राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर ; सड़क से लेकर संसद तक सियासी लड़ाई
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह वॉर रूम अब शाह भोपाल नहीं, इंदौर में वॉर रूम बनाएंगे। वहीं से छत्तीसगढ़ एवं राजस्थान में प्रचार अभियान का काम देखेंगे। इसकी वजह इंदौर से ज्यादा एयर कनेक्टिविटी को बताया जा रहा है। राजधानी के पाश इलाके चौहत्तर बंगला क्षेत्र में तैयार वॉर रूम में काम संभालने के लिए अमित शाह के विश्वस्त 40 लोगों की टीम भोपाल आ चुकी है। इनमें चुनाव प्रबंधन से जुड़े अलग-अलग विशेषज्ञ शामिल हैं। अभी तो यह टीम भोपाल के दो प्रमुख होटलों में ठहरी है, और वॉर रूम को अपने काम के हिसाब से तैयार करा रही है। भोपाल में इससे पहले भी वॉर रूम के लिए तीन मकान देखे जा चुके थे। यह टीम किसी निजी एजेंसी से जुड़ी बताई गई है, जो भाजपा के चुनाव प्रबंधन का काम देखती आ रही है। शाह की टीम मानती है कि भाजपा को सबसे ज्यादा काम राजस्थान में करने की जरूरत है। इसलिए पहली प्राथमिकता राजस्थान, दूसरी मप्र और तीसरी छत्तीसगढ़ होगी। शाह का कार्यक्रम भी इसी क्रम में तैयार हो रहा है।
केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले का बड़ा बयान, कहा- ‘रोहिंग्या हमारे मेहमान’
नई दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास आठवले ने रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर विवादास्पद बयान दिया है. आरपीआई चीफ रामदास आठवले ने कहा है कि रोहिंग्या भारत के मेहमान हैं. जैसे मेहमान हमारे पास आते हैं और उनकी मदद की जाती है तो रोहिंग्या भी भारत में आए हैं, उनकी मदद की जा रही है. रामदास आठवले का ये बयान ऐसे समय आय़ा है जब देश में असम के एनआरसी विवाद पर हंगामा हो रहा है.
रामदास आठवले ने कहा है, ‘’भारत मानवाधिकार धर्म निभा रहा है. इसलिए भारत के लोगों को तकलीफ होने का कोई विषय नहीं है. मानवता के आधार पर रोहिंग्या मुस्लिमों की मदद की जा रही है.’’ उन्होंने कहा, ‘’देश के नागरिकों का विषय नहीं है. देश के नागरिकों का पैसा सरकार के पास होता है. दूसरे लोगों को ज्यादा तकलीफ न देते हुए अगर कोई मेहमान आ रहा है तो उस पर थोड़ा पैसा खर्च किया जा रहा है.’’
रामदास आठवले ने यह भी कहा है, ‘’रोहिंग्या भारत सरकार की जिम्मेदारी नहीं है. परमानेंट रोहिंग्या को भारत में रखने का विषय नहीं है. अभी टेंप्रेरी उनकी मदद की जा रही है. रोहिंग्या म्यांमार से आए हैं. अगर वह मूल तौर पर बांग्लादेशी हैं तो बांग्लादेश को उनको अपनाना चाहिए.’’ एनआरसी पर विवाद के बीच संसद में रोहिंग्या शरणार्थियों का मुद्दा भी उठा था. गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने सदन को बताया, ”केंद्र सरकार रोहिंग्याओं के मुद्दे पर अडवाइजरी जारी कर चुकी है. राज्य सरकारों से आग्रह किया है कि वे राज्य में रोहिंग्याओं की संख्या आदि के बारे में गृह मंत्रालय को सूचना दें. इसी के आधार पर जानकारी विदेश मंत्रालय को दी जाएगी और विदेश मंत्रालय म्यांमार के साथ इनको डिपोर्ट करने पर बातचीत करेगा.” वही, गृह राज्य मंत्री किरन रिजिजू ने कहा था कि रोहिंग्या भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती हैं.
असम में सोमवार को नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन की दूसरी ड्राफ्ट लिस्ट का प्रकाशन कर दिया गया. जिसके मुताबिक कुल तीन करोड़ 29 लाख आवेदन में से दो करोड़ नवासी लाख लोगों को नागरिकता के योग्य पाया गया है, वहीं करीब चालीस लाख लोगों के नाम इससे बाहर रखे गए हैं. एनआरसी का पहला मसौदा 1 जनवरी को जारी किया गया था, जिसमें 1.9 करोड़ लोगों के नाम थे. दूसरे ड्राफ्ट में पहली लिस्ट से भी काफी नाम हटाए गए हैं. नए ड्राफ्ट में असम में बसे सभी भारतीय नागरिकों के नाम पते और फोटो हैं. इस ड्राफ्ट से असम में अवैध रूप से रह रहे लोगों को बारे में जानकारी मिल सकेगी. असम के असली नागरिकों की पहचान के लिए 24 मार्च 1971 की समय सीमा मानी गई है यानी इससे पहले से रहने वाले लोगों को भारतीय नागरिक माना गया है.
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर एनआरसी पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए-भाजपा सदस्य
लोकसभा में भाजपा सदस्य निशिकांत दुबे ने मांग की कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए। इसका विपक्षी सदस्यों ने विरोध किया है। शून्यकाल में इस विषय को उठाते हुए दुबे ने कहा कि एनआरसी का मुद्दा पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है। 1905 में बंगाल के विभाजन से पहले बिहार भी बंगाल का ही हिस्सा था। उन्होंने कहा कि पूर्वी बंगाल से पश्चिमी बंगाल में लगातार पलायन होता रहा। असम में गोपीनाथ बारदोलोई ने इस विषय पर आंदोलन भी चलाया था। असम में एक लाख एकड़ भूमि पर ऐसे लोगों को बसाया भी गया। भाजपा सदस्य ने दावा किया कि जम्मू कश्मीर, पूर्वोत्तर समेत कई क्षेत्रों में जनगणना नहीं हुई। उन्होंने यह भी दावा किया कि एक खास समुदाय की जनसंख्या काफी बढ़ी है। इस बयान का विपक्षी सदस्यों ने जोरदार विरोध किया। दुबे ने मांग की कि असम की राष्ट्रीय नागरिक पंजी की तरह ही पूरे देश में एनआरसी लागू किया जाना चाहिए। लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय ने असम में एनआरसी का मुद्दा उठाया और सूची में काफी संख्या में वैध लोगों का नाम हटाए जाने का दावा करते हुए गृह मंत्री से असम का दौरा करने की मांग की। शून्यकाल में इस विषय को उठाते हुए सौगत राय ने कहा कि असम में एनआरसी का विषय काफी महत्वपूर्ण है। जो सूची जारी की गई है, उसमें 40 लाख लोगों के नाम हटाए गए हैं। उन्होंने कहा कि इसमें हिन्दू बंगाली लोग शामिल हैं। बिहार सहित कुछ और स्थानों के लोग भी हैं। इसमें पिछड़े वर्ग से संबंधित मतुआ समुदाय के काफी संख्या में लोगों के नाम हटाए गए हैं। सौगत राय ने कहा कि हमारी मुख्यमंत्री (ममता बनर्जी) ने कहा कि इससे गृह युद्ध और खूनखराबे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इस पर गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू को अपने स्थान से कुछ कहते देखा गया लेकिन उनकी आवाज नहीं सुनी जा सकी। खबरों के अनुसार, ममता बनर्जी ने एनआरसी के मुद्दे पर गृह युद्ध की स्थिति उत्पन्न होने की बात कही थी हालांकि बाद में इससे इंकार किया था। बहरहाल, सौगत राय ने कहा कि उनकी पार्टी के चार सांसद असम गए हैं और गृह मंत्री को भी असम जाना चाहिए।
वही दूसरी ओर
गुवाहाटी: असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) पर सड़क से लेकर संसद तक सियासी लड़ाई जारी है. एनआरसी ड्राफ्ट का मुखर रूप से विरोध कर रही ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसद आज असम दौरे पर गए. जहां उन्हें एयरपोर्ट पर ही रोक दिया गया. टीएमसी ने इसे आपतकाल से भी खतरनाक समय करार दिया है. टीएमसी नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि पार्टी के छह सांसद और दो विधायकों को सिल्चर एयरपोर्ट से हिरासत में लिया गया है. उन्होंने कहा, ”हमारे प्रतिनिधिमंडल को सिल्चर एयपोर्ट पर हिरासत में ले लिया गया. ये लोग लोकतांत्रित ढ़ंग से लोगों से मिलने वाले थे. ये सुपर इमरजेंसी जैसे हालात हैं. सांसदों को हिरासत में लिए जाने पर ममता बनर्जी ने भी नाराजगी जताई. उन्होंने कहा, ”ये अत्याचार है. ये सिर्फ निंदा लायक नहीं है. वे (बीजेपी) निराश हैं, वो राजनीतिक तौर पर हताश हो चुके है और यही वजह है कि ताकत का इस्तेमाल कर रहे हैं.’ टीएमसी का दावा है कि एनआरसी ड्राफ्ट आने के बाद से पूरे असम में अशांति है, बीजेपी की सरकार ने इंटरनेट कनेक्शन काट दिये हैं. वहां की खबरों को बाहर नहीं आने दिया जा रहा है. पार्टी ने कहा कि इसकी हकीकत जानने और मौजूदा परिस्थिति को परखने के लिए पार्टी सांसद जा रहे थे तभी हिरासत में ले लिया गया. टीएमसी और कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल एनआरसी को लेकर लगातार सरकार पर सवाल उठा रही है. राज्यसभा में लगातार आज चौथे दिन जमकर हंगामा हुआ. फिर दिन भर के लिए कार्यवाही स्थगित कर दी गई. ममता बनर्जी का कहना है कि असम एनआरसी में जिन करीब 40 लाख लोगों का नाम नहीं है वो वोटर हैं. उन्हें अपने ही घर में बेघर कर दिया गया. ममता बनर्जी ने कल कहा था, “हमने 40 लाख मतदाताओं के भाग्य के बारे में बात की, जिन्हें यहां से भेजने का निर्णय किया जा रहा है. ये लोग बिहार, बंगाल, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु के हैं. अगर इन लोगों को यहां से भेजा गया, तो बीजेपी क्या चाहती है? क्या वह शांति चाहती है या गृह युद्ध चाहती है?”
वही दूसरी ओर भाजपा ने ममता का एक बडा विकेट गिरा दिया- तृणमूल कांग्रेस के असम प्रदेश अध्यक्ष ने ममता के व्यवहार पर आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया-
तृणमूल कांग्रेस के असम प्रदेश अध्यक्ष दीपेन पाठक ने ममता बनर्जी को बड़ा झटका दे दिया है। दीपेन पाठक ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) पर ममता बनर्जी के रुख से खफा होकर असम तृणमूल कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है।दीपेन पाठक ने कहा कि ममता बनर्जी के बयान से यहां अशांति फैल सकती है। प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते सारी जिम्मेदारी मुझपर ही है। मैंने अपने पद से इस्तीफा दे रहा हूं। ममता बनर्जी 40 लाख लोगों के एनआरसी सूची में नामित न होने से केंद्र सरकार से नाराज चल रही हैं। वहीं दूसरी तरफ नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन एक बड़ा विवाद बन गया है।
इन सब के बीच केंद्र में सत्ता परिवर्तन के मजबूत संकेत दिखाई दे रहे हैं- शिवसेना ने कहा,
शिवसेना ने कहा, “कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के उत्तर प्रदेश में गठबंधन से दिल्ली जाने वाले मार्ग पर एक बड़ी बाधा आ गई है. ऐसी ही खबरें बिहार से भी हैं जहां कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल अन्य दलों के साथ मिलकर गठबंधन बना रहे हैं. केंद्र में सत्ता परिवर्तन के मजबूत संकेत दिखाई दे रहे हैं.” पार्टी ने कहा कि राजनीतिक पंडित पहले से ही अनुमान जता रहे हैं कि अगले संसदीय चुनाव में उत्तर प्रदेश का गणित 2014 के मुकाबले पलट सकता है. 2014 में बीजेपी ने 80 लोकसभा सीटों में से 71 पर कब्जा जमाया था. शिवसेना ने पार्टी के मुखपत्र ‘दोपहर का सामना’ के संपादकीय में कहा, “अब से ‘जुमलों’ का गुलदस्ता मुरझा जाएगा. अंतिम रास्ता जाति विभाजन और ध्रुवीकरण करने का होगा.” संपादकीय में कहा गया है कि ‘प्रत्येक राज्य में बीजेपी से मोहभंग होना इसका सबूत है और जहां लोग पिछले वादों को लेकर जवाब मांग रहे हों तो उसका सही विकल्प उन्हें जाति की राजनीति में उलझाने का होता है.’ पार्टी ने कहा कि सत्ताधारियों ने इसे भांप लिया है और इसी पर उन्होंने अपना चुनावी अभियान शुरू कर दिया है. शिवसेना ने कहा कि सामान्य परिस्थितियों में इस तरह की जल्दबाजी कभी नहीं देखी गई, जब सरकार और उसके प्रमुख चुनाव से लगभग एक साल पहले पूरे लाव लश्कर के साथ मैदान में उतर आए हों. शिवसेना ने चेतावनी दी, “अब जनता को लगने लगा है कि लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों को नैतिक आधार पर चुनाव अभियान क्षेत्र से दूर रहना चाहिए. लोगों ने आपको काम करने के लिए चुना है न कि पार्टी के कर्तव्यों को पूरा करने के लिए. जिन लोगों ने धोखा महसूस किया है, उन्हें बहुत अच्छे से पता है कि नोटबंदी के बम के समान सबक कैसे सिखाया जाए.” संपादकीय में कहा गया कि महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात और राजस्थान सहित देश के सभी हिस्सों में अशांति बढ़ रही है.
वही कांग्रेस ने भाजपा को बडा झटका दिया है- राजस्थान में चुनाव से पूर्व ही कांग्रेस के सत्ता में आने का करेन्ट दौडने लगा है- राजस्थान के फलोदी सट्टा बाजार की मानें तो आज की तारीख में कांग्रेस 123 से 125 सीटों के साथ सरकार बना रही है जबकि भाजपा के खाते में 61 से 63 सीटें ही आ रही है. यानी राजस्थान के सटोरिए कांग्रेस को जो फिगर दे रहे हैं वह जादुई बहुमत के 101 सीट से कहीं आगे है. राजस्थान की राजनीति के महासमर में अभी 4 महीने का वक्त शेष है. लेकिन सत्ता के सिंहासन पर कौन बैठेगा. किस पार्टी के पास वह जादुई आंकड़ा होगा. इन तमाम मुद्दों को लेकर अभी से प्रयास शुरू हो गए हैं. राजस्थान के सट्टा बाजार की मानें तो कांग्रेस अभी भाजपा से कहीं आगे है लेकिन कांग्रेस के भीतर चल रही कलह उसको भारी नुकसान पहंचा रही है. राजस्थान का सट्टा बाजार जो अपने सटीक आकलन के लिए देशभर में जाना जाता है ने अभी से ही दोनों प्रमुख पार्टियों के भाव जारी कर दिए हैं. हालांकि इस आंकलन को देख कर कांग्रेस भले ही ऊपरी तौर पर खुशी जाहिर नहीं करें. लेकिन भीतरी तौर पर कांग्रेस नेताओं में अजीब सी स्फूर्ति जाग गई है. राजस्थान कांग्रेस के मीडिया चेयरपर्सन अर्चना शर्मा का कहना है कि वे सट्टा बाजार के अनुमानों पर ज्यादा यकीन नहीं करते लेकिन यह सच है कि राजस्थान की जनता कांग्रेस को सत्ता में वापसी वापस लाने का पूरा मन बना चुकी है. जवाब में भाजपा के महामंत्री कैलाश मेघवाल का जवाब आया कि अभी खेल शुरु हुआ है आप देखिए आने वाले दिनों में कैसे पूरी तस्वीर बदलती है.
दरअसल सट्टा बाजार के लिहाज से राजस्थान एक ऐसा स्टेट है जहां पर चुनाव में बड़े पैमाने पर सट्टा लगता आया है. यहां तक कि अपने सटीक आकलन के लिए राजस्थान के फलौदी श्रीगंगानगर और शेखावटी के सेंटर जाने जाते हैं. ऐसे में भले ही नेता फौरी तौर पर इन अनुमानों को गंभीरता से नहीं ले रहे हों. लेकिन यह तय है अगर कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं हुआ तो राजस्थान विधानसभा चुनाव के परिणाम सट्टा बाजार के आकलन के आसपास ही रहने वाले है.