राष्ट्रपति ने श्री केदारनाथ मंदिर में की पूजा अर्चना
हिमालयायूके न्यूज पोर्टल की विशेष प्रस्तुति- श्री प्रणब मुखर्जी ने ज्योतिर्लिंग श्री केदारनाथ मंदिर में पूरे विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की
हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं।
पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं।
देहरादून 28 सितम्बर, 2016 (सू.ब्यूरो)
बुधवार को राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने ज्योतिर्लिंग श्री केदारनाथ मंदिर में पूरे विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की। इस अवसर पर राष्ट्रपति के पुत्र अभिजीत मुखर्जी, उत्तराखण्ड के राज्यपाल डा. कृष्णकांत पाल, मुख्यमंत्री श्री हरीश रावत भी उपस्थित थे। राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी हेलीकाप्टर द्वारा देहरादून के जीटीसी हेलीपेड से केदारनाथ हेलीपेड पर प्रातः 8ः30 बजे पहुंचे। बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष गणेश गोदियाल व अन्य पदाधिकारियों ने पाम्परिक तरीकों से राष्ट्रपति का स्वागत किया। केदारनाथ हेलीपेड पर मंडलायुक्त गढ़वाल विनोद शर्मा, आईजी संजय गुन्ज्याल, जिलाधिकारी रूद्रप्रयाग राघव लंगर, पुलिस अधीक्षक प्रहलाद नारायण मीणा ने राष्ट्रपति व अन्य विशिष्ट व्यक्तियों की अगवानी की।
राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी एटीवी वाहन द्वारा केदारनाथ हेलीपेड से मंदिर तक गए। राष्ट्रपति ने अपने पुत्र के साथ श्री केदारनाथ मंदिर में लगभग 30 मिनिट तक पूजा अर्चना की। पुजारी शिवशंकर ने राष्ट्रपति जी को पूजा करवाई। मंदिर समिति द्वारा राष्ट्रपति को सम्मान स्वरूप शाॅल व केदारनाथ मंदिर की प्रतिकृति भेंट की।
मुख्यमंत्री श्री रावत ने राष्ट्रपति को वर्ष 2013 की दैवीय आपदा के बाद संचालित पुनर्निर्माण कार्यों व आगे की योजना के बारे में जानकारी दी। मुख्यमंत्री ने बताया कि श्री केदारनाथ के पैदल मार्ग को पहले से भी अधिक सुविधाजनक बना दिया गया है। श्रद्धालुओं के लिए बड़े पैमाने पर विभिन्न सुविधाएं विकसित की गई हैं। यात्रा को पहले से अधिक सुरक्षित, बेहतर व सुव्यवस्थित बना दिया गया है। यहां देश विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं ने भी राज्य सरकार के प्रयासों की सराहना की है। इस वर्ष चारधाम व श्री हेमकुण्ड साहिब की यात्रा पर 12 लाख से अधिक श्रद्धालु आए हैं।
;;;;;;केदारनाथ मन्दिर का विवरण- हिमालयायूके न्यूज पोर्टल की प्रस्तुति-*
केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिरबारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यहमन्दिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है। पत्थरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डव वंश के जनमेजय ने कराया था। यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। आदि शंकराचार्य ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया।
जून २०१३ के दौरान भारत के उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश राज्यों में अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण केदारनाथ सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहा। मंदिर की दीवारें गिर गई और बाढ़ में बह गयी।[2] इस ऐतिहासिक मन्दिर का मुख्य हिस्सा और सदियों पुराना गुंबद सुरक्षित रहे लेकिन मन्दिर का प्रवेश द्वार और उसके आस-पास का इलाका पूरी तरह तबाह हो गया।
केदारनाथ की बड़ी महिमा है। उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ और केदारनाथ-ये दो प्रधान तीर्थ हैं, दोनो के दर्शनों का बड़ा ही माहात्म्य है। केदारनाथ के संबंध में लिखा है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है और केदारनापथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाश पूर्वक जीवन मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है।
इस मन्दिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, पर एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थयात्रा रहा है। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये १२-१३वीं शताब्दी का है। ग्वालियर से मिली एक राजा भोज स्तुति के अनुसार उनका बनवाय हुआ है जो १०७६-९९ काल के थे।[4] एक मान्यतानुसार वर्तमान मंदिर ८वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया जो पांडवों द्वारा द्वापर काल में बनाये गये पहले के मंदिर की बगल में है। मंदिर के बड़े धूसर रंग की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ खुदा है, जिसे स्पष्ट जानना मुश्किल है। फिर भी इतिहासकार डॉ शिव प्रसाद डबराल मानते है कि शैव लोग आदि शंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं। १८८२ के इतिहास के अनुसार साफ अग्रभाग के साथ मंदिर एक भव्य भवन था जिसके दोनों ओर पूजन मुद्रा में मूर्तियाँ हैं। “पीछे भूरे पत्थर से निर्मित एक टॉवर है इसके गर्भगृह की अटारी पर सोने का मुलम्मा चढ़ा है। मंदिर के सामने तीर्थयात्रियों के आवास के लिए पण्डों के पक्के मकान है। जबकि पूजारी या पुरोहित भवन के दक्षिणी ओर रहते हैं। श्री ट्रेल के अनुसार वर्तमान ढांचा हाल ही निर्मित है जबकि मूल भवन गिरकर नष्ट हो गये।” केदारनाथ मन्दिर रुद्रप्रयाग जिले मे है उत्तरकाशी जिले मे नही
यह मन्दिर एक छह फीट ऊँचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। मन्दिर में मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नन्दी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। मन्दिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन हाँ ऐसा भी कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी।
मन्दिर की पूजा श्री केदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक माना जाता है। प्रात:काल में शिव-पिण्ड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है। तत्पश्चात धूप-दीप जलाकर आरती उतारी जाती है। इस समय यात्री-गण मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं, लेकिन संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है। उन्हें विविध प्रकार के चित्ताकर्षक ढंग से सजाया जाता है। भक्तगण दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं। केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते हैं।
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