वि0सभा चुनाव-पंजाब ; चमत्कार ही बचा सकता है सरकार को
#कोमा में पडी कांग्रेस के लिए पंजाब की जीत जिंदा होने की उम्मीद # दस साल की सत्ताविरोधी लहर, ड्रग माफियाओं के आतंक और सरकार पर एक ही परिवार के दबदबा से जन आक्रोश #कोई चमत्कार ही पंजाब में अकाली दल और बीजेपी सरकार को बचा सकता है# पंजाब-अकाली दल और बीजेपी सरकार बैकफुट पर #यूपी में बीजेपी की हार हुई और पंजाब से अकाली-बीजेपी बाहर हो गए तो मोदी की नींद उड़ जाएगी #गांधी और केजरीवाल के लिए हार का मतलब है दिल्ली तक जाने वाले रास्ते का बंद हो जाना.
PHOTO CAPTION; The Prime Minister, Shri Narendra Modi being welcomed by the Chief Minister of Bihar, Shri Nitish Kumar, on his arrival, in Patna, Bihar on January 05, 2016.
#प्रस्तुति- हिमालयायूके न्यूूज पोर्टल (www.himalayauk.org) Leading Web & Print Media
इस साल पंजाब में होने वाले चुनाव को एक पंक्ति में समझाया जा सकता है – इन चुनावों के नतीजे 2019 के असली दावेदारों को सामने लाएगा.
पंजाब का परिणाम अगले आम चुनाव में बीजपी को चुनौती देने का अवसर देख रहे अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी का मुकाम भी तय करेगा. जनवरी से मार्च के बीच पांच राज्यों में चुनाव होने हैं, लेकिन, पंजाब की स्थिति अलग है और महत्वपूर्ण भी. यही इकलौता राज्य है, जहां कांग्रेस और आम आदमी पार्टी यानी आप दोनों की जीत की संभावनाएँ जताई जा रही हैं.
दस साल की सत्ताविरोधी लहर, ड्रग माफियाओं के आतंक और सरकार पर एक ही परिवार के दबदबे ने शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी सरकार को बैकफुट पर ला कर खड़ा कर दिया है. अगर मौजूदा हालात पर गौर करें तो त्रिकोणीय मुकाबले में कोई चमत्कार ही प्रकाश सिंह बादल या पर्दे के पीछे से शासन चलाने वाले उनके उत्तराधिकारी बेटे सुखबीर सिंह बादल को बचा सकता है. राष्ट्रीय पटल पर नरेंद्र मोदी के आगमन के बाद कोमा में जा चुकी कांग्रेस के लिए पंजाब की जीत जिंदा होने की पहली उम्मीद लेकर आएगी.
वर्ष 2013 में राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली और छत्तीसगढ़ में मात खाने के बाद कांग्रेस सिर्फ कर्नाटक विधानसभा चुनाव में ही जीत दर्ज करा सकी है. लगातार मिली हार ने पार्टी के सामने अस्तित्व का संकट पैदा कर दिया है.
पंजाब में कांग्रेस एक मजबूत दावेदार है. उसके पक्ष में कई चीजें काम कर रही हैं. पंजाब में कांग्रेस अभी भी जनता को स्वीकार्य है. इसका सबसे बड़ा सबूत 2014 में भी मिला था जब लोकसभा चुनाव में पंजाब में पार्टी ने तीन सीटें जीती थीं और उसे 34 प्रतिशत वोट मिले थे जो उसके राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुना था.
उसके बाद से पार्टी का रास्ता काफी उथल-पुथल वाला रहा है लेकिन दो कारणों से कांग्रेस पंजाब में अपना वजूद बचाने में सफल रही है.
पहला, राहुल गांधी का कैप्टन अमरिंदर सिंह को खुली छूट देना. दूसरा, केजरीवाल और उनकी टीम में अंदरूनी खींचतान और नाटकबाजी. पंजाब से मिल रही रिपोर्टों के मुताबितक ये चुनाव कांग्रेस से ज्यादा कैप्टन अमरिंदर के इर्द गिर्द लड़ा जा रहा है.
लोग पूछ रहे हैं.. क्या अमरिंदर सिंह पंजाब के कैप्टन बन सकते हैं? कांग्रेस को लेकर वोटरों में इतना उत्साह नहीं है जितना कैप्टन को लेकर.
चाहे जो हो पर कांग्रेस को जीत मिली तो 2012 में जिस दुर्गति की शुरुआत हुई थी, उस ट्रेंड को बदलने में कांग्रेस को मदद मिलेगी. पांच साल में पहली बार राहुल गांधी को जीत का अहसास होगा और अगले चुनावों में पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा. अगला चुनाव गुजरात में है और फिर 2018 में भी कुछ राज्यों में चुनाव होने हैं.
कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि केजरीवाल की हार होगी. अगर ऐसा हुआ तो दिल्ली से बाहर निकल राष्ट्रीय पहचान बनाने का केजरीवाल का सपना पूरा नहीं हो सकेगा. पिछले कुछ महीनों से आप की कोशिश कांग्रेस को पछाड़ कर नंबर दो की पोजीशन कब्जाने की रही है.
ऐसा सिर्फ पंजाब ही नहीं बल्कि कई और राज्यों में हो रहा है. इससे बीजेपी को उतना खतरा नहीं है जितना कांग्रेस को. मध्य और उत्तर भारत में बीजेपी विरोध का स्थान पाने के लिए कांग्रेस को आप से बहुत जूझना पड़ रह है.
पंजाब में अगर आप की हार होती है तो केजरीवाल इस लड़ाई के मध्य में ही बहुत कमजोर हो जाएंगे. फिर गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी को चुनौती देने वाली पार्टी के तौर पर कांग्रेस अकेले उभर कर सामने आ सकती है.
ऐसी पूरी संभावना है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अखिलेश यादव के मोटरसाइकल के पीछे बैठेगी. मोटरसाइकल इसलिए कि चुनाव चिन्ह के तौर पर साइकिल शायद किसी को न मिले. कांग्रेस के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता कि पंजाब में उसकी अपनी सरकार हो और उत्तर प्रदेश में वो गठबंधन सरकार में हिस्सेदार हो. इससे कांग्रेस को बड़ी राहत मिलेगी. समय मिलेगा और दोबारा संगठित होने का मनोबल भी मिलेगा.
केजरीवाल की राजनीति का ये निर्णायक मोड़ हो सकता है. कुछ दिनों पहले तक पंजाब में आप चुनाव जीतने की रेस में सबसे आगे थी लेकिन बीच में कुछ दिक्कतें आ गईं. जब केजरीवाल दिल्ली में लड़े तब भी बाहरी थे और उन्हें मौजूदा प्रणाली को बिगाड़ने वाले के तौर पर पेश किया गया.
अगर वह दिल्ली में जीत से चूक भी गए होते तो उन्हें अपनी स्वीकार्यता साबित करने का ज्यादा मौका मिला होता. लेकिन पंजाब में केजरीवाल को हमेशा मुख्य रेस में माना गया है.
2014 के लोकसभा चुनाव में भी आप को 30 प्रतिशत वोट मिले और चार सीटें भी हासिल करने में वो कामयाब रही. पिछले साल जब माघी मेला में तीनों मुख्य पार्टियों ने रैली आयोजित की तो आप के टेंट में सबसे ज्यादा लोग थे जिससे केजरीवाल की लोकप्रियता का अंदाजा लगता है.
लेकिन उसके बाद आप की राह में रोड़े भी आए हैं. अमरिंदर सिंह का तेजी से बढ़ता कद, सुच्चा सिंह छोटेपुर के साथ झंझट, नवजोत सिंह सिद्धू के साथ व्यवहार और बिना सिख चेहरे वाली पार्टी के तौर पर पेश किया जाना केजरीवाल के खिलाफ गया है.
हालांकि केजरीवाल अब भी 117 सीटों में से 100 सीटों पर जीत का दावा कर रहे हैं पर ये खोखला ही है.
पंजाब केजरीवाल का भविष्य तय करेगा. यहां जीत मिली तो दो फायदे हैं. पहला राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार की कोशिशों को बल मिलेगा. दूसरा, उसे अपने बूते राज्य की कमान मिलेगी.
दिल्ली में उपराज्यपाल के साथ लगातार संघर्ष जैसी स्थिति नहीं होगी. पर अगर हार हुई तो केजरीवाल दिल्ली तक ही सीमित रह जाएंगे. पिंजरे में कैद तोते की तरह.
शायद बीजेपी ही इकलौती पार्टी है जिसे पंजाब के चुनाव परिणाम को लेकर कोई चिंता नहीं है. साथ में ही यूपी में चुनाव है. बीजेपी पूरा ध्यान लखनऊ पर रखेगी. पंजाब की चिंता बादल परिवार के जिम्मे होगी. राज्य के भीतर अकालियों और उसके क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धियों के बीच लड़ाई से दूरी बनाना भी बीजेपी की नीति का हिस्सा है.
दूसरी ओर अकालियों के लिए दस साल की सत्ता विरोधी लहर और चुनाव में धर्म के इस्तेमाल पर सुप्रीम कोर्ट की लगाई गई रोक का सबसे ज्यादा असर पंथ की राजनीति करने वाले अकालियों पर ही पड़ेगा.
2012 की जीत का एक कारण ये भी था कि सुखबीर के भतीजे मनप्रीत ने सत्ता विरोधी वोटों का बंटवारा कर दिया.
अगर यूपी में बीजेपी की हार हुई और पंजाब से अकाली-बीजेपी बाहर हो गए तो मोदी की नींद उड़ जाएगी. हालांकि तब भी 2019 में उन्हें हराना बहुत मुश्किल होगा. दूसरी ओर गांधी और केजरीवाल के लिए हार का मतलब है दिल्ली तक जाने वाले रास्ते का बंद हो जाना.
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