मोबाइल जनरेशन की एक सबसे बड़ी नासमझी- इस शब्द का उच्चारण,लिखना
RIP या R.I.P संस्कृति इस मोबाइल जनरेशन की एक सबसे बड़ी नासमझी या कॉपी-पेस्ट संस्कृति का परिणाम है।
RIP कब कहते है? किसी की मृत्यु हो जाने पर। किन्तु यह सभी व्यक्तियों के लिए कहना सही नहीं है।
ये कहना गलत नहीं है, इसका गलत होना मृतक के ऊपर निर्भर करता है. यदि मृतक कोई ईसाई या इस्लाम धर्म को मानने वाला हो तो यह बात बिलकुल सही है । किन्तु यदि वह कोई सनातन धर्म या जैन, बौद्ध या सिख धर्म का हो तो यह गलत है ।
क्योंकि RIP की उत्पत्ति Latin शब्द ‘Requiescat in pace’ से हुआ है जो समय के साथ requiescat in permanens या फिर rest in peace से होता हुआ आज R.I.P बन गया है. ये requiescat in permanens कैथोलिक प्रार्थनाओं में प्रयोग होता था जिसका अर्थ है कि ‘आत्मा शान्ति से आराम करे फैसले के दिन का.’ इसका प्रयोग अट्ठारवीं शताब्दी में रोमन कैथोलिक मत को मानने वालों की कब्रों के शिलालेख पर लैटिन भाषा और बाद में अंग्रेजी में मिलता है।
वो ऐसा मानते हैं कि जीवन सिर्फ एक बार मिलता है और मृत्यु के पश्चात शरीर फैसले के दिन तक यही आराम करता है. यहीं से इसका प्रसार और प्रचार मिशनरीज और कान्वेंट स्कूलों से होता हुआ आज हर ओर फैल चुका है.
ईसाई धर्म पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करता और वो पुनरुत्थान को मानता है।
पुनर्जन्म और पुनरुत्थान में अंतर है, जहां एक ओर पुनर्जन्म में हम शरीर की नहीं आत्मा की बात करते हैं तो वहीं दूसरी ओर पुनरुत्थान में आत्मा जैसी कोई चीज नहीं होती. वहां शरीर होता है जिसे दफनाया गया है. वे परमेश्वर की शक्ति से दोबारा ज़िंदा किए जाएंगे। श्रीमद्भगवत गीता में श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि शरीर नश्वर है और आत्मा अजर अमर है इसलिए शरीर को पंचतत्वों में विलीन करने हेतु उसे जलाया जाता है।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।
अर्थात इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकती है.
सनातन धर्म के अनुसार मनुष्य की मृत्यु होते ही आत्मा निकलकर किसी दूसरे नए जीव/शरीर में प्रवेश कर जाती है. या मोक्ष प्राप्त कर परब्रह्म में विलीन हो जाती है। हम यह मानते हैं कि आत्मा अमर है और वो पुराने शरीर को त्याग कर नए शरीर में चली जाती है या मोक्ष प्राप्त कर परब्रह्म में विलीन हो जाती है।
इसलिए हिंदुओं को कहना चाहिए – भगवान इनकी आत्मा को शांति दे/सद्गति दे/मोक्ष दे या ॐ शांति, शांति, शांति।