पितरों की आत्माएं सुक्ष्म रूप में धरती पर आकर श्राद्ध की अपेक्षा करती है – 10 सितंबर 2022 से- उत्तराखंड- जहां पिंडदान व तर्पण से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति मिलती है भगवान शिव को भी मुक्ति मिली थी
ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्. ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:. – पितृ गायत्री मंत्र: — मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितृों को आजाद कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।
पितृपक्ष में सूर्य दक्षिणायन होता है। शास्त्रों के अनुसार सूर्य इस दौरान श्राद्ध तृप्त पितरों की आत्माओं को मुक्ति का मार्ग देता है। कहा जाता है कि इसीलिए पितर अपने दिवंगत होने की तिथि के दिन, पुत्र-पौत्रों से उम्मीद रखते हैं कि कोई श्रद्धापूर्वक उनके उद्धार के लिए पिंडदान तर्पण और श्राद्ध करे लेकिन ऐसा करते हुए बहुत सी बातों का ख्याल रखना भी जरूरी है। जैसे श्राद्ध का समय तब होता है जब सूर्य की छाया पैरों पर पड़ने लगे। यानी दोपहर के बाद ही श्राद्ध करना चाहिए। सुबह-सुबह या 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंचता है।
पितृ पक्ष में पितरो के लिए बनाये जाने वाले खाने की गंध के जरिए पितर भोजन ग्रहण करते हैं. धर्म शास्त्रों के अनुसार, चन्द्रमा के चंद्र लोक को पितृ लोक के नाम से भी जाना जाता है। पितृ पक्ष आश्विनी मास के कृष्ण पक्ष की मृतक तिथि (प्रतिपदा से अमास्या तक) में परिवार के दिवंगत पितरों के श्राद्ध कर्म किया जाता है। शास्त्र के अलावा अब वैज्ञानिकों ने भी शोध कर पाया है कि पितृपक्ष के 16 दिनों में चन्द्रमा साल के अन्य महीनों की तुलना में पृथ्वी के अधिक निकट आ जाता है।
चन्द्रमा धरती तथा धरती वासियों से आकर्षित होकर धरती के सबसे करीब आ जाता है। ऐसी स्थिति में चन्द्र लोक के ऊपरी भाग में रहने वाली सूक्ष्म शरीर धारी पितरों की आत्माएं भूलोक की संपत्ति से सहज ही श्रद्धा स्वरूप श्राद्ध स्वीकार कर लेती है। जैसे सशक्त रेडियो क्रिस्टल देश देशान्तरों तक की सूचनाओं को खींच सकने में सक्षम होता है उसी तरह की सच्ची श्रद्धा पितरों के प्रति बने तो पितरों का स्नेह, सहयोग और सूक्ष्म मार्गदर्शन प्राप्त होने लगता है।
पितृ पक्ष 10 सितंबर 2022 से शुरू होने वाले हैं. इस दौरान पूर्वजों को याद कर अनुष्ठान, तर्पण और दान का विशेष महत्व है. पितृ लोक चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना जाता है. मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में पितर धरती पर आते हैं. शास्त्रों के अनुसार पितरों का स्थान प्रकृति से जुड़ी कई चीजों में बताया गया है. पितृ पक्ष पितृ ऋण चुकाने का उत्तम समय माना जाता है. पितरों को भोजन और अपनी श्रद्धा पहुंचाने का साधन है श्राद्ध. पितृ पक्ष में पितरों को तृप्त करने के लिए भोजन, दान, तर्पण, श्राद्ध कर्म किए जाते हैं. पितृ पक्ष की शुरुआत अश्विन माह की पूर्णिमा तिथि यानी कि 10 सितंबर 2022 से हो रही है. श्राद्ध पक्ष की समाप्त अश्विन माह की अमावस्या यानी कि 25 सितंबर को होंगे. इसे सर्व पितृ अमावस्या (Sarva Pitru amavasya 2022) भी कहा जाता है.
पितृ पक्ष — मान्यता है कि अगर पितृ रुष्ट हो जाए तो मनुष्य को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितृों की अशांति के कारण धनहानि और संतान पक्ष से समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है।
शास्त्रों के अनुसार चन्द्रमा के ऊपर एक अन्य लोक है जो पितर लोक माना जाता है.पुराणों के अनुसार पितरों को दो भागों में बांटा गया है. एक है दिव्य पितर और दूसरे मनुष्य पितर. दिव्य पितर मनुष्य और जीवों के कर्मों के आधार पर उनका न्याय करते हैं. अर्यमा को पितरों का प्रधान मानते हैं वहीं इनके न्यायाधीश यमराज हैं.
पुराण में बताया गया है कि पितर गंध और रस तत्व से तृप्त होते हैं. जब कि शांति के लिए जातक जब जलते हुए उपले (गाय के गोबर से बने कंडे) में गुड़, घी और अन्न अर्पित करते हैं तो इससे गंध निर्मित होती है. इसी गंध के जरिए वह भोजन ग्रहण करते हैं.
पितरों को जल देने की विधि को तर्पण कहते हैं. कुश लेकर हाथ जोड़ें और जिनका तर्पण कर रहे हैं उनका ध्यान कर इस मंत्र का जाप करें ‘ओम आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम’ अब अंगूठे की मदद से धीरे-धीरे पृथ्वी पर 5-7 या 11 बार चढ़ाएं. मान्यता है कि अंगूठे से पितरों को जल देने से वे तृप्त होते हैं. पितृ पक्ष में दान करने से पितरों को संतुष्टि मिलती है. पूर्वजों के निमित्त श्राद्ग के बाद काले तिल, नमक, गेंहू, चावल, गाय का दान, सोना, वस्त्र, चांदी का दान उत्तम फलदायी माना गया है. पितृ दोष मुक्ति के लिए श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों के निधन की तिथि पर तर्पण करें, ब्राह्मण को भोजन कराएं. यथाशक्ति दान भी करें. हर अमावस्या पर पीपल के पेड़ की पूजा करें. जरूरतमंदों की मदद करें.
श्राद्ध पितृ पक्ष की शुरूआत – सभी अपने-अपने पितरों को तर्पण, पिंडदान आदि श्राद्ध कर्म कर रहे हैं। इस श्राद्ध पक्ष के बारे शास्त्रों में अद्भूत रहस्य मिलता है कि चन्द्रमा पितृ पक्ष के दिनों में अन्य दिनों की अपेक्षा आकाश से धरती के बहुत ही करीब आ जाता है। जानें अद्भूत रहस्य आखिर चन्द्रमा पितृ पक्ष में ही धरती के सबसे करीब होता है।
कहा जाता है कि पितृ पक्ष के सोलह दिनों में हमारे दिवंगत पितरों की आत्माएं सुक्ष्म रूप में धरती पर आती है और अपनी संतानों से अपेक्षा करती है कि वे उनके निमित्त कुछ क्रिया कर्म करें जिससे उनकी आत्मा को तृप्ति की प्राप्ति हो। पितृ पक्ष 10 सितंबर से शुरू
उत्तराखंड में एक ऐसी जगह है, जहां पिंडदान व तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है
उत्तराखंड में एक ऐसी जगह है, जहां पिंडदान व तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। हम बात कर रहे हैं चमोली जनपद के बदरीधाम स्थित ब्रहमकपाल की। मान्यता है कि यहां भागवान शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। आइए जानते हैं। चमोली जनपद में बदरीनाथ धाम में अलकनंदा के तट पर ब्रहमकपाल ऐसा स्थान है, जहां पिंडदान करने के लिए देश के कोने-कोने से लोग आते हैं। ऐसी मान्यता है कि बिहार में गया जी में पितर शांति मिलती है किंतु ब्रह्मकपाल में मोक्ष मिलता है। यहां पर पितरों का उद्धार होता है। इस संबंध में धर्म शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि ब्रह्मकपाल में तर्पण करने से पितरों को मोक्ष, मुक्ति मिलती है। यहां पिंडदान व तर्पण करने के बाद श्राद्धकर्म व अन्य जगह पिंडदान की आवश्यकता नहीं पड़ती है। अक्षय तृतीया से दीपावली तक बद्रीनाथ धाम के समीप ही ब्रह्मकपाल सिद्ध क्षेत्र में पितृदोष मुक्ति के निमित्त पिंडदान व तर्पण का विधान है। इसके अलावा मई से अक्टूबर-नवंबर तक यहां सहज रूप से पहुंचा जा सकता है और पितरों के निमित्त पितृ दोष मुक्ति करा सकते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि अपने पितरों के निमित्त श्रद्धापूर्वक ब्रह्मकपाल में रविवार को करने से आरोग्य, सोमवार को सौभाग्य, मंगलवार को विजय, बुधवार को कामा सिद्धि, गुरुवार को धनलाभ और शनिवार के दिन पितृशांति करने से दीर्घायु की प्राप्ति होती है। गरुड़ पुराण में ब्रह्मकपाल पितृ मोक्ष के लिए लिखा है- ब्रह्मकपाल में जो अपने पितरों के निमित्त स्वयं या कोई परिवार का सदस्य पिंडदान व तर्पण करता है तो अपने कुल के सभी पितर मुक्त होकर ब्रह्मलोक को जाते हैं। इसमें कोई संशय नहीं है। पितर मोक्ष के बाद श्राद्धकर्म की आवश्यकता नहीं है।
पितृपक्ष में नहीं करने चाहिए ये 5 काम…. पितृपक्ष के दौरान पूरे 15 दिनों तक घर में सात्विक माहौल होना चाहिए. इस दौरान घर में मांसाहारी भोजन नहीं बनाना चाहिए. हो सके तो इन दिनों लहसुन और प्याज का सेवन भी नहीं करना चाहिए
पितृपक्ष में श्राद्धकर्म करने वाले व्यक्ति को पूरे 15 दिनों तक बाल और नाखून नहीं कटवाने चाहिए. साथ ही इन लोगों को ब्रह्माचार्य का पालन भी करना चाहिए I
माना जाता है कि पितृपक्ष के दौरान पूर्वज पक्षी के रूप में धरती पर आते हैं. इसलिए उन्हें सताना नहीं चाहिए. ऐसा करने से पूर्वज नाराज हो जाते हैं बल्कि पितृपक्ष में पशु-पक्षियों की सेवा करनी चाहिए I
पितृपक्ष के दौरान सिर्फ मांसाहारी बल्कि कुछ शाकाहारी चीजों खानी भी वर्जित मानी जाती हैं. इन दिनों लौकी, खीरा, चना, जीरा और पालक का साग नहीं खाने की मनाही होती है I
पितृपक्ष में किसी भी तरह का मांगलिक कार्य नहीं करनी चाहिए. शादी,मुंडन, सगाई और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य पितृपक्ष में वर्जित माने जाते हैं. पितृपक्ष के दौरान शोकाकुल का माहौल होता है इसलिए इन दिनों कोई भी शुभ कार्य करना अशुभ माना जाता ह
पितृ पक्ष में मनुष्य से लेकर पक्षी तक, कई रूपों में पितर आपके द्वार पर आ सकते हैं, हम उन्हें पहचान नहीं पाते. इन्हें कभी खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए वरना पूर्वज नाराज हो जाते हैं और कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
कौए पितृ पक्ष में घर आए कौए को कभी भगाएं नहीं. कौए को भोजन दें. ऐसा नहीं करने पर पितरों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध पक्ष में 15 दिन तक कौए के द्वारा ही पितर अन्न ग्रहण करते हैं. इससे न सिर्फ वो तृप्त होते हैं बल्कि अपने परिजनों को खुशहाल जीवन का आशीर्वाद देते हैं.
गरीब-जरूरतमंद पितृ पक्ष के समय अगर घर में कोई मेहमान, गरीब और असहाय व्यक्ति द्वार पर आए तो उसका कभी अनादर न करें. कहते हैं पितर किसी भी रूप में आ सकते हैं इसलिए इनके लिए भोजन की व्यवस्था करें. इन्हें कभी खाली हाथ न लौटाएं, कुछ दान दक्षिणा जरूर दें.
कुत्ता-गाय कुत्ते यम के दूत माने गए हैं. पितृ पक्ष में पंचबली भोग में कुत्ते और गाय के नाम का भोग भी निकाला जाता है. श्राद्ध पक्ष में गाय-कुत्ते का घर के द्वार पर आना बहुत शुभ माना जाता है. अगर ये रास्ते में भी दिख जाए तो इन्हें कभी मारकर भगाएं नहीं, कुछ न कुछ खाने को जरूर दें. इससे पितृ गण की आत्मा को शांति मिलती है. वहीं पितृ पक्ष में गाय की सेवा करने से पितर बहुत प्रसन्न होते हैं.
सनातन काल से ही पूर्वज पितरों के ‘श्राद्ध कर्म’ करने की परंपरा चली आ रही है। कहा जाता है कि पितृ पक्ष में पित्रों का पिंडदान करने से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। कुछ लोग पितृ पक्ष में अपने पितरों का श्राद्ध करने के लिए बिहार के गया में जाकर पिंडदान तर्पण करते हैं। शास्त्रों के अनुसार, यहां पर श्राद्ध कर्म करने से पित्रों की आत्माएं तृप्त हो कर अपनी संतानों को आशीर्वाद देते हैं।
झारखंड के पलागु से निकलने वाली फाल्गु नदी जो बिहार के गया से होती हुई बाद गंगा नदी में जाकर मिल जाती है। इस फाल्गु नदी के महत्व के बारे में विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी उल्लेख आता है। श्रीविष्णु पुराण के मुताबिक, गया में पिंडदान करने से पूर्वज पित्रों की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। वहीं वायुपुराण में तो यहां तक उल्लेख आता है कि फल्गु नदी का स्थान गंगा नदी से भी ज्यादा अधिक पवित्र है। एक प्राचीन कथानुसार, त्रेतायुग में माता सीता ने फाल्गु नदी को नाराज होकर श्राप दिया था जिस कारण फाल्गु नदी भूमि के अंदर ही बहती रहती है और इसी कारण यहां श्राद्ध कर्म करने की परम्परा शुरू हो गई।
ऐसा माना जाता है कि फल्गु नदी में पिंडदान, तर्पण करने से सात पीढ़ीं के पूर्वज पितरों की आत्माएं जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाती है। इसलिए विशेषकर पितृ पक्ष सोलह दिनों में से किसी भी दिन जाकर फाल्गु नदी में अपने पितरों का श्राद्ध कर्म करना चाहिए।
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि एक बार ब्रह्मा जी अपनी मानस पुत्री संध्या पर काम-मोहित हो गए। उनके इस कृत्य को देखकर उनके मानस पुत्र मरीचि और अन्य ऋषियों ने उन्हें समझाने का प्रयास किया। भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से ब्रह्मा जी के सिर को धड़ से अलग कर दिया। तभी से ब्रह्मा चतुर्मुखी कहलाने लगे, क्योंकि इस घटना से पहले उनके पांच सिर थे। तभी एक दिव्य घटना हुई। ब्रह्मा जी का वह पांचवां सिर भगवान शिव के हाथ से जा चिपका और भगवान महादेव को ब्रह्म हत्या का दोष लगा। भगवान शिव इस पाप से मुक्ति पान के लिए अनेक तीर्थ स्थानों पर गए, लेकिन पाप से मुक्ति नहीं मिली। अपने धाम कैलास जाते समय उन्होंने बद्रीकाश्रम में अलकापुरी कुबेर नगरी से आ रही मां अलकनंदा में स्नान किया और बद्रीनाथ धाम की ओर बढ़ने लगे। तभी एक चमत्कार हुआ। ब्रह्माजी का पांचवां सिर उनके हाथ से वहीं नीचे गिर गया। बद्रीनाथ धाम के समीप जिस स्थान पर वह सिर (कपाल) गिरा वह स्थान ब्रह्मकपाल कहलाया और भगवान देवाधिदेवमहादेव को इसी स्थान पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली। भगवान शिव इस पाप से मुक्ति पान के लिए अनेक तीर्थ स्थानों पर गए, लेकिन पाप से मुक्ति नहीं मिली। अपने धाम कैलास जाते समय उन्होंने बद्रीकाश्रम में अलकापुरी कुबेर नगरी से आ रही मां अलकनंदा में स्नान किया और बद्रीनाथ धाम की ओर बढ़ने लगे। तभी एक चमत्कार हुआ। ब्रह्माजी का पांचवां सिर उनके हाथ से वहीं नीचे गिर गया। बद्रीनाथ धाम के समीप जिस स्थान पर वह सिर (कपाल) गिरा वह स्थान ब्रह्मकपाल कहलाया और भगवान देवाधिदेवमहादेव को इसी स्थान पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली।