दो गज छ: फ़ीट दूरी मास्क सेनिटाइज़र पर हम है फसें
ऊँचे है सपनें मेरे ऊँची मेरी उड़ान है ,
सुन तेरे आने से कोरोना ज़िन्दगी हुए तमाम है
तेरे आने पहले ज़िन्दगी थी मेरी कितनी हँसी
जब से तू आया है मनो हुई ये बर्फ से जमीं
पहले होता गलियों मई कितना शोर कोलाहल
देख तेरे आने से बढ़ा है डर का कितना माहौल
मानों कितने अरसे हुए मिला नहीं यारों के गले
दो गज छ: फ़ीट दूरी मास्क सेनिटाइज़र पर हम है फसें
गुजर चुके है महीने कितने अब घर की याद सताती है
कितने दूर आ गये अपनों से आँखों की धार बतलाती है
वो तो तुम जैसे यार मिले हो ऑफिस भी घर सा लगता है
कोई समझाने वाला बड़ा भाई किसी मै नटखट यार मिलता है
भले ही अवगुण भरें है तुममें पर कुछ गुण की भी धरा है
प्रदूषित होती इस धरा को अपना स्नेह दिया सारा है
हाथ मिलना छोड़ तूने हाथ जोड़ना सिखाया है
नई भावी पीढ़ी जनमानस को तूने सदमार्ग दिखाया है
गंगा यमुना निर्मल हो गए हिमशिखा भी दिखती है
पर जाने क्यों मानव को खुद की कमियाँ न दिखती है
आज नहीं तो कल कोरोना तुझको दूर भगाएंगे
हर रिश्ते का सम्मान कर खुशनुमा जीवन बिताएंगे
–लता