परमिशन नहीं थी- कार्रवाई होगी; चुनाव आयोग ने कहा –
मोदी के रोड शो पर #उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की रणनीति
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मोदी के रोड शो पर चुनाव आयोग ने कहा कि इसकी परमिशन नहीं थी। कार्रवाई की जाएगी।
मोदी के रोड शो को लेकर चुनाव आयोग सख्ती दिखाई है। चीफ डेवलपमेंट ऑफिसर (सीडीओ) पुलकित खरे ने कहा कि रोड शो की परमिशन नहीं थी। इसके बाद भी शो किया गया। कार्रवाई की जाएगी।
कालभैरव मंदिर के महंत राजेश गिरी ने बताया कि देश के प्रधानमंत्री और काशी के सांसद मोदी काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव के दर्शन करेंगे। मोदी जब से काशी के सांसद बने हैं, उनके हर दौरे पर काशी के कोतवाल के दर्शन के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन इन कयासों से परे काशी की जनता को बीजेपी के पक्ष में वोट देने की अपील करने के लिए वे काशी पहुंचे हैं।
जनाथ सिंह, अरुण जेटली, पीयूष गोयल, रविशंकर प्रसाद, स्मृति ईरानी, संतोष गंगवार, कलराज मिश्र, वेंकैया नायडू, जेपी नड्डा, अनुप्रिया पटेल और महेेंद्र पांडे में भी दो दिन वाराणसी और उसके आसपास के इलाकों में एक्टिव रहेंगे अौर प्रचार में पूरा जोर लगाएंगे।
यूपी चुनाव के 7th और अंतिम फेज के प्रचार के लिए नरेंद्र मोदी शनिवार को बनारस पहुंचे। बीएचयू गेट पर मदन मोहन मालवीय की प्रतिमा का माल्यार्पण कर उन्होंने रोड शो शुरू किया। 12 किमी का सफर तय कर मोदी विश्वनाथ मंदिर पहुंचेंगे। यहां 8 मार्च को वोटिंग होनी है। शाम तक वे तीन सभाओं को भी एड्रेस करेंगे। मोदी के साथ उनकी कैबिनेट के 11 मंत्री सोमवार तक बनारस में रहेगी। चुनाव आयोग ने मोदी के रोड शो पर सख्ती दिखाते हुए कहा कि इसकी परमिशन नहीं थी। कार्रवाई की जाएगी।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की रणनीति पर सबकी नजरें टिकी हैं. चर्चा इसलिए ज्यादा है कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पूरी यूपी की कमान अपने हाथों में ले रखी है. शाह के सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले ने विरोधियों को बार-बार अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर भी कर दिया है.
अगड़ों की पार्टी कही जाने वाली बीजेपी अब पिछड़ों की पार्टी बन गई है. लेकिन, ये परिवर्तन रातों-रात नहीं हुआ है. 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले ही जब अमित शाह को यूपी का प्रभार दिया गया तो मरी हुई पार्टी में एक नई जान फूंकने के लिए शाह ने हिंदुत्व के साथ-साथ जातीय गोलबंदी शुरू की थी.
नरेंद्र मोदी के पिछड़ी जाति से होने को भी पूरी रणनीति के केंद्र में रखा गया था. मोदी के पिछड़ा कार्ड को भुनाने की कोशिश में बीजेपी ने कभी भी संकोच नहीं किया.
यूपी के भीतर यह प्रयोग कारगर साबित हुआ था. लेकिन, लोकसभा चुनाव के बाद भी इस फॉर्मूले को धार देने की कोशिश होती रही. अमित शाह को मालूम था कि विधानसभा चुनाव के वक्त अखिलेश यादव के यादव कार्ड और मायावती के जाटव कार्ड की काट के लिए बाकी पिछड़ी जातियों की गोलबंदी जरूरी होगी.
यादव को छोड़कर यूपी में सैनी, शाक्य, कश्यप, कुर्मी, मौर्य, प्रजापति, लोध समेत कई ऐसी जातियां हैं जो काफी प्रभाव रखती हैं. इनमें नाई, लोहार, कुम्हार, बढ़ई, सोनार, माली, केवट समेत कई छोटी जातियां हैं जो कभी बीएसपी के साथ तो कभी एसपी के साथ खड़ी दिखती रही हैं. बीजेपी की तरफ से इन छोटी जातियों को अपने साथ करने की पूरी कोशिश की जा रही है.
पूर्वांचल में नोनिया, राजभर और पटेल को साथ रखने के लिए भी अमित शाह ने पूरी कोशिश कर रहे हैं. खासतौर से राजभर समुदाय के ओमप्रकाश राजभर और पटेल समुदाय की अनुप्रिया पटेल की पार्टी के साथ कुछ सीटों पर समझौता कर इन जातियों के वोट अपने पाले में करने की कोशिश की जा रही है.
गैर-यादव पिछड़ी जाति की संख्या यूपी के भीतर लगभग 35 फीसदी है और बीजेपी ने 130 सीटों पर उन्हें इस बार मैदान में उतारा है. बीजेपी के रणनीतिकार अमित शाह उन्हें इस बात का भरोसा दिलाने में कामयाब रहे कि उनकी भी सत्ता में हिस्सेदारी मिलेगी.
काफी मंथन के बाद बीजेपी ने पिछड़ी जाति के केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष के पद पर बैठाकर एक संदेश देने की कोशिश भी की थी.
दूसरी तरफ गैर-जाटव दलित समुदाय को भी अपने साथ जोड़ने की पूरी कवायद की गई. बीजेपी ने कोरी, पासवान, खटिक और धोबी समेत गैर-जाटव दलित समुदाय को लुभाने की पूरी कोशिश की है.
बीजेपी के परंपरागत वोट बैंक ब्राम्हण, बनिया और दूसरी सवर्ण जातियों का साथ बरकरार रखने की कोशिश भी हुई है. दरअसल, बीजेपी ने एक बार फिर से उसी फॉर्मूले को अपनाया है जो यूपी में कल्याण सिंह को सामने रखकर तैयार किया गया था.
बीजेपी के थिंकटैंक रहे गोविंदाचार्य ने उस वक्त सबसे पहले सोशल-इंजीनियरिंग का फॉर्मूला पेश किया था. अब बीजेपी के नए रणनीतिकार अमित शाह उसी सोशल इंजीनियरिंग को नई धार देकर बीजेपी के चाल, चरित्र और चेहरे को नए कलेवर में सामने रख रहे हैं.
बीजेपी में जिताऊ दलबदलुओं को तरजीह
बीजेपी का चाल, चरित्र और चेहरा अब बदलने लगा है. बीजेपी पार्टी विद द डिफरेंस के नाम से जानी जाती थी.
लेकिन, अब इन चुनावों में दूसरे दलों से आए हर तरह के उम्मीदवारों को टिकट देने की कोशिश की गई, जो जिताऊ भी हों. ये वक्त के साथ बदलती बीजेपी का बदलता रूप है जो अपने कैडर्स से ज्यादा दलबदलुओं को ज्यादा तरजीह दे रहा है.
यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इस बार बिना किसी हिचक के एसपी और बीएसपी से आए उन नेताओं को टिकट थमा दिया जो पार्टी के जातीय समीकरण के हिसाब से ठीक लग रहे थे.
लेकिन, शाह और मोदी का फॉर्मूला केवल यूपी में ही नहीं है. इस फॉर्मूले को पहले गुजरात में, फिर हरियाणा में भी आजमाया जा चुका है. गुजरात में शक्तिशाली पटेल समुदाय में बीजेपी की पैठ पहले से ही थी.
मोदी के हाथ में गुजरात की सत्ता आने के बाद से ही गैर-पटेल समुदाय का ऐसा समीकरण तैयार हुआ, जिसके आगे पटेलों की कई दफा नाराजगी भी फीकी पड़ गई.
यही हाल हरियाणा में भी रहा जब मनोहर लाल खट्टर की अगुआई में गैर-जाट जातियों की गोलबंदी देखने को मिल रही है, जो बीजेपी की आगे की रणनीति का केंद्र बनकर उभर रही है.
महाराष्ट्र में भी जब सरकार बनाने की बात आई तो बीजेपी ने गैर-मराठा देवेंद्र फणनवीस पर दांव खेलकर बाकी जातियों को अपने साथ जोड़ने की कवायद शुरू कर दी है. इसका फायदा महाराष्ट्र के स्थानीय चुनावों में देखने को मिल रहा है.
वक्त के साथ बीजेपी बदल रही है. ये बदलाव जमीन पर दिख भी रहा है. अब अटल-आडवाणी के दौर की बीजेपी मोदी-शाह की बीजेपी हो गई है जो हिंदुत्व के साथ –साथ सोशल इंजीनियरिंग पर ज्यादा भरोसा करती है.