विशुध हवा भी पाइपलाइन से लाने की नौबत
आ लौट चले अपने उत्तराखण्ड#दिल्ली में हवा जहरीली हो गयी # बिजली पानी के बाद अब राजधानी में विशुध हवा भी वहीं से पाइपलाइन से लाने की नौबत #हकीकत उससे भयंकर है #लोगों को सांस लेने में भी तकलीफ #फिरभी किसी को अब भी होश नहीं # विकास के नाम पर कैसा गजब हम ढा रहे है कि खुली सांस के लिए मोहताज हैं# पानी और बिजली के लिए राजधानी क्षेत्र हिमालय के संसाधनों पर निर्भर #हिमालय की सेहत का ख्याल न करने वालों, जल जंगल जमीन से मनुष्यता को बेदखल करके विस्थापितों और झुग्गी झोपड़ियों का महानगर बनाने वालों,समुदरों को रेडियोएक्टिव बनाने वालों की दिल्ली और उनके एनसीआर में सांस लेना बेहद मुश्किल हो चुका है# Coverage by www.himalayauk.org (UK Leading Digital Newsportal)
तकनीकी विकास से मनुष्यता और प्रकृति के बीच संतुलन ख्तम हो रहा है और पर्यावरण चेतना जो सभ्यता के विकास के साथ संसाधनों के उपयोग के सिलिसले में नैसर्गिक चेतना रही है,वह मुक्तबाजार की अबाध क्रयशक्ति से सिरे से खत्म है।नदियों,पहाड़ों और समुंदर को धर्म और आध्यात्म के लोक सांस्कृतिक मानस के मुताबिक जो पवित्र माना जाता रहा है,वह अब मुक्तबाजार में जल जंगल जमीन से मनुष्यता को बेदखल करने का युद्ध,गृहयुद्ध और मुक्तबाजार है।विकास का मतलब है प्रकृति का सर्वनाश।
अब हालात यह है कि पेयजल सुरक्षित नहीं है।न ही जल संसाधन कहीं सुरक्षित हैं।नदियां सारी बंध गयी हैं।जिसका पानी अब रासायनिक हो गया है।बरसात भी अब तेजाबी होने की आशंका है।समुद्रतट रेडियोएक्टिव हम बना चुके हैं।फिरभी हमें दिल्ली और राजधानी क्षेत्र की सेहत की ज्यादा चिंता है।मनुष्यता और प्रकृति के भविष्य के बारे में हम बेफिक्र है।दिल्ली में हवा जहरीली हो गयी है।
दिल्ली केंद्रित औद्योगीकीकरण और अंधाधुंध शहरीकरण के तमाम केंद्रों में लोगों को सांस लेने में भी तकलीफ हो रही है।फिरभी किसी को अब भी होश नहीं है कि विकास के नाम पर कैसा गजब हम ढा रहे है कि खुली सांस के लिए मोहताज हैं।
हकीकत उससे भयंकर
पानी और बिजली के लिए राजधानी क्षेत्र हिमालय के संसाधनों पर निर्भर है और गंगा की अबाद जलधारा पर जख्मी हिमालय की गोद में विशाल बांध टिहरी को दिल्ली की बिजली पानी की जरुरत के मद्देनजर बनाया गया है ठीक उसीतरह जैसे मुंबई में बिजली की चकाचौंध बनी रहे इसलिए जैतापुर में पांच पांच परमाणु भट्टी लगायी जा रही है तो चेन्नई के विकास के लिए कलपक्कम और कु़ड़नकुलम के परमाणु संयंत्र हैं और दिल्ली से सटा नरोरा परमाणु बिजली घर है।
उत्तराखंड और हिमाचल में आम जनता का जो भी हो,लगता है कि इन दोनों राज्यों की लाटरी निकलने वाली है।क्योंकि बिजली पानी के बाद अब राजधानी में विशुध हवा भी वहीं से पाइपलाइन से लाने की नौबत आ गयी है।पिघलते हुए ग्लेशियरों और बंधी हुई नदियों के हिमालय के भूस्खलन,भूकंप और जंगलों की अंधाधुंध कटाई,माफिया गिरोह के हर इंच जमीन दखल करने के बाद हमारे हिस्से का कितना हिमालय बचा होगा,इस पर हमने अभी सोचा नहीं है और कश्मीर,गोरखालैंड या पूर्वोत्तर में जो हिमालय बचा है,राजनीतिक अस्थिरता और सैन्यशासन के बाद वहां हवा भी बचेगी या नहीं,इस पर भी शक है। बहरहाल राजधानी नई दिल्ली और राजधानी क्षेत्र अब मनुष्यता के लिए कतई सुरक्षित नहीं है।सत्ता केंद्र बन जाने के बाद बाकी देश को बेचने के सारे उपक्रम नई दिल्ली से शुरु होते हैं।प्राकृतिक संसाधनों का मुक्तबाजार नई दिल्ली में ही लगा है और सारे राजनीतिक कारोबार,युद्ध गृहयुद्ध हिथियारो की होड़ और अंध राष्ट्रवाद के युद्धोन्माद से देश और दुनिया का सत्यानाश करने वाले वातानुकूलित राजनीतिक वर्ग ने आम जनता को अक्षरशः सांस सांस के लिए मोहताज बना दिया है और अब हिमालय से विशुध आयुर्वेदिक हवा बाकी तमाम ब्रांड की तरह लाकर ही रोजमर्रे की जिदगी संभव है।
गौरतलब है कि हिमालय की सेहत का ख्याल न करने वालों, जल जंगल जमीन से मनुष्यता को बेदखल करके विस्थापितों और झुग्गी झोपड़ियों का महानगर बनाने वालों,समुदरों को रेडियोएक्टिव बनाने वालों की दिल्ली और उनके एनसीआर में सांस लेना बेहद मुश्किल हो चुका है।फिलहाल दीवाली के बाद हवा में प्रदूषण का स्तर सामान्य से 6 गुना तक ज्यादा दर्ज़ किया गया है।
हकीकत उससे भयंकर है क्योंकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गोवर्धन पूजा के दिन देश के प्रमुख शहरों की हवा की जांच के बाद जो आंकड़े जारी किए, वह बेहद हैरतअंगेज हैं। उत्तर प्रदेश के चार प्रमुख शहर आगरा, लखनऊ, कानपुर और वाराणसी देश के टॉप 10 शहरों की सूची में दिवाली से बरकरार बने हुए हैं। चौंकाने वाले तथ्य ये हैं कि देश में कई फैक्ट्री एरिया और महानगरों के बाद भी आगरा टॉप तीन प्रदूषित शहरों में है।
हाल ये हैं कि एनसीआर में दिवाली के चौथे दिन भी स्मॉग का असर रहा। गुरुवार सुबह भी प्रदूषण का स्तर सुरक्षित स्तर की तुलना में कई गुना अधिक रहा। दिल्ली के कई पल्यूशन मॉनिटरिंग स्टेशन में पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे प्रदूषित कणों का स्तर सामान्य से पांच गुना तक ज्यादा दर्ज हुआ। सर्दियों की शुरुआत अभी हुई है और उससे पहले ही भारत की धुंध की चर्चा दुनियाभर में होने लगी है।
गौरतलब है कि इस स्मॉग को लेकर नासा ने कुछ तस्वीरें जारी की हैं। जिसमें ये अनुमान लगाया जा रहा है कि इन दिनों किसानों द्वारा 3.2 करोड़ टन पराली जलाने से वायु ज्यादा प्रदूषित हो रही है।जिसके आधार पर यूपी के किसानों को इस कयामती फिजां के लिए जिम्मेदार ठहराया जै रहा है।दिल्ली की दसों दिशाओं में खेत खलिहान देहात बचे नहीं हैं।जो बचे खिचे हैं भी वे भी बिल्डरों और माफिया तत्वों के कब्जे में हैं।
कहते हैं कि दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन की अगुवाई में दिल्ली सरकार के एक कार्यबल ने इस स्थिति से निबटने के लिए गुरुवार को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के वैज्ञानिकों के साथ एक बैठक की। उन्होंने पंजाब और हरियाणा में फसलों की बची पराली को जलाने को प्रदूषण बढ़ने के प्रमुख कारक में गिनाया।राजधानी की हवा खराब करने के लिए भी किसान जिम्मेदार हैं।
जाहिर हैं कि राजधानी की सेहत खराब करने वाले ऐसे देशद्रोही किसानों के हकहकूक के लिए लड़ने वाले तमाम लोग देशद्रोही ही होंगे।हवा शुध करने के लिए इन देशद्रोहियों को फांसी पर चढ़ाना अंध राष्ट्रभक्तों का अगला राममंदिर अभियान हो तो अचरज नहीं।
गौरतलब है कि भारतीय कृषि हरित क्रांति से पहले तक प्रकृति के विरुद्ध थी नहीं कभी।रसायनिक खाद,जैविकी संशोधित बीज,भूगर्भीय जल से सिंचाई और मशीनों से मंहगी खेती हरित क्रांति की उपलब्धियां है।किसान ही अगर नई दिल्ली और राजधानी में प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं,तो जहां औद्योगीकरणहुआ नहीं है और न शहरीकरण हुआ है,हरियाली के उन द्वीपों की हवा पानी की भी जांच करवा लीजिये और वहां नई दिल्ली जैसा प्रदूषण हुआ तो बेशक उन्हें भी राजधानी क्षेत्र में खपा लीजिये।
राज्यों की राजधानियों की क्या कहें,जिला शहरों के आस पास भी खेती और देहात की जमीन शिकुड़ती जा रही है और लगातार अनाज की पैदावार गटती जा रही है और किसानों की थोक आत्महत्याओं के बाच बंधुआ खेती भी अब कानूनन जायज है।फिरभी खेती और किसानों को दिल्ली के संकट की वजह बताने की मीडिया मुहिम हैरतअंगेज है।
बहरहाल राजधानी दिल्ली की हवा में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर बना हुआ है। दिवाली के घनघोर उत्सव के बाद से हालात बेहद खराब हो गए हैं। प्रदूषण से बचने के तमाम उपकरण घर बैठे ईटेलिंग से मंगाये जा रहे हैं।मास्क की भारी मांग बनी हुई हैं।ये दिवाली के रंग बिरंगे पटाखे हैं जिनसे दमाके होने अभी बाकी है।
पानी का कोरबार अब मंदी में है शायद,हवाओं के कारोबार में भी मुनाफावसूली की दरकार है।चुनिंदा कंपनियों को ठेका जारी कर दें तो विशुध देशभक्ति होगी।आटा घी शहद चाय चावल दाल पानी की तरह हवा भी अब विशुध आयुर्वेदिक होनी चाहिए।
वातानुकूलित तबकों मे खलबली है कि राजधानी में दिन की शुरुआत ही सुबह की धुंध के साथ हो रही है। वहां स्कूलों ने निर्देश दिए हैं कि बच्चों को गैस मास्क पहनाकर स्कूल भेजा जाए और बच्चे फिजिकल एक्टिविटी में कम हिस्सा लें।बच्चों की सेहत पर इसके असर को देखते हुए गुरुवार दिल्ली और गुड़गांव में श्रीराम स्कूल की 10वीं और 12वीं कक्षा को छोड़कर सभी क्लासेज शुक्रवार और सोमवार के लिए रद्द कर दी गई हैं।
उधर, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गुरुवार को एनजीटी, डेंगू से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर शुक्रवार तक स्टेटस रिपोर्ट मांगी है। एनजीटी ने यह भी पूछा कि प्रदूषण से बचाने के लिए क्यों दिल्ली के सारे प्राइमरी स्कूल बंद कर दिए जाएं।
मीडिया के मुताबिक बुधवार सुबह धुंध के कारण यमुना एक्सप्रेस-वे पर 20 गाडिय़ां आपस में टकरा गईं। इसमें कई लोगों के घायल होने की खबर है। यह हादसा एक्सप्रेस-वे पर मथुरा के पास हुआ। बता दें कि बुधवार को दृश्यता की कमी के चलते अमृतसर एयरपोर्ट को कुछ घंटों के लिए बंद करना पड़ा था।
फिलहाल राजधानी में सत्ता की राजनीति चाहे जितनी गरम हो,आम लोगों के लिए दिल्ली का सफर मंहगा हो सकता है।विशुध हवा की आपूर्ति अभी शुरु हुई नहीं है।यूपी और उत्तराखंड केसरिया हो जाये तो शायद कोई पतंजलि उपाय निकाला जाये कि यूपी के रास्ते हिमालय की शुध हवा भी उत्तराखंड से लूट ली जाये।
बहरहाल प्रदूषणकारी तत्वों पीएम 2.5 और पीएम 10 की अधिकता और नमी के साथ दिल्ली के ऊपर धुंध की चादर बनी हुई है। स्थानीय स्तर पर हवा नहीं चलने से भी दिक्कत बनी हुई है।
गौरतलब चेतावनी विशेषज्ञों की है कि अगर जहरीली हवा का यही स्तर कुछ दिनों तक दिल्ली और आसपास के वातावरण में रहा तो लोगों को सांस लेने की परेशानी हो सकती है। इसके अलावा बच्चों-बुजुर्गों को भी सांस संबंधी तकलीफें हो सकती हैं।
नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स के मुताबिक दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। दिवाली पर दिल्ली में कई स्थानों पर प्रदूषण का स्तर खतरनाक से भी ऊंचा स्तर पर रिकॉर्ड किया गया है।
पर्यावरण से जुड़े मसले पर सेंटर फाॅर साईंस एंड एनवायरमेंट ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में बीते 17 वर्षों में सबसे खतरनाक धुंध छाई हुई है। दिल्ली सरकार को इस मामले में चेतावनी जारी करने की सलाह दी गई है। दिल्ली में दीपावली के बाद से ही वातावरण में धुंध की परत छाई हुई नज़र आ रही है।
हालात ये हैं कि सुबह 9 बजे तक अक्षरधाम मंदिर को उंचाई से देखने पर बीच में धुंधली परत साफतौर पर देखने को मिल रही है।
स्काईमेट के मौसम वैज्ञानिक समरजीत चौधरी के अनुसार उपग्रह से देखने पर दिल्ली और आसपास के इलाके में धुंध की एक चादर दिख रही है। हवा में मौजूद प्रदुषण और नमी के चलते ये चादर बानी है।
राहत की कोई गुंजाइस बाहर निकलकर भी नहीं है।नोएडा और मेरठ गाजियाबाद के हालात अभी नामालूम है लोकिन गुड़गांव अौर फरीदाबाद का प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है। लगातार बढ़ रहा प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है।
मौसम के इस बदलाव से जहां विशेषज्ञ में हैरानी है, वहीं धुंध के साइड इफेक्ट से दमा मरीजों में इजाफा बताया गया हैं।
बुधवार को प्रदूषण के मामले में गुड़गांव दूसरे अौर फरीदाबाद पहले नंबर पर रहा। प्रदूषण के मामले में दिल्ली तीसरे नंबर पर रही। फरीदाबाद में सामान्य से 9.36 गुणा अौर गुड़गांव में 9.12 गुणा अधिक दर्ज किया गया। प्रदूषण बढ़ने से शहर दिनभर स्मॉग की चपेट रहा।
कहा जाता है कि गुड़गांवमें आतिशबाजी से हुए पॉल्यूशन का असर बुधवार को धुएं के रूप में देखने को मिला। दिल्ली से लेकर मेवात तक धुएं की चादर में क्षेत्र लिपटा रहा। इस धुएं के कारण दिन में भी 100 मीटर तक ही विजिबिलिटी रही। हवा में आद्रता बढ़ने से धूल के कण हवा में मिल गए, जिससे अस्थमा के रोगियों को सांस लेने में परेशानी हुई। सिविल अस्पताल में भी अस्थमा के रोगियों की संख्या में इजाफा हुआ। हर रोज की ओपीडी में जहां 28 मरीज अस्थमा के पहुंचते थे। पिछले दो दिन में इनकी संख्या बढ़कर करीब 45 हो गई है। वहीं विजिबिलिटी कम होने से सुबह के समय एक्सप्रेस-वे पर ट्रैफिक भी कुछ धीमा रहा।
गौरतलब है कि एनजीटी ने दिल्ली की विकलांग या दिव्यांग सरकार से पूछ लिया है कि आपने दिल्ली मे प्रदूषण के इतना बढ़ने के बाद आम लोगों के लिए क्या इमरजेंसी स्टेप्स लिए? क्या आपने बच्चों को इस प्रदूषण से बचाने के लिए स्कूलों को बंद किया? क्या आपने कोई एडवायजरी लोगो के लिए जारी की?
राहत की बात जरुर है क्योंकि एनजीटी के मुताबिक साफ हवा में सांस लेना लोगों का जायज हक है. एनजीटी में शुक्रवार तक दिल्ली सरकार को ये बताना होगा कि क्या हुआ उस मीटिंग में और प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए क्या किया क्या जा रहा है। ये याचिका एक पूर्व वैज्ञानिक द्वारा दाखिल की गई है। एनजीटी ने दिल्ली के चीफ सेक्रेटरी को तुरंत इस बाबत मीटिंग बुलाने का आदेश दिया है।
मीडिया के मुताबिक दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण ने गुरुवार को सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में हवा में प्रदूषण का स्तर 500 एक्यूआई से अधिक दर्ज किया गया। यह मानकों से पांच गुना से भी अधिक है। सफर की रिपोर्ट के दिल्ली में प्रदूषण के चलते बेहद खतरनाक हालात बने हुए हैं।
विशेषज्ञ इस धुंध का प्रमुख कारण प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी और हवा की गति में कमी को मान रहे हैं। राजधानी की हवा में प्रदूषक तत्व पीएम 2.5 तथा पीएम 10 का स्तर कम नहीं होने के कारण बुधवार को लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। सबसे अधिक परेशानी सुबह सैर के लिए निकलने वालों को हुई।
हवा में बेंजीन और नाइट्रोजन डाईऑक्साइड का स्तर सामान्य से लगभग दोगुना बढ़ गया।समझ लीजिये कि हिमालय से विशुध हवा का आयात और उसका एकाधिकार कारोबार राजधानी की वातानुकूलित सेहत के लिए कितना जरुरी है।
मौसम विभाग के पालम केंद्र से प्राप्त जानकारी के अनुसार बुधवार सुबह साढ़े पांच बजे से लेकर 9 बजे तक दृश्यता का स्तर 300 मीटर दर्ज किया गया। हालांकि सुबह 10 बजे दृश्यता के स्तर में सुधार हुआ और यह 500 मीटर दर्ज की गई। दिन चढ़ने के साथ साथ इसमें बढ़ोतरी हुई।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार राजधानी में दोहपर एक बजे पांच स्थानों पर प्रदूषक तत्व पीएम 2.5 और पीएम 10 का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया। बुधवार दिन में 11 बजे मंदिर मार्ग पर पीएम 2.5 का स्तर सामान्य से नौ गुना अधिक 561 तथा पीएम 10 का स्तर सामान्य से सात गुना अधिक 743 क्यूबिक प्रति वर्ग मीटर दर्ज किया गया। आनंद विहार में पीएम 2.5 का स्तर 460 क्यूबिक प्रति वर्ग मीटर दर्ज किया गया।
मालूम हो कि एयर क्वालिटी इंडेक्स पीएम 10, पीएम 2.5, सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन डाईआक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड तथा ओजोन की हवा में स्थिति को मिलाकर बनाया जाता है। इसमें प्रदूषक तत्व पीएम 2.5 तथा पीएम 10 का स्तर 500 या उससे अधिक पाया गया है।पीएम 2.5 का स्तर 60 तथा पीएम 10 का स्तर 100 होता है। लेकिन वर्तमान स्थिति मानक से कई गुना अधिक है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट तथा अन्य एजेंसियों ने भी दीपावली के बाद प्रदूषण की स्थिति खराब होने की आशंका जताई थी। बुधवार से लेकर शुक्रवार तक राजधानी में प्रदूषण की स्थिति खराब ही बताई है।
इसपर तुर्रा यह कि ताजमहल के शहर में तमाम प्रतिबंधों के बाद भी आगरा देश के सबसे प्रदूषित दस शहरों की लिस्ट में तीसरे नंबर पर रहा है। दिवाली पर आतिशबाजी से हुए प्रदूषण की जांच में गोवर्धन पूजा के दिन आगरा का एयर क्वालिटी इंडेक्स फरीदाबाद और लखनऊ के बाद तीसरे नंबर पर रहा। दिल्ली और गुड़गांव से भी ज्यादा प्रदूषण आगरा की हवा में रहा।
पर्यावरण विशेषज्ञ आतिशबाजी के साथ आगरा में कूड़ा जलाने को इस प्रदूषण की मुख्य वजह मान रहे हैं।
गौरतलब है कि दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित 20 शहरों में 13 अकेले भारत में हैं और जियो फिजिकल रिसर्च जर्नल में प्रकाशित एक नये शोध के मुताबिक सांस के रोगों के कारण भारत में फिलहाल हर साल पांच लाख लोगों की मौत हो रही है। गले और फेफड़े की बीमारियों में बड़ी तेज गति से इजाफा हुआ है और चिकित्सा विज्ञानियों की मानें, तो इसके लिए काफी हद तक बढ़ता हुआ वायु प्रदूषण जिम्मेवार है।
भारत की नेशनल हेल्थ प्रोफाइल रिपोर्ट (2015) के तथ्यों का इशारा भी इसी ओर है. इस रिपोर्ट के मुताबिक देश में सांस के गंभीर रोग के साढ़े तीस लाख मामले 2015 में प्रकाश में आये। वर्ष 2014 की तुलना में सांस के गंभीर रोगों के मामलों में 1.4 लाख की बढ़ोतरी हुई।अगर पिछले पांच साल की अवधि का आकलन करें, तो रिपोर्ट के अनुसार सांस के गंभीर रोगों से पीड़ित मरीजों की संख्या में 30 फीसदी का इजाफा हुआ है।