बावजूद इस वक्त सरकार से अलग होने का फैसला नहीं कर पा रही है.
शिवसेना की नाराजगी का कारण केंद्र और राज्य दोनों जगह उसे सरकार में ज्यादा महत्व नहीं मिलना भी है. मोदी सरकार में शिवसेना कोटे से महज एक कैबिनेट मंत्री अनंत गीते हैं, जिन्हें भी मनचाहा मंत्रालय नहीं मिला है. दूसरी तरफ तीन कैबिनेट विस्तार के बावजूद शिवसेना को और मंत्रालय मिलने की आस टूट कर बिखर जाती है.
दूसरी तरफ महाराष्ट्र में भी शिवसेना कोटे के मंत्री अपनी मनमानी नहीं कर पा रहे हैं. उन्हें भी लगता है कि सरकार में शामिल होने के बावजूद वो अपने मनमुताबिक काम नहीं कर पा रहे हैं, जिससे उनकी तरफ से लगातार सरकार पर हमले हो रहे हैं.
शिवसेना के पूर्व नेता और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके नारायण राणे को लेकर भी शिवसेना काफी आक्रामक है. शिवसेना अभी तक नारायण राणे के पार्टी से बाहर जाने और उस वक्त उद्धव ठाकरे से उनकी अनबन को नहीं भुला पाई है.
शिवसेना की तरफ से बीजेपी को लेकर की जा रही बयानबाजी उस पर दबाव बनाने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है. शिवसेना को लगने लगा है कि नारायण राणे कांग्रेस छोड़ने के बाद बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. ऐसे में शिवसेना की तरफ से गठबंधन तोड़ने की बात कहना बीजेपी पर दबाव बनाने की कोशिश का नतीजा भी हो सकता है.
उधर नारायण राणे ने भी बारह साल तक कांग्रेस में रहने के बाद कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है. राणे ने कांग्रेस और शिवसेना दोनों को खत्म करने का संकल्प लिया है. लेकिन बीजेपी को लेकर राणे की चुप्पी भविष्य की राजनीति का संकेत दे रही है. राणे के बीजेपी में शामिल होने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा शिवसेना को ही माना जा रहा है.
अब सबकी नजरें शिवसेना की दशहरा रैली पर टिकी हैं. क्या उद्धव ठाकरे इस बार दशहरा रैली से कुछ बड़ा ऐलान करेंगे या फिर इस बार भी शिवसैनिकों में जोश भरने के लिए महज एक बार फिर बीजेपी को धमकी भर ही दी जाएगी. इसके लिए अभी हमें कुछ और इंतजार करना होगा. लेकिन, शिवसेना के पिछले तीन साल के रिकार्ड को खंगालने पर तो इस तरह की धमकी अपनी पोजिशनिंग की कोशिश ही ज्यादा नजर आती है.
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