मोदी ने शिव के अदभूत लिंगराज रूप के दर्शन किये
16 अप्रैल; मोदी ने की लिंगराज मंदिर में पूजा, मंदिर में भगवान शिव के लिंगराज रूप के दर्शन किये, नेहरू के बाद ऐसा करने वाले दूसरे पीएम; पीएम मोदी देश के दूसरे प्रधानमंत्री हैं जो लिंगराज मंदिर के दर्शन के लिए गये हैं. लिंगराज मंदिर और गर्भगृह में न तो कैमरा ले जाने की अनुमति है और ना ही यहां की तस्वीरें ली जा सकती हैं. मुख्य मंदिर में 8 फीट मोटा और करीब 1 फीट ऊंचा ग्रेनाइट पत्थर का स्वयंभू शिव लिंग विराजमान हैं. लिंगराज मंदिर कुछ कठोर मान्यताओं के लिए भी जाना जाता है. मंदिर में हिंदुओं के अलावा किसी और धर्म के लोगों के जाने की अनुमति नहीं है. मंदिर के प्रवेश द्वार पर साफ साफ लिखा है- केवल हिंदू श्री लिंगराज मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं. हालांकि मंदिर के बगल में ये ऊंचा चबूतरा बनाया गया है, जिसके जरिए दूसरे धर्म के लोग मंदिर के दर्शन कर सकें.
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इन्हें सभी शिवलिंगों का राजा भी कहा जाता है. चौदह सौ साल पुराने इस शिवमंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां के सरोवर में देश की सभी पवित्र नदियों का जल मिला है. ये मंदिर दुनिया के तमाम शिवमंदिरों में सबसे अलग और सबसे खास है क्यों कि इसे देश के सभी ज्योतिर्लिंगों का स्वामी कहा जाता है. यहां के दर्शन से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. तीनों लोकों के स्वामी भगवान त्रिभुवनेश्वर को समर्पित ये मंदिर 12 ज्यतिर्लिंगों में शामिल तो नहीं है लेकिन यहां की मान्यता किसी ज्योतिर्लिंग से कम नहीं है. कई धार्मिक ग्रंथों में भी लिंगराज मंदिर का जिक्र किया गया है. कहा जाता है कि यहीं पर माता पार्वती ने लिट्टी और बसा नाम के दो राक्षसों का बध किया था.
राक्षसों के साथ हुए इस संग्राम के बाद जब माता पार्वती को प्यास लगी, तो शिवजी ने एक कुआं बनाकर सभी पवित्र नदियों को इसमें आने को कहा. आज भी मंदिर के पास बिंदूसागर सरोवर को लेकर मान्यता है कि यहां देश भर के सभी पवित्र नदियों का जल समाहित है. मान्यता है कि यहां स्नान से इंसान तमाम पापों से मुक्ति पा लेता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को भुवनेश्वर स्थित प्रसिद्ध लिंगराज मंदिर में जलाभिषेक के बाद पूजा अर्चना की. इस दौरान मंदिर के पुजारियों ने मंत्रोच्चार भी किए. मंदिर परिसर में प्रधानमंत्री का जोरदार स्वागत किया गया. वहां मौजूद लोगों ने उन्हें फूलों का गुलदस्ता भेंट किया. उन्होंने भी हाथ हिलाकर लोगों का अभिवादन किया. बता दें कि लिंगराज मंदिर जाने वाले पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे.
इस दौरान पीएम मोदी के साथ लोगों ने तस्वीरें भी खिंचवाई और पीएम पूरे मंदिर प्रांगण में घूमे. मंदिर में मौजूद सभी ज्योतिर्लिंगों के दर्शन भी किए. मंदिर में लोगों की भारी भीड़ भी मौजूद थी और प्रधानमंत्री ने सभी का गर्मजोशी के साथ अभिवादन किया. पीएम ने मंदिर की वीवीआईपी पुस्तिका में संदेश भी लिखा. लिंगराज मंदिर पहुंचने से पहले पीएम मोदी ब्रिटिश उपनिवेश के खिलाफ 1817 में हुए पाइका विद्रोह के लड़ाकों के परिजनों से मुलाकात की.
लिंगराज मंदिर में पुजारियों और लोगों ने पीएम मोदी के साथ सेल्फी ली. इस मौके पीएम मोदी के साथ केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी मौजूद थे. पीएम मोदी लिंगराज मंदिर में करीब 20 मिनट तक रहे.
लिंगराज को सभी शिवलिंगों का राजा माना जाता है. इस मंदिर का निर्माण सोमवंशी राजा जजाति केशरी ने 11 वीं शताब्दी में कराया था. मंदिर के प्रांगण में बिन्दुसागर सरोवर है. मान्यता है कि इसमें देश के सभी झरनों और नदियों का जल संग्रहित है.
लिंगराज मंदिर भारत के ओडिशा प्रांत की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है। यह इस शहर के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। हालांकि भगवान त्रिभुवनेश्वर को समर्पित इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप 1090-1104 में बना, किंतु इसके कुछ हिस्से 1400 वर्ष से भी ज्यादा पुराने हैं। इस मंदिर का वर्णन छठी शताब्दी के लेखों में भी आता है।[1]
लिंगराज मन्दिर, भुवनेश्वर का मुख्य मन्दिर है, जिसे ललाटेडुकेशरी ने 617-657 ई. में बनवाया था।
धार्मिक कथा है कि लिट्टी तथा वसा नाम के दो भयंकर राक्षसों का वध देवी पार्वती ने यहीं पर किया था। संग्राम के बाद उन्हें प्यास लगी, तो शिवजी ने कूप बनाकर सभी पवित्र नदियों को योगदान के लिए बुलाया। यहीं पर बिन्दूसागर सरोवर है तथा उसके निकट ही लिंगराज का विशालकाय मन्दिर है। सैकड़ों वर्षों से भुवनेश्वर यहीं पूर्वोत्तर भारत में शैवसम्प्रदाय का मुख्य केन्द्र रहा है। कहते हैं कि मध्ययुग में यहाँ सात हज़ार से अधिक मन्दिर और पूजास्थल थे, जिनमें से अब क़रीब पाँच सौ ही शेष बचे हैं।
यह जगत प्रसिद्ध मन्दिर उत्तरी भारत के मन्दिरों में रचना सौंदर्य तथा शोभा और अलंकरण की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। लिंगराज का विशाल मन्दिर अपनी अनुपम स्थात्यकला के लिए भी प्रसिद्ध है। मन्दिर में प्रत्येक शिला पर कारीगरी और मूर्तिकला का चमत्कार है। इस मन्दिर का शिखर भारतीय मन्दिरों के शिखरों के विकास क्रम में प्रारम्भिक अवस्था का शिखर माना जाता है। यह नीचे तो प्रायः सीधा तथा समकोण है किन्तु ऊपर पहुँचकर धीरे-धीरे वक्र होता चला गया है और शीर्ष पर प्रायः वर्तुल दिखाई देता है। इसका शीर्ष चालुक्य मन्दिरों के शिखरों पर बने छोटे गुम्बदों की भाँति नहीं है। मन्दिर की पार्श्व-भित्तियों पर अत्यधिक सुन्दर नक़्क़ाशी की हुई है। यहाँ तक कि मन्दिर के प्रत्येक पाषाण पर कोई न कोई अलंकरण उत्कीर्ण है। जगह-जगह मानवाकृतियों तथा पशु-पक्षियों से सम्बद्ध सुन्दर मूर्तिकारी भी प्रदर्शित है। सर्वांग रूप से देखने पर मन्दिर चारों ओर से स्थूल व लम्बी पुष्पमालाएँ या फूलों के मोटे गजरे पहने हुए जान पड़ता है। मन्दिर के शिखर की ऊँचाई 180 फुट है। गणेश, कार्तिकेय तथा गौरी के तीन छोटे मन्दिर भी मुख्य मन्दिर के विमान से संलग्न हैं। गौरीमन्दिर में पार्वती की काले पत्थर की बनी प्रतिमा है। मन्दिर के चतुर्दिक गज सिंहों की उकेरी हुई मूर्तियाँ दिखाई पड़ती हैं।
गर्भग्रह के अलावा जगमोहन तथा भोगमण्डप में सुन्दर सिंहमूर्तियों के साथ देवी-देवताओं की कलात्मक प्रतिमाएँ हैं। यहाँ की पूजा पद्धति के अनुसार सर्वप्रथम बिन्दुसरोवर में स्नान किया जाता है, फिर क्षेत्रपति अनंत वासुदेव के दर्शन किए जाते हैं, जिनका निर्माणकाल नवीं से दसवीं सदी का रहा है।। गणेश पूजा के बाद गोपालनीदेवी, फिर शिवजी के वाहन नंदी की पूजा के बाद लिंगराज के दर्शन के लिए मुख्य स्थान में प्रवेश किया जाता है। जहाँ आठ फ़ीट मोटा तथा क़रीब एक फ़ीट ऊँचा ग्रेनाइट पत्थर का स्वयंभू लिंग स्थित है।
यहाँ से पूरब की ओर ब्रह्मेश्वर, भास्करेश्वर समुदाय के मन्दिर हैं। यहीं पर राजा-रानी का सुप्रसिद्ध कलात्मक मन्दिर है, जिसका निर्माण सम्भवतः सातवीं सदी में हुआ था। किन्तु मुख्यमन्दिर में प्रतिमा ध्वस्त कर दी गई थी, अतः पूजा अर्चना नहीं होती है। इसके पास ही मन्दिरों का सिद्धारण्य क्षेत्र है, जिसमें मुक्तेश्वर, केदारेश्वर, सिद्धेश्वर तथा परशुरामेश्वर मन्दिर सबसे प्राचीन माना जाता है। ये मन्दिर कलिंग और द्रविड़ स्थापत्यकला के बेजोड़ नमूने हैं, जिन पर जगह-जगह पर बौद्धकला का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है। भुवनेश्वर के प्राचीन मन्दिरों के समूह में बैतालमन्दिर का विशेष स्थान है। चामुण्डादेवी और महिषमर्दिनी देवीदुर्गा की प्राचीन प्रतिमाओं वाले इस मन्दिर में तंत्र-साधना करके आलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त की जाती हैं। इसके साथ ही सूर्य उपासना स्थल है, जहाँ सूर्य-रथ के साथ उषा, अरुण और संध्या की प्रतिमाएँ हैं। भुवनेश्वर में महाशिवरात्रि के दिन विशेष समारोह होता है। लिंगराज मन्दिर में सनातन विधि से चौबीस घंटे पूरे विधि-विधान के साथ महादेव शिवशंकर की पूजा-अर्चना की जाती है।
इस मंदिर का निर्माण सोमवंशी राजा जजाति केशरि ने ११वीं शताब्दी में करवाया था। उसने तभी अपनी राजधानी को जाजपुर से भुवनेश्वर में स्थानांतरिक किया था। इस स्थान को ब्रह्म पुराण में एकाम्र क्षेत्र बताया गया है।
मंदिर का प्रांगण 150 मीटर वर्गाकार का है तथा कलश की ऊँचाई 40 मीटर है। प्रतिवर्ष अप्रैल महीने में यहाँ रथयात्रा आयोजित होती है। मंदिर के निकट ही स्थित बिंदुसागर सरोवर में भारत के प्रत्येक झरने तथा तालाब का जल संग्रहीत है और उसमें स्नान से पापमोचन होता है।
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