मायावती के इस्तीफे की राजनीति- हकीकत तो कुछ और है.
#हकीकत तो कुछ और है #मायावती इस्तीफा देतीं या ना देतीं, उनकी सदस्यता तो ऐसे ही जाने वाली थी. #सदन में लौटने की उम्मीद नही थी#गुर्राते हुए दिया इस्तीफा #मायावती का कार्यकाल खत्म हो रहा था #
मायावती को लालू ने बिहार से राज्यसभा भेजना का वायदा किया था परन्तु अब खुद लालू उलझे हुए है- वो इस समय बिना नीतिश की सहमति के मायावती को राज्यसभा भेजने की स्थिति में नही है- ऐसे में मायावती के समक्ष यही एक रास्ता बचता था- कि गुर्राते हुए इस्तीफा दे दिया जाये # Execluvie Report: www.himalayauk.org (HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND) Digital Newsportal & Daily Newspaper; publish at Dehradun & Haridwar
बीएसपी प्रमुख मायावती ने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया है. सभापति को भेजी तीन पेज की चिट्ठी में मायावती ने आज के राज्यसभा के पूरे वाक्ये का जिक्र करते हुए कहा कि मैं सहारनपुर हिंसा पर अपनी बात रखना चाहती थी कि लेकिन मुझे बोलने नहीं दिया गया. आपको बता दें कि अगले साल मायावती का कार्यकाल खत्म हो रहा था. मायावती ने कहा कि दलितों और छोटे तबकों के लोगों पर लगातार अत्याचार हो रहा है. सहारनपुर में दलितों का बड़े पैमाने पर उत्पीड़न हुआ. गुजरात के ऊना में दलितों पर अत्याचार हुआ. मुझे शब्बीरपुर में हेलीकॉप्टर से जाने की इजाजत नहीं दी गई. उन्होंने कहा कि मुझे सड़क के रास्ते जाना पड़ा. जब मैं गांव पहुंची तो डीएम और एसपी गायब थे. मैंने वहां कोई ऐसी बात नहीं कही जिससे समुदायों के बीच लड़ाई हो जाए. यूपी में अभी भी महाजंगलराज और महागुंडाराज है. हमें पीड़ितों की मदद के लिए भी प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ी.
उन्होंने कहा था- ”अगर मैं सदन में दलितों के हितों की बात नहीं उठा सकती तो मेरे राज्यसभा में रहने पर लानत है। मैं अपने समाज की रक्षा नहीं कर पा रही हूं। अगर मुझे अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया जा रहा है तो मुझे सदन में रहने का अधिकार नहीं है। मैं सदन की सदस्यता से आज ही इस्तीफा दे रही हूं।’’
मॉनसून सत्र के दूसरे दिन राज्यसभा की कार्यवाही जैसे ही शुरू हुई सदन के भीतर सभी विपक्षी दलों की तरफ से हंगामा शुरू हो गया. बीएसपी की तरफ से यूपी में सहारनपुर की घटना पर चर्चा के लिए स्थगन प्रस्ताव का नोटिस दिया गया था. कार्यवाही की शुरुआत होते ही हंगामा कर रहे सदस्यों को उपसभापति की तरफ से ये भरोसा दिया गया कि सबको बोलने का मौका मिलेगा. लेकिन, उसके बावजूद अपनी सीट पर उठ कर खड़ी हो गईं और बोलने लगीं. फिर उपसभापति ने उन्हें तीन मिनट में अपनी बात पूरी करने को कहा. लेकिन, मायावती लगातार बोलती रहीं. जब तीन मिनट का वक्त पूरा हो गया तो फिर उपसभापति ने उन्हें बैठने के लिए कहा जिसके बाद टोका-टोकी शुरू हुई और अंत में मायावती नाराज हो गईं. मायावती ने अपनी बात पूरी नहीं होने देने का आरोप लगाते हुए नाराज होकर सदन के बाहर चली गईं. राज्यसभा से बाहर आ कर मायावती ने कहा कि देश में दलितों के साथ अत्याचार हो रहा है. उन्होंने कहा, ‘यूपी में महाजंगलराज है. दलितों, अल्पसंख्यकों, मजदूरों, कमजोर वर्ग के खिलाफ अन्याय हो रहा है.’ मायावती ने कहा कि अगर उन्हें सदन में कमजोर वर्गों के पक्ष में बोलने की इजाजत नहीं दी जा रही है तो वह इस्तीफा दे देंगी. दरअसल, मायावती दलित राजनीति में बीजेपी की इंट्री से परेशान है. गैर-जाटव दलित समुदाय के रामनाथ कोविंद को देश के सर्वोच्च पद के लिए आगे कर बीजेपी यूपी समेत बाकी राज्यों में भी अपनी साख बढ़ा रही है. बीजेपी दलित राजनीति के इस सियासी खेल में फिलहाल बाजी मारती दिख रही है.
राज्यसभा सांसद मायावती का कार्यकाल अगले साल अप्रैल में खत्म हो रहा है. लेकिन, सदन में दोबारा चुन कर आने लायक उनकी पार्टी के पास विधायक ही नहीं हैं. बीएसपी की विधानसभा के भीतर ताकत महज 19 विधायकों की रह गई है. अब इतने कम विधायकों के नाम पर उनकी सदन के भीतर दोबारा इंट्री तो नामुमकिन ही थी. अगर किसी दूसरे के भरोसे वो दोबारा राज्यसभा में न आ पातीं तो मायावती अप्रैल 2018 के बाद अपनेआप राज्यसभा की पूर्व सांसद हो जातीं. मायावती के लिए त्रासदी है कि उनकी पार्टी बीएसपी का लोकसभा में तो खाता ही नहीं खुल पाया था. मतलब लोकसभा के भीतर पार्टी की नुमाइंदगी करने वाला कोई नहीं है. उनके खुद के राज्यसभा में नहीं आने की सूरत में उनकी पार्टी की तरफ से राज्यसभा में खुलकर बोलने वाला कोई नहीं बचेगा. लिहाजा वो पहले से ही ऐसा माहौल बनाती दिख रही हैं जिनके दम पर वो एक बार फिर से यूपी के भीतर अपनी सियासी जमीन को फिर से हासिल कर सकें.
मायावती ने कहा, मैं शोषितों, मजदूरों, किसानों और खासकर दलितों के उत्पीड़न की बात सदन में रखना चाहती थी. सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में जो दलित उत्पीड़न हुआ है, मैं उसकी बात उठाना चाहती थी, लेकिन सत्ता पक्ष के सभी लोग एक साथ खड़े हो गए और मुझे बोलने का मौका नहीं दिया गया. बसपा प्रमुख ने कहा, मैं दलित समाज से आती हूं और जब मैं अपने समाज की बात नहीं रख सकती हूं, तो मेरे यहां होने का क्या लाभ है.
उल्लेखनीय है कि राज्यसभा में उपसभापति पीजे कुरियन ने मायावती को अपनी बात तीन मिनट में खत्म करने को कहा था. इस पर मायावती नाराज हो गईं और कहा कि वह एक गंभीर मुद्दा उठा रही हैं, जिसके लिए उन्हें अधिक वक्त चाहिए.
मायावती ने कहा कि सहारनपुर घटना केंद्र की साजिश थी. इसके बाद राज्यसभा में हंगामा होने लगा और मायावती ने उपसभापति को कहा कि आप मुझे बोलने नहीं देंगे तो मैं सदन से इस्तीफा दे देती हूं.
इस्तीफे के बाद क्या बोलीं मायावती?
मायावती ने कहा, ”मैं दलित समाज से संबंध रखती हूं, सत्ता पक्ष मुझे अपनी बात नहीं रखने दे रहा है. मैं जब बोल रही थी तब सरकार के मंत्री खड़े हो गए और मुझे बोलने नहीं दिया गया. मैंने इस देश के करोड़ों दलितों, पिछड़ों, मजदूरों और किसानों के हित में राज्यसभा के सभापति को इस्तीफा सौंपा है. जब सत्ता पक्ष मुझे अपनी बात रखने का भी समय नहीं दे रहा तो मेरा इस्तीफा देना ही ठीक है.”
सूत्रों के मुताबिक जब भी कोई राज्यसभा सदस्य इस्तीफा देता है तो निजी कारणों का हवाला देते हुए सिर्फ एक लाइन का इस्तीफा देता है. यह पहली बार हुआ है जब किसी सदस्य ने तीन पेज की चिट्ठी में कारण बताते हुए इस्तीफा दिया है. ऐसे में देखना होगा कि मायावती के इस्तीफे पर सभापति की क्या प्रतिक्रिया अपनाते हैं. सूत्रों के मुताबिक मायावती का इस्तीफा मंजूर नहीं होगा.
संसद के मानसून सत्र में आज मायावती सहारनपुर हिंसा पर अपनी बात रखना चाहर रही थीं. इसी दौरान उन्होंने आरोप लगाया कि वो दलितों का मुद्दा उठा रही हैं इसलिए उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा है. इसी के साथ सदन से वॉकआउट करते हुए मायावती ने धमकी दी थी कि वो राज्यसभा से इस्तीफा दे देंगी.
राज्यसभा में मायावती करीब तीन मिनट बोल चुकी थीं जिसके बाद चेयर ने उन्हें अपनी बात रोकने को कहा लेकिन मायावती बोलने के लिए और वक़्त दिए जाने पर अड़ी रहीं. इसके बावजूद डिप्टी चेयरमैन ने उन्हें मौका नहीं दिया. इसके बाद वो काफी गुस्से में आ गईं और राज्यसभा से इस्तीफे की धमकी दे डाली.