राफेल डील मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में ज़मीदोज़, पीसी जांच पर अड़ी कांग्रेस

राफेल डील मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में ज़मीदोज़#  सीजेआई की बेंच ने कहा कि वो किसी धारणा के आधार पर फैसला नहीं दे सकती है #  सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद राफेल डील पर राजनीति क्यों नहीं थमी? # देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले के खिलाफ असंतोष दिखाने का साहस जुटाया जा सका है? सुप्रीम कोर्ट से मन की मुराद पूरी न हो पाने कांग्रेस अब राफेल डील पर जेपीसी जांच पर अड़ी है # राफेल डील पर ऐसा क्या जेपीसी की जांच में सामने आ जाएगा जो कि वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, बीजेपी के बागी सीनियर नेता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, वकील मनोहर लाल शर्मा और विनीत ढांडा की दाखिल याचिकाओं के तर्क, तथ्य और आरोपों से सुप्रीम कोर्ट में साबित नहीं हो सका? # बीजेपी को राफेल पर राहत मिलना पार्टी के लिए संजीवनी का काम किया है

सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील मामले में जांच की मांग वाली सभी याचिकाओं को ख़ारिज करते हुए कहा कि हमें रक्षा सौदे में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला. राफेल मामले में वकील मनोहर लाल शर्मा, विनीत ढांडा और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने याचिका दायर की थी. इनके अलावा पूर्व भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरूण शौरी और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने संयुक्त याचिका दायर की थी.

तीन राज्यों की हार से मायूस सरकार को आज बड़ी जीत हासिल हुई सुप्रीम कोर्ट से.  राफेल डील की जांच की याचिकाओं को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि विमान की खरीद प्रक्रिया संदेह से परे है.  कोर्ट ने कहा कि किसी की धारणा कोर्ट से जांच का आधार नहीं बन सकती.  अनिल अंबानी की कंपनी को राफेल बनाने वाले दसॉ एविएशन का पार्टनर चुनने को लेकर भी कोर्ट ने सरकार को क्लीन चिट दे दी.  विमान की कीमत के बारे में अदालत ने कोई राय रखने से भी इनकार कर दिया. अदालत के इस फैसले के बाद बीजेपी ने कांग्रेस पर चौतरफा वार किए हैं.  बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि सब चोर मिलकर चौकीदार को चोर बोलते थे. 

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, ‘कोर्ट का ये काम नहीं है कि वो निर्धारित की गई राफेल कीमत की तुलना करे. हमने मामले की अध्ययन किया, रक्षा अधिकारियों के साथ बातचीत की, हम निर्णय लेने की प्रक्रिया से संतुष्ट हैं.’

वित्तमंत्री अरुण जेटली ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि राफेल पर झूठ बोलने वालों की हार हुई है. कोर्ट ने माना कि राफेल पर 74 बैठकें हुईं. अरुण जेटली ने कहा कि सत्य की हमेशा जीत होती है, राफेल मुद्दे पर भी वही हुआ. इसके अलावा जेटली ने कहा कि राफेल मुद्दे पर राष्ट्र हितों और आर्थिक हितों दोनों की सुरक्षा की गई. उन्होंने कहा कि राफेल डील पर संसद के दोनों सदनों में चर्चा हो और जिन्होंने इसपर झूठ बोला वो सामने आएं.

सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील में कोर्ट की अगुवाई में जांच की मांग वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि हमें रक्षा सौदे में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला.

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की तीन सदस्यीय पीठ ने ये फैसला दिया था. कोर्ट ने कहा कि राफेल अधिग्रहण की प्रक्रिया की जांच करने के लिए यह अदालत का मामला नहीं है.

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, ‘कोर्ट का ये काम नहीं है कि वो निर्धारित की गई राफेल कीमत की तुलना करे. हमने मामले की अध्ययन किया, रक्षा अधिकारियों के साथ बातचीत की, हम निर्णय लेने की प्रक्रिया से संतुष्ट हैं.’

वही दूसरी ओर; 

सुप्रीम कोर्ट द्वारा राफेल मामले में जांच की मांग वाली याचिकाओं को खारिज करने के बाद वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि कोर्ट का फैसला एकदम गलत है. उन्होंने कहा कि एयरफोर्स से बिना पूछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस में जाकर समझौता कर लिया और इसके बाद तय कीमत से ज्यादा पैसा दे दिया. भूषण ने ये भी कहा कि सरकार ने राफेल मामले में कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट दी है जिसके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है. इसके अलावा कोर्ट ने ऑफसेट पार्टनर चुनने के मामले में भी गलत नहीं माना है.  इस मामले में पिछली सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने फ्रांस की कंपनी दासो के साथ साजिश करने का भी आरोप लगाया जिसने आफसेट अधिकार रिलायंस को दिए हैं.

उन्होंने कहा था कि यह भ्रष्टाचार के समान है और यह अपने आप में एक अपराध है. उन्होंने कहा कि रिलायंस के पास आफसेट करार को क्रियान्वित करने की दक्षता नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि दासो एविएशन को अपना ऑफसेट पार्टनर चुनना था हालांकि रक्षा सौदे में लिखा है कि बिना सरकार की सहमति के कोई फैसला नहीं लिया जा सकता है.

कोर्ट ने यह भी कहा कि पहले का सौदा आगामी नहीं था और नया सौदा वित्तीय फायदे के साथ आया है. कोर्ट ने कहा कि नियम के मुताबिक आफसेट पार्टनर विक्रेता द्वारा तय किया जाना था, न कि केंद्र सरकार द्वारा.

कोर्ट ने ये भी कहा कि हम इस फैसले की जांच नहीं कर सकते कि 126 राफेल की जगह 36 राफेल की डील क्यों की गई. हम सरकार से ये नहीं कह सकते कि आप 126 राफेल खरीदें.

जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, ‘हम पहले और वर्तमान राफले सौदे के बीच की कीमतों की तुलना करने के लिए न्यायिक समीक्षा की शक्तियों का उपयोग नहीं कर सकते हैं.’ 

बता दें इस मामले में पिछली सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने फ्रांस की कंपनी दासो के साथ साजिश करने का भी आरोप लगाया जिसने आफसेट अधिकार रिलायंस को दिए हैं.  उन्होंने कहा था कि यह भ्रष्टाचार के समान है और यह अपने आप में एक अपराध है. उन्होंने कहा कि रिलायंस के पास आफसेट करार को क्रियान्वित करने की दक्षता नहीं है.

बीते 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई पूरी की थी और फैसला सुरक्षित रखा था. कोर्ट ने इस मामले में दायर की गईं याचिकाओं पर विभिन्न पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनी. कोर्ट में दायर याचिकाओं में राफेल लड़ाकू विमान सौदे में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए इसमें प्राथमिकी दर्ज करने और कोर्ट की अगुवाई जांच कराने की मांग की गई थी.

ये याचिकाएं वकील मनोहर लाल शर्मा, विनीत ढांडा और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने दायर की हैं. इनके अलावा पूर्व भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरूण शौरी और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने संयुक्त याचिका दायर की है. 

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राफेल लड़ाकू विमानों की कीमतों पर उसी स्थिति में चर्चा हो सकती है जब इस सौदे के तथ्यों को सार्वजनिक दायरे में आने दिया जाए. मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, ‘हमें यह निर्णय लेना होगा कि क्या कीमतों के तथ्यों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए या नहीं.’

उधर, अगस्ता वेस्टलैंड सौदे में भ्रष्टाचार के मामले में बिचौलिए क्रिश्चिएन मिशेल को भारत लाकर सरकार अपनी पीठ थपथपाने में लगी है. अब अगस्ता वेस्टलैंड मामले में जैसे-जैसे मिशेल पर आरोप लगेगा और आने वाले दिनों में मिशेल की तरफ से पूछताछ में कुछ खुलासा होगा तो सीधे पलटवार करने का फिर से मौका बीजेपी को मिलेगा. अगस्ता वेस्टलैंड पर पलटवार में लगी बीजेपी राफेल पर फैसले के बाद अब सदन में कांग्रेस को घेरने की तैयारी हो रही है.

मालूम हो कि सितंबर 2017 में भारत ने करीब 58,000 करोड़ रुपये की लागत से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए फ्रांस के साथ अंतर-सरकारी समझौते पर दस्तखत किए थे.

इससे करीब डेढ़ साल पहले 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पेरिस यात्रा के दौरान इस प्रस्ताव की घोषणा की थी. आरोप लगे हैं कि साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस सौदे में किए हुए बदलावों के लिए ढेरों सरकारी नियमों को ताक पर भी रखा गया.

यह विवाद इस साल सितम्बर में तब और गहराया जब फ्रांस की मीडिया में एक खबर आयी, जिसमें पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने कहा कि राफेल करार में भारतीय कंपनी का चयन नई दिल्ली के इशारे पर किया गया था.

ओलांद ने ‘मीडियापार्ट’ नाम की एक फ्रेंच वेबसाइट से कहा था कि भारत सरकार ने 58,000 करोड़ रुपए के राफेल करार में फ्रांसीसी कंपनी दासो के भारतीय साझेदार के तौर पर उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस के नाम का प्रस्ताव दिया था और इसमें फ्रांस के पास कोई विकल्प नहीं था.

 सितंबर 2017 में भारत ने करीब 58,000 करोड़ रुपये की लागत से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए फ्रांस के साथ अंतर-सरकारी समझौते पर दस्तखत किए थे.  इससे करीब डेढ़ साल पहले 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पेरिस यात्रा के दौरान इस प्रस्ताव की घोषणा की थी. आरोप लगे हैं कि साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस सौदे में किए हुए बदलावों के लिए ढेरों सरकारी नियमों को ताक पर भी रखा गया. यह विवाद इस साल सितम्बर में तब और गहराया जब फ्रांस की मीडिया में एक खबर आयी, जिसमें पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने कहा कि राफेल करार में भारतीय कंपनी का चयन नई दिल्ली के इशारे पर किया गया था.

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