प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए प्रेस परिषद की कल्पना की थी
राष्ट्रीय प्रेस दिवस ः १६ नवंबर
आईएफएसएमएन उत्तराखण्ड प्रदेश अध्यक्ष चन्द्रशेखर जोशी ने राष्ट्रीय प्रेस दिवस के बारे में विस्तार से बताया कि प्रथम प्रेस आयोग ने भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा एंव पत्रकारिता में उच्च आदर्श कायम करने के उद्देश्य से एक प्रेस परिषद की कल्पना की थी। परिणाम स्वरूप चार जुलाई १९६६ को भारत में प्रेस परिषद की स्थापना की गई जिसने १६ नंवबर १९६६ से अपना विधिवत कार्य शुरू किया। तब से लेकर आज तक प्रतिवर्ष १६ नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व में आज लगभग ५० देशों में प्रेस परिषद या मीडिया परिषद है। भारत में प्रेस को वाचडॉग एंव पेस परिषद इंडिया को मोरल वाचडॉग कहा गया है। राष्ट्रीय प्रेस दिवस, प्रेस की स्वतंत्रता एंव जिम्मेदारियों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करता है।
1६ नवम्बर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर भारत के लघु एवं मध्यम समाचार पत्रो के महासंघ इंडियन फैडरेशन आफ स्माल एण्ड मीडियम न्यूज पेपर्स, नई दिल्ली के नेशनल प्रेसीडेंट अम्बिका प्रसाद दास- उडीसा के वरिष्ठ पत्रकार, तथा नैशनल जनरल सेक्रेटरी लक्ष्मण पटेल अहमदाबाद के वरिष्ठ पत्रकार, उपाध्यक्ष- श्री एमके मोदी राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार, श्री रविन्द्र गुप्ता- दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार, नेशनल कोषाध्यक्ष मो0 इकबाल दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार ने अपनी शुभकामनाये प्रेषित की है-
www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal Bureau) Dehradun, Uttrakhand;
1६ नवम्बर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर हम स्वतंत्र, पक्षपात रहित तथा नीतिगत पत्रकारिता के प्रति अपनी कटिबद्वता को दोहराने का वचन देते हैं। राष्ट्रीय प्रस दिवस के अवसर पर इंडियन फैडरेशन आफ स्माल एण्ड मीडियम न्यूज पेपर्स की उत्तराखण्ड इकाई के अध्यक्ष चन्द्रशेखर जोशी ने अपने संदेश में कहा कि फैडरेशन प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने तथा इसके स्तर को बनाये रखने में लम्बी अवधि से अग्रणी है। ऐसे में भारतीय प्रेस परिषद भी फैडरेशन आफ स्माल एण्ड मीडियम न्यूज पेपर्स से आशा व्यक्त करती है कि स्वतंत्र, पक्षपात रहित तथा नीतिगत पत्रकारिता के प्रति कटिबद्वता की वचनबद्वता की घोषणा को बनाये रखेगें।
भारतीय प्रेस परिषद ने आईएफएसएमएन से जो अपेक्षा की है, उत्तराखण्ड इकाई ने अपनी वचनबद्वता की घोषणा को पुनः दोहराया।
प्रदेश अध्यक्ष चन्द्रशेखर जोशी ने राष्ट्रीय प्रेस दिवस के बारे में विस्तार से बताया कि प्रथम प्रेस आयोग ने भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा एंव पत्रकारिता में उच्च आदर्श कायम करने के उद्देश्य से एक प्रेस परिषद की कल्पना की थी। परिणाम स्वरूप चार जुलाई १९६६ को भारत में प्रेस परिषद की स्थापना की गई जिसने १६ नंवबर १९६६ से अपना विधिवत कार्य शुरू किया। तब से लेकर आज तक प्रतिवर्ष १६ नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व में आज लगभग ५० देशों में प्रेस परिषद या मीडिया परिषद है। भारत में प्रेस को वाचडॉग एंव पेस परिषद इंडिया को मोरल वाचडॉग कहा गया है। राष्ट्रीय प्रेस दिवस, प्रेस की स्वतंत्रता एंव जिम्मेदारियों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करता है।
इस अवसर पर उत्तराखण्ड अध्यक्ष आईएफएसएमएन चन्द्रशेखर जोशी ने राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर शुभकामनायें प्रेषित की। आईएफएसएमएन केे प्रदेश महासचिव संजीव शर्मा, तथा अन्य वरिष्ठ पत्रकार जिसमें गणेश पाठक, दीपक जुयाल, अरूण यादव, जीतमणि पैनयूली, आलम राजा, गुरमीत सिंह, मंजू शर्मा, मनोज अनुरागी, मनोज पांगती, प्रेम प्रकाश साहनी, सुदीप नरेन्द्र, सुमित धीमान, तेजराम सेमवाल, राजेश शर्मा, राजेन्द्र जिंदल आदि ने प्रेस दिवस पर सभी पत्रकार बंधुओ को अपनी शुभकामनाये दी
आज पत्रकारिता का क्षेत्र व्यापक हो गया है। पत्रकारिता जन-जन तक सूचनात्मक, शिक्षाप्रद एवं मनोरंजनात्मक संदेश पहुँचाने की कला एंव विधा है। समाचार पत्र एक ऐसी उत्तर पुस्तिका के समान है जिसके लाखों परीक्षक एवं अनगिनत समीक्षक होते हैं। अन्य माध्यमों के भी परीक्षक एंव समीक्षक उनके लक्षित जनसमूह ही होते है। तथ्यपरकता, यथार्थवादिता, संतुलन एंव वस्तुनिष्ठता इसके आधारभूत तत्व है। परंतु इनकी कमियाँ आज पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत बडी त्रासदी साबित होने लगी है। पत्रकार चाहे पशिक्षित हो या गैर प्रशिक्षित, यह सबको पता है कि पत्रकारिता में तथ्यपरकता होनी चाहिए। परंतु तथ्यों को तोड-मरोड कर, बढा-चढा कर या घटाकर सनसनी बनाने की प्रवृति आज पत्रकारिता में बढने लगी है। खबरों में पक्षधरता एवं अंसतुलन भी प्रायः देखने को मिलता है। इस प्रकार खबरों में निहित स्वार्थ साफ झलकने लग जाता है। आज समाचारों में विचार को मिश्रित किया जा रहा है। समाचारों का संपादकीयकरण होने लगा है। विचारों पर आधारित समाचारों की संख्या बढने लगी है। इससे पत्रकारिता में एक अस्वास्थ्यकर पवृति विकसित होने लगी है। समाचार विचारों की जननी होती है। इसलिए समाचारों पर आधारित विचार तो स्वागत योग्य हो सकते हैं, परंतु विचारों पर आधारित समाचार अभिशाप की तरह है।
मीडिया को समाज का दर्पण एवं दीपक दोनों माना जाता है। इनमें जो समाचार मीडिया है, चाहे वे समाचारपत्र हो या समाचार चैनल, उन्हें मूलतः समाज का दर्पण माना जाता है। दर्पण का काम है समतल दर्पण का तरह काम करना ताकि वह समाज की हू-ब-हू तस्वीर समाज के सामने पेश कर सकें। परंतु कभी-कभी निहित स्वार्थों के कारण ये समाचार मीडिया समतल दर्पण का जगह उत्तल या अवतल दर्पण का तरह काम करने लग जाते हैं। इससे समाज की उल्टी, अवास्तविक, काल्पनिक एवं विकृत तस्वीर भी सामने आ जाती है।
तात्पर्य यह है कि खोजी पत्रकारिता के नाम पर आज पीली व नीली पत्रकारिता हमारे कुछ पत्रकारों के गुलाबी जीवन का अभिन्न अंग बनती जा रही है। भारतीय प्रेस परिषद ने अपनी रिपोर्ट में कहा भी है भारत में प्रेस ने ज्यादा गलतियाँ की है एंव अधिकारियों की तुलना में प्रेस के खिलाफ अधिक शिकायतें दर्ज हैं।
पत्रकारिता आजादी से पहले एक मिशन थी। आजादी के बाद यह एक प्रोडक्शन बन गई। बीच में आपातकाल के दौरान जब प्रेस पर सेंसर लगा था। तब पत्रकारिता एक बार फिर थोडे समय के लिए भ्रष्टाचार मिटाओं अभियान को लेकर मिशन बन गई थी। धीरे-धीरे पत्रकारिता प्रोडक्शन से सेन्सेशन एवं सेन्सेशन से कमीशन बन गई है। परंतु इन तमाम सामाजिक बुराइयों के लिए सिर्फ मीडिया को दोषी ठहराना उचित नहीं है। जब गाडी का एक पुर्जा टूटता है तो दूसरा पुर्जा भी टूट जाता है और धीरे-धीरे पूरी गाडी बेकार हो जाती है। समाज में कुछ ऐसी ही स्थिति लागू हो रही है। समाज में हमेशा बदलाव आता रहता है। विकल्प उत्पन्न होते रहते हैं। ऐसी अवस्था में समाज अमंजस की स्थिति में आ जाता है।
पत्रकारिता आजादी से पहले एक मिशन थी। आजादी के बाद यह एक प्रोडक्शन बन गई। बीच में आपातकाल के दौरान जब प्रेस पर सेंसर लगा था। तब पत्रकारिता एक बार फिर थोडे समय के लिए भ्रष्टाचार मिटाओं अभियान को लेकर मिशन बन गई थी। धीरे-धीरे पत्रकारिता प्रोडक्शन से सेन्सेशन एवं सेन्सेशन से कमीशन बन गई है। परंतु इन तमाम सामाजिक बुराइयों के लिए सिर्फ मीडिया को दोषी ठहराना उचित नहीं है। जब गाडी का एक पुर्जा टूटता है तो दूसरा पुर्जा भी टूट जाता है और धीरे-धीरे पूरी गाडी बेकार हो जाती है। समाज में कुछ ऐसी ही स्थिति लागू हो रही है। समाज में हमेशा बदलाव आता रहता है। विकल्प उत्पन्न होते रहते हैं। ऐसी अवस्था में समाज अमंजस की स्थिति में आ जाता है।
इस स्थिति में मीडिया समाज को नई दिशा देता है। मीडिया समाज को प्रभावित करता है, लेकिन कभी-कभी येन-केन प्रकारेण मीडिया समाज से प्रभावित होने लगता है। राष्ट्रीय प्रेस दिवसके अवसर पर देश की बदलती पत्रकारिता का स्वागत है बशर्ते वह अपने मूल्यों और आदर्शों की सीमा-रेखा कायम रखें।
उत्तराखण्ड राज्य गठन में भी पत्रकारिता का अभूतपूर्व योगदान है, परन्तु जिसे आज भूला दिया जा रहा है।
इस अवसर पर उत्तराखण्ड अध्यक्ष आईएफएसएमएन चन्द्रशेखर जोशी ने राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर शुभकामनायें प्रेषित की। आईएफएसएमएन केे प्रदेश महासचिव संजीव शर्मा, तथा अन्य पदाधिकारी जिसमें गणेश पाठक, दीपक जुयाल, अरूण यादव, जीतमणि पैनयूली, आलम राजा, गुरमीत सिंह, मंजू शर्मा, मनोज अनुरागी, मनोज पांगती, प्रेम प्रकाश साहनी, सुदीप नरेन्द्र, सुमित धीमान, तेजराम सेमवाल, राजेश शर्मा, राजेन्द्र जिंदल आदि ने प्रेस दिवस पर सभी पत्रकार बंधुओ को अपनी शुभकामनाये दी