नीतीश कुमार और शरद यादव के बीच अघोषित युद्ध की स्थिति
जेडीयू नेता शरद अब बगावत पर उतारू दिख रहे हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पार्टी के वरिष्ठ नेता शरद यादव के अघोषित युद्ध की स्थिति है। जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष गुरुवार से बिहार की तीन दिवसीय यात्रा शुरू करने वाले हैं. शरद यादव ने साथ ही बताया कि उन्होंने समान विचारों वाले नेताओं की 17 अगस्त को दिल्ली में बैठक बुलाई है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले साल शरद यादव को जनता दल अध्यक्ष की कुर्सी से बेदखल कर खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गये। जनता दल यूनाइटेड के संस्थापक सदस्य होने के बावजूद भी शरद यादव अभी मात्र राज्यसभा के सांसद है। शरद यादव को अध्यक्ष पद से हटाया गया तो उन्होंने नीतीश के चुनावी सलाहकार प्रशांत किशोर पर खुलकर आरोप लगाया कि ये उन्हीं की सलाह पर लिया गया फैसला है। इधर शरद यादव को अध्यक्ष पद से हटाने का जेडीयू में जो भी विरोध हुआ उसके पीछे शरद यादव का हाथ बताया गया। इसके साथ जनता दल यूनाइटेड में दिल्ली और पटना के बीच की दूरी बढ़ती चली गई।
17 अगस्त को शरद यादव दिल्ली में साम्प्रदायिकता पर एक सेमिनार करने जा रहे हैं। इसमें बीजेपी की विचारधारा से इत्तेफाक ना रखने वाले सभी दलों को बुलाया गया है। इनमें कांग्रेस, एनसीपी, वाम दल शामिल हैं। जबकि 19 अगस्त से पटना में जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हो रही है। इस बैठक में शरद यादव शिरकत करते हैं या नहीं ये देखना अहम होगा, इसी बीच शरद यादव जनता से सीधा संवाद कर रहे हैं। इन कार्यक्रमों में शरद के तेवर और कलेवर से ये साफ हो जाएगा कि जनता दल यूनाइटेड के संस्थापक सदस्य शरद यादव पार्टी में रहेंगे या फिर सियासत का अलग रास्ता चुनेंगे।
जब नीतीश कुमार ने अपने उत्तराधिकारी के रुप में जीतनराम मांझी को सीएम बनाया और कुछ समय बाद जब वो बागी हो गये तो इसके पीछे जो दिमाग काम कर रहा था वो भी शरद यादव का था। सीएम पद से हटाए जाने के बाद जीतनराम मांझी ने खुद भी इसे कबूल किया था।
इसके साथ ही शरद यादव ने गुजरात के राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस नेता अहमद पटेल के पक्ष में वोट डालने का दावा करने वाले पार्टी के एकमात्र विधायक छोटू भाई वसावा का भी समर्थन किया है. उन्होंने केसी त्यागी की भी आलोचना जिन्होंने दावा किया था वसावा ने बीजेपी को वोट दिया है. उन्होंने 17 अगस्त को ‘सहद विरासत बचाओ सम्मेलन’ बुलाई है. ऐसा माना जा रहा है कि इस सम्मेलन में विपक्षी नेताओं के अलावा कुछ दलित एवं अल्पसंख्यक नेता भी शामिल होंगे. शरद की नाराजगी का अंदाजा राज्यसभा में इससे पहले दिए उनके भाषण से भी मिलता है, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘यह मेरा सिद्धांत है कि जब भी अपने भीतर अंधकार महसूस करता हूं तो प्रकाश की तलाश में मैं लोगों के पास जाता हूं.’ इसके साथ ही उन्होंने नीतीश के फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा, ‘बिहार के 11 करोड़ लोगों ने हम पर विश्वास किया, उन्होंने अपना भरोसा जताया. यह टूट गया. मुझे इससे दुख हुआ है.’
गुजरात और बिहार में भले भौगोलिक दूरी काफी हो लेकिन हाल के वर्षों में दोनों राज्यों में होने वाले राजनीतिक उठा-पठक का असर एक दूसरे राज्य पर काफी पड़ता है. मंगलवार को गुजरात में राज्यसभा चुनाव क्या हुए, इसका खासकर परिणाम का सीधा असर चुनाव बिहार के सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड पर दिखने लगा हैं. अब ये तय माना जा रहा है कि जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष, नीतीश कुमार, देर-सबेर शरद यादव को बाहर का रास्ता दिखाएंगे. इसका एक नजारा सबसे पहले तब दिखा जब पार्टी के महासचिव अरुण श्रीवास्तव को इस आधार पर निलंबित कर दिया गया कि उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार के निर्देश के बाबजूद राज्य सभा चुनाव में अपनी मर्जी से पोलिंग एजेंट बहाल किया. अरुण, शरद के करीबी हैं, ये बात किसी से छिपी नहीं है. राज्यसभा चुनाव में नीतीश के अथक प्रयास के बाबजूद छोठू वसावा ने उनकी मर्जी के खिलाफ कांग्रेस पार्टी उमीदवार अहमद पटेल को वोट दिया. वसावा ने वोट देने के बाद अपनी मन की बात में नीतीश पर भड़ास निकली थी जो निश्चित रूप से ना नीतीश या उनके समर्थकों को अच्छी लगी होगी. नीतीश कुमार के समर्थक मान कर चल रहे हैं कि पार्टी और नीतीश की फजीहत शरद यादव के इशारे पर हो रही है जो अब हर मौके पर पार्टी से अलग राह लेकर अपने खिलाफ कार्रवाई के लिये सबको चुनौती दे रहे हैं.
नीतीश कुमार के बीजेपी के साथ गठबंधन करने के बाद शरद यादव पहली बार गुरुवार को पटना आ रहे हैं. तीन दिनों तक राज्य के सात जिलों में जनता से सीधा संवाद कार्यक्रम में दो दर्जन से अधिक जगह पर लोगों से मिलेंगे. जनता दल यूनाइटेड के बिहार इकाई के अध्यक्ष, वशिष्ट नारायण सिंह ने साफ़ कर दिया हैं कि पार्टी का उनके इस कार्यक्रम से कोई लेना-देना नहीं हैं. उनके इस पूरे दौरे को पार्टी के खिलाफ बताते हुए वशिष्ट नारायण सिंह ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी ये गतिविधियां अगर जारी रहीं तब पार्टी भविष्य में कोई भी निर्णय ले सकती है. इसका मतलब साफ़ है कि नीतीश ने देर सबेर अब शरद से राजैनतिक सहयोगी का संबंध विच्छेद करने का अब मन बना लिया है.