विधान का पालन ईश्वर को करना ही पडता है
विधाता को आना ही पड़ता है ;ईश्वरीय विधान के अनुसार आपने अगर यह किया; www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal & Daily Newspaper) publish at Dehradun & Haridwar;
ग्रह कभी स्थिर नहीं रहते हैं, इनकी चाल और स्थितियां बदलती रहती हैं इसलिए जीवन में सुख-दुख और लाभ हानि का चक्र चलता रहता है। किसी साल आपको सफलता और खुशियां मिलती है तो किसी साल एक के बाद एक परेशानी आती हैं।
अगर आप पूजा-पाठ में भरोसा करते हैं तो आपके घर में भी कोई न कोई ऐसी जगह जरूर होगी, जिसे आपने मंदिर का रूप दिया होगा। कुछ लोगों के घरों में तो एक छोटा कमरा ही पूजा के लिए होता है। कुछ लोग घर में ही मंदिर बनवाते हैं। मंदिर चाहे छोटा हो या बड़ा, लकड़ी का हो या संगमरमर का….उसकी स्थापना के समय कुछ बातों का खास ख्याल रखना होता है।
चाणक्य कहते हैं कि वैभव प्राप्त करने के लिए नियमित अपने हाथों से माला बनाकर अपने ईष्ट देव को अर्पित करें। नियमित अपने हाथों से चंदन घिसकर भगवान को लगाएं और खुद भी तिलक करें। इन तीनों उपायों पर गौर करें तो आप देखेंगे कि यह ऐसे उपाय हैं जिन्हें आप आजमाएं तो आपके अंदर एक सकारात्मक भाव और उर्जा का संचार होगा जो अच्छे कर्म और सद्विचार को बढ़ाने में सहायक होगा। और कहते है कि जहां सद् विचार और सद्कर्म किए जाते हैं वहां देवी लक्ष्मी को बुलाना नहीं पड़ता है उन्हें ईश्वरीय विधान के अनुसार स्वयं ही आना पड़ता है।
सर्व मंगल की कामना करने वालों के लिए सिन्दूरी रंग के गणपति की आराधना अनुकूल रहती है। विघ्नहर्ता की मूर्ति अथवा चित्र में उनके बाएं हाथ की और सूंड घुमी हुई हो, इस बात का ध्यान रखना चाहिए। दाएं हाथ की ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी हठी होते हैं तथा उनकी साधना-आराधना कठिन होती है। वे देर से भक्तों पर प्रसन्न होते हैं। मंगल मूर्ति को मोदक एवं उनका वाहन मूषक अतिप्रिय है। अतः चित्र लगाते समय ध्यान रखें कि चित्र में मोदक या लड्डू और चूहा अवश्य होना चाहिए। घर में बैठे हुए गणेशजी तथा कार्यस्थल पर खड़े गणपतिजी का चित्र लगाना चाहिए, किन्तु यह ध्यान रखें कि खड़े गणेशजी के दोनों पैर जमीन का स्पर्श करते हुए हों। इससे कार्य में स्थिरता आने की संभावना रहती है। भवन के ब्रह्म स्थान अर्थात केंद्र में, ईशान कोण एवं पूर्व दिशा में सुखकर्ता की मूर्ति अथवा चित्र लगाना शुभ रहता है। किन्तु टॉयलेट अथवा ऐसे स्थान पर गणेशजी का चित्र नहीं लगाना चाहिए जहां लोगों को थूकने आदि से रोकना हो। यह गणेशजी के चित्र का अपमान होगा।
वास्तु पुरुष की प्रार्थना पर ब्रह्माजी ने वास्तुशास्त्र के नियमों की रचना की थी। वास्तु देवता की संतुष्टि गणेशजी की आराधना के बिना अकल्पनीय है। नियमित गणेशजी की आराधना से वास्तु दोष उत्पन्न होने की संभावना बहुत कम होती है।
यदि पूजा घर भी वास्तु के नियमों के अनुसार बनाया जाए तो बेहतर होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार पूजा घर की दिशा, उसकी जगह, किस धातु से बना है मंदिर आदि.. और भी कुछ नियम होते हैं। जो वास्तु के अनुसार बने घर में हमें सुख, समृद्धि एवं मनचाहे धन की प्राप्ति होती है। पूजा घर के पूर्व या पश्चिम दिशा में देवताओं की मूर्तियां होनी चाहिए। पूजा घर में रखी मूर्तियों का मुख उत्तर या दक्षिण दिशा में नहीं होना चाहिए। देवताओं की दृष्टि एक-दूसरे पर नहीं पड़नी चाहिए। पूजा घर के खिड़की व दरवाजे पश्चिम दिशा में न होकर उत्तर या पूर्व दिशा में होने चाहिए। पूजा घर के दरवाजे के सामने देवता की मूर्ति रखनी चाहिए। पूजा घर में बनाया गया दरवाजा लकड़ी का नहीं होना चाहिए। घर के पूजा घर में गुंबज, कलश इत्यादि नहीं बनाने चाहिए। पूजा घर के लिए प्राय: हल्के पीले रंग को शुभ माना जाता है, अतः दीवारों पर हल्का पीला रंग किया जा सकता है। यदि घर के मुख्य द्वार पर एकदंत की प्रतिमा या चित्र लगाया गया हो तो उसके दूसरी तरफ ठीक उसी जगह पर दोनों गणेशजी की पीठ मिली रहे, इस प्रकार से दूसरी प्रतिमा या चित्र लगाने से वास्तु दोषों का शमन होता है।… घर या कार्यस्थल के किसी भी भाग में वक्रतुण्ड की प्रतिमा अथवा चित्र लगाए जा सकते हैं। किन्तु यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि किसी भी स्थिति में इनका मुंह दक्षिण दिशा या नैऋत्य कोण में नहीं होना चाहिए।. सुख, शांति, समृद्धि की चाह रखने वालों के लिए सफेद रंग के विनायक की मूर्ति, चित्र लगाना चाहिए।
यूं तो यह बातें बड़ा ही समान्य हैं लेकिन इनमें हुई चूक कष्ट का कारण बन सकती है। ऐसे में इन बातों का खास ख्याल रखें। उत्तर पूर्व के कोण को ईशान कोण कहते हैं। पूजा-पाठ के लिए इस कोण को ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है। मंदिर ऐसी जगह होना चाहिए जहां पर सूर्य की रोशनी और हवा सही से आती हो। इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है। मंदिर में छोटी मूर्तियों को प्राथमिकता दें। पूजा स्थान पर गणेश जी की मूर्ति जरूर रखें। कोई भी क्षतिग्रस्त मूर्ति या तस्वीर मंदिर में न रखें। कुछ लोग घर में मंदिर बना तो लेते हैं लेकिन उसका रख-रखाव नहीं कर पाते। मंदिर को हमेशा साफ-सुथरा रखना चाहिए और नियमित तौर पर पूजा के बर्तनों की सफाई होनी चाहिए।
HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND (Available in FB, Twitter, News Websites & Major Whatsup Group) Chandra Shekhar Joshi- Editor