अाई0सी0आई0 जर्नलिज्म की रिपोर्ट से नवाज उलझते चले गये
इंटरनेशनल कॉनसोर्टियम ऑफ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म में चार अप्रैल 2016 पनामा पेपर प्रकाशित हुए और इसके जरिए दुनियाभर के अमीर लोगों द्वारा विदेशी खातों और मुखौटा कंपनियों के जरिए की गई कर चोरी का पर्दाफाश किया. इस दस्तावेज में शरीफ और उनके परिजनों के नाम थे.
Desk Report: www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal) CS JOSH- EDITOR
पाकिस्तान की सियासत में भी भूचाल आ गया है क्योंकि अब शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग(नवाज) को नया नेता चुनना होगा. यह इसलिए भी अहम है क्योंकि सत्ता अब उनके परिवार के हाथों से बाहर जा सकती है. दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी पीपीपी भी बहुत मजबूत स्थिति में नहीं है. नवाज शरीफ पनामा के बैंक में कालाधन जमा करने के दोषी – नवाज की बेटी और दामाद भी दोषी करार नवाज के भाई शाहबाज बन सकते हैं पीएम शाहबाज शरीफ अभी पंजाब के सीएम हैं इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी ने दी थी याचिका
न्यायमूर्ति एजाज अफजल खान ने सर्वोच्च न्यायालय के कोर्ट नंबर-एक में फैसला पढ़कर सुनाया। इस मौके पर पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ कार्यकर्ताओं ने अदालत के बाहर जश्न मनाया। अदालत ने शरीफ को संविधान के अनुच्छेद 62 और 63 के तहत अयोग्य ठहराया। इन अनुच्छेदों के अनुसार ससंद के सदस्य को ‘ईमानदार’ और ‘इंसाफ पसंद’ होना चाहिए। न्यायमूर्ति खान ने कहा, ‘‘वह संसद के सदस्य के तौर पर अयोग्य ठहराए जाते हैं इसलिए वह प्रधानमंत्री कार्यालय में बने रहने के योग्य नहीं रह गए।’’ इस ऐतिहासिक फैसले को सुनाने वाली पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ की अध्यक्षता न्यायमूर्ति आसिफ सईद खोसा ने की, जिन्होंने 20 अप्रैल के फैसले में मारियो पुजो के उपन्यास ‘द गॉडफादर’ के वाक्यांश का हवाला देते हुए राष्ट्र के प्रति ईमानदार न होने के लिए शरीफ को ‘अयोग्य’ घोषित किया था।
पाक में सत्ता परिवर्तन की साजिश में अदालत,सेना शामिल रहती हैं
पाकिस्तान में कोई प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा क्यों नहीं कर पाता? वहां आज तक एक ऐसा प्रधानमंत्री नहीं हुआ है, जिसने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया हो. ज्यादातर प्रधानमंत्री या तो हटाए गए या किसी वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. इसको देखकर ऐसा लगता है कि पाकिस्तान की न्याय-व्यवस्था ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ा फैसला किया है.
नवाज शरीफ को मिलाकर पाकिस्तान में 26 प्रधानमंत्री हुए हैं पाकिस्तान का दुर्भाग्य है कि वहां जब भी लोकतंत्र आया तो उसे चलने नहीं दिया गया. इसके विपरीत जितनी बार वहां फौजी सरकार आई न्यायपालिका ने कभी गैर-कानूनी करार नहीं दिया. युसुफ रज़ा गिलानी को पद से हटाने का आदेश देने वाली अदालत में मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार चौधरी समेत अनेक जज ऐसे थे, जिन्होंने परवेज़ मुशर्रफ की फौजी सरकार को वैधानिक करार दिया था. पाकिस्तानी सत्ता में हर बदलाव के पीछे कहीं-न-कहीं सेना का हाथ होता है.
पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने पनामा केस में फैसला सुनाते हए नवाज शरीफ को दोषी ठहराया है. पांच जजों की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि नवाज शरीफ के खिलाफ इस मामले में मुकदमा चलाया जाना चाहिए और उनको प्रधानमंत्री पद के अयोग्य ठहरा दिया है. इस फैसले के बाद अब नवाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नहीं रह सकते थे. लिहाजा नवाज शरीफ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और केंद्रीय मंत्रिमंडल को बर्खास्त कर दिया गया है. दरअसल इस मामले में नवाज शरीफ समेत उनके परिजनों पर काला धन छुपाने, भ्रष्टाचार और मनी लांड्रिंग के आरोप थे. इन मामलों में उनको और परिजनों को दोषी पाया गया है. इससे पहले 21 जुलाई को पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने पनामा पेपर्स मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया. जस्टिस एजाज अफजल की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. यह मामला 1990 के दशक में उस वक्त धनशोधन के जरिए लंदन में सपंत्तियां खरीदने से जुड़ा है जब शरीफ दो बार प्रधानमंत्री बने थे। शरीफ के परिवार की लंदन में इन संपत्तियों का खुलासा पिछले साल पनामा पेपर्स लीक मामले से हुआ। इन संपत्तियों के पीछे विदेश में बनाई गई कंपनियों का धन लगा हुआ है और इन कंपनियों का स्वामित्व शरीफ की संतानों के पास है। इन संपत्तियों में लंदन स्थित चार महंगे फ्लैट शामिल हैं। यह तीसरी बार है जब 67 वर्षीय शरीफ का प्रधानमंत्री का कार्यकाल बीच में ही खत्म हो गया।
सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो (नैब) को भी आदेश दिया कि वह शरीफ, उनके बेटों हुसैन एवं हसन और बेटी मरियम के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला शुरू करे। उसने यह भी आदेश दिया कि छह हफ्ते के भीतर मामला दर्ज किया जाए और छह महीने के भीतर सुनवाई पूरी की जाए। रेडियो पाकिस्तान के अनुसार वित्त मंत्री इसहाक डार और नेशनल असेंबली के सदस्य कैप्टन मुहम्मद सफदर को भी पद के अयोग्य ठहराया।
वह पाकिस्तान के सबसे रसूखदार सियासी परिवार और सत्तारूढ़ पार्टी पीएमएल-एन के मुखिया हैं। इस्पात कारोबारी-सह-राजनीतिज्ञ शरीफ पहली बार 1990 से 1993 के बीच प्रधानमंत्री रहे। उनका दूसरा कार्यकाल 1997 में शुरू हुआ जो 1999 में तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ द्वारा तख्तापलट किए जाने के बाद खत्म हो गया। सर्वोच्च न्यायालय ने शरीफ और उनके परिवार के खिलाफ लगे आरोपों की जांच के लिए इसी साल मई में संयुक्त जांच दल (जेआईटी) का गठन किया था। जेआईटी ने गत 10 जुलाई को अपनी रिपोर्ट शीर्ष अदालत को सौंपी थी।
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पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खां की हत्या हुई. उनके बाद आए सर ख्वाजा नजीमुद्दीन बर्खास्त हुए. फिर आए मोहम्मद अली बोगड़ा. वे भी बर्खास्त हुए. 1957-58 तक आने-जाने की लाइन लगी रही.
वास्तव में पाकिस्तान में पहले लोकतांत्रिक चुनाव सन 1970 में हुए. पर उन चुनावों से देश में लोकतांत्रिक सरकार बनने के बजाय देश का विभाजन हो गया और बांग्लादेश नाम से एक नया देश बन गया.
सन 1973 में ज़ुल्फिकार अली भुट्टो के प्रधानमंत्री बनने के बाद उम्मीद थी कि शायद अब देश का लोकतंत्र ढर्रे पर आएगा. ऐसा नहीं हुआ. सन 1977 में जनरल जिया-उल- हक ने न केवल सत्ता पर कब्जा किया, बल्कि ज़ुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर भी चढ़वाया. अस्सी के दशक में फिर से देश में लोकतांत्रिक सरकार लाने का आंदोलन चला. अंततः 1985 में चुनाव हुए और मुहम्मद जुनेजो प्रधानमंत्री बने. उसी दौरान वहां की संसद ने देश के राष्ट्रपति को सरकारें बर्खास्त करने का अधिकार दे दिया. इस अधिकार का इस्तेमाल करते हुए एक के बाद एक सरकारें बर्खास्त होने लगीं. सन 1999 में परवेज़ मुशर्रफ की फौजी बगावत के वक्त यह स्पष्ट था कि इस देश का लोकतंत्र से कोई वास्ता ही नहीं है. नवाज शरीफ सरकार की बर्खास्तगी पर लोग सड़कों पर नाच रहे थे. सन 2008 के बाद जब परवेज मुशर्रफ ने लोकतंत्र का रास्ता पूरी तरह साफ किया और खुद हट गए, तब लगा कि शायद लोकतंत्र अब जड़ें जमाएगा. पर चुनाव प्रचार के दौरान ही बेनजीर भुट्टो की हत्या हो गई. उस खूनी चुनाव के बाद पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को बहुमत मिला, मार्च 2008 में यूसुफ रजा गिलानी के प्रधानमंत्री बनने के बाद लगा कि वे पांच साल पूरे करेंगे. पर जून 2011 में ऐसी साजिश में जिसमें वहां की अदालत भी शामिल थी, चुने हुए प्रधानमंत्री को हटा दिया गया. भारत का संविधान 1949 में तैयार होकर 1950 में लागू भी हो गया, पर पहले पाकिस्तानी संविधान को लागू होने में नौ साल लगे. वह भी दो साल में रफा-दफा हो गया. सन 1962 में दूसरा और फिर 1973 में तीसरा संविधान बनाया गया जो आज लागू है.
1956 में संविधान लागू होने के दो साल बाद राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्ज़ा ने फौजी शासन लागू कर दिया. यह दुनिया में अपने किस्म अनोखा कारनामा था. नागरिक सरकार का राष्ट्रपति कह रहा था कि लोकतंत्र नहीं चलेगा. इस कारगुजारी का इनाम तीन हफ्ते के भीतर जनरल अयूब खां ने इस्कंदर मिर्ज़ा को बर्खास्त कर दिया और खुद राष्ट्रपति बन गए.