(PoK) प्रधानमंत्री के बयान से मची खलबली
पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) के प्रधानमंत्री रजा फारूख हैदर के एक बयान पर पाकिस्तान में बवाल मचा हुआ है। रजा फारूख ने कहा कि आजाद जम्मू-कश्मीर के लोगों को अब यह सोचने की जरूरत नहीं है कि उन्हें किस देश से सबसे ज्यादा लगाव है। इस बयान को लेकर खलबली इसलिए भी मची है क्योंकि हाल ही में नवाज शरीफ को पनामागेट मामले में आरोपी पाए जाने के बाद प्रधानमंत्री पद से हटाया गया है। उनके पद से हटने के बाद इस तरह के बयान का खासा मलतब निकाला जा रहा है। फारूख के इस बयान को लेकर पाकिस्तान के पंजाब असैंबली में उनके खिलाफ एक प्रस्ताव पेश किया गया है जिसमें उनके इस्तीफे की मांग की गई है। अपने बयान में हैदर ने कहा कि ‘मुझे सोचना पड़ेगा, बतौर कश्मीरी कि मैं किस मुल्क के साथ अपनी किस्मत को जोडूं।’ www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal & Daily Newspaer) CS JOSHI- EDITOR
पाकिस्तान में नए पीएम का चुनाव मंगलवार को होगा। पीएमएल-एन के शाहिद खाकान अब्बासी समेत कुल 6 कैंडिडेट मैदान में हैं। विपक्षी दल अब्बासी के खिलाफ अपना कोई ज्वाइंट कैंडिडेट खड़ा करने पर सोमवार को रजामंदी नहीं बना सके थे। बता दें कि पाक सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई को पनामा पेपर्स स्कैंडल में नवाज शरीफ को दोषी ठहराया था, जिसके बाद उन्हें पीएम पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था। सुप्रीम कोर्ट ने शरीफ और उनके बच्चों के खिलाफ केस दर्ज करने का आदेश भी दिया था।
उल्लेखनीय है कि पाक अधिकृत कश्मीर का जो भी प्रधानमंत्री बनता है उसे पाकिस्तान अपने इशारे पर घुमाता है। लेकिन फारूख हैदर ने जिस तरह बगावत के सुर छेड़े हैं उससे साफ जाहिर है कि पीओके के लोग अब पाकिस्तान के जुल्मों से परेशान हो चुके हैं। गौर करने वाली बात ये है कि पीओके के लोगों का भारत पर भरोसा बढ़ा है।
भारत ने जम्मू-कश्मीर में जिस तरह से अलगाववादी नेताओं पर लगाम कसी है उसके बाद आतंक का कारोबार ठप्प हो गया है। भारत के इस कदम से भी PoK की जनता की उम्मीदें बढ़ी हैं। जनता के मूड को देखकर पीओके के प्रधानमंत्री को भी पैंतरा बदलने का ये सही वक्त लगा इसलिए उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ बगावत की आवाज बुलंद कर दी।
वही दूसरी ओर बिहार में हुए सियासी उलटफेर के बाद अब अगला नंबर जम्मू कश्मीर का है अंतर सिर्फ इतना होगा कि बिहार में भाजपा सत्ता में आई है और जम्मू कश्मीर में सत्ता से बाहर हो सकती है। पिछले तीन दिन में मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती द्वारा दिए गए बयान राज्य के सियासी भविष्य की तरफ इशारा कर रहे हैं। जिस तरीके से महबूबा ने तिंरगे को लेकर बयान दिया है वे बयान महबूबा और मोदी के सियासी ब्रेकअप का आधार बन सकता है। महबूबा भाजपा को उकसाने के लिए इस तरह के बयान दे रही हैं और भाजपा महबूबा के बयानों पर कड़ी प्रतिक्रिया भी दे रही है।
2014 में विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा के साथ सरकार बनाने के साथ ही महबूबा का कोर वोटर उससे नाराज हो गया और ये नाराजगी अबतक जारी है। इसका कारण पीडीपी और भाजपा का विाचरीक आसमनता है। महबूबा को लगता है कि भाजपा के साथ ये सियासी गठजोड़ा जितना लंबा चलेगा उतना ही पीडीपी को इसका नुकसान होगा। यही कारण है कि एनआईए और अन्य जांच एजैंसियों द्वारा अलगाववदियो पर मारे गए छापों के बाद महबूबा ने अलगाववादियों के पक्ष में स्टैंड लिया और चेतावनी भरे लहजे में यहां तक बोल गई कि कश्मीर में तिरंगे का कोई संरक्षक नहीं बचेगा। ऐसे बयानों के जरिए महबूबा भाजपा को गठजोड़ तोडऩे के लिए उकसाने के साथ साथ अपने कोर वोटर को संदेश भी दे रही हैं।
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद पीडीपी के साथ गठजोड़ करने के वक्त से ही कश्मीर का मुद्दा भाजपा के लिए नासूर बना हुआ है। भाजपा ने कश्मीरियों के दिल जीतने के तमाम प्रयास किए लेकिन ये प्रयास विफल साबित हुए हैं और कश्मीर में शांति स्थापित नहीं हो पा रही। लिहाजा भाजपा भी पीडीपी से पिंड छुड़वाना चाहती है। 2005 के मामलों में अलगावावदियों की गिरफ्तारी इसी दिशा में भाजपा का कदम माना जा रहा है। भाजपा को पता है कि उसकी सहयोगी पीडीपी को ये कार्रवाई रास नहीं आएगी लिहाजा भाजपा ने इस मुद्दे पर कोई समझोता न करने के लहजे में अक्रामक रुख अपना लिया है। यदि पीडीपी और भाजपा में ये गतिरोध कायम रहता है तो आने वाले दिनों में कश्मरी राजनीतिक अस्थिरता की तरफ बढ़ सकता है।
87 सीटों की जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 28 सीटों के साथ पीडीपी सबसे बड़ी पार्टी है। जबकि 25 सीटों के साथ भाजपा दूसरे 15 सीटों के साथ नेश्नल कॉन्फ्रेंस तीसरे और कांग्रेस 12 सीटों के साथ चौथे नंबर पर है। जम्मू कश्मीर पीपल कॉन्फ्रेंस के पास 2 जम्मू-कश्मीर पिपुल डेमोक्रेटिक फ्रंट के पास 1, सीपीआई के पास 1 सीटें हैं जबकि 3 सीटें आजाद विधायकों के पास है। महबूबा यदि भाजपा का साथ छोड़ती है तो भी कांग्रेस की 12 सीटों सीपीआई की 1 सीट व 3 अन्य विधायकों को मिलाकर 44 सीटों के साथ बहुमत हासिल कर सकती है और जम्म कश्मीर में भी नीतीश कुमार की तहर बिल्कुल उसी तरह मुख्यमंत्री बनी रह सकती हैं जिस तरह जदयू ने लालू का साथ छोड़कर भाजपा के साथ सरकार बनाई है। लेकिन ये काफी हद तक गर्वनर की भूमिका पर निर्भर करेगा। जाहिर सी बात है भाजपा सरकार से निकलने के बाद राज्य में दूसरी सरकार नहीं चाहेगी। लिहाजा एक विकल्प राज्य में राष्ट्रपति शासन का भी बनता है। लेकिन इस स्थिती में भी कमान्ड सीधी केंद्र के हाथ में आ जाएगी और राज्य में किसी भी तरह की गड़बड़ी का ठिकरा भाजपा पर फूटेगा।