उत्तराखण्ड में अब दूसरे बडे विस्थापन की तैयारी -अब पंचेश्वर
उत्तराखंड जैसे छोटे भूगोल में दुनिया का दूसरा सबसे ऊंचा बांध बनने की तैयारी हो रही है। इन सभी पर काम शुरू होने पर वहां के लोग कहां जाएंगे इसका जवाब किसी के पास नहीं है। उत्तराखंड के पहाडी इलाकों में पर्यावरण के खिलवाड के खिलाफ आंदोलनों की लंबी परंपरा रही है. चाहे वो चिपको आंदोलन हो या टिहरी बांध विरोधी आंदोलन. लेकिन राज्य और केंद्र सरकारें इस हिमालयी राज्य की पारिस्थिकीय संवेदनशीलता को नहीं समझ रही है. सरकारी जिद की वजह से टिहरी में बडा बांध बनकर तैयार हो गया है. लेकिन आज तक वहां के विस्थापितों का पुनर्वास ठीक से नहीं हो पाया है अब दूसरे विस्थापन की तैयारी है। पंचेश्वर बॉध दुनियां का सबसे ऊॅचा बॉध होगा जो उत्तराखण्ड में बनेगा। जल विद्युत परियोजनाओ के नाम पर उत्तराखण्ड को बर्बाद करने की एक बार फिर तैयारी हो रही है।
पंचेश्वर बॉध पर -चन्द्रशेखर जोशी-देहरादून की विशेष रिपोर्ट
उत्तराखण्ड में अब दुनिया का दूसरा सबसे ऊंचा बांध बनने की तैयारी हो रही है।. पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना, नेपाल सरकार और भारत सरकार मिलकर चलाने वाली हैं। इससे छह हजार चार सौ मेगावॉट बिजली पैदा होगी। पंचेश्रवर स्थान नेपाल सीमा के समीप स्थित है। इस जगह पर काली और सरयू नदियां आपस में मिलती है। पंचेश्रवर भगवान शिव के मंदिर के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है। काफी संख्या में भक्तगण यहां लगने वाले मेलों के दौरान आते हैं और इन नदियों में डूबकी लगाते हैं।
काली नदी भारत के उत्तराखंड राज्य में बहने वाली एक नदी है। इस नदी का उद्गम स्थान वृहद्तर हिमालय में ३,६०० मीटर की ऊँचाई पर स्थित कालापानी नामक स्थान पर है, जो उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ जिले में है। इस नदी का नाम काली माता के नाम पर पडा जिनका मंदिर कालापानी में लिपु-लीख दर्रे के निकट भारत और तिब्बत की सीमा पर स्थित है। अपने ऊपरी मार्ग पर यह नदी नेपाल के साथ भारत की निरंतर पूर्वी सीमा बनाती है। यह नदी उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में पहुँचने पर शारदा नदी के नाम से भी जानी जाती है।
काली नदी जौलजीबी नामक स्थान पर गोरी नदी से मिलती है। यह स्थान एक वार्षिक उत्सव के लिए जाना जाता है। आगे चलकर यह नदी, कर्नाली नदी से मिलती है और बहराइच जिले में पहुँचने पर इसे एक नया नाम मिलता है, सरयु और आगे चलकर यह गंगा नदी में मिल जाती है। पंचेश्वर के आसपास के क्षेत्र को काली कुमाँऊ कहा जाता है। काली पहाडो से नीचे मैदानो पर उतरती है और इसे शारदा के नाम से जाना जाता है।
सिंचाई और पन-विद्युत ऊर्जा के लिए बनाया जा रहा पंचेश्वर बांध, जो नेपाल के साथ एक संयुक्त उद्यम है, शीघ्र ही सरयू या काली नदी पर बनाया जाएगा। टनकपुर पनविद्युत परियोजना (१२० मेवॉ) अप्रैल १९९३ में उत्तराखंड सिंचाई विभाग द्वारा साधिकृत की गई थी, जिसके अंतर्गत चमोली के टनकपुर कस्बे से बहने वाली शारदा नदी पर बैराज बनाया गया।
काली नदी गंगा नदी प्रणाली का एक भाग है। २००७ में काली नदी, गूँच मछ्लीयों के हमलो के कारण समाचारों में भी छाई।
परियोजना में नदी महाकाली पर ३१५ मीटर ऊंचे भू एवं रॉकफिल बांध का निर्माण शामिल है । टनकपुर और तमाली (नेपाल के समीप सीमा शहर) के समीप नदी महाकाली के जल संसाधनों के उपयोग हेतु प्रस्तावित पूरनगिरी और रुपालीगढ री-रेलेटिंग बांध परियोजनाए मुख्य परियोजना के अनुप्रवाह पर स्थित है । परियोजना की टाइगर खदान की रॉकफिल सामग्रियों से संबंधित क्षेत्र अन्वेषण पूरे कर लिए गए गये है ।
पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना, भारत/नेपाल
पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना में भारत और नेपाल के मध्य सीमा नदी महाकाली के जल संसाधनों का उपयोग करने का प्रस्ताव है । इस प्रस्ताव में पंचेश्वर में ३१५ मी० ऊंचे एक राकफिल बांध और अनुप्रवाह पर रि-रेगुलेटिंग संरचना का निर्माण सम्मिलित है। रि-रेगुलेटिंग संरचना के स्थान निर्धारण हेतु दो स्थलों, रुपालीगढ और पूरनगिरी का अन्वेषण किया जा रहा है । रुपालीगढ में स्थल का अन्वेषण केवल कंक्रीट बांध के लिए किया जा रहा है जबकि पूरनगिरी में क्रमश ः रौकफिल व कंक्रीट दोनों बांधों हेतु स्थल का अन्वेषण किया जा रहा है ।
केन्द्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधानशाला ने ५२.२८ लाख रुपये की अनुमानित लागत पर उपरोक्त कार्यों को करने के लिए संयुक्त परियोजना कार्यालय, नेपाल-भारत के साथ एक समझौता किया है । परियोजना का अन्तराष्ट्रीय महत्व है और इसमें भारत व नेपाल शामिल है। जहॉँ तक प्रथम चरण के कार्यों का संबंध है, एक क्षेत्र दल ने निर्माण सामग्री सर्वेक्षण करने हेतु परियोजना का दौरा किया और रुपालीगढ बांध स्थल से मोटी व बारीक रोडी नमूने एकत्रित किए ताकि निर्माण सामग्री के रुप में उनकी उपयुक्तता का मूल्यांकन किया जा सके । प्रस्तावित बिजलीधर पर यथा स्थान प्रतिबल के मापन के लिए जलीय विभंजन परीक्षण करने हेतुजलीय विभंजन उपकरणों की तैनाती के संबंध में सीएसएमआरएस क्षेत्र दल ने परियोजना स्थल का दौरा किया। सीएसएमआरएस ने नदी महाकाली (नेपाल की ओर) के बायें किनारें पर एसडीएक्स-६वेधन छिद्र में १६९ मी० २३०-मी० की गहराई के मध्य सात सतही जलीय विभंजन परीक्षण और ०४ इम्पैशन परीक्षण किये। नदी महाकाली (नेपाल की ओर) के बाये किनारे पर बेधन छिद्र डीडीएच ने १६० मी० २३१ मी० की गहराई के मध्य नौ जलीय विभंजन परीक्षण और ०४ इम्प्रैशन परीक्षण किये गये। सीएसएमआरएस क्षेत्र दल ने पंचेश्वर परियोजना स्थल, नेपाल के बाये किनारे पर एन एक्स आकार के बेधन छिद्र सख्या डीडीएच-२ मे २६५ मी० की गहराई के मध्य पॉँच यथास्थल प्रतिबल मापन परीक्षण किये।
उत्तराखण्ड की नदियाँ
इस प्रदेश की नदियाँ भारतीय संस्कृति में सर्वाधिक स्थान रखती हैं। उत्तराखण्ड अनेक नदियों का उद्गम स्थल है। यहाँ की नदियाँ सिंचाई व जल विद्युत उत्पादन का प्रमुख संसाधन है। इन नदियों के किनारे अनेक धार्मिक व सांस्कृतिक केन्द्र स्थापित हैं। हिन्दुओं की अत्यन्त पवित्र नदी गंगा का उद्गम स्थल मुख्य हिमालय की दक्षिणी श्रेणियाँ हैं। गंगा का प्रारम्भ अलकनन्दा व भागीरथी नदियों से होता है। अलकनन्दा की सहायक नदी धौली, विष्णु गंगा तथा मंदाकिनी है। गंगा नदी भागीरथी के रुप में गोमुख स्थान से २५ कि.मी. लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। भागीरथी व अलकनन्दा देव प्रयाग संगम करती है जिसके पश्चात वह गंगा के रुप में पहचानी जाती है। यमुना नदी का उद्गम क्षेत्र बन्दरपूँछ के पश्चमी यमनोत्री हिमनद से है। इस नदी में होन्स, गिरी व आसन मुख्य सहायक हैं। राम गंगा का उद्गम स्थल तकलाकोट के उत्तर पश्चम में माकचा चुंग हिमनद में मिल जाती है। सोंग नदी देहरादून के दक्षिण पूर्वी भाग में बहती हुई वीरभद्र के पास गंगा नदी में मिल जाती है।
भारत की नदियाँ
अलकनन्दा नदी इंद्रावती नदी कालिंदी नदी काली नदी कावेरी नदी कृष्णा नदी केन नदी कोशी नदी क्षिपा नदी खडकई नदी गंगा नदी गंडक नदी गोदावरी नदी गोमती नदी घाघरा नदी चम्बल नदी झेलम नदी टोंस नदी तवा नदी चेनाब नदी ताप्ती नदी तुंगभद्रा नदी दामोदर नदी नर्मदा नदी पार्वती नदी पुनपुन नदी पेन्नार नदी फल्गू नदी बनास नदी बराकर नदी बागमती नदी बाणगंगा नदी बेतवा नदी बैगाई नदी ब्यास नदी ब्रह्मपुत्र नदी भागीरथी नदी भीमा नदी महानंदा नदी महानदी नदी माही नदी मूठा नदी मुला नदी मूसी नदी यमुना नदी रामगंगा नदी रावी नदी लूनी नदी शारदा नदी शिपा नदी सतलुज नदी सरयू नदी सरस्वती नदी साबरमती नदी सिन्धु नदी सुवर्णरेखा नदी सोन नदी हुगली नदी।