प्रशांत किशोर की गजब रणनीति- दो नावो की सवारी ?
लोकसभा चुनाव नज़दीक हैं और ऐसे में प्रशांत किशोर की हाल ही में उद्धव ठाकरे से हुई मुलाक़ात और प्रियंका के बारे में दिए गए इन बयानों को देखा जाए तो इससे कई सवाल सामने आते हैं। पहला यह कि क्या प्रशांत किशोर एनडीए की सेकेंड लाइन लीडरशिप तैयार कर रहे हैं? क्या वह नीतीश कुमार को राष्ट्रीय राजनीतिक पटल पर पुनः लाने की कोशिश कर रहे हैं? और सवाल यह भी क्या एनडीए में अंदर ही अंदर कुछ खिचड़ी पक रही है?
अवकाश प्राप्त नौकरशाह और पूर्व राज्य सभा सदस्य ए. के. सिंह के बाद प्रशांत किशोर ही ऐसे व्यक्ति हैं जो नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने के सपने को साकार करने में लगे दिख रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर एनडीए को बहुमत का जादुई आंकड़ा पाने में दिक्क़त हुई तो नीतीश कुमार के नाम पर कई छोटे-छोटे दल एकजुट हो सकते हैं। पीके एक मंझे हुए रणनीतिकार हैं जो पूरी तरह प्रोफेशनल हैं। अब यदि बात एनडीए में नहीं बन पाती, तो इसके लिए भी उन्होंने यूपीए के विकल्प पर काम शुरू कर दिया है। वे जानते हैं कि अकेले राहुल के दम पर 2019 में चुनावी बैतरणी पार करना कांग्रेस के लिए मुश्किल होगी। ऐसे में यदि अपनी दादी इंदिरा जैसी दिखने वाली प्रियंका सक्रिय हुई तो कुछ लाभ जरूर होगा। लेकिन यह भी पीके जानते हैं कि प्रियंका 2019 में कांग्रेस को थोड़ा लाभ ही दिलवा सकती हैं। ऐसे में इधर भी माइनस कांग्रेस लीडरशीप नीतीश के चेहरे पर अन्य दलों की एकजुटता की गुंजाइश बनती है। संभवत: पीके के हालिया प्रेस कांफ्रेंस में दिये मोदी, राहुल और पियंका पर बयानों और उद्धव से मुलाकात के पीछे का मकसद और मतलब भी यही है।
लोकसभा चुनाव में नीतीश एनडीए के साथ तो ज़रूर लड़ेंगे लेकिन उनको यह मालूम है कि अगर दबदबा कम होगा तो उनकी पार्टी को केंद्रीय कैबिनेट में तवज्जो नहीं मिल पाएगी। अतः किसी भी स्थिति में प्रशांत पार्टी को चुनाव से पहले और चुनाव के बाद लाइमलाइट में बनाए रखना चाहते हैं। अगर नरेंद्र मोदी ही एनडीए के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं तो प्रशांत किशोर इतने सक्रिय क्यों दिख रहें हैं?
प्रशांत किशोर ने प्रियंका गाँधी को कांग्रेस का बड़ा चेहरा बताते हुए कहा है कि आने वाले दिनों में वह मज़बूत राजनेता के तौर पर उभर सकती हैं। हालाँकि उन्होंने यह भी कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव में प्रियंका का बहुत बड़ा प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने यह भी स्वीकार किया कि प्रियंका गाँधी को सक्रिय राजनीति में लाने से कांग्रेस को आनेवाले दिनों में फ़ायदा ज़रूर होगा। उन्होंने प्रियंका को लंबी रेस का घोड़ा बताते हुए कहा कि प्रियंका भविष्य में पार्टी को राजनीतिक समर में जीत दिलाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं। उन्होंने दावा किया कि जब वह ख़ुद कांग्रेस से जुड़े थे तो उन्होंने प्रियंका को उत्तर प्रदेश में पार्टी का चेहरा बनाने का प्रस्ताव दिया था।
एक सवाल के उत्तर में प्रशांत किशोर ने कहा कि नरेन्द्र मोदी ही एनडीए के प्रधानमंत्री पद के एकमात्र उम्मीदवार हैं और वे ही अगले प्रधानमंत्री होंगे। अगर उनकी इस बात को मान भी लिया जाए तो प्रशांत किशोर की शिवसेना के सुप्रीमो उद्धव ठाकरे से मुंबई में हुई मुलाक़ात को क्या महज इत्तेफ़ाक कहा जा सकता है? क्या इसके यह मायने नहीं निकाले जा सकते हैं कि प्रशांत एनडीए के अंदर ही अंदर सेकेंड लाइन लीडरशिप की तैयारी में लगे हैं।
प्रशांत आरजेडी के कुछ वरिष्ठ नेताओं को जेडीयू में शामिल कराने के लिए उन पर डोरे डाल रहे हैं। आरजेडी के इन नेताओं की परेशानी यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार के सवर्ण ग़रीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा कर आरजेडी ने विरोध किया था। ये नेता भी सवर्ण वर्ग से आते हैं तो ऐसी परिस्थिति में वह कैसे सवर्णों के बीच वोट माँगने जा सकते हैं?
नीतीश कुमार ने कुछ दिनों पहले पश्चिम बंगाल में ममता बनाम सीबीआई के विवाद को लेकर बेहद सधे अंदाज में जबाब दिया था। नीतीश ने कहा था कि हर आदमी के काम करने का तरीक़ा अलग-अलग होता है और जेडीयू लोकतांत्रिक तरीके़ से काम करने में विश्वास रखती है। इससे स्पष्ट है कि नीतीश पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्व्रारा सीबीआई के काम में बाधा डालने की आलोचना तो कर रहे थे लेकिन वह ममता का खुलकर विरोध नहीं कर रहे थे। नीतीश को मालूम है कि पश्चिम बंगाल के हालिया घटनाक्रम और तृणमूल के एक विधायक की हत्या ने बीजेपी और तृणमूल के विवाद में आग में घी डालने का काम किया है।
फ़िलहाल नीतीश कुमार अपने कोर वोट बैंक महिला वोटरों को लुभाने में लगे हैं। प्रदेश में शराबबंदी, लड़कियों की पढ़ाई को जारी रखने के लिए पोशाक योजना, साइकिल योजना, मुख्यमंत्री कन्या योजना के अलावा पुलिस में महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण और अन्य सभी सेवा अथवा संवर्गो में भी महिलाओं को 35 प्रतिशत के आरक्षण को सही ढंग से लागू करवाने के लिए वह प्रयासशील दिख रहे हैं।
यही कारण है कि बिहार में नई वोटर लिस्ट में 5,15,800 नए महिला वोटर का नाम जबकि केवल 3,49,663 पुरुष वोटर का नाम जुड़ पाया है। बिहार में कुल 70.6 करोड़ मतदाता हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश सरकार को पुनः सत्ता में काबिज कराने में महिला मतदाताओं की अच्छी भूमिका रही थी।
जब बिहार में सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन हो रहे थे तब प्रशांत किशोर अफ़्रीका में संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए काम कर रहे थे. कई लोग ये भी मानते हैं कि मीडिया ने साल 2014 में मोदी की जीत और एक साल बाद महागठबंधन के लिए प्रशांत किशोर को ज़रूरत से ज़्यादा श्रेय दे दिया. दरअसल, दोनों ही बार वह उन पार्टियों के साथ थे जोकि चुनाव जीतने जा रही थीं. वहीं, दूसरी ओर साल 2017 में वह समाजवादी पार्टी को जीत नहीं दिला सके. ऐसे में जब उन्होंने देखा कि एक चुनावी रणनीतिकार के रूप में उनकी मांग में कमी आ रही है तो वह जदयू में शामिल हो गए.