BIRTH DAY; Special; राहुल गांधी की कुंडली में कोर्इ विशिष्ट राजयोग नहीं

19 JUNE; BIRTH DAY ; Birth Time; 9.52pm;  राहुल गाँधी समय सही नहीं है. अपने नाम में आंशिक परिवर्तन कर दे # 

सितम्बर 2017 के बाद का समय राहुल गांधी के लिए अच्छा रहेगा। जब गुरू कन्या से तुला राशि में गोचर करेगा, ये पारगमन राहुल के पक्ष में काम करेगा। एेसे में सितंबर 2017 के बाद वो एक पार्टी लीडर के रूप में अधिक आत्मविश्वासी नजर आएंगे। हालांकि, कांग्रेस के प्रति लोगों की धारणा को बदलना राहुल गांधी के लिए आसान काम नहीं होगा। अप्रेल 2019 तक का समय राहुल गांधी के लिए कठिन रहेगा आैर खासकर अगस्त 2018 के बाद कांग्रेस पार्टी की नींव पर उनकी पकड़ कमजोर हो जाएगी।

अभी अगर कांग्रेस पार्टी राहुल गाँधी को कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनाती है तो इससे वह अपना बुरा ही करेगी. कुछ लोग राहुल को आगामी चुनावों का मुख्य चेहरा भी बनाने की बात कर रहे हैं तो बता दें कि अभी जिस तरह से कमजोर ब्रहस्पति और खतरनाक राहू, राहुल गाँधी की कुंडली में बैठा है, उसके लिहाज से समय सही नहीं है. इनको आगे करने से पार्टी को हानि ही होनी है. अभी अगर कांग्रेस पार्टी राहुल गाँधी को कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनाती है तो इससे वह अपना बुरा ही करेगी. कुछ लोग राहुल को आगामी चुनावों का मुख्य चेहरा भी बनाने की बात कर रहे हैं तो बता दें कि अभी जिस तरह से कमजोर ब्रहस्पति और खतरनाक राहू, राहुल गाँधी की कुंडली में बैठा है, उसके लिहाज से समय सही नहीं है. इनको आगे करने से पार्टी को हानि ही होनी है.

राहुल गाँधी की कुंडली के हिसाब से उनके लिए अच्छी बात यह है कि परिवार और दोस्त, इनको धोखा नहीं देंगे और खराब समय में भी साथ खड़े रहेंगे. अभी अगर राहुल गाँधी किसी और के नाम के सहारे या  या राहुल गाँधी अपने नाम में आंशिक परिवर्तन कर दे  ; पार्टी के लिए काम करेंगे तो इनको लाभ मिलेगा और वाह-वाही भी मिलेगी. मंगल को अगर राहु शक्ति प्रदान करते हैं तो इनको साल अंत में बड़ी खुशखबरी मिलेगी. एक मंगल ही ऐसा ग्रह है जो इनको क़ानूनी केसों से बचा सकता है. हनुमान भगवान का ज्यादा से ज्यादा ध्यान किया जाये और हनुमान यज्ञ का अनुष्ठान हर माह घर पर रखने से राहुल गाँधी को लाभ प्राप्त हो सकता है.

राहुल नाम का मतलब कुशल है । राहुल गांधी के लिए आगामी समय कैसा रहेगा ? क्या वो एक सफल राजनीतिज्ञ के रूप में उभरेंगे आैर क्या उनके नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी फिर से मजबूत पार्टी के रूप में उभर पाएगी ? राहुल गांधी की कुंडली के अनुसार उनका जन्म तुला लग्न में हुआ है। उनका वर्गोतम गुरू लग्न में विराजमान है। इसके अलावा लग्न भी वर्गोतम है। उसके नौवें भाव का स्वामी बुध भी वर्गोतम है। जबकि मंगल आैर सूर्य भाग्य के नौवें स्थान में ‘शुभ-कर्तरी’ योग बना रहा है। एेसे में राहुल गांधी की कुंडली में प्रभावशाली राजनीतिक बनने के लिए कर्इ आशाजनक ज्योतिषीय संयोजन है। राहुल गांधी की कुंडली में कोर्इ विशिष्ट राजयोग नहीं है। साथ ही नौवें भाव का स्वामी (भाग्य का भाव) बुध आठवें भाव में (दुर्भाग्य के भाव) विराजमान है। एेसे में राहुल गांधी का भाग्य पर्याप्त मजबूत नहीं है। साथ ही जन्म के चंद्र से दूषित ग्रह पांचवें आैर नौवें भाव से एवं पांचवें भाव से नीच शनि राहुल के राजनीतिक कैरियर में रूकावटें उत्पन्न कर रहा है। गंभीर झटकों के बावजूद वे तूफानी स्थितियों को अच्छे से संभालने में सक्षम होंगे अौर कांग्रेस पार्टी में वे प्रभावशाली पद पर बने रहेंगे। वर्तमान में राहुल गांधी शनि की साढ़े साती के दूसरे चरण से प्रभावित है। शनि की साढ़े साती का ये समय मुश्किल, विलंब आैर निराशाभरा होने के साथ चिंतातुर एवं संघर्ष-ग्रस्त होगा। साथ ही राहु का कर्क राशि में आगामी गोचर भी राहुल गांधी के लिए मुश्किलों भरा रहेगा। वो अनिर्णायक स्थिति में रहेंगे आैर कांग्रेस के भाग्य के सितारे को फिर से मजबूत बनाने के लिए उनका दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं होगा। यानि राहुल ये नहीं समझ पाएंगे कि जनता के बीच फिर से कांग्रेस की छवि को कैसे सुधारा जाए। उनका कमजोर दृष्टिकोण उनके नेतृत्व क्षमता को लेकर गंभीर आलोचनाएं पा सकता है।

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विरोधी इनको आसानी से घेर लेंगे

राहुल गाँधी की कुंडली देखकर बोला जाये तो अभी कुछ समय के लिए इनको राजनीति से दूर हो जाना चाहिए. एक दौर था जब राहुल गाँधी राजा बन सकते थे, लेकिन तब उन्होंने अपने राजयोग का लाभ नहीं उठाया था और शुक्र जो बलवान था उसको राहुल गाँधी पहचान ही नहीं पाए थे. आपको याद हो तो साल 2004 से 2010 के करीब राहुल गाँधी की प्रतिभा अलग ही नजर आ रही थी. असल में तब उच्च का शुक्र और शक्तिशाली सूर्य इनको राजा बनाना चाह रहा था लेकिन तब राहुल गाँधी वक़्त को समझ नहीं पाए थे. वैसे अब भी देखा जाये तो राहुल गाँधी शायद ग्रह-नक्षत्र और ज्योतिष शास्त्र पर ज्यादा विश्वास नहीं कर रहे हैं लेकिन अगर कांग्रेस पार्टी के बड़े लोग ज्योतिष विद्या को मानते हैं तो अभी कुछ समय के लिए राहुल गाँधी को पार्टी अध्यक्ष ना बनाये.राहुल गाँधी के ऊपर राहू दोष है. इनको आगे करके जो भी काम अभी किये जायेंगे, उनका कोई भी फल पार्टी को नहीं मिलेंगा. राजनीति के क्षेत्र में शुक्र ग्रह का बड़ा हाथ माना जाता है तो इस हिसाब से शुक्र अभी राहुल गाँधी की कुंडली में नीच का होकर बैठा है तो विरोधी इनको आसानी से घेर लेंगे और राहुल गाँधी सुख से बहुत दूर रहेंगे. राहुल गाँधी की कुंडली मिथुन लग्न की है और केंद्र स्थान पर सूर्य व मंगल विराजमान है. यही एक कारण है कि इनको विरासत में इतने बड़े पद मिले हैं. लेकिन समय बदलते देर नहीं लगता है. ग्रहों की दशा के साथ-साथ इंसान का समय भी बदलता है. ऐसा ही कुछ अभी राहू के कारण राहुल के साथ हो रहा है.

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राहुल गांधी (जन्म: 19 जून 1970) एक भारतीय नेता और भारत की संसद के सदस्य हैं और भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा में उत्तर प्रदेश में स्थित अमेठी चुनाव क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।   राहुल गांधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से संबद्ध हैं।  राहुल भारत के प्रसिद्ध गांधी-नेहरू परिवार से हैं। राहुल को 2009 के आम चुनावों में कांग्रेस को मिली बड़ी राजनैतिक जीत का श्रेय दिया गया है। उनकी राजनैतिक रणनीतियों में जमीनी स्तर की सक्रियता पर बल देना, ग्रामीण जनता के साथ गहरे संबंध स्थापित करना और कांग्रेस पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र को मजबूत करने की कोशिश करना प्रमुख हैं।  आजकल राहुल अपना सारा ध्यान पार्टी को जड़ से मजबूत बनाने पर केंद्रित कर रहे हैं। राहुल गांधी का जन्म 19 जून 1970 को नई दिल्ली में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और वर्तमान काँग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी के यहां हुआ था। वह अपने माता पिता की दो संतानों में बड़े हैं और प्रियंका गांधी वढेरा के बड़े भाई हैं। राहुल की दादी इंदिरा गांधी भारत की पूर्व प्रधानमंत्री थीं।
राहुल की प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल में की और इसके बाद वो प्रसिद्ध दून विद्यालय में पढ़ने चले गये जहां उनके पिता ने भी विद्यार्जन किया था। सन 1981-83 तक सुरक्षा कारणों के कारण राहुल को अपनी पढ़ाई घर से ही करनी पड़ी। राहुल ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के रोलिंस कॉलेज फ्लोरिडा से सन 1994 में कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद सन 1995 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज से एम.फिल. की उपाधि प्राप्त की।
स्नातक स्तर तक की पढ़ाई कर चुकने के बाद राहुल ने प्रबंधन गुरु माइकल पोर्टर की प्रबंधन परामर्श कंपनी मॉनीटर ग्रुप के साथ 3 साल तक काम किया। इस दौरान उनकी कंपनी और सहकर्मी इस बात से पूरी तरह से अनभिज्ञ थे कि वे किसके साथ काम कर रहे हैं क्योंकि राहुल यहां एक छद्म नाम रॉल विंसी के नाम से इस कम्पनी में नियोजित थे। राहुल के आलोचक उनके इस कदम को उनके भारतीय होने से उपजी उनकी हीन-भावना मानते हैं जब कि, काँग्रेसी उनके इस कदम को उनकी सुरक्षा से जोड़ कर देखते हैं। सन 2002 के अंत में वह मुंबई में स्थित अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी से संबंधित एक कम्पनी ‘आउटसोर्सिंग कंपनी बैकअप्स सर्विसेस प्राइवेट लिमिटेड’ के निदेशक-मंडल के सदस्य बन गये।
2003 में, राहुल गांधी के राष्ट्रीय राजनीति में आने के बारे में बड़े पैमाने पर मीडिया में अटकलबाजी का बाज़ार गर्म था, जिसकी उन्होंने तब कोई पुष्टि नहीं की। वह सार्वजनिक समारोहों और कांग्रेस की बैठकों में बस अपनी माँ के साथ दिखाई दिए। एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट श्रृंखला देखने के लिए सद्भावना यात्रा पर अपनी बहन प्रियंका गाँधी के साथ पाकिस्तान भी गए।
जनवरी 2004 में राजनीति उनके और उनकी बहन के संभावित प्रवेश के बारे में अटकलें बढ़ीं जब उन्होंने अपने पिता के पूर्व निर्वाचन क्षेत्र अमेठी का दौरा किया, जहाँ से उस समय उनकी माँ सांसद थीं। उन्होंने यह कह कर कि “मैं राजनीति के विरुद्ध नहीं हूँ। मैंने यह तय नहीं किया है कि मैं राजनीति में कब प्रवेश करूँगा और वास्तव में, करूँगा भी या नहीं।” एक स्पष्ट प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया था।
मार्च 2004 में, मई 2004 का चुनाव लड़ने की घोषणा के साथ उन्होंने भारतीय राजनीति में प्रवेश की घोषणा की, वह अपने पिता के पूर्व निर्वाचन क्षेत्र उत्तर प्रदेश के अमेठी से लोकसभा चुनाव के लिए खड़े हुए, जो भारत की संसद का निचला सदन है। इससे पहले, उनके चाचा संजय गांधी ने, जो एक विमान दुर्घटना के शिकार हुए थे, ने संसद में इसी क्षेत्र का नेतृत्व किया था। तब इस लोकसभा सीट पर उनकी माँ थी, जब तक वह पड़ोस के निर्वाचन-क्षेत्र रायबरेली स्थानान्तरित नहीं हुई थी। उस समय इनकी पार्टी ने राज्य की 80 में से महज़ 10 लोकसभा सीट ही जीतीं थीं और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का हाल बुरा था।  इससे राजनीतिक टीकाकारों को थोड़ा आश्चर्य भी हुआ जिन्होंने राहुल की बहन प्रियंका गाँधी में करिश्मा कर सकने और सफल होने की संभावना देखी थी। पर तब पार्टी के अधिकारियों के पास मीडिया के लिए उनका बायोडेटा तैयार नहीं था। ये अटकलें लगाई गयीं कि भारत के सबसे मशहूर राजनीतिक परिवारों में से एक देश की युवा आबादी के बीच इस युवा सदस्य की उपस्थिति कांग्रेस पार्टी के राजनीतिक भाग्य को पुनर्जीवन देगी। विदेशी मीडिया के साथ अपने पहले इंटरव्यू में, उन्होंने स्वयं को ‘देश को जोड़ने वाली शख्सियत’ के रूप में पेश किया और भारत की “विभाजनकारी” राजनीति की निंदा की, यह कहते हुए कि वह जातीय और धार्मिक तनाव को कम करने की कोशिश करेंगे। उनकी उम्मीदवारी का स्थानीय जनता ने उत्साह के साथ स्वागत किया, जिनका इस क्षेत्र में इस गाँधी-परिवार से एक लंबा संबंध था। , भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता]] वह एक विशाल बहुमत से जीते, वोटों में 1,00,000 के अंतर के साथ इन्होंने परिवार का गढ़ बनाए रखा, जब कांग्रेस ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को अप्रत्याशित रूप से हराया।  उनका अभियान उनकी छोटी बहन, प्रियंका गाँधी द्वारा संचालित किया गया था।  2006 तक उन्होंने कोई अन्य पद ग्रहण नहीं किया और मुख्य निर्वाचन क्षेत्र के मुद्दों और उत्तर प्रदेश की राजनीति पर ध्यान केंद्रित किया और भारतीय और अंतरराष्ट्रीय प्रेस में व्यापक रूप से अटकलें थी कि सोनिया गांधी भविष्य में उन्हें एक राष्ट्रीय स्तर का कांग्रेस नेता बनाने के लिए तैयार कर रही हैं।
जनवरी 2006 में, हैदराबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक सम्मेलन में, पार्टी के हजारों सदस्यों ने गांधी को पार्टी में एक और महत्वपूर्ण नेतृत्व की भूमिका के लिए प्रोत्साहित किया और प्रतिनिधियों के संबोधन की मांग की. उन्होंने कहा, “मैं इसकी सराहना करता हूँ और मैं आपकी भावनाओं और समर्थन के लिए आभारी हूँ. मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं आपको निराश नहीं करूँगा” लेकिन उनसे इस बारे में धैर्य रखने को कहा और पार्टी में तुरंत एक उच्च पद लेने से मना कर दिया.
गांधी और उनकी बहन ने 2006 में रायबरेली में पुनः सत्तारूढ़ होने के लिए उनकी माँ का चुनाव अभियान हाथ में लिया, जो आसानी से 4,00,000 मतों से अधिक अंतर के साथ जीती थीं।
2007 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए एक उच्च स्तरीय कांग्रेस अभियान में उन्होंने प्रमुख भूमिका अदा की ; हालाँकि कांग्रेस ने 8.53% मतदान के साथ केवल 22 सीटें ही जीतीं। इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को बहुमत मिला, जो पिछड़ी जाति के भारतीयों का प्रतिनिधित्व करती है।
राहुल गांधी को 24 सितंबर 2007 में पार्टी-संगठन के एक फेर-बदल में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का महासचिव नियुक्त किया गया था। उसी फेर-बदल में, उन्हें युवा कांग्रेस और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ का कार्यभार भी दिया गया था।
एक युवा नेता के रूप में खुद को साबित करने के उनके प्रयास में नवम्बर 2008 में उन्होंने नई दिल्ली में अपने 12, तुगलक लेन स्थित निवास में कम से कम 40 लोगों को ध्यानपूर्वक चुनने के लिए साक्षात्कार आयोजित किया, जो भारतीय युवा कांग्रेस (IYC) के वैचारिक-दस्ते के हरावल बनेंगे, जब से वह सितम्बर 2007 में महासचिव नियुक्त हुए हैं तब से इस संगठन को परिणत करने के इच्छुक हैं
2009 के लोकसभा चुनावों में, उन्होंने उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 3,33,000 वोटों के अन्तर से पराजित करके अपना अमेठी निर्वाचक क्षेत्र बनाए रखा। इन चुनावों में कांग्रेस ने कुल 80 लोकसभा सीटों में से 21 जीतकर उत्तर प्रदेश में खुद को पुनर्जीवित किया और इस बदलाव का श्रेय भी राहुल गांधी को ही दिया गया है। छह सप्ताह में देश भर में उन्होंने 125 रैलियों में भाषण दिया था।
पार्टी-वृत्त में वह ‘आर जी’ के नाम से जाने जाते हैं
जब 2006 के आखिर में न्यूज़वीक ने इल्जाम लगाया की उन्होंने हार्वर्ड और कैंब्रिज में अपनी डिग्री पूरी नहीं की थी या मॉनिटर ग्रुप में काम नहीं किया था, तब राहुल गांधी के कानूनी मामलों की टीम ने जवाब में एक कानूनी नोटिस भेजा, जिसके बाद वे जल्दी से मुकर गए या पहले के बयानों का योग्य किया राहुल गांधी ने 1971 में पाकिस्तान के टूटने को, अपने परिवार की “सफलताओं” में गिना.इस बयान ने भारत में कई राजनीतिक दलों से साथ ही विदेश कार्यालय के प्रवक्ता सहित पाकिस्तान के उल्लेखनीय लोगों से आलोचना को आमंत्रित किया .प्रसिद्ध इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा की यह टिप्पणी “..बांग्लादेश आंदोलन का अपमान था। 
2007 में उत्तर प्रदेश के चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने कहा की “यदि कोई गांधी-नेहरू परिवार से राजनीति में सक्रिय होता तो, बाबरी मस्जिद नहीं गिरी होती”.इसे पी वी नरसिंह राव पर हमले के रूप में व्याख्या क्या गया था, जो 1992 में मस्जिद के विध्वंस के दौरान प्रधानमंत्री थे। गांधी के बयान ने भाजपा, समाजवादी पार्टी और वाम के कुछ सदस्यों के साथ विवाद शुरू कर दिया, दोनों “हिन्दू विरोधी” और “मुस्लिम विरोधी” के रूप में उन्हें उपाधि देकर . स्वतंत्रता सेनानियों और नेहरू-गांधी परिवार पर उनकी टिप्पणियों की BJP के नेता वेंकैया नायडू द्वारा आलोचना की गई है, जिन्होंने पुछा की “क्या गांधी परिवार आपातकाल लगाने की जिम्मेदारी लेगा?” 
2008 के आखिर में, राहुल गांधी पर लगी एक स्पष्ट रोक से उनकी शक्ति का पता चला। मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने गांधी को चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय में छात्रों को संबोधित करने के लिए सभागार का उपयोग करने से रोक दिया।  बाद में, राज्य के राज्यपाल श्री टी.वी.राजेश्वर (जो कुलाधिपति भी थे) ने विश्वविद्यालय के कुलपति वी.के.सूरी को हटा दि या। टी.वी.राजेश्वर गांधी परिवार के समर्थक और श्री सूरी के नियोक्ता थे। इस घटना को शिक्षा की राजनीति के साक्ष्य के रूप में उद्धृत किया गया और अजित निनान द्वारा टाइम्स ऑफ इंडिया में एक व्यंग्यचित्र में लिखा गया: “वंश संबंधित प्रश्न का उत्तर राहुल जी के पैदल सैनिकों द्वारा दिया जा रहा है।”
सेंट स्टीफेंस कॉलेज में उनका दाखिला विवादास्पद था क्योंकि एक प्रतिस्पर्धात्मक पिस्तौल निशानेबाज़ के रूप में उन्हें उनकी क्षमताओं के आधार पर कॉलेज में भर्ती किया गया था, जो विवादित था। उन्होंने शिक्षा के एक वर्ष के बाद 1990 में उस कॉलेज को छोड़ दिया था।
उनका बयान कि अपने कॉलेज सेंट स्टीफंस में उनके एक वर्ष के निवास के दौरान, कक्षा में सवाल पूछने वाले छात्रों को “छोटा समझा जाता था”, इस पर कॉलेज प्रशासन की तरफ से एक तीव्र प्रतिक्रिया हुई. कॉलेज-प्रबंधन ने कहा कि जब वह सेंट स्टीफेंस कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे, तब सवाल पूछना कक्षा में अच्छा नहीं माना जाता था और ज्यादा सवाल पूछना तो और भी नीचा माना जाता था। महाविद्यालय के शिक्षकों ने कहा कि राहुल गांधी का बयान ज्यादा से ज्यादा “उनका व्यक्तिगत अनुभव” हो सकता है | सेंट स्टीफेंस में शैक्षिक वातावरण की सामान्यत: ऐसा नहीं है।
जनवरी 2009 में ब्रिटेन के विदेश सचिव डेविड मिलीबैंड के साथ, उत्तर प्रदेश में उनके संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में, अमेठी के निकट एक गाँव में, उनकी “गरीबी पर्यटन यात्रा” की गंभीर आलोचना की गई थी। इसके अतिरिक्त,मिलीबैंड द्वारा आतंकवाद और पाकिस्तान पर दी गयी सलाह और श्री मुखर्जी तथा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ निजी मुलाकातों में उनके द्वारा किया गया आचरण इनकी “सबसे बड़ी कूटनीतिक भूल” मानी गयी

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