मोदी सरकार की नीतियों बेचैन कर देने वालीी
यह जीवन यज्ञ और सात वर्ष
राष्ट्रवादी लोगों के दम पर नरेंद्र मोदी की सरकार तो आ गयी मगर अनवरत विदेशी सामान का आयात और एफडीआई पर उदार होती मोदी सरकार की नीतियों और अमेरिका का अंधानुकरण बेचैन कर देने वाला है। वहीं अपसंस्कृति, अंग्रेजी का वर्चस्व,विदेशी शिक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय की लूट, नारी का शोषण, बिकाऊ और राष्ट्र विरोधी मीडिया, ड्रग्स, पोर्न, जाली मुद्रा, सट्टा और हथियारों का माफिया आज भी हम पर हावी है।बिल्कुल भी आसान नहीं रहा डायलॉग इंडिया का पिछले सात वर्षों का सफर। सत्य की ताप के साथ रोज संघर्ष और अग्निपरीक्षा। सितंबर 2009 से शुरू मेरा यह ऐतिहासिक संघर्ष आज भी जारी है। जब हम शुरुआत कर रहे थे तो देश एवं व्यवस्था में फैली विकराल भ्रष्टाचार, अराजकता, लूट और जनता पर थोपी जा रही विदेशी संस्कृति और सामान से उत्पन्न असंतोष और घुटन से ही डायलॉग इंडिया का बीज पड़ा। अपनी समृद्ध जीवन शैली व सुख त्यागकर ही मैं इस आग में कूदा और अपने जून 2010 अंक में हमने देश में बड़े सत्ता परिवर्तन के आंदोलन की नींव के रूप में 6 बड़े घोटाले एक साथ उजागर किये और उसी के परिणामस्वरूप अगस्त 2010 से देश में जन आंदोलनों की एक श्रृंखला शुरू हो गयी। इन आंदोलनों की एक ही पत्रिका रही वो है डायलॉग इंडिया, जो न केवल इन आंदोलनों को दिशा देती रही वरन राष्ट्रवादी लोगों के एक संगठन मौलिक भारत के निर्माण में उत्प्रेरक बनी। हमने व्यवस्था की बेशर्मियों को बेबाकी से उजागर किया, वैकल्पिक नेतृत्व और नीतियों को सामने लाये और असली एवम नकली आन्दोलकारी कौन है यह भी जनता को बताया। तत्कालीन यूपीए सरकार ने हमारे खिलाफ बहुत से षड्यंत्र रचे और जांच बैठाई, किंतु लाख बाधाओं के बाद भी कलम की तलवार की यह लड़ाई उसी वेग और मनोयोग से जारी है।
बदलाव की यह जंग बहुत लंबी है मित्रों। कुछ लोगों ने कहा कि अब तो देश में राष्ट्रवादी सरकार आ गयी है, अब कलम को विश्राम दो और कामधंधे में लगो, किंतु क्या यह सच है? राष्ट्रवादी लोगों के दम पर नरेंद्र मोदी की सरकार तो आ गयी मगर अनवरत विदेशी सामान का आयात और एफडीआई पर उदार होती मोदी सरकार की नीतियों और अमेरिका का अंधानुकरण बेचैन कर देने वाला है। वहीं अपसंस्कृति, अंग्रेजी का वर्चस्व, विदेशी शिक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय की लूट, नारी का शोषण, बिकाऊ और राष्ट्र विरोधी मीडिया,ड्रग्स, पोर्न, जाली मुद्रा, सट्टा और हथियारों का माफिया आज भी हम पर हावी है। देश को बिखेरने में यकीन रखने वाले विदेशी अनुदान से चलने वाले एनजीओ मूवमेंट को विदेशों से मिलने वाले फण्ड में लाख कोशिशों के बाद भी कोई खास कमी नहीं आयी है। आर्थिक वृद्धि का रोजगार से कोई तालमेल नहीं। अनेक मुद्दों पर चाहे वह हिंदुओं के सम्मान से जीने का हक़ हो या फिर भारतीय संस्कृति के संवर्धन का विषय या फिर विपक्ष द्वारा समय समय पर उठाये जा रहे विवाद जैसे उच्च शिक्षा संस्थानों का भगवाकरण, अवार्ड वापसी, किसान और सैनिकों के मुद्दे, गुर्जर, जाट, मीणा और दलित आदि के आरक्षण के आंदोलन या फिर हिंदी को बढ़ाबा, या पार्टी और मंत्रियों पर नियंत्रण, सभी पर मोदी सरकार लंबे समय तक अनिश्चय का शिकार रही जिसका जनता में गलत संदेश गया। हाल ही के मंत्रिमण्डल विस्तार, सफल संसद सत्र, जीएसटी बिल को मंजूरी और कश्मीर पर आक्रामक नीति के बाद पहली बार लगा कि देश में एक पूर्ण बहुमत की रीढ़ वाली सरकार है। ऐसी स्थितियों में डायलॉग इंडिया की भूमिका बनाये रखने की और जरुरत स्पष्ट महसूस होती है।
देश में एक और बड़ा क्षरण चुनाव सुधारों के मोर्चे पर है। पैसे के जाल ने सभी राजनीतिक दलों को बुरी तरह जकड़ लिया है। हाल ही में उत्तराखण्ड और अरुणाचल प्रदेश में यह वीभत्स रूप में सामने आया है, जब एक पूर्व मुख्यमंत्री को आत्महत्या तक करने की नौबत आ गयी। करोड़ों रुपयों में टिकट बेचे जा रहे हैं और रातोंरात वफादारियां बदल रही हैं, यह जनता और लोकतंत्र के लिए घातक है और डायलॉग इंडिया को इसके लिए लंबी जंग लडऩी है। फिर गिरोह सी बनती न्यायपालिका और माफिया जैसी नौकरशाही से भी जंग जारी है। सच तो यह है कि केन्द्र सरकार के स्तर पर कुछ सार्थक पहल हुई है और दो चार राज्य सरकारें कुछ उम्मीद जगाती हैं। इन्हीं चिंगारियों और रोशनियों को एकत्र कर मशाल बना डायलॉग इंडिया मौलिक भारत के निर्माण हेतु एक और बड़े संघर्ष के लिए कमर कस चुकी है और हमेशा की तरह आप सब साथ हो ही। हो न!
—
———————————————————–
Anuj Agrawal, Editor
Dialogue India ( Career Magazine)