मोदी उतरे सडकों पर, काल भैरव की पूजा कर विजय मांगी
2019 के लोकसभा चुनाव का ट्रेलर है उत्तर प्रदेश की जीत
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उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत होती है तो नरेन्द्र मोदी 2019 लोकसभा चुनाव के लिए दोबारा मजबूत दावेदार हो जाएंगे. बीजेपी को स्पष्ट बहुमत मिलता है तो फिर एक बार मुहर लग जाएगा कि मोदी का जादू बरकरार है वहीं अखिलेश-राहुल का मनोबल गिर जाएगा, और हो सकता है कि फिर अखिलेश यादव राहुल से राजनीतिक दूरियां बना लेंगे और मोदी के खिलाफ मुहिम को धक्का लग सकता है.
अगर सूबे में त्रिशंकु विधानसभा जैसी स्थिति बनती है तो एक अलग ढ़ंग की स्थिति बन सकती है . ऐसी स्थिति जहां पर कोई भी पार्टी अपने बलबूते पर सरकार नहीं बना पाती है तो मोदी और मायावती की दोस्ती बढ़ सकती है. मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी बचाने लिए मायावती को उत्तरप्रदेश में समर्थन कर सकते हैं चूंकि मायावती सपा से ज्यादा बीजेपी के साथ सहज महसूस करती है. अगर ऐसी स्थिति बनती है तो लोकसभा चुनाव में मोदी-मायावती की जोड़ी यूपी में जबर्दस्त मजबूत हो सकती है चूंकि इस समझौता में दोनों का हित फंसा हुआ रहेगा.
मायावती यूपी में बीजेपी का समर्थन लेती रहेंगी और दिल्ली में मोदी मायावती का समर्थन मिलता रहेगा. उत्तर प्रदेश की राजनीति का असर केन्द्र की राजनीति पर क्या पड़ेगा इसका सही सही अंदाजा 11 मार्च को ही पता चल पाएगा.
बिहार विधानसभा में करारी हार और महाराष्ट्र में शिवसेना से राजनीतिक तानातनी की वजह से बीजेपी की स्थिति 2014 के लोकसभा जैसी नहीं है. अगर यूपी में भी बिहार जैसी स्थिति बनती है तो 2019 का लोकसभा चुनाव जीतना मोदी के लिए आसान नहीं होगा.
उत्तरप्रदेश का विधानसभा चुनाव कितना महत्वपूर्ण हो गया है और क्यों देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र नरेन्द्र मोदी ने इसे प्रतिष्ठा का विषय बना दिया है. इसके पीछे कई राज छिपे हुए हैं. ये चुनाव सिर्फ उत्तरप्रदेश का चुनाव नहीं है बल्कि 2019 के लोकसभा चुनाव का ट्रेलर भी है. उत्तरप्रदेश के नतीजे तय करेंगे कि देश की राजनीति की करवट क्या होगी. क्या समीकरण होंगे और क्या परिस्थितियां बनेंगी. अखिलेश यादव की दोस्ती राहुल से आगे चलेगी या नहीं, नरेन्द्र मोदी पर खतरा है या नहीं, क्या मायावती और मोदी के बीच दुश्मनी बढ़ेगी या दोस्ती होगी. इन सारे सवालों का जवाब उत्तरप्रदेश के नतीजों में उलझी हुई है. इन सारी गुत्थियों को समझने से पहले ये समझ लेते हैं कि क्यों उत्तरप्रदेश का चुनाव इतना महत्वपूर्ण हो गया है.
अगर यूपी में अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जीत होती है तो पूरे देश में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ पार्टियों का लामबंद शुरू हो जाएगा और इसे टक्कर देना नरेन्द्र मोदी के लिए आसान नहीं होगा. अगर मायावती की जीत होती है तो मोदी पर सवाल जरूर उठेंगे लेकिन मोदी के लिए उतना हानिकारक नहीं होगा जितना अखिलेश के जीतने से माहौल बनेगा. वहीं महाराष्ट्र में शिवसेना से दूरियां बीजेपी पर काफी महंगा हो सकता है. गुजरात में हार्दिक पटेल और हरियाणा, यूपी, राजस्थान में जाट के आरक्षण की मांग को लेकर पटेल और जाटों का लगाव बीजेपी से कम हुआ है.
बनारस में शक्ति प्रदर्शन के जरिये वोटरों को आकर्षित करने का सियासी संदेश दे रही है. संभवतया इसी वजह से मोदी सरकार के दर्जनों मंत्रियों ने भी यहां डेरा जमा रखा है. दरअसल पिछली बार पूर्वांचल में सबसे ज्यादा सीटें सपा को मिली थी. इसके मद्देनजर बीजेपी अबकी किसी भी कीमत पर सपा को पछाड़कर इस अंचल में नंबर वन पार्टी बनना चाहती है. संभवतया इन्हीं वजहों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद चार-छह मार्च के बीच वाराणसी में ही रहेंगे. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पहले से ही यहां डेरा जमा रखा है. एक तरह से तीसरे चरण के चुनाव खत्म होने के बाद बीजेपी ने बीजेपी के राज्य मुख्यालय को लखनऊ से वाराणसी शिफ्ट कर दिया है.
उत्तर प्रदेश में अब फोकस वाराणसी और आस पास के इलाकों पर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो में अच्छी खासी भीड़, ‘हर-हर मोदी, घर-घर मोदी’ के नारे लगे. मोदी तीसरी बार विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करने जाएंगे और जीत का आर्शीवाद लेंगे. पीएम मोदी दोपहर करीब 12 बजे काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचें . 1 बजे तक मंदिर परिसर में पूजा पाठ करेंगे. इसके बाद काल भैरव मंदिर के लिए निकलें. विश्वनाथ मंदिर से कालभैरव मंदिर करीब दो ढाई किलोमीटर की दूरी पर है
वाराणसी में पीएम मोदी के रोडशो इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि इस जिले में आठ विधानसभा सीटें हैं लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में इस जिले की केवल तीन सीटें जीतने में ही बीजेपी कामयाब रही. इस बार पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के नाते बीजेपी के समक्ष इस आंकड़े को बढ़ाने की चुनौती है. हालांकि दो मौजूदा विधायकों के टिकट काटे जाने के बाद भितरघात की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा रहा है. इन सबकी वजह से बीजेपी खेमे में अंदरखाने बेचैनी भी है क्योंकि बीजेपी किसी भी सूरत में पूर्वांचल की धुरी कहे जाने वाले और पीएम के संसदीय क्षेत्र में किसी भी तरह के लचर प्रदर्शन से विरोधियों को आलोचना का मौका नहीं देना चाहती.
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