महासू देवता के लिए राष्ट्रपति भवन से नमक की भेंट आती है

#भगवान शिव साक्षात रूप में न्‍याय के देवता के रूप में विराजमान#महासू देवता भगवान शिव के ही रूप   #मंदिर में बडे बलशाली का घमंड भी दो मिनट में चूर हो जाता है, वह कैसे?  #  छोटे-छोटे पत्‍थर #जो आकार में तो बहुत छोटे हैं#लेकिन इन्हें उठा पाना हर किसी के बस की बात नहीं  #मंदिर के गृह गर्भ में भक्तों का जाना मना # केवल पुजारी ही मंदिर में प्रवेश  #मंदिर में एक ज्योत हमेशा अपने आप जलती रहती है# यहांं के लोग  न्यायालय नही जाते  #हर तरह के झगड़ों पर सदियों से महासू देवता निर्णय करते हैं# न्याय के देवता के तौर पर भी जाना जाता मंदिर में देवता से न्याय मांगने की प्रक्रिया भी अद्भुत#

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महासू देवता जौनसार बावर, हिमाचल प्रदेश के ईष्ट देव हैं। यहां हर साल दिल्ली से राष्ट्रपति भवन से नमक की भेंट आती है। उत्तराखंड में त्यूनी-मोरी रोड पर स्थित महासू देवता मंदिर में आस्‍था और श्रद्घा का अनूठा संगम देखने को मिलता है। 9वीं शताब्दी में बनाया गया महासू देवता का मंद‌िर काफी प्राचीन है। मिश्रित शैली की स्थापत्य कलामंदिर में मिश्रित शैली की स्थापत्य कला देखने को मिलती है। इस मंदिर को पुरातत्व सर्वेक्षण में भी शामिल किया गया है। महासू देवता मंदिर देहरादून से 190 किलोमीटर दूर और मसूरी से 156 किमी, चकराता के पास हनोल गांव में टोंस नदी के पूर्वी तट पर स्थित हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार इस गांव का हुना भट्ट, एक ब्राह्मण के नाम पर रखा गया है। इससे पहले यह जगह चकरपुर के रूप में जानी जाती थी। और पांडव लाक्षा ग्रह से निकलकर यहां आए थे। हनोल का मंदिर लोगों के लिए तीर्थ स्थान के रूप में भी जाना जाता है।

महासू देवता भगवान शिव के ही रूप हैं। इस‌के साथ ही यह मान्यता भी है कि महासू ने किसी शर्त पर हनोल का यह मंदिर जीता था। महासू देवता जौनसार बावर, हिमाचल प्रदेश के ईष्ट देव हैं। यहां हर साल दिल्ली से राष्ट्रपति भवन से नमक की भेंट आती है। मंदिर के साथ छोटे-छोटे पत्‍थर हैं। जो आकार में तो बहुत छोटे हैं, लेकिन इन्हें उठा पाना हर किसी के बस की बात नहीं है।यह भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से महासू की पूजा करता है वह ही इन पत्थरों को उठा सकता है। मंदिर के गृह गर्भ में भक्तों का जाना मना है। केवल पुजारी ही मंदिर में प्रवेश कर सकता है। इसके साथ ही मंदिर में एक ज्योत हमेशा अपने आप जलती रहती है।

मंदिर के गृह गर्भ में पानी की एक धारा भी निकलती है, लेकिन वह कहां जाती है इसके बारे में किसी को भी पता नहीं है। महासू देवता के मंदिर में उत्तराखंड के साथ ही जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली से भक्त काफी संख्या में भक्त पहुंचते हैं।

महासू देवता मंदिर, शिमला से 11 किमी की दूरी पर स्थित, मशोबरा का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह मंदिर हिंदू भगवान शिव, जिन्हें स्थानीय लोगों के बीच में महासू देवता के रूप में जाना जाता है, को समर्पित है। मशोबरा की यात्रा पर आये आगंतुक महासू जटारा, इस मंदिर में आयोजित वार्षिक उत्सव जो देश भर से कई भक्तों को आकर्षित करता है, में भाग ले सकते हैं।

चार महासू भाईयो के चार अलग-२ वीर इस प्रकार है!

१)   बासिक महासू             कफला वीर

२)  पवासिक महासू           गुडारु / कैलाथ

३)  बोथा महासू                कैलू वीर

४)   चालदा महासू           सेडूकुडिया वीर

महासू शब्द बहुवाची रूप में चार महासू भाईयो (बासिक, पबासिक, बोठा, चालदा) के लिए प्रयुक्त है! “महासू देवता” की उत्पत्ति से सम्बंधित विभिन्न गाथाओ में उसका सम्बन्ध महाशिव एव नागवंश, शिव पार्वती और नागशक्ति से माना जाता है! जो राक्षसों के बढ़ हुते उत्पन्न किये गये थे और कश्मीर से इस क्षेत्र में आये थे! इस दृष्टि से महासू “वीर पूजा” के स्वरुप दृष्टिगोचर होया है और शिव शकित और नागो से उपत्ति होने से शैव परिवार से सम्बंधित है!

महासू मंदिर हनोल प्रांगण की शोभा बढ़ा रहे पाण्डु पुत्र भीम की बालक्रीड़ा के प्रतीक सीसे के दो गोले लोक मान्यता: ताकत का घमंड दिखाने पर नहीं उठाए जाते स्थानीय मेलों के दौरान क्षेत्र के लोग गोलों पर आजमाते हैं ताकत PAHAR1-आकृति गोल और दिखने में छोटे।

देहरादून जिले के हनोल स्थित महासू मंदिर परिसर में रखे सीसे के दो गोले पाण्डु पुत्र भीम की ताकत का एहसास कराते हैं। लोक मान्यता है कि भीम बालकपन में इन गोलों को कंचे (गिटिया) के रूप में इस्तेमाल किया करते थे। गोलों को देखकर कोई भी कह देगा कि इन्हें आसानी से उठाया जा सकता है, पर उठाने में अच्छे से अच्छे बलशालियों के पसीने छूट जाते हैं। समय बदला और लोगों का नजरिया भी। ऐतिहासिक महत्व की यह धरोहर आज ताकत परखने का जरिया भर रह गई है।

देहरादून जनपद के जौनसार-बावर क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध धार्मिक स्थल महासू मंदिर के प्रांगण में रखे सीसे के दोनों गोलों का धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व है। किवंदति है कि द्वापर युग में अज्ञातवास के दौरान पांडव हनोल, चकराता व लाखामंडल आदि स्थलों पर ठहरे। लोक मान्यता है कि हनोल स्थित महासू मंदिर परिसर में रखे सीसे के दोनों गोलों से बचपन में पाण्डु पुत्र भीम खेला करते थे। आकृति में छोटे दिखने वाले इन गोलों का वजन छह और नौ मण है यानि ढाई से साढ़े तीन कुंतल। देखकर ऐसा ही लगता है मानों हर कोई इन्हें आसानी से उठा लेगा, लेकिन इन्हें उठाने में अच्छे-अच्छों के पसीने छूट जाते हैं।

सैलानियों के आकर्षण का केंद्र इन गोलों पर क्षेत्र के लोग स्थानीय मेलों के दौरान ताकत आजमाते हैं। सैलानी क्या, श्रद्धालु क्या, मंदिर में आने वाला हर शख्स इन गोलों को कंधों पर उठाने का भरसक प्रयास करता है। कुछ कामयाब होते हैं तो कुछ निराश। गोलों के वजन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कंधें पर उठाने के बाद फेंकने पर जमीन में चार से पांच इंच तक गहरा गड्ढा हो जाता है। लोक मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति ताकत के घमंड में गोलों को कंधों पर उठाने का दावा करता है तो उसकी ताकत गोलों को छूते ही काफूर हो जाती है, पर श्रद्धापूर्वक उठाने पर गोलों को आसानी से उठाया जा सकता है। मंदिर में बिस्सू व जागड़ा पर्व के दौरान सैकड़ों लोग गोलों को कंधे पर उठाने का प्रयास करते हैं। मंदिर प्रांगण में रखे इन गोलों को देख ऐसा लगता है,

उत्तराखंड के उत्तरकाशी, जौनसार- बावर और रवाईं घाटी के बाशिंदे हों या पड़ोसी राज्य हिमाचल के सिरमौर, बिशैहर व जुब्बल जिलों के ग्रामीण, बड़े से बड़ा पुश्तैनी विवाद हो या घर का छोटा झगड़ा, कोई भी न्यायालय का रुख नहीं करता।

इन लोगों के हर तरह के झगड़ों पर सदियों से महासू देवता निर्णय करते हैं। उत्तरकाशी के हनोल स्थित महासू देवता की उत्तराखंड समेत हिमाचल में भी बड़ी मान्यता है। इन्हें यहां न्याय के देवता के तौर पर भी जाना जाता है। खास बात यह है कि दो पक्षों के बीच विवाद पर देवता का जो निर्णय हो, वही सर्वमान्य होता है और कोई भी पक्ष यहां से असंतुष्ट होकर नहीं जाता।

हिमाचल से सटे उत्तरकाशी जिले के सीमांत क्षेत्र हनोल में स्थित है महासू देवता का मंदिर। बावर परगना में टौंस नदी के बाएं तट पर स्थित मंदिर तक जाने के लिए उत्तरकाशी से बड़कोट, नौगांव, पुरोला व मोरी होते हुए 160 किमी तथा देहरादून से चकराता-त्यूनी होते हुए 170 किमी मोटर मार्ग से पहुंचा जा सकता है। स्थानीय उपलब्ध किंवदंतियों के अनुसार महासू देवता का आगमन इस क्षेत्र में करीब छह सौ वर्ष पूर्व हुआ था।

बताया जाता है कि यहां स्थित मैंद्रथ पर्वत पर तब हूणा भाट नामक ब्राह्मण रहता था। उस समय इस क्षेत्र में किरविर दानव नामक राक्षस का आंतक था। उसके अत्याचारों से त्रस्त हूणा कश्मीर चला गया। वहां वह सेड़ कुड़या से मिला, जिसने उसे अपने भाई महासू से मिलवाया। उन्होंने हूणा को राक्षस से निजात दिलाने का भरोसा दिलाया।

निश्चित मुहूर्त पर महासू अपने भाइयों बौंठा, भासीका, पवासी और चालदा को लेकर हूणा के साथ रवाई क्षेत्र में पहुंचे और किरविर दानव का वध कर दिया। इसके बाद महासू ने स्थानीय छोटे गणपतियों को भी परास्त कर दिया। हूणा ने महासू को मैंद्रथ पर रहने की पेशकश की, लेकिन उन्हें हनोल अधिक पसंद आया। क्षेत्र में महासू देवता की पूजा की जाने लगी। बाद में हनोल में उनका मंदिर भी स्थापित किया गया। उनके अलावा उनके भाइयों में बौंठा की पूजा हनोल में, भासीका की पूजा टौंस के बायें तट पर बावर क्षेत्र में तथा पबासी की पूजा टौंस के दायें तट पर बंगाण क्षेत्र में होती है। चालदा की पूजा बारह वर्ष तक उत्तराखंड के जौनसार-बावर तथा बारह वर्ष तक हिमाचल के बंगाण-जुब्बल में होती है। क्षेत्र में महासू देवता न्याय के देवता के रूप में प्रसिद्ध हैं।

मंदिर में देवता से न्याय मांगने की प्रक्रिया भी अद्भुत है। जमीन या घर संबंधी विवादों में याची खेत से मिट्टी का ढेला या घर की छत का पत्थर लेकर मंदिर में आता है। मंदिर के पुजारी पर प्रतिदिन निश्चित समय पर देवता का भाव आता है और वह मंदिर में मौजूद सभी याचियों से एक- एक कर बात करते हैं। देवता याची को विवादित स्थान का निरीक्षण करने का आश्वासन देकर भेज देते हैं।

अन्य विवादों के मामले में याची से उसकी मनोकामना पूछी जाती है और उसे आशीर्वाद देकर भेज दिया जाता है। कुछ समय बाद जब याची की इच्छा पूर्ण होती है, तो इसे देवता का न्याय माना जाता है। मन्नत पूरी होने पर लोग मंदिर में एक बकरा गंडावा के रूप में चढ़ाते हैं। खास बात यह है कि इस बकरे को मारा नहीं जाता, बल्कि वहीं छोड़ दिया जाता है।

महासू (चारो) देवो के प्रमुख उपासना स्थल

१).   बासिक महासू –   हनोल के १० किलोमीटर दूर महेंद्रथ नामक स्थान पर प्रतिष्ठित है! महेंद्रथ को महासू देव की प्राकट्य स्थली माना गया है!

२)   पबासिक महासू –  हनोल से २ किलोमीटर दूर ठडीदार गाव जनपद (उत्तरकाशी) में प्रतिष्ठित है! पावासी महासू के उपासक उत्तरकाशी के बगाण व मासमोर क्षेत्र में और हिमांचल के जनपद शिमला के रोहडू क्षेत्र में है!

३)   मोठा महासू – चारो महासू देवता का मुख्य पावन तीर्थ स्थल हनोल है! ‘बोठा महासू’  प्रमुख देव के रूप में है!

४)  चालदा महासू –  यह भ्रमण प्रिय देव है जो १२ साल सांठी और १२ पांसी क्षेत्रे में रहते है!

न्याय के देवता भगवान महासू देवता की जय हो, जय हो, जय हो- 

प्रस्‍तुति-Chandra shekhar  Joshi- EDITOR; 

“HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND” :  WEB & PRINT MEDIA; 

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